1. विधिक सहायता (Legal Aid) क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
विधिक सहायता का अर्थ है – आर्थिक रूप से कमजोर, अशिक्षित या असहाय नागरिकों को निःशुल्क कानूनी सेवा उपलब्ध कराना। इसका उद्देश्य न्याय तक सभी की समान पहुँच सुनिश्चित करना है। अनुच्छेद 39-A संविधान में राज्य को निर्देशित करता है कि वह न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करे। Legal Services Authorities Act, 1987 के तहत राष्ट्रीय, राज्य और जिला स्तर पर विधिक सेवा प्राधिकरण कार्य करते हैं। यह सहायता गरीबों, महिलाओं, बच्चों, अनुसूचित जातियों/जनजातियों, पीड़ितों आदि को प्राप्त होती है।
2. विधिक सेवा प्राधिकरण (Legal Services Authority) की संरचना क्या है?
Legal Services Authority Act, 1987 के तहत तीन स्तरों पर विधिक सेवा प्राधिकरण स्थापित किए गए हैं:
- राष्ट्रीय विधिक सेवा प्राधिकरण (NALSA) – सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश इसके अध्यक्ष होते हैं।
- राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA) – प्रत्येक राज्य में उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अध्यक्ष होते हैं।
- जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA) – जिला जज इसके अध्यक्ष होते हैं।
ये सभी संस्थाएँ जरूरतमंदों को कानूनी सहायता, जागरूकता, और लोक अदालतों का संचालन करती हैं।
3. लोक अदालत (Lok Adalat) क्या होती है?
लोक अदालत एक वैकल्पिक विवाद समाधान मंच है, जिसमें वादों का निपटारा आपसी सहमति से त्वरित और अनौपचारिक तरीके से किया जाता है। इसमें न्यायाधीश, वकील और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर विवाद निपटाते हैं। इसका निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है, और इसके विरुद्ध कोई अपील नहीं होती। यह प्रक्रिया सरल, सस्ती और जनहित में होती है।
4. लोक अदालतों में किन प्रकार के वादों का निपटारा किया जाता है?
लोक अदालतों में निम्नलिखित वादों का निपटारा किया जा सकता है:
- मोटर दुर्घटना मुआवजा मामले
- बैंक ऋण वसूली
- वैवाहिक विवाद
- श्रमिक विवाद
- भूमि विवाद
- चेक बाउंस मामले (धारा 138 NI Act)
- बिजली व पानी के बिल संबंधी मामले
शर्त यह है कि दोनों पक्ष आपसी सहमति से विवाद सुलझाने को तैयार हों।
5. जनहित याचिका (PIL) क्या होती है?
जनहित याचिका (Public Interest Litigation – PIL) ऐसी याचिका है जिसे कोई भी व्यक्ति समाज के किसी वर्ग या जनसामान्य के हित में उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय में दाखिल कर सकता है, भले ही वह स्वयं पीड़ित न हो। इसका उद्देश्य है – कमजोर वर्गों को न्याय, पर्यावरण संरक्षण, भ्रष्टाचार पर रोक, प्रशासनिक लापरवाही आदि को संबोधित करना।
6. PIL दायर करने की प्रक्रिया क्या है?
PIL दायर करने हेतु कोई भी व्यक्ति/NGO सीधे हाईकोर्ट (धारा 226) या सुप्रीम कोर्ट (अनुच्छेद 32) में याचिका दाखिल कर सकता है। इसमें कोर्ट जनहित को प्राथमिकता देता है, और सामान्य तकनीकी बाधाओं की अनदेखी की जाती है। कई बार कोर्ट स्वयं Suo Moto भी PIL स्वीकार करता है।
7. विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए पात्रता क्या है?
