चितपुर डबल मर्डर केस में दोषी संजय सेन को फांसी की सजा: अदालत ने बताया ‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामला’

शीर्षक: चितपुर डबल मर्डर केस में दोषी संजय सेन को फांसी की सजा: अदालत ने बताया ‘दुर्लभ से दुर्लभतम मामला’


प्रस्तावना
पश्चिम बंगाल के चितपुर इलाके में हुए एक डबल मर्डर केस में अदालत ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया है। दोषी संजय सेन को फांसी की सजा सुनाते हुए कोर्ट ने इसे ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ (Rarest of Rare) मामला करार दिया। यह निर्णय न केवल कानून के कठोरतम रूप को दर्शाता है, बल्कि समाज में बढ़ती क्रूरता और बर्बर अपराधों के विरुद्ध न्यायपालिका की गंभीर प्रतिक्रिया को भी उजागर करता है।


मामले की पृष्ठभूमि
घटना वर्ष 2020 में कोलकाता के चितपुर क्षेत्र में घटी थी, जहां संजय सेन ने अपने पड़ोस में रहने वाली महिला और उसकी नाबालिग बेटी की निर्ममता से हत्या कर दी थी। आरोपों के अनुसार, संजय सेन का महिला के साथ पहले से विवाद था, और उसने योजनाबद्ध ढंग से धारदार हथियार से दोनों की हत्या कर दी।

हत्या के तरीके, क्रूरता और हत्या के बाद अपराध स्थल से सबूत मिटाने के प्रयास ने पुलिस और समाज को झकझोर कर रख दिया था। पुलिस जांच में जुटी और ठोस डिजिटल व फॉरेंसिक साक्ष्य के आधार पर संजय को गिरफ्तार किया गया।


अदालत की टिप्पणी और सजा
मामले की सुनवाई के दौरान कोलकाता की सत्र अदालत ने विस्तृत साक्ष्य, पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट और चश्मदीद गवाहों के बयानों पर गौर करते हुए कहा:

अपराध न केवल सुनियोजित था, बल्कि इतनी क्रूरता से किया गया कि यह मानवता को झकझोर देता है।
एक अबोध बच्ची की हत्या और एक असहाय महिला पर बेरहमी से हमला, किसी भी सभ्य समाज के लिए असहनीय है।

कोर्ट ने संजय सेन को भारतीय दंड संहिता की धारा 302 (हत्या), 201 (सबूत मिटाने), और 449 (गैर-कानूनी रूप से घर में घुसकर अपराध करना) के तहत दोषी ठहराया। इसके बाद न्यायाधीश ने ‘दुर्लभ से दुर्लभतम सिद्धांत’ के आधार पर फांसी की सजा सुनाई।


‘Rarest of Rare’ सिद्धांत क्या है?
सुप्रीम कोर्ट द्वारा Bachan Singh v. State of Punjab (1980) मामले में स्थापित ‘दुर्लभ से दुर्लभतम’ सिद्धांत यह निर्धारित करता है कि फांसी की सजा केवल उन मामलों में दी जानी चाहिए जहाँ—

  • अपराध अत्यधिक जघन्य और अमानवीय हो,
  • अभियुक्त का पुनर्वास असंभव प्रतीत हो,
  • समाज के लिए खतरा अत्यधिक हो,
  • पीड़ित की स्थिति विशेष रूप से दयनीय हो।

चितपुर डबल मर्डर केस में इन सभी मापदंडों को पूरा माना गया।


समाज और कानून के लिए संदेश
यह फैसला उन सभी मामलों के लिए मिसाल बनेगा जहां अपराधी सोचते हैं कि वे कानून से बच सकते हैं। महिलाओं और बच्चों पर बढ़ते अत्याचारों के इस दौर में यह निर्णय न केवल पीड़ित परिवार को न्याय दिलाने की दिशा में एक मील का पत्थर है, बल्कि समाज को यह संदेश भी देता है कि—

न्याय भले ही देर से मिले, लेकिन वह निर्णायक और पूर्ण रूप से प्रभावी होता है।


निष्कर्ष
चितपुर डबल मर्डर केस में दोषी संजय सेन को फांसी की सजा सुनाना न्यायपालिका की मानवता, सुरक्षा और संविधान के प्रति प्रतिबद्धता को दर्शाता है। यह मामला यह भी दिखाता है कि जघन्य अपराधों के खिलाफ भारतीय न्याय प्रणाली चुप नहीं बैठती, और दोषी को सबसे कठोर सजा देने में संकोच नहीं करती।
यह न्याय केवल मृतकों के लिए नहीं, बल्कि समाज की आत्मा की रक्षा के लिए भी है।