Land Laws (Revenue Law) “भूमि विधि (राजस्व कानून)” Part-2

51. नामांतरण विवादों में समाधान की प्रक्रिया
नामांतरण विवाद तब उत्पन्न होते हैं जब एक से अधिक व्यक्ति किसी भूमि पर स्वामित्व का दावा करते हैं। ऐसे मामलों में संबंधित व्यक्ति तहसील कार्यालय में आपत्ति दायर कर सकते हैं। तहसीलदार या नायब तहसीलदार मामले की जांच कर लेखपाल व कानूनगो की रिपोर्ट लेते हैं और दोनों पक्षों को सुनवाई का अवसर दिया जाता है। प्रमाण और दस्तावेजों के आधार पर निर्णय दिया जाता है। असंतुष्ट पक्ष अपील कर सकता है।


52. भूमि अभिलेखों में त्रुटि सुधार की प्रक्रिया
भूमि अभिलेखों में यदि नाम, क्षेत्रफल, सीमा आदि में त्रुटि हो जाए तो संबंधित व्यक्ति राजस्व कार्यालय में सुधार के लिए आवेदन दे सकता है। लेखपाल द्वारा मौका निरीक्षण, रिपोर्ट और साक्ष्य के आधार पर कानूनगो एवं तहसीलदार निर्णय देते हैं। सुधार आदेश मिलने के बाद रिकॉर्ड अद्यतन किया जाता है। यह प्रक्रिया पारदर्शी और प्रमाण आधारित होती है ताकि गलत सुधार से बचा जा सके।


53. भूमिसुधार अधिनियम, 1950 का उद्देश्य
1950 में लागू भूमि सुधार अधिनियम का मुख्य उद्देश्य था ज़मींदारी प्रथा की समाप्ति, बंटाईदारों को अधिकार देना, भूमिहीनों को भूमि प्रदान करना और कृषि भूमि की सीमा तय करना। इस कानून के तहत भूमि पर वास्तविक कृषक को प्राथमिकता दी गई और भूमिधारकों पर भूमि सीमा लागू की गई। इसने कृषकों को आत्मनिर्भर बनाया और ग्रामीण समाज में आर्थिक समानता को बढ़ावा दिया।


54. चकबंदी अधिकारी की भूमिका
चकबंदी अधिकारी भूमि पुनर्वितरण की प्रक्रिया का संचालन करता है। वह किसानों की बिखरी भूमि को एक साथ जोड़कर सुव्यवस्थित चक प्रदान करता है। अधिकारी सर्वेक्षण, आपत्तियों का निपटारा, सीमांकन और पुनः खतौनी बनाने का कार्य करता है। चकबंदी विवादों के समाधान के लिए वह राजस्व न्यायिक अधिकारी के रूप में भी कार्य करता है। उसकी भूमिका कृषि सुधार एवं विवाद निवारण में अत्यंत महत्वपूर्ण होती है।


55. भू-स्वामित्व प्रमाण पत्र की उपयोगिता
भू-स्वामित्व प्रमाण पत्र किसी भूमि पर स्वामित्व का आधिकारिक प्रमाण होता है। इसे नामांतरण, ऋण आवेदन, मुआवजा प्राप्ति, सरकारी योजनाओं में आवेदन आदि के लिए आवश्यक माना जाता है। यह प्रमाण पत्र तहसील कार्यालय या राजस्व विभाग द्वारा दिया जाता है, जिसमें खातेदार का नाम, भूमि का विवरण, खसरा संख्या आदि होते हैं। यह दस्तावेज न्यायालय में भी प्रमाण के रूप में मान्य होता है।


56. सीमांकन प्रमाण पत्र क्या है?
सीमांकन प्रमाण पत्र वह दस्तावेज है जिसमें यह दर्शाया गया होता है कि किसी भूमि की सीमा का विधिवत सर्वेक्षण कर सीमांकन किया गया है। इसे लेखपाल या कानूनगो द्वारा मौके पर माप कर तैयार किया जाता है और तहसीलदार द्वारा प्रमाणित किया जाता है। यह भूमि विवादों के निपटारे, निर्माण कार्य, या भूमि विक्रय में विशेष रूप से उपयोगी होता है। इसका वैधानिक महत्व भी है।


