“झूठे विवाह वादे के आधार पर सहमति से बने संबंध को बलात्कार नहीं माना जा सकता: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय – Amol Bhagwan Nehul बनाम महाराष्ट्र राज्य”
भूमिका:
भारतीय आपराधिक न्याय प्रणाली में “बलात्कार” जैसे गंभीर अपराध की व्याख्या समय-समय पर न्यायालयों द्वारा विकसित की जाती रही है, विशेषकर जब यह प्रश्न उठता है कि क्या झूठे विवाह के वादे पर आधारित सहमति से बना यौन संबंध बलात्कार की श्रेणी में आता है या नहीं। हाल ही में, सुप्रीम कोर्ट ने Amol Bhagwan Nehul बनाम महाराष्ट्र राज्य एवं अन्य वाद में यह स्पष्ट किया कि यदि यौन संबंध दोनों पक्षों की स्पष्ट सहमति से बने हों, और वादे में कोई प्रारंभिक धोखाधड़ी या कपट न हो, तो इसे बलात्कार नहीं कहा जा सकता।
प्रकरण की पृष्ठभूमि:
- 25 वर्षीय छात्र Amol Bhagwan Nehul पर यह आरोप था कि उसने एक महिला के साथ झूठे विवाह वादे के आधार पर यौन संबंध स्थापित किए।
- पीड़िता का आरोप था कि आरोपी ने विवाह का झूठा वादा करके उसके साथ शारीरिक संबंध बनाए और बाद में शादी से इनकार कर दिया।
- इसके आधार पर उसके विरुद्ध बलात्कार की धाराओं के अंतर्गत मामला दर्ज किया गया।
सुप्रीम कोर्ट का अवलोकन और निर्णय:
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की गहराई से जांच की और निम्नलिखित बिंदुओं पर विचार किया:
- सहमति (Consent) की प्रकृति:
न्यायालय ने यह माना कि यौन संबंध आपसी सहमति से स्थापित हुआ था और इसमें तत्कालिक या प्रारंभिक धोखाधड़ी के प्रमाण नहीं हैं। - विवाह का वादा और मानसिकता:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यदि किसी व्यक्ति ने ईमानदारी से विवाह करने का इरादा रखा हो, परंतु बाद में परिस्थितिवश वह विवाह नहीं कर पाया, तो उसे झूठा वादा नहीं कहा जा सकता। - सहमति को बलपूर्वक या धोखे से प्राप्त नहीं किया गया:
पीड़िता साक्षर, वयस्क, और समझदार महिला थी, जिसने स्वेच्छा से संबंध बनाए थे। - बलात्कार की धारा का दुरुपयोग:
सुप्रीम कोर्ट ने यह भी चेतावनी दी कि IPC की धारा 376 (बलात्कार) का अंधाधुंध प्रयोग करना और हर रिश्ते को आपराधिक रूप देना न्यायोचित नहीं है।
फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में बलात्कार का कोई तत्व नहीं है, और यह केवल एक टूटे हुए प्रेम-संबंध का मामला है जिसमें सहमति से संबंध बनाए गए थे।
इसलिए, FIR और आपराधिक कार्यवाही को निरस्त (quash) कर दिया गया।
महत्वपूर्ण विधिक बिंदु:
- धारा 376 IPC: बलात्कार की परिभाषा और दंड का प्रावधान।
- धारा 482 CrPC: आपराधिक कार्यवाही को समाप्त करने की उच्च न्यायालय/सुप्रीम कोर्ट की शक्ति।
न्यायिक महत्त्व:
यह निर्णय उन मामलों में मार्गदर्शक सिद्धांत प्रदान करता है जहां बलात्कार के आरोप सहमति से बने संबंधों के बाद लगाए जाते हैं। यह न्यायिक संतुलन बनाए रखने के लिए आवश्यक है कि हर वैवाहिक वादा असफल होने की स्थिति में आपराधिक मामला न बन जाए। अदालत ने स्पष्ट किया कि कानून का दुरुपयोग रोकना भी उतना ही आवश्यक है जितना कि पीड़ित को न्याय दिलाना।
निष्कर्ष:
Amol Bhagwan Nehul बनाम महाराष्ट्र राज्य वाद में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि हर विवाह-वादा असफल होने पर उसे बलात्कार करार नहीं दिया जा सकता, विशेषकर जब यौन संबंध स्पष्ट सहमति से बना हो और उसमें कोई कपट या धोखा प्रारंभ में न रहा हो। यह निर्णय व्यक्तिगत स्वतंत्रता, रिश्तों की स्वाभाविक जटिलताओं और आपराधिक कानून के संतुलित उपयोग की ओर एक महत्वपूर्ण संकेतक है।