Legal Services Authorities Act, 1987 के अनुसार, निम्नलिखित को मुफ्त विधिक सहायता प्राप्त करने का अधिकार है:
- अनुसूचित जाति / जनजाति
- महिलाएं और बच्चे
- विकलांग व्यक्ति
- औद्योगिक श्रमिक
- हिरासत में बंद व्यक्ति
- 3 लाख रुपये से कम वार्षिक आय वाले लोग (राज्य के अनुसार भिन्न)
इन पात्र वर्गों को आवेदन देकर सहायता मिल सकती है।
8. लोक अदालत और सामान्य अदालत में क्या अंतर है?
पहलु | लोक अदालत | सामान्य अदालत |
---|---|---|
प्रक्रिया | अनौपचारिक | औपचारिक |
समय | त्वरित | लंबा |
खर्च | न्यूनतम | अधिक |
अपील | नहीं होती | होती है |
उद्देश्य | आपसी सहमति से समाधान | निर्णय थोपना |
लोक अदालत अधिक लचीली, सस्ती और समय बचाने वाली व्यवस्था है।
9. NALSA का उद्देश्य और कार्य क्या है?
NALSA (National Legal Services Authority) की स्थापना 1995 में हुई। इसका मुख्य उद्देश्य समाज के कमजोर वर्गों को मुफ्त विधिक सहायता देना, विधिक साक्षरता फैलाना और लोक अदालतों का आयोजन करना है। NALSA “एक राष्ट्र, एक न्याय” की अवधारणा को साकार करने का माध्यम है।
10. PIL के माध्यम से मिले कुछ ऐतिहासिक निर्णय कौन-कौन से हैं?
- MC Mehta v. Union of India – गंगा नदी प्रदूषण नियंत्रण
- Vishaka v. State of Rajasthan – कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न से सुरक्षा
- Hussainara Khatoon Case – विचाराधीन कैदियों के अधिकार
- Bandhua Mukti Morcha – बंधुआ मजदूरी पर रोक
इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने जनहित में ऐतिहासिक निर्देश जारी किए।
11. विधिक साक्षरता का विधिक सहायता से क्या संबंध है?
विधिक सहायता तभी प्रभावी हो सकती है जब लोगों को उनके अधिकारों और कानून की जानकारी हो। विधिक साक्षरता से नागरिक कानून को समझते हैं और सहायता प्राप्त करने में सक्षम होते हैं। इसलिए, NALSA व SLSA समय-समय पर विधिक जागरूकता शिविर आयोजित करते हैं।
12. क्या लोक अदालत का निर्णय बाध्यकारी होता है?
हाँ, लोक अदालत का निर्णय अंतिम और बाध्यकारी होता है। इसके विरुद्ध अपील नहीं की जा सकती। यह भारतीय साक्ष्य अधिनियम की धारा 21 के अनुसार एक वैध समझौता माना जाता है। परंतु यदि कोई पक्ष असहमत हो, तो वह मामला फिर से सामान्य अदालत में ले जा सकता है।
13. PIL दायर करने के लाभ और हानियाँ क्या हैं?
लाभ:
– गरीबों और वंचितों को न्याय,
– प्रशासनिक उत्तरदायित्व तय करना,
– पर्यावरण व मानवाधिकार संरक्षण।
हानियाँ:
– झूठी या राजनीतिक प्रेरित याचिकाएं,
– न्यायपालिका पर कार्यभार बढ़ना।
इसलिए कोर्ट केवल सार्थक और जनहित से संबंधित PIL को स्वीकार करता है।
14. पंचायत स्तर पर विधिक सहायता का क्या प्रावधान है?
पंचायत स्तर पर विधिक सहायता क्लीनिक स्थापित किए जा रहे हैं जहाँ पैनल वकील ग्रामीणों को निःशुल्क कानूनी परामर्श देते हैं। NALSA की पहल पर ग्रामीण क्षेत्रों में विधिक साक्षरता, हेल्पलाइन, और लोक अदालतों के माध्यम से सुलभ न्याय सुनिश्चित किया जा रहा है।
15. राष्ट्रीय लोक अदालत (National Lok Adalat) क्या है और इसका महत्व क्या है?