57. भूमि उपयोग के प्रकार
भूमि का उपयोग विभिन्न प्रकार से किया जाता है—(1) कृषि उपयोग, (2) आवासीय उपयोग, (3) वाणिज्यिक उपयोग, (4) औद्योगिक उपयोग, (5) वन भूमि, (6) चरागाह आदि। प्रत्येक राज्य भूमि उपयोग को नियंत्रित करने के लिए ज़ोनिंग नीति एवं भू-नियोजन कानून लागू करता है। भूमि उपयोग परिवर्तन के लिए विधिवत अनुमति आवश्यक होती है। अनाधिकृत उपयोग कानूनन अपराध माना जाता है।


58. राजस्व विभाग में शिकायत दर्ज करने की प्रक्रिया
भूमि से संबंधित किसी भी समस्या (जैसे नामांतरण, सीमांकन, अतिक्रमण आदि) के लिए नागरिक राजस्व विभाग में शिकायत दर्ज करा सकते हैं। इसके लिए संबंधित तहसील में लिखित आवेदन, आवश्यक दस्तावेज और पहचान पत्र प्रस्तुत करना होता है। शिकायत दर्ज होने के बाद लेखपाल या कानूनगो मौके का निरीक्षण कर रिपोर्ट बनाते हैं और अधिकारी द्वारा निर्णय लिया जाता है। अब कई राज्यों में ऑनलाइन पोर्टल भी उपलब्ध हैं।


59. भूमि विवादों में पंचायती राज संस्थाओं की भूमिका
पंचायती राज संस्थाएँ भूमि विवादों के प्रारंभिक समाधान में सहयोग करती हैं। ग्राम प्रधान, ग्राम सचिव या पंचायत समिति सीमांकन, आपसी समझौता, या रिपोर्ट भेजने में सहायता करते हैं। हालांकि इन संस्थाओं के पास न्यायिक अधिकार नहीं होते, लेकिन प्रारंभिक स्तर पर विवाद को सुलझाने में इनकी भूमिका अहम होती है। ग्राम पंचायत की रिपोर्ट राजस्व अधिकारियों को निर्णय लेने में मदद करती है।


60. भूमि कर भुगतान की प्रक्रिया
भूमि कर (भू-राजस्व) भुगतान के लिए सरकार प्रत्येक खातेदार को वार्षिक देय कर निर्धारित करती है। यह कर ऑनलाइन या राजस्व कार्यालय में भुगतान किया जा सकता है। भुगतान के बाद रसीद प्राप्त होती है, जो भूमि के वैध स्वामित्व एवं अद्यतन रिकॉर्ड का प्रमाण होती है। समय पर भुगतान न करने पर जुर्माना और वसूली की कार्रवाई हो सकती है। कर भुगतान से सरकार की आय और विकास योजनाएँ सुचारु होती हैं।


61. भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 का सार
“भूमि अधिग्रहण, पुनर्वासन एवं पुनर्व्यवस्था अधिनियम, 2013” का उद्देश्य किसानों और भूमिधारकों को न्यायपूर्ण मुआवजा, पुनर्वास और पारदर्शिता प्रदान करना है। इसके तहत सरकार या निजी कंपनियाँ सार्वजनिक उद्देश्य के लिए भूमि अधिग्रहण कर सकती हैं, लेकिन मुआवजा बाज़ार मूल्य से 2–4 गुना तक दिया जाना अनिवार्य है। इसके अतिरिक्त सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन और ग्राम सभा की सहमति भी आवश्यक है।


62. खसरा संख्या और गाटा संख्या में अंतर
खसरा संख्या वह विशेष संख्या होती है जो प्रत्येक खेत को पहचानने के लिए दी जाती है। यह भूमि के सर्वेक्षण के समय निर्धारित की जाती है। जबकि गाटा संख्या विशेष रूप से उत्तर प्रदेश में प्रयुक्त होती है जो खसरा संख्या को नया रूप देती है। भूमि की पहचान, सीमांकन, विक्रय और ऋण के लिए खसरा/गाटा संख्या महत्वपूर्ण होती है। ये रिकॉर्ड खतौनी में दर्ज होते हैं।


