“बेल नियम है, जेल अपवाद है — न्याय के मूल सिद्धांत की पुनः स्मृति: चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की महत्वपूर्ण टिप्पणी”
परिचय:
भारतीय न्यायपालिका के माननीय मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई ने हाल ही में आयोजित जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर मेमोरियल व्याख्यान के दौरान एक अत्यंत महत्वपूर्ण वैधानिक सिद्धांत को दोहराया —
“Bail is the rule and jail is the exception” (बेल नियम है और जेल अपवाद)।
उन्होंने कहा कि यह सिद्धांत भारतीय संविधान और न्यायिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा है, जिसे हाल के वर्षों में न्यायिक प्रक्रियाओं में कहीं न कहीं भुला दिया गया था। उन्होंने जोर देकर कहा कि मनीष सिसोदिया, के. कविता, और प्रबीर पुरकायस्थ जैसे मामलों में उन्होंने स्वयं इस सिद्धांत की याद दिलाई।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
इस सिद्धांत की जड़ें भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में हैं, जो जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश जस्टिस वी.आर. कृष्ण अय्यर ने इस सिद्धांत को न्यायिक विमर्श में दृढ़ता से स्थापित किया था। उनका मानना था कि किसी भी व्यक्ति को मुकदमे के दौरान अनावश्यक रूप से हिरासत में रखना न केवल न्याय का उल्लंघन है, बल्कि यह उसके मौलिक अधिकारों का भी हनन है।
मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी:
चीफ जस्टिस गवई ने स्पष्ट कहा:
“बेल नियम है और जेल अपवाद — यह न्याय का वह मूल सिद्धांत है जिसे पिछले कुछ समय से नजरअंदाज किया गया। मैंने सुप्रीम कोर्ट में बैठकर सिसोदिया, कविता और प्रबीर जैसे मामलों में इसकी याद दिलाई ताकि न्यायिक प्रणाली को उसके मूल सिद्धांतों की ओर वापस लाया जा सके।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि:
- जस्टिस कृष्ण अय्यर जैसे न्यायाधीशों की विरासत यह सिखाती है कि न्याय केवल दंड नहीं, बल्कि संवेदनशीलता और समानता का भी नाम है।
- भारत जैसे देश में जहाँ गिरफ्तारी और लंबी हिरासत गरीबों और वंचितों को disproportionate रूप से प्रभावित करती है, वहाँ बेल देना ही सामान्य प्रक्रिया होनी चाहिए।
समाज और न्याय का संबंध:
चीफ जस्टिस ने यह रेखांकित किया कि:
- न्यायिक व्यवस्था का उद्देश्य लोगों के मूल अधिकारों की रक्षा करना है, न कि उन्हें सज़ा देना जब तक कि अपराध सिद्ध न हो।
- गरीबी और असमानता को ध्यान में रखते हुए एक ऐसा समाजिक ढांचा विकसित किया जाना चाहिए, जिसमें हर नागरिक गरिमा के साथ जीवन जी सके।
मनीष सिसोदिया और अन्य मामलों का उल्लेख:
चीफ जस्टिस ने बताया कि उन्होंने व्यक्तिगत रूप से उन मामलों में न्यायिक पीठ का हिस्सा रहते हुए इस सिद्धांत की पुनः पुष्टि की जहाँ:
- गिरफ्तारी के पीछे ठोस आधार नहीं थे,
- जांच की प्रक्रिया लंबी चल रही थी,
- और आरोपी के भागने या साक्ष्य से छेड़छाड़ की कोई संभावना नहीं थी।
इन मामलों में न्यायिक विवेक का प्रयोग करते हुए बेल को प्राथमिकता दी गई।
निष्कर्ष:
चीफ जस्टिस बी.आर. गवई की यह टिप्पणी भारतीय न्यायपालिका के लिए एक विचारणीय और चेतावनीपूर्ण संदेश है। यह केवल एक सिद्धांत की पुनरावृत्ति नहीं, बल्कि न्याय के मूल स्वभाव की याद है —
कि जब तक अपराध सिद्ध न हो, व्यक्ति निर्दोष है।
‘बेल नियम है और जेल अपवाद’ केवल एक कानूनी सिद्धांत नहीं, बल्कि न्याय, समानता और स्वतंत्रता की आत्मा है।