शीर्षक: डाबर को बड़ी राहत: दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि को ‘च्यवनप्राश’ पर भ्रामक विज्ञापन हटाने का निर्देश दिया
प्रस्तावना
दिल्ली हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण अंतरिम आदेश में डाबर इंडिया लिमिटेड को राहत प्रदान करते हुए पतंजलि आयुर्वेद को निर्देश दिया है कि वह ‘च्यवनप्राश’ को लेकर प्रकाशित किए गए भ्रामक और नकारात्मक विज्ञापनों को तत्काल प्रभाव से हटा ले। यह निर्णय ब्रांड प्रतिष्ठा की रक्षा, उपभोक्ता संरक्षण और प्रतिस्पर्धा कानून की मर्यादा बनाए रखने की दिशा में एक मजबूत कानूनी संकेत है।
विवाद की पृष्ठभूमि
डाबर, जो दशकों से ‘च्यवनप्राश’ उत्पाद का सबसे बड़ा और सबसे पुराना निर्माता रहा है, ने पतंजलि पर आरोप लगाया कि उसने अपने विज्ञापनों में डाबर के उत्पाद की गुणवत्ता को नीचा दिखाने और उपभोक्ताओं को भ्रमित करने वाले वक्तव्यों का प्रयोग किया है। याचिका में डाबर ने कहा कि पतंजलि द्वारा प्रचारित विज्ञापनों में यह दावा किया गया कि अन्य ब्रांड के च्यवनप्राश में रसायन या मिलावट है, जिससे उपभोक्ताओं की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है।
कोर्ट का आदेश और तर्क
दिल्ली हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि –
“किसी प्रतिस्पर्धी उत्पाद को सार्वजनिक रूप से बदनाम करना या उसकी गुणवत्ता पर बिना प्रमाण के टिप्पणी करना, व्यवसायिक नैतिकता और विज्ञापन आचार संहिता का उल्लंघन है।“
कोर्ट ने पतंजलि को निर्देश दिया कि वह ऐसे सभी विज्ञापनों को, जो डाबर या उसके च्यवनप्राश उत्पाद के प्रति नकारात्मक धारणा उत्पन्न करते हैं, तुरंत हटा ले और आगे से ऐसा कोई प्रचार न करे जो सीधे या परोक्ष रूप से डाबर के ब्रांड को नुकसान पहुंचाए।
भ्रामक विज्ञापन और कानून
भारतीय उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 के तहत भ्रामक विज्ञापन (Misleading Advertisement) एक दंडनीय अपराध है। यदि कोई कंपनी अपने प्रचार में दूसरे ब्रांड के विरुद्ध गलत, अतिशयोक्तिपूर्ण या तथ्यहीन जानकारी फैलाती है, तो यह न केवल प्रतिस्पर्धा अधिनियम का उल्लंघन है, बल्कि उपभोक्ता के अधिकारों पर भी सीधा आघात है।
ब्रांड प्रतिष्ठा और व्यापारिक नैतिकता
डाबर जैसे ब्रांड, जिन्होंने दशकों से ग्राहकों का विश्वास अर्जित किया है, उनकी प्रतिष्ठा को बनाए रखना कानूनी और व्यावसायिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। किसी भी ब्रांड के लिए यह आवश्यक है कि प्रतिस्पर्धा स्वस्थ और तथ्यपरक हो। पतंजलि जैसे बड़े ब्रांड से यह अपेक्षा की जाती है कि वह अपने प्रचार में वैज्ञानिक प्रमाण और नैतिक मर्यादा का पालन करे।
इस आदेश के व्यापक प्रभाव
इस निर्णय का असर केवल डाबर और पतंजलि तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह पूरे FMCG सेक्टर के लिए एक चेतावनी है कि भ्रामक प्रचार और बेंचमार्किंग के नाम पर प्रतिद्वंद्वी ब्रांड को अपमानित करना स्वीकार्य नहीं है। इससे विज्ञापन जगत में अधिक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता लाने की संभावना है।
निष्कर्ष
दिल्ली हाईकोर्ट का यह निर्देश न केवल डाबर के लिए एक कानूनी जीत है, बल्कि भारतीय न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और विज्ञापन के क्षेत्र में नैतिकता की आवश्यकता को भी उजागर करता है। यह आदेश यह स्पष्ट करता है कि बाजार में प्रतिस्पर्धा तो हो, पर वह सत्य, प्रमाण और सम्मान की सीमा के भीतर रहे।