63. भूमि की नीलामी की प्रक्रिया
जब भूमि पर ऋण बकाया हो या सरकारी कर नहीं चुकाया गया हो, तो सरकार या बैंक उस भूमि की नीलामी कर सकती है। इसके लिए नोटिस जारी किया जाता है और सार्वजनिक सूचना दी जाती है। निर्धारित तिथि को खुली बोली प्रक्रिया के माध्यम से भूमि उच्चतम बोलीदाता को प्रदान की जाती है। खरीदार को रजिस्ट्री करानी होती है और संपत्ति का स्वामित्व स्थानांतरित होता है। नीलामी पारदर्शी प्रक्रिया के अनुसार की जाती है।


64. भू-अर्जन और भू-संपादन में अंतर
भू-अर्जन (Land Acquisition) वह प्रक्रिया है जिसमें सरकार किसी सार्वजनिक उद्देश्य हेतु निजी भूमि प्राप्त करती है। जबकि भू-संपादन (Land Development) वह प्रक्रिया है जिसमें भूमि को उपयोग योग्य बनाने हेतु सुधार, समतलीकरण, सिंचाई आदि कार्य किए जाते हैं। अर्जन में स्वामित्व स्थानांतरित होता है, जबकि संपादन में भूमि की गुणवत्ता और मूल्य बढ़ता है। दोनों प्रक्रियाओं का उद्देश्य भूमि उपयोग में वृद्धि करना है।


65. भूमि पर लीज (पट्टा) और बिक्री में अंतर
पट्टा भूमि का सीमित अवधि के लिए उपयोग का अधिकार होता है, जबकि बिक्री में स्थायी स्वामित्व स्थानांतरित होता है। पट्टेदार भूमि का मालिक नहीं होता और शर्तों के अनुसार उपयोग करता है, जबकि बिक्री में खरीदार भूमि का पूर्ण स्वामी बनता है। पट्टा समाप्त होने पर भूमि सरकार या असली मालिक को वापस मिल जाती है। दोनों के लिए अलग-अलग कानूनी प्रक्रिया अपनाई जाती है।


66. खतौनी क्या होती है और इसका महत्व
खतौनी भूमि के स्वामित्व का राजस्व रिकॉर्ड होता है जिसमें खातेदार का नाम, खसरा संख्या, भूमि का क्षेत्रफल, फसल, कर, बंधक आदि विवरण होते हैं। यह रिकॉर्ड लेखपाल द्वारा अद्यतन किया जाता है और तहसील कार्यालय में सुरक्षित रहता है। खतौनी भूमि की खरीद-बिक्री, ऋण, उत्तराधिकार, सरकारी योजनाओं में आवेदन आदि में प्रमाण के रूप में प्रयोग होती है। डिजिटलीकरण के बाद अब ऑनलाइन खतौनी भी उपलब्ध है।


67. खसरा का अर्थ और उपयोगिता
खसरा एक फील्ड रजिस्टर होता है जिसमें भूमि की सर्वेक्षण संख्या, स्थिति, क्षेत्रफल, फसल, सिंचाई स्त्रोत आदि का विवरण होता है। यह दस्तावेज भूमि की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है और सीमांकन, भूमि कर निर्धारण, और विवाद निवारण में सहायक होता है। खसरा खतौनी से अलग होता है, पर दोनों मिलकर पूर्ण भूमि रिकॉर्ड का निर्माण करते हैं।


68. भू-अभिलेखों का कंप्यूटरीकरण क्यों आवश्यक है?
भू-अभिलेखों के कंप्यूटरीकरण से पारदर्शिता, सुलभता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है। इससे नागरिक ऑनलाइन खतौनी, नक्शा, कर भुगतान आदि देख सकते हैं और भ्रष्टाचार में कमी आती है। इससे भूमि विवादों में कमी, समय की बचत, रिकॉर्ड की स्थायित्वता और प्रशासन की दक्षता बढ़ती है। डिजिटल इंडिया अभियान में यह प्रमुख पहल है।


69. भूमि के विक्रय के लिए आवश्यक दस्तावेज
भूमि के विक्रय हेतु खतौनी, खसरा, रजिस्ट्री, एनओसी, कर भुगतान रसीद, सीमांकन प्रमाण पत्र, पहचान पत्र, फोटो आदि आवश्यक होते हैं। यदि भूमि कृषि से अन्य उपयोग में परिवर्तित होनी हो तो परिवर्तन की अनुमति भी ज़रूरी है। सभी दस्तावेजों की जांच के बाद ही रजिस्ट्री कराना सुरक्षित होता है।