National Lok Adalat एक विशेष कार्यक्रम होता है जिसमें पूरे देश में एक ही दिन पर समान रूप से लोक अदालतों का आयोजन होता है। यह मासिक या त्रैमासिक रूप से आयोजित होती है। इसमें लाखों मामलों का त्वरित निपटारा होता है – विशेषकर बैंक ऋण, यातायात चालान, बिजली बिल, आदि से संबंधित विवादों का।
16. क्या अदालत Suo Moto PIL ले सकती है?
हाँ, भारत में उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालय जनहित से जुड़े मामलों में स्वयं संज्ञान (Suo Moto) लेकर PIL शुरू कर सकते हैं। जब किसी घटना या सामाजिक अन्याय की जानकारी मीडिया, पत्र, रिपोर्ट आदि के माध्यम से मिलती है, और वह जनहित से जुड़ी होती है, तो अदालत खुद कार्रवाई कर सकती है। इससे न्यायपालिका की सक्रिय भूमिका स्पष्ट होती है।
17. जनहित याचिका और रिट याचिका में क्या अंतर है?
PIL केवल जनहित से जुड़े मामलों के लिए होती है, और इसे कोई भी व्यक्ति दायर कर सकता है, भले ही वह प्रभावित न हो।
रिट याचिका केवल उस व्यक्ति द्वारा दाखिल की जा सकती है जो सीधे अधिकार हनन का शिकार हो।
PIL में लोककल्याण पर ध्यान होता है, जबकि रिट याचिका व्यक्तिगत अधिकारों की रक्षा हेतु होती है।
18. लोक अदालत में मामलों के निपटान की प्रक्रिया क्या है?
लोक अदालत में पक्षकार आपसी सहमति से विवाद सुलझाते हैं। जज, वकील और समाजसेवी मध्यस्थ की भूमिका निभाते हैं। वादियों को अपनी बात सीधे रखने की छूट होती है। यदि दोनों पक्ष राजी हो जाएं, तो समझौते के आधार पर मामला सुलझाया जाता है और निर्णय अंतिम होता है।
19. विधिक सहायता हेतु आवेदन कैसे करें?
पीड़ित या पात्र व्यक्ति संबंधित जिला विधिक सेवा प्राधिकरण (DLSA), राज्य विधिक सेवा प्राधिकरण (SLSA), या ऑनलाइन पोर्टल (जैसे nalsa.gov.in) के माध्यम से आवेदन कर सकता है। आवेदन पत्र के साथ पहचान पत्र, आय प्रमाणपत्र या अन्य पात्रता प्रमाण संलग्न करना होता है।
20. क्या अभियुक्त को भी विधिक सहायता मिल सकती है?
हाँ, भारतीय संविधान (अनुच्छेद 22(1)) और CrPC की धारा 304 के अनुसार, यदि कोई अभियुक्त आर्थिक रूप से कमजोर है और उसका मुकदमा गंभीर है, तो उसे राज्य द्वारा मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान की जाती है। यह निष्पक्ष सुनवाई और न्याय सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है।
21. क्या PIL केवल पर्यावरण या मानवाधिकार मामलों में ही दायर हो सकती है?
नहीं, PIL का क्षेत्र बहुत व्यापक है। यह शिक्षा, चिकित्सा सुविधा, भ्रष्टाचार, यातायात, महिला और बाल अधिकार, श्रमिक हित, जेल सुधार, बंधुआ मज़दूरी, पशु कल्याण, आदि से संबंधित किसी भी सार्वजनिक हित के मुद्दे पर दायर की जा सकती है।
22. विधिक सहायता में “पैनल वकीलों” की क्या भूमिका होती है?
