51. विधिक सहायता और सामाजिक न्याय के बीच क्या संबंध है?
विधिक सहायता सामाजिक न्याय का महत्वपूर्ण स्तंभ है। संविधान के अनुच्छेद 39-A के अनुसार, राज्य का कर्तव्य है कि वह आर्थिक या अन्य असमर्थता के कारण किसी भी नागरिक को न्याय से वंचित न होने दे। विधिक सहायता से समाज के कमजोर वर्गों—जैसे महिलाएं, गरीब, श्रमिक, अनुसूचित जाति/जनजाति—को न्याय तक सुलभ पहुँच मिलती है। यह सामाजिक समानता और मानवाधिकारों की रक्षा सुनिश्चित करता है।
52. क्या विदेशी नागरिक भारत में PIL दायर कर सकता है?
हाँ, भारत में PIL दायर करने का अधिकार केवल नागरिकों तक सीमित नहीं है। यदि विदेशी नागरिक का कोई मामला भारत में सार्वजनिक हित से संबंधित है, तो वह PIL दाखिल कर सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि locus standi (प्रत्यक्ष हित) PIL में शिथिल होता है, और न्यायालय जनहित पर ध्यान देता है, न कि याचिकाकर्ता की नागरिकता पर।
53. विधिक सहायता को प्रभावी बनाने के लिए कौन-कौन से कदम आवश्यक हैं?
- विधिक सहायता शिविरों का विस्तार
- ग्रामीण क्षेत्रों में PLVs की नियुक्ति
- डिजिटल विधिक सहायता पोर्टल्स
- स्कूल/कॉलेजों में विधिक साक्षरता कार्यक्रम
- त्वरित सहायता के लिए हेल्पलाइन
- वकीलों की समयबद्ध नियुक्ति
- गुणवत्ता की निगरानी
इन प्रयासों से विधिक सहायता सशक्त और सुलभ बन सकती है।
54. क्या PIL के माध्यम से पुलिस सुधारों की मांग की जा सकती है?
हाँ, PIL के माध्यम से पुलिस प्रणाली में सुधार, पुलिस अत्याचार, हिरासत में मृत्यु, फर्जी एनकाउंटर, पुलिस प्रशिक्षण, और जवाबदेही से संबंधित मुद्दों पर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने Prakash Singh v. Union of India (2006) में PIL के आधार पर पुलिस सुधारों के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश दिए थे।
55. विधिक सहायता और ADR (वैकल्पिक विवाद समाधान) के बीच क्या संबंध है?
विधिक सहायता और ADR प्रणाली एक-दूसरे के पूरक हैं। विधिक सहायता प्राप्त व्यक्ति ADR विधियों जैसे – लोक अदालत, मध्यस्थता, पंचायती न्याय आदि के माध्यम से विवाद सुलझा सकता है। यह प्रक्रिया कम खर्चीली, त्वरित और सहज होती है। Legal Services Authority इन ADR मंचों तक पहुँच की सुविधा प्रदान करता है।
56. बाल अधिकारों की रक्षा में PIL की क्या भूमिका रही है?
PIL के माध्यम से बाल अधिकारों को संरक्षित किया गया है, जैसे –
- बाल श्रम पर प्रतिबंध
- स्कूलों में मिड-डे मील
- बालिकाओं की शिक्षा
- बच्चों के लिए न्याय मित्र (Child Counsel)
MC Mehta v. State of Tamil Nadu केस में सुप्रीम कोर्ट ने बाल श्रमिकों को हटाकर उनकी शिक्षा सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था।
57. NALSA द्वारा शुरू की गई कोई प्रमुख योजना बताएं।
“Legal Aid Clinics” योजना NALSA द्वारा शुरू की गई एक महत्वपूर्ण पहल है। इसके तहत गाँवों और शहरी क्षेत्रों में ऐसे केंद्र खोले जाते हैं जहाँ प्रशिक्षित PLVs व वकील आम जनता को कानूनी सलाह व सहायता प्रदान करते हैं। इसका उद्देश्य न्याय को अंतिम व्यक्ति तक पहुँचाना है।
58. क्या लोक अदालत में आपराधिक मामले सुलझाए जा सकते हैं?