70. वन भूमि पर अतिक्रमण की सजा
वन अधिनियम, 1927 के अनुसार कोई भी व्यक्ति बिना अनुमति के वन भूमि पर कब्जा, निर्माण या कटाई करता है तो यह दंडनीय अपराध है। इसमें दंड के रूप में कारावास (3 से 6 महीने तक) और जुर्माना (5000 से 25000 रुपए तक) हो सकता है। ऐसे मामलों में वन अधिकारी और जिला प्रशासन कार्यवाही करते हैं।


71. अस्थायी पट्टा और स्थायी पट्टा में अंतर
अस्थायी पट्टा सीमित समय (जैसे 3, 5 या 10 वर्ष) के लिए होता है जबकि स्थायी पट्टा दीर्घकालिक या जीवनभर के लिए होता है। अस्थायी पट्टे में शर्तें सख्त होती हैं और उसका नवीनीकरण आवश्यक होता है, जबकि स्थायी पट्टे में अधिक अधिकार दिए जाते हैं। स्थायी पट्टा अधिक सुरक्षित होता है।


72. भूमि कर माफी की स्थिति
कुछ विशेष परिस्थितियों में भूमि कर माफ किया जा सकता है, जैसे – प्राकृतिक आपदा (सूखा, बाढ़), फसल नुकसान, सैनिक शहीद परिवार, अनुसूचित जाति/जनजाति वर्ग के गरीब कृषक आदि। इसके लिए प्रमाण पत्र के साथ आवेदन तहसील कार्यालय में दिया जाता है और अधिकारी की अनुशंसा पर कर माफी दी जाती है।


73. भूमिधर और असामी में अंतर
भूमिधर वह व्यक्ति होता है जिसके पास भूमि का वैधानिक स्वामित्व होता है और वह उसे बेच, गिरवी रख सकता है। जबकि असामी किराएदार होता है जिसे सीमित अधिकार होते हैं, जैसे खेती करना, लेकिन वह भूमि का स्वामी नहीं होता। भूमि सुधार कानूनों के तहत कुछ मामलों में असामी को भूमिधर बनने का अधिकार दिया गया है।


74. उत्तराधिकार द्वारा भूमि हस्तांतरण की प्रक्रिया
उत्तराधिकार द्वारा भूमि के हस्तांतरण हेतु संबंधित व्यक्ति को उत्तराधिकार प्रमाण पत्र या वारिसों का घोषणा पत्र लेकर तहसील में नामांतरण के लिए आवेदन करना होता है। लेखपाल व कानूनगो द्वारा जांच कर रिपोर्ट बनाई जाती है और तहसीलदार आदेश देते हैं। इसके बाद खतौनी में नाम दर्ज किया जाता है।


75. श्मशान भूमि की कानूनी स्थिति
श्मशान भूमि ग्राम सभा या नगरपालिका की संपत्ति होती है और इसका उपयोग सामुदायिक कार्यों के लिए होता है। इस पर किसी का निजी स्वामित्व नहीं होता। इस भूमि पर अतिक्रमण या निर्माण अवैध होता है और उसे हटाने का अधिकार जिला प्रशासन को होता है। भारतीय दंड संहिता के तहत यह दंडनीय अपराध है।


76. भूमि पर बंधक दर्ज कराने की प्रक्रिया
बैंक या संस्था से ऋण लेने पर भूमि गिरवी रखी जाती है। इसके लिए ऋणदाता बैंक तहसील में बंधक दर्ज कराने के लिए आवेदन करता है। बंधक दर्ज होने के बाद खतौनी में ‘बंधक’ का उल्लेख होता है। ऋण चुकता होने पर बंधक हटाने के लिए ‘बंधक समाप्ति प्रमाण पत्र’ के साथ पुनः आवेदन करना होता है।


77. कृषि भूमि पर निर्माण के नियम
भारत में कृषि भूमि पर आवासीय या वाणिज्यिक निर्माण करने के लिए ज़मीन का भूमि उपयोग परिवर्तन (CLU) कराना आवश्यक होता है। बिना अनुमति निर्माण अवैध माना जाता है और उसे ध्वस्त किया जा सकता है। ग्राम पंचायत या विकास प्राधिकरण से अनुमति लेकर ही निर्माण करना चाहिए।


