Drafting, Pleading and Conveyancing (Practical Paper) (विधिक दस्तावेज़ों का प्रारूप – वादपत्र, उत्तर, अनुबंध आदि) Part-1

1. प्रारूप लेखन (Drafting) का अर्थ और महत्व
प्रारूप लेखन विधिक दस्तावेजों को एक विधिसम्मत रूप में प्रस्तुत करने की प्रक्रिया है। यह न्यायालय, पक्षकारों और प्रशासनिक प्राधिकरणों को संबंधित मुद्दों को स्पष्ट करने में सहायता करता है। एक अच्छा प्रारूप स्पष्ट, संक्षिप्त, तथ्यों पर आधारित और विधिक नियमों के अनुरूप होना चाहिए। प्रारूप लेखन का महत्व इसलिए भी है क्योंकि यह मुकदमे की दिशा और निर्णय को प्रभावित करता है। इसमें भाषा की सटीकता, तथ्यों की समुचित प्रस्तुति और विधिक तर्कों की मजबूती आवश्यक होती है।


2. वाद पत्र (Plaint) क्या होता है?
वाद पत्र एक ऐसा दस्तावेज़ है जिससे कोई व्यक्ति न्यायालय में अपने अधिकारों की रक्षा हेतु दावा करता है। इसमें वादी के नाम, प्रतिवादी के नाम, कारण-ए-वाद, तथ्य, कानून के अनुसार अधिकार और राहत की मांग का स्पष्ट विवरण होता है। वाद पत्र सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 26 और आदेश 7 के अंतर्गत प्रस्तुत किया जाता है। इसका उद्देश्य न्यायालय को विवाद का स्वरूप स्पष्ट रूप से समझाना होता है।


3. लिखित कथन (Written Statement) क्या है?
लिखित कथन प्रतिवादी द्वारा वादी के वाद पत्र के उत्तर में दिया गया उत्तर है। इसमें प्रतिवादी वादी के आरोपों को स्वीकार या अस्वीकार करता है और अपनी ओर से तर्क और तथ्य प्रस्तुत करता है। सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 8 के अनुसार प्रतिवादी को एक निश्चित समयावधि में लिखित कथन प्रस्तुत करना होता है। यह दस्तावेज़ मुकदमे की रूपरेखा को निर्धारित करता है।


4. प्रतिज्ञप्ति (Affidavit) का विधिक महत्व
प्रतिज्ञप्ति एक शपथ पत्र होता है जो किसी न्यायालय या प्राधिकरण के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है। इसमें व्यक्ति सत्य तथ्यों की शपथ लेकर घोषणा करता है। यह दस्तावेज़ साक्ष्य के रूप में उपयोग में लिया जाता है और गलत जानकारी देने पर भारतीय दंड संहिता की धारा 191 और 193 के अंतर्गत दंडित किया जा सकता है।


5. नोटिस (Legal Notice) का प्रारूप और उपयोग
विधिक नोटिस एक औपचारिक सूचना है जो किसी व्यक्ति या संस्था को उसके दायित्वों या कानूनी उल्लंघन के संबंध में दी जाती है। यह अनुबंध, संपत्ति, विवाह विवाद, उपभोक्ता संरक्षण आदि मामलों में भेजा जा सकता है। इसमें मुद्दे का विवरण, अपेक्षित कार्यवाही और समयसीमा शामिल होती है। यदि नोटिस के बावजूद समाधान नहीं होता तो वाद दायर किया जा सकता है।


6. अनुबंध (Agreement) का प्रारूप और आवश्यक तत्व
अनुबंध एक विधिसम्मत समझौता है जिसमें दो या दो से अधिक पक्ष अपनी सहमति से कुछ करने या न करने की प्रतिज्ञा करते हैं। भारतीय अनुबंध अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, वैध अनुबंध के लिए प्रस्ताव, स्वीकृति, विचार, क्षमता और वैध उद्देश्य आवश्यक होते हैं। प्रारूप में पक्षों का विवरण, शर्तें, तिथि और हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं।


