लेख शीर्षक: मद्रास हाईकोर्ट में भावुक क्षण — महिला वकील की निजी तस्वीरें हटाने का केंद्र को निर्देश
मद्रास हाईकोर्ट ने एक महिला वकील की ऑनलाइन प्रसारित निजी तस्वीरों और वीडियो को हटाने के लिए केंद्र सरकार को कड़ा निर्देश दिया है। इस सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश भावुक हो गए और खुले न्यायालय में कहा, “अगर यह महिला वकील मेरी बेटी होती तो क्या होता।”
Case Note
मामले का नाम: सुओ मोटो बनाम केंद्र सरकार एवं अन्य
न्यायालय: मद्रास उच्च न्यायालय (Madras High Court)
पीठ: न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश (Justice N. Anand Venkatesh)
प्रकृति: सिविल रिट याचिका (Digital Privacy & Cybercrime)
प्रकार: सुओ मोटो कार्यवाही (Court on its own motion)
मामले की पृष्ठभूमि:
- एक महिला वकील ने आरोप लगाया कि उसके कॉलेज के दिनों के एक पूर्व साथी ने उसकी निजी तस्वीरें और वीडियो उसकी जानकारी और सहमति के बिना रिकॉर्ड किए।
- वर्षों बाद इन सामग्रियों को सोशल मीडिया, व्हाट्सएप ग्रुप्स और अश्लील वेबसाइटों पर साझा कर दिया गया।
- याचिकाकर्ता ने पूर्व साथी और एक व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन के विरुद्ध 1 अप्रैल को शिकायत दर्ज करवाई, लेकिन कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई।
- पीड़िता ने न्यायालय की शरण ली।
मुख्य मुद्दे (Issues):
- क्या महिला वकील की निजता का उल्लंघन हुआ है?
- क्या सरकार और जांच एजेंसियों द्वारा उचित कार्रवाई नहीं की गई?
- क्या कोर्ट ऐसे डिजिटल अपराधों में स्वतः संज्ञान लेकर आदेश दे सकती है?
न्यायालय के विचार:
- न्यायालय ने माना कि याचिकाकर्ता अत्यधिक मानसिक पीड़ा से गुजर रही है।
- न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने अदालत में भावुक होकर कहा:
“अगर यह महिला वकील मेरी बेटी होती, तो क्या होता?”
निर्णय (Order):
- केंद्र सरकार (इलेक्ट्रॉनिक्स और आईटी मंत्रालय) को निर्देशित किया गया कि:
- 48 घंटे के भीतर सभी आपत्तिजनक तस्वीरें और वीडियो को इंटरनेट से ट्रेस कर हटाया जाए।
- सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और वेबसाइट्स से समन्वय कर उन्हें ब्लॉक किया जाए।
- 14 जुलाई तक अनुपालन रिपोर्ट दाखिल की जाए।
- पुलिस महानिदेशक (DGP) को प्रतिवादी बनाया गया।
- सभी संबंधित हितधारकों को आवश्यक निर्देश देने का आदेश।
महत्वपूर्ण बिंदु (Significance):
- यह निर्णय इंटरनेट पर महिलाओं की निजता की सुरक्षा और डिजिटल प्लेटफॉर्म पर साइबर अपराध के विरुद्ध कठोर रुख अपनाने का उदाहरण है।
- यह केस महिलाओं की गरिमा, डेटा सुरक्षा और राज्य की जिम्मेदारी पर महत्वपूर्ण न्यायिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
यह मामला एक महिला अधिवक्ता की निजता के गंभीर उल्लंघन से जुड़ा है, जिसमें कॉलेज के दिनों में बनाए गए वीडियो और तस्वीरों को बिना अनुमति के इंटरनेट पर प्रसारित कर दिया गया। पीड़िता ने बताया कि उसके पूर्व साथी ने निजी पलों को रिकॉर्ड कर वर्षों बाद सोशल मीडिया, मैसेजिंग ऐप्स और अश्लील वेबसाइटों पर साझा कर दिया। उन्होंने पहले 1 अप्रैल को शिकायत दी थी, लेकिन जब कोई प्रभावी कार्रवाई नहीं हुई तो वे अदालत की शरण में गईं।
भावनात्मक माहौल और न्यायाधीश की टिप्पणी
जस्टिस वेंकटेश ने इस मामले की गंभीरता को रेखांकित करते हुए कहा,
“मैं बस यही सोच रहा हूं कि अगर यह महिला वकील मेरी बेटी होती तो क्या होता। वह मानसिक रूप से बेहद पीड़ित है। मैं उससे मिलना चाहता था, लेकिन उसके टूटने के डर से अभी तक हिम्मत नहीं जुटा पाया।”
सरकार को 48 घंटे में कार्रवाई का आदेश
कोर्ट ने इस मामले में स्वतः संज्ञान लेते हुए इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय को निर्देश दिया कि:
- 48 घंटे के भीतर वायरल हो रही तस्वीरों और वीडियो को ट्रेस करें।
- संबंधित कंटेंट को ब्लॉक करें और इंटरनेट से हटाएं।
- 14 जुलाई तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करें।
साथ ही, पुलिस महानिदेशक को प्रतिवादी बनाते हुए सभी संबंधित हितधारकों को आवश्यक निर्देश जारी करने को भी कहा गया है।
पीड़िता की व्यथा और कानूनी लड़ाई
याचिकाकर्ता ने बताया कि पूर्व साथी ने न केवल बिना सहमति के रिकॉर्डिंग की, बल्कि उसे अश्लील प्लेटफॉर्म पर साझा भी किया। व्हाट्सएप ग्रुप एडमिन के खिलाफ भी शिकायत की गई थी, जो इस कंटेंट के प्रसार में शामिल था। लेकिन कोई ठोस कार्रवाई न होने से पीड़िता को न्यायालय का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
निष्कर्ष
इस फैसले ने एक बार फिर से इंटरनेट पर निजता और महिलाओं की गरिमा की रक्षा के प्रति न्यायपालिका की संवेदनशीलता को उजागर किया है। मद्रास हाईकोर्ट का यह कदम डिजिटल युग में पीड़ितों के अधिकारों की रक्षा की दिशा में एक महत्वपूर्ण संदेश है, जो भविष्य में इस तरह के मामलों में त्वरित और प्रभावी कार्रवाई के लिए नज़ीर बनेगा।