78. तालाब की भूमि पर कब्जे की स्थिति
तालाब या जल स्रोत की भूमि सरकारी या ग्राम समाज की संपत्ति होती है। इस पर निजी निर्माण, कब्जा या भराई अवैध होता है। उच्च न्यायालयों ने आदेश दिए हैं कि जल स्रोतों की रक्षा की जाए और अतिक्रमण हटाया जाए। ऐसे कब्जे पर प्रशासन कार्यवाही कर भूमि को मुक्त कराता है।


79. भूमि अधिग्रहण में सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (SIA)
भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 के अनुसार किसी भी बड़ी परियोजना से पूर्व सामाजिक प्रभाव मूल्यांकन (Social Impact Assessment) आवश्यक है। इसके अंतर्गत यह मूल्यांकन किया जाता है कि अधिग्रहण से समाज, पर्यावरण, आजीविका आदि पर क्या प्रभाव पड़ेगा। इसके आधार पर ही अधिग्रहण की स्वीकृति दी जाती है।


80. नक्शा संशोधन की प्रक्रिया
यदि भूमि नक्शे में सीमा, क्षेत्र या विवरण में त्रुटि हो तो संबंधित व्यक्ति राजस्व विभाग में आवेदन दे सकता है। कानूनगो मौके का निरीक्षण कर रिपोर्ट बनाता है और अनुमोदन के बाद नक्शा संशोधित किया जाता है। संशोधित नक्शा रजिस्टर व डिजिटलीकरण पोर्टल पर अपलोड किया जाता है।


81. भूमि विवादों में सिविल कोर्ट और राजस्व कोर्ट में अंतर
राजस्व विवाद (जैसे सीमांकन, नामांतरण, बंटवारा) राजस्व अदालतों में चलते हैं, जबकि स्वामित्व या अधिकार से संबंधित मामले सिविल न्यायालयों में दायर किए जाते हैं। यदि दोनों न्यायालयों में कार्यवाही चल रही हो तो प्राथमिकता सिविल न्यायालय को दी जाती है। राजस्व अधिकारी सीमित अधिकारों के साथ काम करते हैं।


82. चरागाह भूमि का कानूनी उपयोग
चरागाह भूमि ग्राम समाज की होती है और इसका उपयोग सामूहिक पशु चराने हेतु किया जाता है। इस पर निजी कब्जा, फेंसिंग, या खेती अवैध होती है। इसके संरक्षण हेतु पंचायत और लेखपाल को निगरानी करनी होती है। अतिक्रमण की स्थिति में प्रशासन उसे खाली कराता है।


83. भूमि उपयोग नियोजन (Land Use Planning) का उद्देश्य
भूमि उपयोग नियोजन का उद्देश्य भूमि का संतुलित और अनुकूल उपयोग सुनिश्चित करना है ताकि कृषि, आवास, उद्योग, पर्यावरण आदि के लिए पर्याप्त स्थान हो। इससे बेतरतीब विकास, अतिक्रमण और पर्यावरणीय क्षति को रोका जा सकता है। इसके लिए मास्टर प्लान बनाए जाते हैं और ज़ोनिंग लागू की जाती है।


84. विवादित भूमि की रजिस्ट्री की वैधता
विवादित भूमि की रजिस्ट्री वैध नहीं मानी जाती जब तक कि विवाद का समाधान नहीं हो जाए। यदि भूमि पर दावा या कोर्ट केस लंबित है, तो उप-पंजीयक कार्यालय रजिस्ट्री से मना कर सकता है। यदि रजिस्ट्री कर दी गई हो, तो वह बाद में निरस्त की जा सकती है। खरीदार को खरीद से पहले “encumbrance certificate” जरूर लेना चाहिए।


85. पंचायती भूमि पर पट्टा देने के नियम
ग्राम पंचायत अपनी भूमि पर निर्धन, भूमिहीन या पात्र व्यक्तियों को पट्टा दे सकती है, परंतु इसके लिए ग्राम सभा की स्वीकृति, नियमों के अनुसार आवेदन, पात्रता जाँच आदि आवश्यक है। यह पट्टा कृषि या आवासीय प्रयोजन के लिए सीमित होता है और बिक्री पर रोक लगाई जाती है।