7. शक्ति पत्र (Power of Attorney) का स्वरूप
शक्ति पत्र एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसके द्वारा कोई व्यक्ति (प्रदाता) किसी अन्य व्यक्ति (अधिकारप्राप्तकर्ता) को अपने कार्य करने का वैधानिक अधिकार देता है। यह सामान्य या विशेष प्रकार का हो सकता है। इसका प्रारूप स्पष्ट, कानूनी भाषा में, हस्ताक्षर और गवाहों सहित होना चाहिए। इसे नोटरी द्वारा प्रमाणित किया जाता है।


8. विक्रय विलेख (Sale Deed) क्या होता है?
विक्रय विलेख संपत्ति की बिक्री के लिए आवश्यक दस्तावेज़ है। इसमें विक्रेता और क्रेता के विवरण, संपत्ति का विवरण, मूल्य, भुगतान की स्थिति, कब्जे का स्थानांतरण और अन्य शर्तें होती हैं। यह दस्तावेज़ स्टांप पर लिखा जाता है और पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाता है। यह दस्तावेज़ स्वामित्व का प्रमाण होता है।


9. पट्टा (Lease Deed) का प्रारूप
पट्टा एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसके माध्यम से किसी अचल संपत्ति को निश्चित अवधि और किराये पर किसी को किरायेदार के रूप में दिया जाता है। इसमें किरायेदार और मकान मालिक की जानकारी, संपत्ति का विवरण, किराया, अवधि, शर्तें और अनुबंध समाप्ति की स्थिति स्पष्ट होती है। इसे भी पंजीकरण अधिनियम के तहत पंजीकृत किया जाता है।


10. हलफनामा (Affidavit) और शपथ पत्र में अंतर
हलफनामा एक प्रकार का शपथ पत्र ही होता है लेकिन हलफनामा किसी विशेष उद्देश्य से संबंधित तथ्यों की सत्यता की शपथ के साथ प्रस्तुत किया जाता है। शपथ पत्र अपेक्षाकृत सामान्य होता है और किसी विशेष उद्देश्य से जुड़ा नहीं होता। दोनों ही दस्तावेज़ न्यायालय या सरकारी कार्य में उपयोग होते हैं और इनके लिए सत्यता अनिवार्य है।


11. वसीयतनामा (Will Deed) का प्रारूप
वसीयतनामा एक व्यक्ति द्वारा अपने मृत्यु के पश्चात अपनी संपत्ति के वितरण के लिए लिखा गया दस्तावेज़ होता है। इसमें संपत्ति का विवरण, लाभार्थियों का नाम, निष्पादक की नियुक्ति और दिनांक आदि शामिल होते हैं। इसे प्रमाणिकता के लिए गवाहों की उपस्थिति में तैयार किया जाता है। हालांकि इसका पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, फिर भी यह विवाद से बचने के लिए लाभकारी होता है।


12. बकाया राशि की वसूली हेतु विधिक नोटिस
जब किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा कोई धनराशि समय पर नहीं चुकाई जाती है तो देनदार को विधिक नोटिस भेजा जाता है। इसमें देनदारी की राशि, भुगतान की तिथि, दस्तावेज़ी साक्ष्य और अंतिम चेतावनी शामिल होती है। यह नोटिस भविष्य में न्यायालय में दावे का आधार बन सकता है, इसलिए इसे विधिक भाषा में तैयार किया जाता है।


13. समझौता पत्र (Compromise Deed) का महत्व
समझौता पत्र एक ऐसा विधिक दस्तावेज़ है जिसमें विवादित पक्ष आपसी सहमति से विवाद का समाधान करते हैं। यह दस्तावेज़ दोनों पक्षों की सहमति से तैयार किया जाता है और इसे न्यायालय में प्रस्तुत किया जा सकता है। समझौता विवादों को शीघ्र, कम लागत और आपसी समझ से समाप्त करने का माध्यम है।


14. प्रत्यावेदन (Representation/Petition) क्या है?
प्रत्यावेदन वह लिखित आवेदन है जो किसी सरकारी विभाग या अधिकारी को किसी समस्या के समाधान या अधिकार की मांग के लिए दिया जाता है। इसमें प्रार्थी का नाम, विषय, तथ्य, मांग और संलग्न प्रमाण शामिल होते हैं। यह प्रशासनिक न्याय के लिए एक प्रारंभिक प्रक्रिया है, जिससे समाधान प्राप्त किया जा सकता है।