हाँ, लेकिन केवल वे आपराधिक मामले जो संधीय (Compoundable Offences) हैं, जैसे – मारपीट, गाली-गलौज, वैवाहिक विवाद, 138 NI Act के अंतर्गत चेक बाउंस आदि। गंभीर आपराधिक मामले (Non-compoundable offences) जैसे हत्या, बलात्कार आदि लोक अदालत में नहीं सुलझाए जा सकते।
59. क्या उच्चतम न्यायालय द्वारा पारित आदेश PIL के माध्यम से नीति निर्माण को प्रभावित कर सकते हैं?
हाँ, PIL के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों से सरकारें नीतिगत निर्णय लेने के लिए बाध्य होती हैं। उदाहरण – Vishaka Guidelines (1997) के आधार पर कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के विरुद्ध कानून बना। ऐसे अनेक मामलों में न्यायालय का आदेश सामाजिक सुधार का आधार बना।
60. क्या PIL गुमनाम रूप से दायर की जा सकती है?
सामान्यतः PIL दायर करते समय याचिकाकर्ता की पहचान स्पष्ट होनी चाहिए। लेकिन यदि मामला अत्यंत संवेदनशील है और याचिकाकर्ता की सुरक्षा को खतरा है, तो कोर्ट उसकी पहचान गोपनीय रख सकता है या मामले को In-camera सुनवाई हेतु आदेशित कर सकता है। पूर्ण गुमनामी केवल विशेष परिस्थितियों में दी जाती है।
61. जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) के प्रमुख क्या कार्य होते हैं?
DLSA निम्नलिखित कार्य करता है:
- पात्र लोगों को मुफ्त विधिक सहायता प्रदान करना
- लोक अदालतों का आयोजन
- PLVs की नियुक्ति
- विधिक जागरूकता कार्यक्रम
- जेलों में विधिक सेवा क्लिनिक संचालन
- ADR साधनों को बढ़ावा देना
DLSA न्याय को स्थानीय स्तर तक पहुँचाने में प्रमुख भूमिका निभाता है।
62. लोक अदालत में वकीलों की भूमिका क्या होती है?
लोक अदालत में वकील पक्षकारों को सलाह देते हैं, उनके बीच सुलह करवाते हैं, समझौते का मसौदा तैयार करते हैं और अदालत को सौंपते हैं। वे मध्यस्थ की भूमिका भी निभा सकते हैं। उनका उद्देश्य पक्षकारों को आपसी समझौते के लिए प्रेरित करना होता है, न कि मुकदमे को लंबा खींचना।
63. PIL और writ petition में कानूनी दृष्टिकोण से मुख्य अंतर क्या है?
आधार | PIL | Writ Petition |
---|---|---|
उद्देश्य | जनहित | व्यक्तिगत अधिकार |
दायरकर्ता | कोई भी | पीड़ित व्यक्ति |
क्षेत्र | व्यापक सामाजिक मुद्दे | मौलिक अधिकार का हनन |
कानूनी प्रकृति | लचीली | तकनीकी रूप से बाध्य |
PIL में locus standi (हितधारकता) की आवश्यकता नहीं होती। |
64. क्या PIL के दुरुपयोग को रोकने के लिए कोई दंडात्मक व्यवस्था है?
हाँ, सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों ने कई बार फर्जी या व्यक्तिगत स्वार्थ वाली PIL दायर करने पर याचिकाकर्ताओं पर जुर्माना लगाया है। यदि न्यायालय को लगे कि PIL सार्वजनिक हित नहीं बल्कि निजी प्रचार या प्रतिशोध हेतु दायर की गई है, तो वह इसे खारिज करके दंडात्मक कार्यवाही कर सकता है।
65. विधिक सहायता के क्षेत्र में डिजिटल पहल का क्या महत्त्व है?