86. खलिहान भूमि का संरक्षण क्यों आवश्यक है?
खलिहान भूमि ग्रामीण क्षेत्रों में सामूहिक फसल सुखाने, अनाज भंडारण और कृषि उपज के कार्यों के लिए होती है। इसका संरक्षण आवश्यक है ताकि कृषि कार्यों में सुविधा बनी रहे। इस पर निजी निर्माण या कब्जा कृषि हित के विरुद्ध होता है और कानून द्वारा प्रतिबंधित है।


87. भू-संपत्ति विवाद में स्थगन आदेश (Stay Order) का प्रभाव
जब किसी भू-संपत्ति पर विवाद हो और मामला न्यायालय में विचाराधीन हो, तो पक्षकार न्यायालय से स्थगन आदेश प्राप्त कर सकता है। यह आदेश संपत्ति पर यथास्थिति बनाए रखने हेतु होता है। स्थगन आदेश के रहते संपत्ति का विक्रय, निर्माण, कब्जा परिवर्तन या अन्य गतिविधियाँ अवैध मानी जाती हैं। आदेश की अवहेलना अवमानना (Contempt of Court) के अंतर्गत दंडनीय होती है।


88. भू-राजस्व वसूली में तहसीलदार की भूमिका
तहसीलदार राजस्व क्षेत्र का प्रमुख अधिकारी होता है और उसे भू-राजस्व वसूली की जिम्मेदारी होती है। यदि किसी खातेदार द्वारा निर्धारित भूमि कर नहीं चुकाया जाता है, तो तहसीलदार वसूली नोटिस जारी करता है। कर की वसूली न होने पर कुर्की, संपत्ति की नीलामी या बकाया वसूली की अन्य विधियां अपनाई जाती हैं।


89. ग्राम सभा भूमि का कानूनी प्रबंधन
ग्राम सभा की भूमि जैसे चरागाह, श्मशान, तालाब आदि ग्राम पंचायत द्वारा नियंत्रित होती है। इसका प्रयोग सार्वजनिक हित में होता है और इसका रिकार्ड लेखपाल द्वारा तैयार किया जाता है। पंचायत इस भूमि का पट्टा दे सकती है, परंतु उसकी निगरानी, अतिक्रमण हटाना और संरक्षण की जिम्मेदारी भी पंचायत की होती है।


90. भूमि पर वसीयत विवाद का समाधान कैसे होता है?
वसीयत से संबंधित विवाद तब उत्पन्न होता है जब उत्तराधिकारियों में असहमति होती है। ऐसे मामलों में वसीयत की वैधता, गवाहों के बयान, पंजीकरण की स्थिति आदि का न्यायालय परीक्षण करता है। यदि वसीयत सही पाई जाती है तो उस आधार पर नामांतरण किया जाता है, अन्यथा उत्तराधिकार कानून के अनुसार संपत्ति बाँटी जाती है।


91. भू-संपत्ति के नकली दस्तावेज़ से निपटने की प्रक्रिया
यदि किसी भूमि के दस्तावेज़ फर्जी पाए जाते हैं, तो पुलिस में प्राथमिकी दर्ज कर धोखाधड़ी (IPC की धारा 420, 467, 468 आदि) के तहत कार्यवाही होती है। ऐसे दस्तावेज़ रद्द किए जाते हैं और संबंधित पक्ष के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई की जाती है। पीड़ित पक्ष सिविल व क्रिमिनल कोर्ट में राहत की मांग कर सकता है।


92. भूमि सुधार कार्यक्रमों का सामाजिक प्रभाव
भूमि सुधार कार्यक्रम जैसे ज़मींदारी उन्मूलन, भूसीमा निर्धारण, बंटाईदारों के अधिकार आदि ने सामाजिक असमानता को कम किया। इनसे किसानों को अधिकार, न्याय और भूमि की सुरक्षा मिली। ग्रामीण विकास, आत्मनिर्भरता और गरीबी उन्मूलन में इन कार्यक्रमों का महत्वपूर्ण योगदान रहा। हालाँकि, इनकी प्रभावशीलता राज्यों में भिन्न रही है।


93. भूमि का अतिक्रमण कैसे हटाया जाता है?
भूमि पर अवैध कब्जा होने पर संबंधित व्यक्ति तहसील में शिकायत कर सकता है। लेखपाल मौके पर निरीक्षण कर रिपोर्ट बनाता है। इसके आधार पर तहसीलदार नोटिस देकर कब्जा हटाने का आदेश देता है। यदि अतिक्रमण नहीं हटाया गया, तो प्रशासन बलपूर्वक कब्जा मुक्त करता है। ग्राम समाज भूमि पर अतिक्रमण अधिनियम भी लागू होता है।