पैनल वकील वे अधिवक्ता होते हैं जो विधिक सेवा प्राधिकरण द्वारा नामित होते हैं ताकि पात्र व्यक्तियों को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान कर सकें। वे मुकदमा दायर करने, साक्ष्य प्रस्तुत करने और न्यायालय में वाद का संचालन करते हैं – बिना किसी शुल्क के।
23. क्या लोक अदालत का निर्णय न्यायिक शक्ति रखता है?
हाँ, लोक अदालत का निर्णय न्यायिक मान्यता प्राप्त होता है। यह Civil Procedure Code की धारा 21 के अंतर्गत वैध समझौता माना जाता है। यदि दोनों पक्ष सहमत हैं तो यह कोर्ट के आदेश के समान होता है और इस पर अपील नहीं की जा सकती।
24. लोक अदालत और मध्यस्थता (Mediation) में क्या अंतर है?
पक्ष | लोक अदालत | मध्यस्थता |
---|---|---|
मंच | विधिक सेवा प्राधिकरण | न्यायालय/निजी संस्था |
निर्णय | सामूहिक सहमति से अंतिम | मध्यस्थ की सिफारिश |
प्रक्रिया | अनौपचारिक | गुप्त, संरचित |
अपील | नहीं | सुलह विफल होने पर मुकदमा चलता है |
25. क्या PIL का दुरुपयोग भी हो सकता है?
हाँ, कई बार लोग व्यक्तिगत स्वार्थ, राजनीतिक लाभ या प्रसिद्धि के लिए भी PIL दायर करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जनहित की आड़ में Publicity Interest Litigation नहीं होनी चाहिए। ऐसे मामलों में कोर्ट जुर्माना भी लगा सकता है।
26. विधिक सेवा शिविर (Legal Aid Camp) का उद्देश्य क्या होता है?
विधिक सेवा शिविरों का उद्देश्य ग्रामीण और पिछड़े क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों को उनके कानूनी अधिकारों, सरकारी योजनाओं और विधिक सहायता के साधनों की जानकारी देना है। ये शिविर मुफ्त परामर्श, शिकायत निवारण और मामूली मामलों का समाधान प्रदान करते हैं।
27. SC द्वारा Vishaka Guidelines किस PIL के अंतर्गत दी गई थीं?
Vishaka v. State of Rajasthan (1997) एक PIL थी, जिसमें कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न से सुरक्षा के लिए Vishaka Guidelines दी गईं। यह मामला राजस्थान की एक सामाजिक कार्यकर्ता भंवरी देवी के साथ हुई घटना पर आधारित था। इस निर्णय ने कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न के खिलाफ पहला कानूनी ढांचा बनाया।
28. विधिक सहायता में Para Legal Volunteers (PLVs) की क्या भूमिका होती है?
PLVs समाज के ऐसे प्रशिक्षित सदस्य होते हैं जो लोगों को कानून की जानकारी देते हैं, विधिक सहायता पाने में मदद
28. विधिक सहायता में Para Legal Volunteers (PLVs) की क्या भूमिका होती है?
Para Legal Volunteers (PLVs) वे प्रशिक्षित स्वयंसेवक होते हैं जो आम जनता और विधिक सेवा संस्थाओं के बीच सेतु का कार्य करते हैं। वे ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में लोगों को उनके कानूनी अधिकारों के प्रति जागरूक करते हैं, उन्हें निःशुल्क विधिक सहायता की सुविधा से जोड़ते हैं, और आवश्यक कानूनी मार्गदर्शन देते हैं। ये स्कूल शिक्षक, छात्र, सामाजिक कार्यकर्ता या ग्रामवासी हो सकते हैं। NALSA द्वारा इन्हें प्रशिक्षण दिया जाता है।
29. क्या जेल में बंद कैदी को विधिक सहायता मिल सकती है?
हाँ, CrPC की धारा 304 और NALSA की गाइडलाइन्स के अनुसार, जेल में बंद विचाराधीन या सजायाफ्ता कैदी को विधिक सहायता मिल सकती है, विशेषकर यदि वह आर्थिक रूप से कमजोर है। प्रत्येक जेल में विधिक सेवा क्लिनिक कार्य करता है, जो कैदियों को निःशुल्क वकील, मुकदमे की जानकारी और अपील दाखिल करने में सहायता देता है।
30. ई-लोक अदालत (E-Lok Adalat) क्या होती है?