15. प्रतिवेदन (Reply/Counter Affidavit) क्या होता है?
प्रतिवेदन किसी याचिका, वाद या नोटिस के उत्तर के रूप में दिया गया दस्तावेज़ होता है। इसमें प्रतिवादी अपना पक्ष, तर्क और तथ्य प्रस्तुत करता है। इसका उद्देश्य याचिकाकर्ता के दावों का खंडन करना होता है। यह दस्तावेज़ न्यायालय में पक्षकार की स्थिति को स्पष्ट करने में सहायक होता है।


16. दीवानी मुकदमे में वाद पत्र का प्रारूप
दीवानी वाद पत्र का प्रारूप सिविल प्रक्रिया संहिता के आदेश 7 के अंतर्गत तय किया गया है। इसमें वादी का नाम, पता, प्रतिवादी का नाम व पता, वाद का संक्षिप्त विवरण, तथ्यात्मक आधार, कानूनी अधिकार, तथा राहत की मांग स्पष्ट रूप से लिखी जाती है। साथ ही, उचित न्यायालय शुल्क, अनुबंध या दस्तावेज़ों की प्रतियां संलग्न की जाती हैं। अंत में, वादी द्वारा शपथपत्र (Verification) और अधिवक्ता के हस्ताक्षर होते हैं। यह प्रारूप सुस्पष्ट, सत्यनिष्ठ और विधिसम्मत होना चाहिए।


17. जवाबी हलफनामा (Counter Affidavit) का प्रारूप और उपयोग
जवाबी हलफनामा वह दस्तावेज़ है जो याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए आरोपों के उत्तर में प्रतिवादी द्वारा दाखिल किया जाता है। इसमें याचिका में दिए गए बिंदुओं का क्रमवार उत्तर, तथ्यात्मक और कानूनी आधार, और संबंधित दस्तावेज़ संलग्न किए जाते हैं। इस पर प्रतिवादी की शपथ और अधिवक्ता के हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं। यह दस्तावेज़ न्यायालय को प्रतिवादी की स्थिति समझाने में सहायक होता है।


18. अधिवक्ता पत्र (Vakalatnama) क्या होता है?
वकालतनामा एक विधिक प्राधिकृति है जो किसी वादी या प्रतिवादी द्वारा अधिवक्ता को न्यायालय में उसकी ओर से कार्यवाही करने हेतु दिया जाता है। इसमें अधिवक्ता को मुकदमा दायर करने, सुनवाई में उपस्थित होने, दस्तावेज़ दाखिल करने, जिरह करने, और समझौता करने तक के अधिकार दिए जा सकते हैं। यह दस्तावेज़ वादी/प्रतिवादी के हस्ताक्षर और अधिवक्ता की स्वीकृति के साथ न्यायालय में प्रस्तुत किया जाता है।


19. रजिस्ट्रीकृत अनुबंध और अनरजिस्टर्ड अनुबंध में अंतर
रजिस्ट्रीकृत अनुबंध पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत सरकारी कार्यालय में दर्ज होता है, जिससे वह दस्तावेज़ सार्वजनिक अभिलेख बन जाता है। वहीं, अनरजिस्टर्ड अनुबंध की वैधानिकता सीमित होती है और इसे केवल विशेष परिस्थितियों में साक्ष्य के रूप में प्रस्तुत किया जा सकता है। रजिस्ट्रीकृत अनुबंध में अधिक कानूनी सुरक्षा होती है।


20. किरायानामा (Rent Agreement) का प्रारूप
किरायानामा वह समझौता है जो मकान मालिक और किरायेदार के बीच संपत्ति के किराए के संबंध में होता है। इसमें किराया राशि, अवधि, जमा राशि, रख-रखाव, बिजली-पानी का प्रावधान, अनुबंध की समाप्ति की शर्तें आदि शामिल होती हैं। किरायानामा 11 माह तक के लिए अनरजिस्टर्ड हो सकता है, परंतु लंबी अवधि के लिए पंजीकरण आवश्यक होता है।


21. घोषणापत्र (Declaration) का विधिक महत्व
घोषणापत्र एक शपथबद्ध लिखित वक्तव्य है जिसमें व्यक्ति किसी स्थिति, अधिकार या तथ्य को स्पष्ट करता है। इसका उपयोग पहचान प्रमाण, नाम परिवर्तन, उत्तराधिकार या सरकारी कार्यों में किया जाता है। यह नोटरी या मजिस्ट्रेट के समक्ष शपथपूर्वक प्रस्तुत किया जाता है और असत्य जानकारी देने पर दंड का प्रावधान होता है।