94. कृषकों को भूमि के अधिकार देने वाली प्रमुख योजनाएँ
भारत में कई योजनाओं के माध्यम से भूमिहीनों और लघु कृषकों को भूमि दी गई है, जैसे — भूमि पट्टा योजना, प्रधानमंत्री ग्रामीण आवास योजना में भूखण्ड वितरण, दलित भूमि वितरण योजना आदि। इन योजनाओं का उद्देश्य कृषकों को आत्मनिर्भर बनाना और सामाजिक न्याय प्रदान करना है। पात्रता के आधार पर चयन एवं पट्टा वितरण किया जाता है।


95. भूमि के ऑनलाइन रिकॉर्ड का लाभ
ऑनलाइन भू-अभिलेख से व्यक्ति खतौनी, खसरा, नक्शा, कर स्थिति आदि घर बैठे देख सकता है। इससे पारदर्शिता, धोखाधड़ी में कमी, समय की बचत, तथा जमीन खरीद में भरोसा बढ़ता है। यूपी, एमपी, बिहार, राजस्थान आदि राज्यों में “भूलेख”, “भू-नक्ष” जैसी पोर्टल कार्यरत हैं जो आम जनता के लिए उपलब्ध हैं।


96. सीमांकन विवादों में न्यायालय का दृष्टिकोण
सीमांकन विवाद में न्यायालय स्थल निरीक्षण, राजस्व रिकार्ड, लेखपाल रिपोर्ट और गवाहों के आधार पर निर्णय करता है। न्यायालय का उद्देश्य भूमि की वास्तविक स्थिति को स्पष्ट करना होता है। यदि आवश्यक हो तो कोर्ट पुनः सीमांकन का आदेश देता है और विवादित भूमि की स्थिति तय करता है। न्यायालयीय आदेश के बाद रिकार्ड में सुधार किया जाता है।


97. संपत्ति कर और भूमि कर में अंतर
भूमि कर राज्य सरकार द्वारा कृषि भूमि पर लगाया जाता है, जबकि संपत्ति कर नगर पालिका या नगर निगम द्वारा शहरी क्षेत्रों में मकानों, प्लाटों पर लगाया जाता है। भूमि कर का संग्रह राजस्व विभाग करता है, जबकि संपत्ति कर का संग्रह स्थानीय निकाय करता है। दोनों कर का उद्देश्य सरकारी आय बढ़ाना है।


98. बंटवारा पत्र की वैधानिकता
बंटवारा पत्र वह दस्तावेज है जिसमें परिवार के सदस्य आपसी सहमति से भूमि का विभाजन तय करते हैं। यदि यह लेखबद्ध, गवाहों द्वारा हस्ताक्षरित और पंजीकृत हो, तो यह न्यायालय में वैध प्रमाण माना जाता है। इसके आधार पर अलग-अलग खतौनी तैयार की जाती है। यदि विवाद हो, तो सिविल कोर्ट में वैधता की पुष्टि होती है।


99. ग्राम सभा भूमि के अवैध पट्टों की स्थिति
ग्राम पंचायत या प्रधान द्वारा यदि बिना ग्राम सभा की अनुमति, नियमों के विरुद्ध किसी को भूमि पट्टा दे दिया जाए, तो वह अवैध होता है। ऐसे पट्टों को एसडीएम या जिला अधिकारी निरस्त कर सकते हैं। इसके विरुद्ध अपील भी की जा सकती है। दोषी प्रधान पर अनुशासनात्मक कार्यवाही हो सकती है।


100. भूमि सुधार के भविष्य की दिशा
भविष्य में भूमि सुधार की दिशा भू-अभिलेखों के पूर्ण डिजिटलीकरण, GIS आधारित नक्शा प्रणाली, एकीकृत भूमि पोर्टल, भूमि बैंकों का निर्माण, और न्यायिक सुधार की ओर होनी चाहिए। महिला स्वामित्व बढ़ाना, सहकारी खेती को बढ़ावा देना और बंजर भूमि का उपयुक्त उपयोग भी सुधार के महत्वपूर्ण आयाम होंगे।