“महिला वकीलों द्वारा बार काउंसिल में अन्य वकीलों के विरुद्ध की गई यौन उत्पीड़न शिकायतों पर POSH अधिनियम लागू नहीं होगा: बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“महिला वकीलों द्वारा बार काउंसिल में अन्य वकीलों के विरुद्ध की गई यौन उत्पीड़न शिकायतों पर POSH अधिनियम लागू नहीं होगा: बॉम्बे हाई कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

परिचय:
हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया कि ‘कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध और प्रतितोष) अधिनियम, 2013’ (POSH Act) महिला अधिवक्ताओं द्वारा बार काउंसिल में अन्य वकीलों के खिलाफ की गई यौन उत्पीड़न की शिकायतों पर लागू नहीं होता। यह निर्णय भारत की विधिक व्यवस्था में महिला अधिवक्ताओं की सुरक्षा को लेकर उत्पन्न एक जटिल कानूनी प्रश्न पर आधारित था।


प्रसंग:
एक महिला वकील ने बॉम्बे बार काउंसिल के समक्ष एक वरिष्ठ वकील पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज की थी और मांग की थी कि POSH अधिनियम के अंतर्गत आंतरिक शिकायत समिति (ICC) का गठन किया जाए। इस मांग पर विचार करते हुए उच्च न्यायालय ने अधिनियम की सीमाओं और दायरे पर विस्तृत टिप्पणी की।


न्यायालय का निष्कर्ष:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि –

  1. POSH अधिनियम विशेष रूप से उस स्थिति में लागू होता है, जब कोई महिला किसी ‘नियोक्ता’ के अधीन कार्यरत हो और उत्पीड़न कार्यस्थल पर हुआ हो।
  2. स्वतंत्र पेशेवर (Independent Professionals) जैसे कि अधिवक्ता, चिकित्सक, चार्टर्ड अकाउंटेंट आदि, जब स्वयं प्रैक्टिस करते हैं, तो वे किसी ‘नियोक्ता’ के अधीन नहीं होते। अतः वे POSH अधिनियम के ‘Employee’ की परिभाषा में नहीं आते।
  3. बार काउंसिल एक वैधानिक संस्था है जो अधिवक्ताओं की पंजीयन और अनुशासनिक मामलों का निपटारा करती है, लेकिन वह महिला वकीलों की ‘नियोक्ता’ नहीं मानी जा सकती।
  4. इस आधार पर कोर्ट ने कहा कि POSH Act के अंतर्गत आंतरिक शिकायत समिति की मांग स्वीकार्य नहीं है और इस अधिनियम के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होंगे।

महत्वपूर्ण टिप्पणियां:
न्यायमूर्ति नितिन जामदार और न्यायमूर्ति मनीष पिटले की पीठ ने कहा कि –

“POSH अधिनियम का उद्देश्य कार्यस्थल पर महिलाओं को यौन उत्पीड़न से संरक्षण देना है, लेकिन स्वतंत्र पेशेवरों को नियोक्ता-कर्मी संबंध से बाहर माना जाता है, इसलिए उनकी शिकायतें इस कानून के दायरे से बाहर होंगी।”


विकल्प और उपाय:
हालांकि POSH अधिनियम इस मामले में लागू नहीं होता, परंतु:

  • महिला अधिवक्ता अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए बार काउंसिल ऑफ इंडिया रूल्स के तहत शिकायत दर्ज कर सकती हैं।
  • ऐसे मामलों में न्याय की मांग के लिए फौजदारी कानूनों जैसे कि IPC की धारा 354 (शील भंग), 509 (शब्दों या संकेतों द्वारा अपमान), आदि का सहारा लिया जा सकता है।

निष्कर्ष:
यह निर्णय महिला अधिवक्ताओं की सुरक्षा और POSH अधिनियम की सीमाओं के संदर्भ में अत्यंत महत्वपूर्ण है। यद्यपि यह फैसला स्पष्ट करता है कि POSH अधिनियम स्वतंत्र पेशेवरों पर लागू नहीं होता, फिर भी इससे यह चिंता भी उत्पन्न होती है कि महिला अधिवक्ताओं के लिए एक प्रभावी और विशिष्ट शिकायत निवारण प्रणाली की आवश्यकता है।