“बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश: आधार के अनिवार्य प्रयोग पर ज़ोर देकर खाता खोलने में देरी करना गलत, यस बैंक को ₹50,000 हर्जाना देने का निर्देश”

“बॉम्बे हाईकोर्ट का आदेश: आधार के अनिवार्य प्रयोग पर ज़ोर देकर खाता खोलने में देरी करना गलत, यस बैंक को ₹50,000 हर्जाना देने का निर्देश”

परिचय:
बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यस बैंक (Yes Bank) को ₹50,000 का मुआवजा (compensation) अदा करने का निर्देश दिया है। यह आदेश बैंक द्वारा एक ग्राहक का खाता खोलने में अनुचित देरी करने और आधार कार्ड को अनिवार्य रूप से प्रस्तुत करने की ज़िद पर दिया गया है, जबकि ऐसा करना वैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं था। कोर्ट ने इसे उपभोक्ता अधिकारों और बैंकिंग नियमों का उल्लंघन माना।


मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला तब उठा जब एक व्यक्ति ने यस बैंक में खाता खोलने के लिए आवेदन किया लेकिन बैंक अधिकारियों ने केवल इस आधार पर आवेदन अस्वीकार कर दिया कि उसने आधार कार्ड प्रस्तुत नहीं किया। याची ने अन्य वैध पहचान पत्र, जैसे पैन कार्ड, पासपोर्ट, और वोटर आईडी पेश किए, फिर भी बैंक ने उन्हें स्वीकार करने से इनकार करते हुए केवल आधार कार्ड की मांग की।

याची ने इसे अपने मौलिक और वैधानिक अधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा और मामला बॉम्बे हाईकोर्ट में उठाया।


याची का तर्क:

  • आधार अधिनियम और सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के अनुसार, आधार को बैंक खाता खोलने के लिए अनिवार्य नहीं ठहराया जा सकता
  • याची ने समय पर सभी आवश्यक दस्तावेज उपलब्ध कराए थे, लेकिन बैंक की ज़िद के कारण अनावश्यक देरी हुई।
  • इससे याची को आर्थिक नुकसान और मानसिक तनाव का सामना करना पड़ा।

बॉम्बे हाईकोर्ट की टिप्पणियां और आदेश:
न्यायमूर्ति गोपाल एकनाथ गोडसे की पीठ ने मामले की गंभीरता को समझते हुए कहा:

“बैंक ग्राहकों के अधिकारों की अनदेखी नहीं कर सकता। जब अन्य वैध दस्तावेज मौजूद हैं, तब केवल आधार पर जोर देना न केवल अनुचित है, बल्कि सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का उल्लंघन भी है।”

न्यायालय द्वारा दिए गए निर्देश:

  1. यस बैंक को याची को ₹50,000 की क्षतिपूर्ति राशि 4 सप्ताह के भीतर अदा करनी होगी
  2. बैंक को भविष्य में ऐसे मामलों में ग्राहकों के वैध दस्तावेजों को स्वीकार करने के लिए निर्देशित किया गया
  3. कोर्ट ने कहा कि बैंकिंग सेवाएं आवश्यक सेवाओं में आती हैं, और इस प्रकार उनकी अवहेलना मौलिक अधिकारों का हनन हो सकती है।

कानूनी संदर्भ:

  • आधार अधिनियम, 2016 की धारा 7 के अनुसार, केवल सब्सिडी और लाभों के वितरण के लिए आधार की आवश्यकता हो सकती है।
  • सुप्रीम कोर्ट का फैसला (Puttaswamy Judgment, 2018) भी कहता है कि निजी कंपनियां आधार को अनिवार्य नहीं बना सकतीं।
  • RBI की KYC गाइडलाइंस आधार के साथ-साथ अन्य वैकल्पिक पहचान प्रमाणों को भी मान्यता देती हैं।

न्यायिक महत्त्व:
यह निर्णय उपभोक्ताओं के अधिकारों और बैंकों के कर्तव्यों को स्पष्ट करता है:

  • बैंक को केवल एक पहचान पत्र पर ज़ोर नहीं देना चाहिए, जब अन्य मान्य दस्तावेज उपलब्ध हों।
  • निजता और पहचान की स्वतंत्रता को बनाए रखना आवश्यक है, जो भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत संरक्षित है।
  • बैंकिंग सेवाओं से वंचित करना, विशेष रूप से तकनीकी या प्रशासनिक कारणों से, एक गंभीर संवैधानिक मुद्दा बन सकता है।

निष्कर्ष:
बॉम्बे हाईकोर्ट का यह फैसला एक स्पष्ट संदेश देता है कि भारत में ग्राहकों को अपनी पहचान साबित करने का अधिकार कई माध्यमों से है, और कोई भी संस्था उन्हें किसी एक दस्तावेज (जैसे आधार) तक सीमित नहीं कर सकती
यह आदेश केवल यस बैंक के लिए नहीं, बल्कि सभी बैंकों और निजी संस्थाओं के लिए एक चेतावनी है कि वे अपने नियम कानून की आड़ में ग्राहकों के अधिकारों का हनन न करें