“बीमा कंपनी की देयता बनी रहेगी, यदि वाहन स्वामी वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्रस्तुत नहीं कर पाता: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का निर्णय”

“बीमा कंपनी की देयता बनी रहेगी, यदि वाहन स्वामी वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्रस्तुत नहीं कर पाता: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का निर्णय”

पूरा लेख:
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने हाल ही में Motor Vehicles Act, 1988 की धारा 147 के अंतर्गत बीमाकर्ता (इंश्योरर) की देयता से संबंधित एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है। न्यायमूर्ति संजय कुमार जैसवाल (J.) की पीठ ने यह स्पष्ट किया कि यदि वाहन चालक के पास वैध ड्राइविंग लाइसेंस नहीं था, फिर भी बीमा कंपनी मुआवजे की देनदार बनी रह सकती है, विशेष रूप से जब वाहन स्वामी (owner) बीमा शर्तों के उल्लंघन (policy breach) का खंडन करने हेतु वैध ड्राइविंग लाइसेंस प्रस्तुत करने में असमर्थ होता है।

अदालत ने कहा कि बीमा पॉलिसी की शर्तों का उल्लंघन (जैसे कि अवैध चालक द्वारा वाहन चलाना) सिद्ध होने के बावजूद, बीमा कंपनी तब भी मुआवजे की उत्तरदायी हो सकती है, यदि वाहन मालिक यह साबित करने में विफल रहता है कि उसने उचित सतर्कता बरती थी या यदि वह चालक का वैध लाइसेंस प्रस्तुत नहीं कर पाता।

इस निर्णय में न्यायालय ने दो बिंदुओं पर जोर दिया:

  1. बीमाकर्ता केवल तभी पॉलिसी शर्तों के उल्लंघन से बच सकता है जब यह प्रमाणित हो कि वाहन स्वामी ने जानबूझकर नियमों की अवहेलना की।
  2. यदि वाहन मालिक चालक के वैध ड्राइविंग लाइसेंस को प्रस्तुत नहीं करता, तो बीमा कंपनी की उत्तरदायित्व से मुक्ति नहीं मानी जाएगी।

यह निर्णय न केवल सार्वजनिक हित में दिया गया है, बल्कि यह सुनिश्चित करता है कि दुर्घटना पीड़ितों को न्याय मिले और तकनीकी आधारों पर मुआवजे से वंचित न किया जाए।

निष्कर्ष:
यह फैसला बीमा कानून की व्याख्या में एक मील का पत्थर है, जो यह दर्शाता है कि बीमा कंपनियाँ केवल तकनीकी चूक के आधार पर अपनी देनदारी से नहीं बच सकतीं, जब तक कि यह स्पष्ट रूप से साबित न हो कि वाहन स्वामी ने जानबूझकर लापरवाही की है।