डिजिटल पहलें जैसे –
- NALSA Portal
- e-Lok Adalat
- 15100 Helpline
- Online Legal Aid Application
इनसे लोगों को घर बैठे कानूनी जानकारी, सहायता और सेवा मिल रही है। खासकर ग्रामीण व दूरस्थ क्षेत्रों में डिजिटल पहल न्याय की पहुँच को व्यापक बना रही हैं। यह विधिक सेवा को पारदर्शी, त्वरित और अधिक प्रभावी बनाता है।
यह रहे Legal Aid (विधिक सहायता), Lok Adalat (लोक अदालत), और PILs (जनहित याचिका) से संबंधित प्रश्न 66 से 87 तक के लघु उत्तर (प्रत्येक 150–200 शब्दों में), जो आपकी परीक्षा और व्यवहारिक जागरूकता दोनों के लिए अत्यंत उपयोगी हैं:
66. क्या ट्रांसजेंडर व्यक्ति विधिक सहायता के पात्र हैं?
हाँ, Legal Services Authorities Act, 1987 के अंतर्गत ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को भी निःशुल्क विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है। NALSA v. Union of India (2014) के ऐतिहासिक निर्णय में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडरों को “थर्ड जेंडर” के रूप में मान्यता दी और उनके अधिकारों की सुरक्षा के लिए निर्देश जारी किए। इसके बाद से विधिक सेवा प्राधिकरणों ने इन्हें पात्र वर्ग में शामिल किया।
67. क्या विधिक सहायता केवल अदालतों तक सीमित है?
नहीं, विधिक सहायता केवल अदालतों तक सीमित नहीं है। यह वकील की नियुक्ति, वाद दाखिल करने, कानूनी सलाह, समझौता वार्ता, मध्यस्थता, दस्तावेज़ों की तैयारी, और लोक अदालतों तक प्रतिनिधित्व तक विस्तृत है। इसका उद्देश्य व्यापक रूप से नागरिकों को कानूनी अधिकारों की जानकारी और न्याय तक पहुँच सुनिश्चित करना है।
68. क्या कोई NGO PIL दायर कर सकता है?
हाँ, कोई भी NGO या सामाजिक संस्था, जो जनहित में कार्य करती है, PIL दायर कर सकती है। अनेक ऐतिहासिक PIL जैसे पर्यावरण संरक्षण, बाल अधिकार, महिला सुरक्षा, आदिवासी हित आदि में NGO द्वारा याचिकाएं दाखिल की गई हैं। Society for Citizens Vigilance Initiative व PUCL (People’s Union for Civil Liberties) जैसे संगठनों ने कई जनहित मामलों में प्रभावशाली भूमिका निभाई है।
69. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) में PIL का क्या योगदान है?
PIL न्यायिक सक्रियता को प्रोत्साहन देने का प्रमुख साधन है। इसके माध्यम से न्यायालय सामाजिक अन्याय, पर्यावरणीय क्षरण, मानवाधिकार हनन, प्रशासनिक लापरवाही जैसे मामलों में स्वयं पहल लेकर समाजहित में हस्तक्षेप करता है। न्यायिक सक्रियता के चलते विधायिका और कार्यपालिका भी जनहित की ओर उत्तरदायी बनती है।
70. क्या वंचित वर्गों के लिए लोक अदालत में प्राथमिकता दी जाती है?
हाँ, विधिक सेवा प्राधिकरण वंचित वर्गों जैसे महिलाएं, वृद्धजन, विकलांग, गरीब, अनुसूचित जाति/जनजाति आदि को लोक अदालत में वरीयता देता है। उन्हें मुकदमे में प्रतिनिधित्व हेतु पैनल वकील, दस्तावेज़ सहायता और निःशुल्क सलाह दी जाती है ताकि वे शीघ्र और सुलभ न्याय प्राप्त कर सकें।
71. क्या मानहानि जैसे दीवानी मामलों का निपटारा लोक अदालत में हो सकता है?
हाँ, यदि दोनों पक्ष आपसी सहमति से समझौते के लिए तैयार हों तो मानहानि जैसे दीवानी मामले भी लोक अदालत में सुलझाए जा सकते हैं। हालांकि, यदि मामला बहुत गंभीर या संवेदनशील हो, तो न्यायालय निर्णय लोक अदालत के बजाय सामान्य प्रक्रिया से कराने का सुझाव दे सकता है।
72. क्या लोक अदालतों में निर्णय सार्वजनिक रूप से घोषित किए जाते हैं?
