शीर्षक: सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ वकील को ‘डिजिटल अरेस्ट’ कर 3.29 करोड़ की ठगी — साइबर ठगों की नई चाल का पर्दाफाश
परिचय:
साइबर अपराध के बढ़ते प्रकोप के बीच हाल ही में देश की राजधानी से सटे नोएडा में एक अत्यंत चौंकाने वाला मामला सामने आया है, जहाँ सुप्रीम कोर्ट की एक वरिष्ठ अधिवक्ता को जालसाजों ने ‘डिजिटल अरेस्ट’ के नाम पर डराया और उनसे 3.29 करोड़ रुपये की ठगी कर ली। यह मामला न केवल उच्च शिक्षित वर्ग को लक्षित करने वाले साइबर अपराधियों की बढ़ती हिम्मत को उजागर करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि तकनीकी उपकरणों और मनोवैज्ञानिक दबाव का दुरुपयोग कर किस प्रकार से साजिशें रची जा रही हैं।
घटना का विस्तृत विवरण:
नोएडा निवासी सुप्रीम कोर्ट की एक वरिष्ठ अधिवक्ता के पास 10 जून को एक अज्ञात युवक की कॉल आई। उसने खुद को एक केंद्रीय जांच एजेंसी (जैसे CBI या NIA) का अधिकारी बताया और कहा कि उनके आधार कार्ड व बैंक खाते का इस्तेमाल अवैध गतिविधियों जैसे हथियारों की तस्करी, ब्लैकमेलिंग, और जुएं में किया गया है।
जालसाज ने अधिवक्ता को डराया कि उनके खिलाफ 25 अप्रैल को एक गंभीर मामला दर्ज हो चुका है और यदि वे सहयोग नहीं करेंगी तो उन्हें गिरफ्तार कर जेल भेजा जा सकता है।
डिजिटल अरेस्ट और मनोवैज्ञानिक दबाव:
साजिश को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए जालसाज ने उन्हें एक अन्य नंबर पर कॉल करने के लिए कहा, जहाँ उन्हें तथाकथित ‘जांच एजेंसी’ के उच्च अधिकारियों से बात करवाई गई। फिर उन्हें वीडियो कॉल के माध्यम से डिजिटल अरेस्ट कर लिया गया, जिसमें एक व्यक्ति पुलिस की वर्दी में दिखाई दिया, जिससे डर और बढ़ गया।
पूछताछ के बहाने पीड़िता से उनके बैंक खातों, फिक्स्ड डिपॉजिट और अन्य वित्तीय विवरणों की जानकारी ली गई। झूठे दावे किए गए कि उनकी संपत्ति पर जांच एजेंसियों ने रोक लगा दी है, और उन्हें जांच समाप्ति तक रकम ट्रांसफर करनी होगी।
धोखाधड़ी की तकनीक:
- वीडियो कॉल में नकली पुलिस अधिकारी दिखाया गया।
- एनओसी (No Objection Certificate) दिलाने का झांसा देकर अलग-अलग नंबरों से बातचीत करवाई गई।
- साइकोलॉजिकल प्रेशर बनाया गया कि यदि वे सहयोग नहीं करेंगी तो उनकी प्रतिष्ठा, प्रैक्टिस और स्वतंत्रता खतरे में पड़ जाएगी।
- फर्जी खातों में पाँच बार में 3.29 करोड़ रुपये ट्रांसफर करवा लिए गए।
ठगी का भंडाफोड़ और एफआईआर:
जब ठगों ने अतिरिक्त रकम ट्रांसफर करने का दबाव बनाया, तब पीड़िता को शक हुआ। उन्होंने तत्काल मामले की गंभीरता को समझते हुए साइबर क्राइम थाने, नोएडा में शिकायत दर्ज करवाई।
एफआईआर में जिन लोगों के नाम दर्ज किए गए हैं, वे हैं:
- शिव प्रसाद
- प्रदीप सावंत
- प्रवीण सूद
इनके विरुद्ध भारतीय दंड संहिता और आईटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं में मामला दर्ज किया गया है। पुलिस की टीम इस मामले की गहन जांच कर रही है।
कानूनी व सामाजिक विश्लेषण:
- डिजिटल अरेस्ट का कोई कानूनी आधार नहीं है। यह केवल एक मानसिक जाल है जिसका प्रयोग साइबर अपराधी करते हैं।
- बिना न्यायिक आदेश के किसी की संपत्ति या बैंक खाता फ्रीज नहीं किया जा सकता।
- जांच एजेंसियां किसी नागरिक से बैंक की गोपनीय जानकारी या रकम ट्रांसफर करने को नहीं कहतीं।
- यह मामला दर्शाता है कि शिक्षा, पद और प्रतिष्ठा से परे, साइबर अपराध का शिकार कोई भी बन सकता है।
चेतावनी और सतर्कता के उपाय:
- कभी भी अनजान कॉल पर अपनी **वित्तीय या पहचान संबंधी जानकारी साझा न करें।
- सरकारी एजेंसियां फोन या वीडियो कॉल पर गिरफ्तारी की धमकी नहीं देतीं।
- कोई भी अनुरोध जो राशि ट्रांसफर करने से संबंधित हो, वह 100% धोखाधड़ी हो सकता है।
- ऐसी परिस्थिति में तत्काल स्थानीय पुलिस या साइबर सेल से संपर्क करें।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट की एक प्रतिष्ठित अधिवक्ता के साथ हुई यह घटना यह दर्शाती है कि साइबर अपराधी न केवल आम नागरिकों को बल्कि संवेदनशील व उच्च पदस्थ व्यक्तियों को भी अपने जाल में फँसाने में सक्षम हो गए हैं। ‘डिजिटल अरेस्ट’ जैसा शब्द आम लोगों में डर पैदा करने का माध्यम बन गया है, जिसे रोकने के लिए जनजागरूकता, प्रशासनिक सतर्कता, और तकनीकी निगरानी आवश्यक है।