22. बैंक गारंटी प्रारूप क्या होता है?
बैंक गारंटी वह दस्तावेज़ है जिसमें बैंक किसी ग्राहक की ओर से किसी तीसरे पक्ष को आश्वासन देता है कि यदि ग्राहक अपनी जिम्मेदारी पूरी नहीं करता तो बैंक भुगतान करेगा। इसमें गारंटी की सीमा, समयावधि, लाभार्थी का नाम और शर्तें शामिल होती हैं। यह दस्तावेज़ व्यापार, ठेका, या कानूनी दायित्वों के लिए आवश्यक होता है।


23. प्रॉमिसरी नोट (Promissory Note) का प्रारूप
प्रॉमिसरी नोट एक लिखित वचन होता है जिसमें एक पक्ष (निर्गाता) दूसरे पक्ष (प्राप्तकर्ता) को निश्चित राशि भुगतान करने का वादा करता है। इसमें भुगतान की राशि, समय, स्थान और शर्तें शामिल होती हैं। यह दस्तावेज़ भारतीय निगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 के तहत मान्य होता है और कानूनी प्रक्रिया में प्रस्तुत किया जा सकता है।


24. अनुवाद शपथपत्र (Translation Affidavit) क्या होता है?
अनुवाद शपथपत्र वह दस्तावेज़ है जिसमें कोई प्रमाणित अनुवादक यह शपथपूर्वक घोषित करता है कि उसने मूल दस्तावेज़ का अनुवाद सत्यनिष्ठा से किया है। यह दस्तावेज़ विदेशी दस्तावेजों के उपयोग, न्यायालयीन प्रक्रियाओं और दूतावासों में आवश्यक होता है। इसे नोटरी या प्रथम श्रेणी मजिस्ट्रेट से प्रमाणित कराया जाता है।


25. उत्तरदायित्व का परित्याग पत्र (Indemnity Bond)
Indemnity Bond एक प्रकार का अनुबंध होता है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को भविष्य में संभावित हानि या नुकसान से बचाने का वादा करता है। इसका उपयोग विशेषतः सरकारी दस्तावेज़ों की पुनः जारी प्रक्रिया, बीमा क्लेम या वित्तीय गारंटी में होता है। इसमें दायित्व की स्पष्टता, गवाह और हस्ताक्षर आवश्यक होते हैं।


26. वचन-पत्र और हंडी में अंतर
वचन-पत्र (Promissory Note) वह दस्तावेज़ होता है जिसमें एक पक्ष दूसरे पक्ष को निर्दिष्ट राशि देने का वादा करता है। वहीं, हंडी (Bill of Exchange) में तीन पक्ष होते हैं – ड्रावर, ड्रॉई और पेयी – और यह आदेश होता है, वचन नहीं। हंडी प्रायः व्यापारिक लेनदेन में प्रयुक्त होती है, जबकि वचन-पत्र अधिक व्यक्तिगत होते हैं।


27. कानूनी सलाह पत्र (Legal Opinion) का प्रारूप
कानूनी सलाह पत्र एक विधिक सलाहकार द्वारा किसी मुद्दे पर कानूनी व्याख्या प्रस्तुत करने हेतु दिया जाता है। इसमें मुद्दे का संक्षेप, तथ्यों की स्थिति, संबंधित विधिक प्रावधान, न्यायालयीन दृष्टिकोण, और अंतिम सलाह स्पष्ट रूप से दी जाती है। यह दस्तावेज़ अनुबंध, वाद, संपत्ति विवाद, कंपनी लेनदेन आदि मामलों में उपयोगी होता है।


28. पुनःप्रस्तावना (Rejoinder) क्या है?
पुनःप्रस्तावना वह लिखित उत्तर है जो वादी द्वारा प्रतिवादी के लिखित कथन के प्रत्युत्तर में दिया जाता है। यह दस्तावेज़ वादी के पक्ष को और स्पष्ट करता है तथा प्रतिवादी के नए आरोपों या दावों का खंडन करता है। यह भी सिविल प्रक्रिया के तहत प्रस्तुत किया जाता है और मुकदमे में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।