लोक अदालतों में प्रक्रिया अनौपचारिक और सुलह आधारित होती है। निर्णय सामान्यतः अदालत में ही मौखिक रूप से पक्षकारों को समझाकर बताया जाता है और फिर आदेश लिखित रूप से दिया जाता है। गोपनीयता बनाकर निर्णय दिया जाता है ताकि किसी पक्ष को मानसिक कष्ट या सामाजिक शर्मिंदगी न हो।
73. विधिक सहायता में “Pre-Litigation” सहायता का क्या अर्थ है?
Pre-Litigation Assistance का अर्थ है – किसी मामले को अदालत में लाने से पहले ही कानूनी सलाह, विवाद समाधान, दस्तावेज़ सहायता या मध्यस्थता के माध्यम से समाधान प्रदान करना। इससे मुकदमा दायर करने की आवश्यकता नहीं पड़ती और समय व धन दोनों की बचत होती है। लोक अदालतें और मध्यस्थता केंद्र इस क्षेत्र में सक्रिय हैं।
74. क्या PIL के द्वारा धार्मिक स्थलों से संबंधित विवाद उठाए जा सकते हैं?
हाँ, लेकिन सावधानीपूर्वक। यदि कोई धार्मिक स्थल सार्वजनिक स्वास्थ्य, पर्यावरण, यातायात या सुरक्षा को प्रभावित कर रहा हो, तो उस संदर्भ में PIL दायर की जा सकती है। न्यायालय ऐसे मामलों में जनहित और संवेदनशीलता के संतुलन को ध्यान में रखते हुए निर्णय देता है। Ayodhya मामले जैसे संवेदनशील विषय सामान्य PIL की श्रेणी में नहीं आते।
75. e-Courts परियोजना विधिक सहायता में कैसे सहायक है?
e-Courts Project न्यायालयों के डिजिटलीकरण की योजना है, जिससे वादियों को ऑनलाइन मुकदमे की स्थिति, दस्तावेज़, फैसले, तिथि आदि की जानकारी मिलती है। इससे विधिक सहायता प्राप्त लोगों को वकीलों से संपर्क, केस की निगरानी और शिकायतों की जानकारी सुलभ होती है। यह न्याय तक डिजिटल पहुँच का सशक्त माध्यम है।
76. क्या सेना के जवान या उनके परिवारजन विधिक सहायता प्राप्त कर सकते हैं?
हाँ, सेना, अर्धसैनिक बलों और उनके आश्रितों को भी विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा विधिक सहायता प्रदान की जाती है। विशेष शिविरों के माध्यम से सैनिक परिवारों को ज़मीनी विवाद, पेंशन समस्या, घरेलू मामलों, आदि में सहायता दी जाती है। SLSA और DLSA इस हेतु विशेष योजनाएँ संचालित करते हैं।
77. क्या विधिक सहायता का लाभ आपराधिक अपील मामलों में भी मिलता है?
हाँ, आपराधिक मामलों में यदि आरोपी आर्थिक रूप से कमजोर है या जेल में है और वह निर्णय के विरुद्ध अपील करना चाहता है, तो उसे विधिक सहायता मिल सकती है। उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट में भी मुफ्त वकील उपलब्ध कराए जाते हैं ताकि वह निष्पक्ष न्याय प्राप्त कर सके।
78. लोक अदालत में एक बार हुआ समझौता क्या हमेशा बाध्यकारी होता है?
हाँ, यदि दोनों पक्षों की पूर्ण सहमति से लोक अदालत में समझौता होता है तो वह CPC की धारा 21 के अंतर्गत न्यायिक आदेश के रूप में मान्य होता है और बाध्यकारी होता है। इसके विरुद्ध सामान्यतः अपील नहीं की जा सकती। यदि धोखाधड़ी या गलत जानकारी से समझौता हुआ हो तो उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
79. क्या एक ही विषय पर अनेक PIL दाखिल की जा सकती हैं?
