“स्वामित्व के दावे और विक्रय विलेख रद्दीकरण पर सुनवाई से पहले वाद खारिज नहीं किया जा सकता: गुजरात उच्च न्यायालय का निर्णय”
पूरा लेख:
गुजरात उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि जब वादकर्ता (Plaintiffs) संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे (Adverse Possession) के आधार पर स्वामित्व का दावा, विक्रय विलेख (Sale Deed) का निरस्तीकरण तथा स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) की मांग करते हैं, तो ऐसे वाद को केवल प्रारंभिक आपत्तियों के आधार पर Order 7 Rule 11 के तहत खारिज नहीं किया जा सकता।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
वादकर्ताओं ने दावा किया कि वे लम्बे समय से विवादित संपत्ति पर प्रतिकूल कब्जे के माध्यम से मालिक बन चुके हैं। उन्होंने अपने वाद में मांग की कि:
- उन्हें संपत्ति का स्वामित्व घोषित किया जाए (Declaration of Title),
- प्रतिवादी सं. 1 और 2 द्वारा प्रतिवादी सं. 3 के पक्ष में की गई पंजीकृत विक्रय विलेख (Registered Sale Deed) को शून्य और अमान्य घोषित किया जाए,
- और प्रतिवादियों के विरुद्ध स्थायी निषेधाज्ञा (Permanent Injunction) जारी की जाए।
प्रतिवादियों ने इसके विरुद्ध CPC की धारा Order 7 Rule 11(a) एवं (b) के अंतर्गत यह दलील दी कि वादकर्ताओं के पास कोई प्रथम दृष्टया कारण (Cause of Action) नहीं है और वाद सीमावधि (Limitation) में भी नहीं है, अतः वाद को प्रारंभिक स्तर पर ही खारिज कर दिया जाए।
ट्रायल कोर्ट का निर्णय:
ट्रायल कोर्ट ने प्रतिवादियों की याचिका को स्वीकार करते हुए वाद खारिज कर दिया।
अपील और उच्च न्यायालय का निर्णय:
वादकर्ताओं ने इस आदेश के विरुद्ध अपील दायर की और तर्क दिया कि उन्हें अपने दावों को मौखिक और दस्तावेजी साक्ष्यों के माध्यम से सिद्ध करने का पूरा अवसर दिया जाना चाहिए।
गुजरात उच्च न्यायालय ने अपीलीय निर्णय में कहा:
- वादकर्ता द्वारा प्रस्तुत विषय “विवाद योग्य मुद्दे” (Triable Issues) हैं जिन्हें पूर्ण परीक्षण (Full Trial) के माध्यम से ही निपटाया जा सकता है।
- Order 7 Rule 11 के तहत वाद तभी खारिज किया जा सकता है जब स्पष्ट रूप से यह सिद्ध हो कि वादकर्ता के दावे में कोई कानूनी आधार नहीं है — किंतु इस मामले में ऐसा नहीं है।
- ट्रायल कोर्ट का आदेश त्रुटिपूर्ण है और इसे न्याय के सिद्धांतों के विरुद्ध माना गया।
अदालत के निर्देश:
- ट्रायल कोर्ट का आदेश रद्द किया गया।
- मामला फिर से ट्रायल के लिए निचली अदालत को भेजा गया।
- ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया गया कि वह दो वर्षों के भीतर वाद का निर्णय करे।
- पक्षकारों को निर्देश दिया गया कि वे स्थिति यथावत (Status Quo) बनाए रखें।
निष्कर्ष:
यह निर्णय उन वादकर्ताओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो Adverse Possession या अमान्य विक्रय विलेख के आधार पर अपने स्वामित्व की रक्षा करना चाहते हैं। गुजरात उच्च न्यायालय ने दोहराया कि Order 7 Rule 11 एक अपवादात्मक प्रावधान है और इसका प्रयोग केवल तभी किया जाना चाहिए जब वाद स्पष्ट रूप से अवैध हो। इस निर्णय से न्यायालयों द्वारा न्यायिक जांच की गहराई और निष्पक्षता का सशक्त उदाहरण सामने आता है।