29. संविदा का विधिक प्रवर्तन (Enforceability of Contract)
संविदा तभी प्रवर्तनीय होती है जब वह भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 की धारा 10 के अनुसार वैध हो। इसमें प्रस्ताव, स्वीकृति, विचार, क्षमता, और वैध उद्देश्य आवश्यक होते हैं। यदि संविदा किसी गैर-कानूनी उद्देश्य, धोखाधड़ी या बलपूर्वक बनी हो तो वह प्रवर्तनीय नहीं होती। न्यायालय ऐसे अनुबंध को अमान्य घोषित कर सकता है।


30. प्रॉपर्टी गिफ्ट डीड का प्रारूप
गिफ्ट डीड एक ऐसा दस्तावेज़ होता है जिसके तहत कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी संपत्ति बिना किसी विचार (consideration) के दूसरे को देता है। इसमें दाता और प्राप्तकर्ता का विवरण, संपत्ति का स्पष्ट विवरण, गिफ्ट की मंशा, और अधिकार का हस्तांतरण शामिल होता है। यह पंजीकरण अधिनियम के अंतर्गत पंजीकृत होना अनिवार्य है।


31. अदालती सम्मन (Court Summon) क्या होता है?
अदालती सम्मन न्यायालय द्वारा जारी की गई एक विधिक सूचना है जो किसी व्यक्ति को न्यायालय में पेश होने, गवाही देने या दस्तावेज़ प्रस्तुत करने के लिए बुलाता है। इसमें व्यक्ति का नाम, तारीख, समय और न्यायालय का विवरण होता है। सम्मन की अवहेलना करने पर दंड की संभावना होती है।


32. नोटरीकृत दस्तावेज़ का महत्व
नोटरीकृत दस्तावेज़ वह होता है जिसे सरकारी अधिकृत नोटरी अधिकारी द्वारा सत्यापित और प्रमाणित किया गया हो। यह दस्तावेज़ों को वैधानिक रूप देता है और उनकी सत्यता की पुष्टि करता है। इसका महत्व विशेष रूप से संपत्ति, अनुबंध, शक्ति पत्र, शपथ पत्र आदि मामलों में होता है।


33. याचिका (Petition) और आवेदन (Application) में अंतर
याचिका न्यायालय के समक्ष अधिकार की मांग या राहत हेतु दी जाती है, जबकि आवेदन आमतौर पर कार्यवाही के दौरान किसी आदेश या कार्यवाही हेतु दिया जाता है। याचिका अधिक औपचारिक और अधिकार आधारित होती है, वहीं आवेदन कार्यवाही की सुविधा के लिए होता है। दोनों का प्रारूप अलग होता है।


34. अचल संपत्ति का विलेख (Deed of Immovable Property)
यह वह दस्तावेज़ है जिसके माध्यम से किसी अचल संपत्ति (जैसे – भूमि, भवन) का स्वामित्व एक पक्ष से दूसरे को स्थानांतरित किया जाता है। इसमें विक्रेता और क्रेता की जानकारी, संपत्ति का विवरण, मूल्य, शर्तें, भुगतान का विवरण और हस्तांतरण की तिथि शामिल होती है। इसे स्टांप ड्यूटी के साथ पंजीकृत कराना आवश्यक है।


35. गवाही हेतु बुलावा पत्र (Subpoena)
Subpoena एक न्यायालयीन आदेश है जिसके तहत किसी व्यक्ति को गवाही देने या दस्तावेज़ लाने हेतु न्यायालय में उपस्थित होने का निर्देश दिया जाता है। इसका उल्लंघन न्यायालय की अवमानना माना जाता है। इसे अभियोजन पक्ष या प्रतिवादी दोनों द्वारा अनुरोध पर न्यायालय जारी करता है।


36. संपत्ति अंतरण पत्र (Conveyance Deed) क्या है?
Conveyance Deed एक विधिक दस्तावेज़ है जिसके माध्यम से अचल संपत्ति का स्वामित्व एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति को स्थानांतरित किया जाता है। यह विलेख तब आवश्यक होता है जब संपत्ति की बिक्री होती है। इसमें विक्रेता और क्रेता का विवरण, संपत्ति का पूरा वर्णन, विक्रय मूल्य, भुगतान की स्थिति, हस्तांतरण की तिथि और शर्तें स्पष्ट की जाती हैं। इसे पंजीकरण अधिनियम, 1908 के अंतर्गत रजिस्टर कराना अनिवार्य है। यह दस्तावेज़ संपत्ति के वैध स्वामित्व का कानूनी प्रमाण होता है।