न्यायालय सामान्यतः एक ही विषय पर पहले से लंबित PIL के रहते नई PIL स्वीकार नहीं करता। यदि नयी PIL में अलग दृष्टिकोण, नई घटनाएं, या विस्तृत जनहित का मामला हो, तो न्यायालय विचार कर सकता है। अन्यथा यह res judicata के सिद्धांत के अंतर्गत खारिज की जा सकती है।
80. विधिक सहायता में “मुक्त परामर्श” की क्या अवधारणा है?
“मुक्त परामर्श” (Free Legal Advice) का अर्थ है – किसी भी पात्र व्यक्ति को बिना मुकदमा दायर किए, उसके कानूनी प्रश्नों पर निःशुल्क सलाह देना। यह सहायता विधिक सेवा क्लिनिक, PLVs, हेल्पलाइन, और ऑनलाइन माध्यमों से प्रदान की जाती है। इसका उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों और संभावित कानूनी उपायों की जानकारी देना है।
81. क्या PIL पर दिए गए निर्णय सभी नागरिकों पर लागू होते हैं?
हाँ, यदि सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट किसी PIL में कोई आदेश या दिशा-निर्देश देता है जो व्यापक जनहित से जुड़ा है, तो वह Binding Precedent के रूप में सभी नागरिकों और संस्थानों पर लागू होता है। जैसे – पर्यावरण मानदंड, शिक्षा अधिकार, कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा से जुड़े फैसले।
82. क्या कोई पत्रकार PIL दायर कर सकता है?
हाँ, पत्रकार यदि किसी सामाजिक, पर्यावरणीय, प्रशासनिक या मानवाधिकार उल्लंघन से संबंधित जनहित का मामला उजागर करता है, तो वह PIL दायर कर सकता है। मीडिया की भूमिका PIL के लिए सूचना स्रोत के रूप में भी होती है। कई बार समाचार रिपोर्ट के आधार पर न्यायालय Suo Moto कार्रवाई करता है।
83. क्या PIL में मौखिक आवेदन स्वीकार होता है?
सामान्यतः PIL लिखित याचिका के रूप में दाखिल होती है, परंतु सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय कुछ मामलों में पत्र, ईमेल, या समाचार कटिंग को भी याचिका मानकर स्वीकार कर सकते हैं। विशेष रूप से जब याचिकाकर्ता असहाय हो या तकनीकी ज्ञान न रखता हो।
84. क्या विधिक सहायता में वकील का चयन लाभार्थी स्वयं कर सकता है?
आमतौर पर विधिक सेवा प्राधिकरण पैनल वकीलों में से किसी एक को नियुक्त करता है। लेकिन यदि लाभार्थी किसी विशेष पैनल वकील को चाहता है और वह सहमत हो, तो उसे नियुक्त किया जा सकता है। गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए प्राधिकरण की मंजूरी आवश्यक होती है।
85. क्या लोक अदालतें ग्राम पंचायत स्तर पर भी आयोजित होती हैं?
हाँ, कई राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण ग्राम न्यायालय और ग्राम स्तर की लोक अदालतें आयोजित करते हैं, जिससे ग्रामीणों को उनके गाँव में ही न्याय मिल सके। इन अदालतों में छोटे-मोटे विवाद जैसे ज़मीन, पानी, घरेलू विवाद, मजदूरी आदि का निपटारा किया जाता है।
86. क्या पर्यावरणीय आपदा के मामलों में PIL प्रभावी उपाय है?
बिल्कुल। PIL के माध्यम से पर्यावरणीय आपदाओं जैसे – नदी प्रदूषण, औद्योगिक गैस रिसाव, जंगल कटाई, अवैध खनन आदि पर नियंत्रण और मुआवजा सुनिश्चित किया जा सकता है। MC Mehta और Vellore Citizens Forum जैसे मामलों ने यह सिद्ध किया कि PIL पर्यावरण सुरक्षा का प्रभावी औजार है।
87. क्या विधिक सहायता का दुरुपयोग हो सकता है?