E-Lok Adalat आधुनिक तकनीक का उपयोग करते हुए लोक अदालत के कार्य ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर संचालित करने की प्रक्रिया है। इसमें वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-फाइलिंग और ऑनलाइन समझौते के माध्यम से विवादों का निपटारा किया जाता है। यह कोविड-19 महामारी के दौरान प्रारंभ हुई, और आज भी न्याय तक त्वरित पहुँच के लिए कारगर है।
31. PIL में न्यायालय का दायरा कितना विस्तृत होता है?
PIL में न्यायालय को सामाजिक हित के व्यापक प्रश्नों को संबोधित करने की स्वतंत्रता होती है। कोर्ट Directive Principles, Fundamental Rights, और International Conventions के आधार पर निर्णय दे सकता है। इसमें न्यायालय सुधारात्मक आदेश, नीति निर्माण का निर्देश, और Suo Motu कार्रवाई भी कर सकता है।
32. राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस कब और क्यों मनाया जाता है?
9 नवम्बर को हर वर्ष राष्ट्रीय विधिक सेवा दिवस मनाया जाता है। यह दिन Legal Services Authorities Act, 1987 के लागू होने की याद में मनाया जाता है। इसका उद्देश्य विधिक सहायता की पहुँच बढ़ाना, नागरिकों को उनके अधिकारों के प्रति जागरूक करना और न्याय तक समान पहुँच सुनिश्चित करना है।
33. विधिक सहायता के अंतर्गत कौन-कौन सी सेवाएं आती हैं?
- मुफ्त वकील की सुविधा
- वाद दाखिल करने में सहायता
- परामर्श एवं मार्गदर्शन
- अपील की प्रक्रिया में सहायता
- लोक अदालत, मध्यस्थता में सहायता
- जेल में विधिक सहायता
यह सहायता पूरी तरह निःशुल्क होती है और किसी भी न्यायालय में प्राप्त की जा सकती है।
34. PIL दायर करने के लिए योग्यता क्या है?
PIL कोई भी व्यक्ति, संस्था, या NGO दायर कर सकता है, बशर्ते वह याचिका जनहित में हो। याचिकाकर्ता स्वयं पीड़ित हो, यह आवश्यक नहीं है। न्यायालय केवल वही PIL स्वीकार करता है जो वास्तविक जनहित, संवैधानिक अधिकारों के उल्लंघन या सामाजिक न्याय से जुड़ी हो।
35. क्या NALSA केवल गरीबों की सहायता करता है?
नहीं, NALSA सिर्फ आर्थिक रूप से गरीब ही नहीं, बल्कि सामाजिक रूप से वंचित वर्गों जैसे महिलाएं, बच्चे, वरिष्ठ नागरिक, ट्रांसजेंडर, अनुसूचित जाति/जनजाति, पीड़ित, मानसिक विकलांग आदि सभी को विधिक सहायता प्रदान करता है, भले ही वे आय सीमा में हों या नहीं।
36. “Equal Access to Justice” का सिद्धांत क्या है?
“Equal Access to Justice” का अर्थ है – प्रत्येक नागरिक को, चाहे उसकी सामाजिक या आर्थिक स्थिति कुछ भी हो, न्याय प्राप्त करने का समान अवसर मिलना चाहिए। विधिक सहायता, लोक अदालतें, और PIL इस सिद्धांत को व्यवहार में लागू करने के प्रमुख साधन हैं।
37. लोक अदालतों के क्या लाभ हैं?