37. अवमानना के विरुद्ध हलफनामा का प्रारूप
यदि किसी पर न्यायालय की अवमानना का आरोप लगे, तो उसे बचाव हेतु एक प्रतिज्ञप्ति (Affidavit-in-reply) दाखिल करनी होती है। इसमें वह व्यक्ति अपनी स्थिति स्पष्ट करता है, तथ्यों का विवरण देता है, और यदि आवश्यक हो, तो बिना शर्त माफ़ी मांग सकता है। यह हलफनामा शपथपूर्वक दिया जाता है और इसमें विनम्र भाषा, सच्चाई और समर्थन में साक्ष्य संलग्न होना चाहिए।


38. पुनःपंजीकरण हेतु शपथपत्र (Duplicate Document Affidavit)
यदि कोई रजिस्ट्रीकृत दस्तावेज़ (जैसे Sale Deed) खो जाता है, तो उसकी पुनःप्राप्ति के लिए एक शपथपत्र देना होता है। इसमें दस्तावेज़ का पूरा विवरण, खोने की परिस्थिति, एफआईआर की प्रति और यह घोषणा दी जाती है कि दस्तावेज़ का दुरुपयोग नहीं हुआ है। यह शपथपत्र नोटरी या मजिस्ट्रेट से प्रमाणित कराना आवश्यक होता है।


39. नियुक्ति पत्र (Appointment Letter) का प्रारूप
नियुक्ति पत्र वह दस्तावेज़ है जिसे नियोक्ता कर्मचारी को सेवा पर नियुक्त करते समय देता है। इसमें पद, कार्यस्थल, वेतन, सेवा शर्तें, कार्यकाल, गोपनीयता और समाप्ति की शर्तें स्पष्ट की जाती हैं। यह दस्तावेज़ एक वैधानिक अनुबंध का हिस्सा होता है और दोनों पक्षों के अधिकारों और कर्तव्यों को निर्धारित करता है।


40. प्रतिज्ञा पत्र (Undertaking) क्या होता है?
Undertaking एक प्रकार का औपचारिक वचन है जिसमें कोई व्यक्ति किसी कार्य को करने या न करने की शपथपूर्वक घोषणा करता है। यह न्यायालयीन कार्यवाही, सरकारी योजना या संस्था में प्रवेश जैसे मामलों में दिया जा सकता है। इसका उल्लंघन करने पर विधिक कार्यवाही की जा सकती है।


41. सहमति पत्र (Consent Letter) का प्रारूप
सहमति पत्र एक ऐसा दस्तावेज़ है जिसमें कोई व्यक्ति स्वेच्छा से किसी कार्य, अनुबंध या कानूनी प्रक्रिया हेतु अपनी अनुमति देता है। यह संपत्ति स्थानांतरण, नामांकन, चिकित्सा प्रक्रिया या पारिवारिक मामलों में आवश्यक होता है। इसमें संबंधित पक्षों की जानकारी, सहमति का विवरण और हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं।


42. कानूनी उत्तर (Reply to Legal Notice) का प्रारूप
कानूनी नोटिस के उत्तर में संबंधित पक्ष नोटिस में लगाए गए आरोपों या दावों का तथ्यात्मक और कानूनी आधार पर खंडन करता है। इसमें नोटिस की प्राप्ति तिथि, स्पष्टीकरण, अपने अधिकारों की रक्षा की बात और आवश्यक दस्तावेज़ संलग्न किए जाते हैं। यह उत्तर अधिवक्ता द्वारा तैयार किया जाना चाहिए।


43. अंतिम समझौता विलेख (Final Settlement Deed)
यह दस्तावेज़ पक्षकारों के बीच किसी विवाद, सेवा संबंधी मुद्दे या लेन-देन का अंतिम समाधान प्रस्तुत करता है। इसमें यह उल्लेख होता है कि दोनों पक्ष भविष्य में किसी प्रकार का दावा नहीं करेंगे। यह विलेख विवादों को स्थायी रूप से समाप्त करता है और कई बार न्यायालय द्वारा अनुमोदित भी किया जाता है।