दुर्भाग्य से, कुछ मामलों में लोग झूठे दस्तावेज़ों या उद्देश्यों से निःशुल्क विधिक सहायता लेने की कोशिश करते हैं। इसलिए प्रत्येक प्राधिकरण आवेदन की जांच करता है। यदि किसी पर विधिक सहायता के दुरुपयोग का आरोप सिद्ध होता है, तो उसकी सहायता निरस्त की जा सकती है और दंडात्मक कार्रवाई भी संभव है।
87. क्या विधिक सहायता केवल वादियों को ही दी जाती है?
नहीं, विधिक सहायता केवल वादियों (Plaintiffs) को ही नहीं, बल्कि प्रतिवादियों (Defendants), अपीलकर्ताओं (Appellants), विचाराधीन कैदियों, और यहाँ तक कि गवाहों को भी कुछ विशेष परिस्थितियों में मिल सकती है। इसका उद्देश्य मुकदमे के निष्पक्ष संचालन को सुनिश्चित करना है। Criminal cases में आरोपी को भी विधिक सहायता मिल सकती है, विशेषकर यदि वह आर्थिक रूप से कमजोर हो।
88. PIL के माध्यम से किस प्रकार के श्रमिक मुद्दे उठाए जा सकते हैं?
PIL के ज़रिए श्रमिकों के न्यूनतम वेतन, कार्यस्थल की सुरक्षा, बाल श्रम, बंधुआ मज़दूरी, पेंशन और सामाजिक सुरक्षा जैसे मुद्दे उठाए जा सकते हैं। Bandhua Mukti Morcha और People’s Union for Democratic Rights v. Union of India जैसे केसों में न्यायालय ने श्रमिकों के हित में निर्णय दिए हैं। इससे श्रमिकों के संवैधानिक और विधिक अधिकारों की रक्षा होती है।
89. क्या लोक अदालत का निर्णय हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा सकती है?
सामान्यतः नहीं। लोक अदालत का निर्णय आपसी सहमति पर आधारित होता है और वह अंतिम व बाध्यकारी होता है। परंतु यदि समझौता धोखाधड़ी, ज़बरदस्ती या गलत सूचना के आधार पर हुआ हो, तो पक्षकार उच्च न्यायालय में writ petition या अपील के माध्यम से चुनौती दे सकता है।
90. NALSA द्वारा “बच्चों के लिए विधिक सेवा” योजना का क्या उद्देश्य है?
NALSA की यह योजना बच्चों को कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए चलाई जाती है, विशेषकर बाल अपराधी, अनाथ, बाल श्रमिक, या मानव तस्करी के शिकार बच्चों के लिए। इसके अंतर्गत उन्हें मुफ्त वकील, परामर्श, पुनर्वास सहायता, बाल कल्याण समिति से संपर्क आदि की सुविधा दी जाती है।
91. क्या PIL सरकारी नीतियों के विरुद्ध दायर की जा सकती है?
हाँ, यदि कोई सरकारी नीति मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करती है, या जनहित के विरुद्ध है, तो PIL के माध्यम से उसे चुनौती दी जा सकती है। लेकिन न्यायालय नीति निर्माण के क्षेत्र में तभी हस्तक्षेप करता है जब वह मनमानी, भेदभावपूर्ण या असंवैधानिक हो। PIL का उद्देश्य प्रशासन को जवाबदेह बनाना है, न कि उसकी नीति में सीधे हस्तक्षेप करना।
92. क्या PIL केवल सुप्रीम कोर्ट या हाईकोर्ट में ही दायर की जा सकती है?
हाँ, PIL सिर्फ सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32) या हाईकोर्ट (अनुच्छेद 226) में ही दायर की जा सकती है, क्योंकि ये संविधान प्रदत्त मौलिक अधिकारों की रक्षा हेतु रिट की शक्ति रखते हैं। निचली अदालतों में PIL की अवधारणा लागू नहीं होती।
93. क्या इंटरनेट के माध्यम से भी विधिक सहायता प्राप्त की जा सकती है?