- शीघ्र न्याय
- न्यूनतम खर्च
- अनौपचारिक प्रक्रिया
- आपसी समझौते पर आधारित समाधान
- अदालत शुल्क वापसी
- निर्णय के विरुद्ध कोई अपील नहीं
इन विशेषताओं के कारण लोक अदालतें न्याय तक त्वरित और सस्ती पहुँच का प्रमुख माध्यम बन गई हैं।
38. क्या महिला विषयों से जुड़े मामलों में PIL दायर की जा सकती है?
हाँ, महिलाओं से जुड़े मुद्दों जैसे दहेज, घरेलू हिंसा, कार्यस्थल पर उत्पीड़न, भ्रूण हत्या, छेड़छाड़, सुरक्षा आदि से संबंधित मामलों में PIL दायर की जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने Vishaka Case (1997), Laxmi v. Union of India (एसिड अटैक) जैसे मामलों में ऐतिहासिक निर्णय दिए हैं।
39. NALSA की “Legal Literacy Clubs” योजना क्या है?
NALSA ने स्कूलों और कॉलेजों में Legal Literacy Clubs की स्थापना की है जहाँ छात्र कानून की बुनियादी जानकारी प्राप्त करते हैं। ये क्लब विधिक साक्षरता बढ़ाने, अधिकारों की पहचान, और युवाओं को न्याय प्रणाली से जोड़ने का कार्य करते हैं।
40. PIL के दायरे को नियंत्रित करने हेतु न्यायालय क्या उपाय करता है?
न्यायालय PIL के दुरुपयोग को रोकने के लिए Publicity Oriented, Frivolous या Political Interest वाली याचिकाओं को खारिज कर सकता है। कई बार जुर्माना भी लगाया जाता है। न्यायालय केवल उन्हीं याचिकाओं को स्वीकार करता है जो समाज के व्यापक हित से जुड़ी हों।
41. क्या छात्र PIL दायर कर सकते हैं?
हाँ, भारत का संविधान किसी भी सक्षम नागरिक को न्यायालय में जनहित याचिका (PIL) दायर करने का अधिकार देता है। छात्र भी समाज में व्याप्त किसी सार्वजनिक समस्या – जैसे पर्यावरण प्रदूषण, बाल श्रम, शिक्षा का अधिकार, लैंगिक उत्पीड़न आदि – के विरुद्ध PIL दायर कर सकते हैं। सुप्रीम कोर्ट कई बार छात्रों द्वारा दायर PIL पर सकारात्मक निर्णय दे चुका है, बशर्ते याचिका जनहित से संबंधित हो।
42. विधिक सहायता की अवधारणा का संवैधानिक आधार क्या है?
विधिक सहायता की अवधारणा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39-A में निहित है, जो राज्य को निर्देश देता है कि वह आर्थिक या अन्य असमर्थताओं के कारण किसी भी नागरिक को न्याय से वंचित न होने दे। यह न्याय तक समान पहुँच (Equal Access to Justice) की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे अनुच्छेद 14 और 21 का हिस्सा मानते हुए अनिवार्य अधिकार बताया है।
43. न्यायालयों में लंबित मामलों को कम करने में लोक अदालतों की भूमिका क्या है?
लोक अदालतें आपसी सहमति पर आधारित त्वरित समाधान प्रदान करती हैं। इससे नियमित न्यायालयों में लंबित मामलों की संख्या घटती है। लाखों मामले – जैसे बैंक ऋण, बिजली विवाद, मोटर दुर्घटना दावे – लोक अदालतों के माध्यम से निपटाए जाते हैं। इससे न्याय प्रणाली का दबाव कम होता है और वादियों को शीघ्र न्याय मिलता है।
44. PIL की अवधारणा का उद्भव भारत में कैसे हुआ?
भारत में PIL की शुरुआत 1980 के दशक में न्यायमूर्ति P.N. भगवती और V.R. कृष्ण अय्यर जैसे न्यायाधीशों के प्रयासों से हुई। उन्होंने गरीबों और वंचितों की ओर से स्वयं संज्ञान लेते हुए कई ऐतिहासिक निर्णय दिए। Hussainara Khatoon v. State of Bihar केस को भारत की पहली PIL माना जाता है, जिसमें विचाराधीन कैदियों के अधिकारों की बात उठाई गई थी।
45. विधिक सहायता प्राप्त करने के लिए कौन-से दस्तावेज़ आवश्यक होते हैं?