44. ऋण स्वीकृति पत्र (Loan Acknowledgment Letter)
यह पत्र वह व्यक्ति लिखता है जो किसी ऋणदाता से धन प्राप्त करता है और लिखित रूप में स्वीकार करता है कि वह नियत समय में उक्त राशि वापस करेगा। इसमें ऋण की राशि, ब्याज, चुकौती की तिथि और शर्तें शामिल होती हैं। यह दस्तावेज़ ऋण वसूली में साक्ष्य के रूप में प्रयोग किया जाता है।


45. संपत्ति का हस्तांतरण पत्र (Relinquishment Deed)
यह विलेख तब बनाया जाता है जब परिवार का कोई सदस्य पारिवारिक संपत्ति में अपने हिस्से को स्वेच्छा से किसी अन्य सदस्य को देता है। इसमें त्यागकर्ता और प्राप्तकर्ता का विवरण, संपत्ति का वर्णन, और हस्तांतरण की मंशा शामिल होती है। इसे पंजीकरण कराना आवश्यक होता है ताकि भविष्य में विवाद से बचा जा सके।


46. पावती पत्र (Receipt Letter) का महत्व
पावती पत्र यह प्रमाणित करता है कि किसी वस्तु, सेवा या धनराशि को प्राप्त किया गया है। यह दस्तावेज़ भविष्य में किसी विवाद से बचने हेतु प्रमाण के रूप में काम आता है। इसमें प्राप्तकर्ता का नाम, प्राप्त सामग्री या राशि, तिथि और हस्ताक्षर अनिवार्य होते हैं। व्यावसायिक और कानूनी दोनों क्षेत्रों में इसका महत्व है।


47. औपचारिक शिकायत पत्र (Formal Complaint Letter)
यह पत्र किसी समस्या, सेवा दोष, उत्पीड़न या अन्य शिकायत को संबंधित प्राधिकारी या विभाग के समक्ष प्रस्तुत करने हेतु लिखा जाता है। इसमें विषय का संक्षेप, तथ्यात्मक विवरण, अपेक्षित समाधान और समयसीमा का उल्लेख किया जाता है। यह पत्र व्यावसायिक, उपभोक्ता या प्रशासनिक क्षेत्र में अधिकार की रक्षा हेतु उपयोगी होता है।


48. मृत्यु प्रमाण पत्र हेतु प्रार्थना पत्र
यह पत्र नगरपालिका, पंचायत या नगर निगम कार्यालय को दिया जाता है, जिसमें किसी व्यक्ति की मृत्यु की तिथि, स्थान और मृत्यु प्रमाण की आवश्यकता का कारण लिखा जाता है। इसके साथ अस्पताल की रिपोर्ट या अंतिम संस्कार प्रमाण, पहचान पत्र की प्रति संलग्न की जाती है। यह प्रमाण पत्र उत्तराधिकार, बीमा या अन्य विधिक मामलों में आवश्यक होता है।


49. उत्तराधिकारी प्रमाण पत्र (Legal Heir Certificate) हेतु आवेदन
यह आवेदन पत्र परिवार के सदस्य द्वारा तहसीलदार या राजस्व अधिकारी को दिया जाता है, जिसमें मृत व्यक्ति के वारिसों की सूची, उनका संबंध, संपत्ति की जानकारी और प्रमाण संलग्न होते हैं। यह प्रमाण पत्र सरकारी पेंशन, बीमा, बैंक बैलेंस, आदि के हस्तांतरण हेतु आवश्यक होता है।


50. नाम परिवर्तन हेतु शपथ पत्र (Name Change Affidavit)
यदि कोई व्यक्ति कानूनी रूप से अपना नाम बदलना चाहता है, तो उसे एक शपथ पत्र प्रस्तुत करना होता है। इसमें पुराना नाम, नया नाम, नाम परिवर्तन का कारण, पता, जन्म तिथि और यह घोषणा कि यह कार्य स्वेच्छा से किया गया है, शामिल होता है। इसे नोटरी से प्रमाणित कराना और समाचार पत्रों में प्रकाशित करना आवश्यक होता है।