हाँ, NALSA, SLSA और DLSA के पोर्टलों पर ऑनलाइन आवेदन करके विधिक सहायता प्राप्त की जा सकती है। इसके अलावा, कई राज्यों ने ई-मेल, मोबाइल ऐप और वीडियो कॉल के माध्यम से विधिक परामर्श की सुविधा भी शुरू की है। इससे न्याय तक डिजिटल पहुँच संभव हो रही है।
94. PIL और RTI के बीच क्या संबंध है?
RTI (सूचना का अधिकार) के माध्यम से प्राप्त जानकारी के आधार पर PIL दाखिल की जा सकती है। RTI जनहित से जुड़े मुद्दों जैसे – भ्रष्टाचार, पर्यावरणीय क्षति, जनसेवा में लापरवाही आदि के प्रमाण जुटाने का सशक्त माध्यम है। PIL और RTI मिलकर न्याय और पारदर्शिता की दिशा में काम करते हैं।
95. क्या विधिक सहायता केवल स्थायी भारतीय नागरिकों को ही मिलती है?
नहीं, विधिक सहायता का उद्देश्य मानवाधिकारों की रक्षा है, इसलिए यह भारत में रहने वाले अस्थायी प्रवासी, शरणार्थी, और विदेशियों को भी मिल सकती है, बशर्ते मामला भारतीय कानूनों के अंतर्गत आता हो। जैसे – मानव तस्करी के शिकार विदेशी नागरिकों को भी विधिक सहायता मिल सकती है।
96. क्या लोक अदालत में केवल प्रचलित (Pending) मामले ही निपटाए जा सकते हैं?
नहीं, लोक अदालत में Pending cases के साथ-साथ Pre-Litigation यानी मुकदमे से पहले के विवादों का भी निपटारा किया जा सकता है। इससे न्यायालयों में मुकदमा दायर होने से पहले ही विवाद सुलझ जाता है और न्याय प्रणाली पर बोझ कम होता है।
97. क्या विधिक सहायता में सिविल मुकदमों में अपील की सुविधा मिलती है?
हाँ, यदि किसी निर्धन व्यक्ति का सिविल मुकदमे में निर्णय प्रतिकूल हो और वह अपील करना चाहता है, तो उसे निःशुल्क विधिक सहायता मिल सकती है। SLSA या DLSA उसकी पात्रता की समीक्षा करके फ्री पैनल वकील की नियुक्ति कर सकता है।
98. क्या PIL दायर करने के लिए अधिवक्ता होना आवश्यक है?
नहीं, PIL दायर करने के लिए अधिवक्ता होना आवश्यक नहीं है। कोई भी सामान्य नागरिक, NGO, सामाजिक कार्यकर्ता, या प्रभावित व्यक्ति की ओर से कोई अन्य व्यक्ति PIL दाखिल कर सकता है, बशर्ते मामला जनहित का हो और उचित रूप से प्रस्तुत किया गया हो।
99. क्या लोक अदालतों में भाषा की बाधा होती है?
लोक अदालतें अनौपचारिक होती हैं, अतः स्थानीय भाषा या क्षेत्रीय भाषा का प्रयोग किया जाता है, जिससे पक्षकारों को अपनी बात रखने में सुविधा हो। मध्यस्थ और वकील भी सरल भाषा में संवाद करते हैं। इससे अनपढ़ या ग्रामीण पक्षकार भी अपनी बात स्पष्ट रूप से कह पाते हैं।
100. न्यायपालिका ने PIL के माध्यम से समाज में कौन-कौन से प्रमुख सुधार लाए हैं?
PIL के माध्यम से भारतीय न्यायपालिका ने अनेक सामाजिक सुधार किए हैं, जैसे –
- Vishaka Guidelines द्वारा कार्यस्थल पर महिला सुरक्षा
- MC Mehta Cases द्वारा पर्यावरण संरक्षण
- Bandhua Mukti Morcha द्वारा बंधुआ मजदूरी उन्मूलन
- Right to Food Case द्वारा खाद्य सुरक्षा
- PUCL Cases द्वारा पुलिस सुधार
इन निर्णयों ने सरकार को जवाबदेह बनाया और सामाजिक न्याय की अवधारणा को मजबूत किया।