विधिक सहायता हेतु आवेदन करते समय आमतौर पर निम्न दस्तावेज़ों की आवश्यकता होती है:
- पहचान पत्र (आधार, वोटर ID आदि)
- आय प्रमाण पत्र (यदि आय सीमा लागू हो)
- जाति प्रमाण पत्र (यदि SC/ST के अंतर्गत आते हैं)
- FIR की प्रति या संबंधित वाद का विवरण
- जेल के मामलों में कैदी पहचान विवरण
ये दस्तावेज़ संबंधित प्राधिकरण (DLSA/SLSA/NALSA) को जमा किए जाते हैं।
46. लोक अदालतों में कौन न्यायाधीश होते हैं?
लोक अदालतों में न्यायिक अधिकारी, सेवानिवृत्त जज, अधिवक्ता, और सामाजिक कार्यकर्ता मिलकर संयुक्त पीठ के रूप में कार्य करते हैं। इनमें से कोई भी निर्णय नहीं थोपता, बल्कि मध्यस्थता और सुलह के माध्यम से समाधान निकालने की कोशिश करता है। यह प्रक्रिया लचीली और समाधान-केंद्रित होती है।
47. PIL का क्षेत्र शिक्षा के क्षेत्र में कैसे उपयोगी रहा है?
PIL के माध्यम से शिक्षा के अधिकार को लागू कराने में अहम भूमिका निभाई गई है। जैसे –
- Unni Krishnan v. State of Andhra Pradesh में शिक्षा को मौलिक अधिकार माना गया।
- Right to Education Act, 2009 के कार्यान्वयन में भी PIL ने प्रभाव डाला।
इसके माध्यम से स्कूलों में मूलभूत सुविधाएँ, बालिकाओं की शिक्षा, और गरीब बच्चों के लिए आरक्षण सुनिश्चित किया गया।
48. कानूनी सहायता हेतु हेल्पलाइन नंबर कौन-सा है?
भारत में विधिक सहायता के लिए फ्री हेल्पलाइन नंबर 15100 कार्यरत है। यह NALSA द्वारा संचालित है। कोई भी पात्र व्यक्ति इस नंबर पर कॉल करके विधिक सहायता, परामर्श और नजदीकी विधिक सेवा केंद्र की जानकारी प्राप्त कर सकता है।
49. क्या विधिक सहायता केवल फौजदारी मामलों में मिलती है?
नहीं, विधिक सहायता फौजदारी (Criminal) और दीवानी (Civil) दोनों मामलों में दी जाती है, जैसे:
- घरेलू हिंसा,
- पारिवारिक विवाद,
- संपत्ति विवाद,
- चेक बाउंस,
- मजदूरी विवाद,
- मोटर दुर्घटना क्लेम आदि।
आवश्यकता और पात्रता के अनुसार मुफ्त वकील, दस्तावेज़ सहायता, और न्यायालयी प्रतिनिधित्व उपलब्ध होता है।
50. PIL के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण में न्यायालय की क्या भूमिका रही है?
PIL ने पर्यावरण संरक्षण को लेकर ऐतिहासिक भूमिका निभाई है। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट ने MC Mehta के मामलों (गंगा प्रदूषण, वाहन प्रदूषण, ताजमहल संरक्षण, औद्योगिक कचरा) में कठोर निर्देश दिए। न्यायालय ने “Polluter Pays Principle” और “Precautionary Principle” जैसे सिद्धांत विकसित किए। इससे सरकारें पर्यावरणीय कानूनों को प्रभावी रूप से लागू करने के लिए बाध्य हुईं।