51. न्यास में विश्वास (Fiduciary Relationship) का क्या महत्व है?
न्यास में विश्वास का संबंध सबसे महत्वपूर्ण होता है क्योंकि यह संबंध एक व्यक्ति (न्यासी) को दूसरे व्यक्ति (लाभार्थी) की संपत्ति के प्रबंधन का उत्तरदायित्व सौंपता है। यह संबंध पूर्ण ईमानदारी, पारदर्शिता और निष्ठा पर आधारित होता है। न्यासी को अपने व्यक्तिगत हितों से ऊपर उठकर लाभार्थी के हित में निर्णय लेने होते हैं। यदि यह विश्वास टूटता है, तो लाभार्थी को हानि हो सकती है, जिससे न्यासी विधिक रूप से उत्तरदायी बन सकता है। यह संबंध अदालत द्वारा संरक्षित होता है।
52. ट्रस्ट के लाभार्थी को कौन-कौन से अधिकार प्राप्त होते हैं?
लाभार्थी को न्यासी से पारदर्शिता और ईमानदारी की अपेक्षा होती है। उसे ट्रस्ट से आय प्राप्त करने, ट्रस्ट दस्तावेज की प्रति देखने, लेखा-जोखा प्राप्त करने, और न्यासी द्वारा किए गए निर्णयों को चुनौती देने का अधिकार होता है। यदि न्यासी अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करता है, तो लाभार्थी न्यायालय से ट्रस्ट की सुरक्षा और क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है। ट्रस्ट की समाप्ति या परिवर्तन की प्रक्रिया में भी लाभार्थी की भूमिका महत्वपूर्ण होती है।
53. इक्विटी का सिद्धांत – “Equity acts in personam” का अर्थ क्या है?
इस सिद्धांत का अर्थ है कि इक्विटी व्यक्ति के विवेक और नैतिक कर्तव्य को नियंत्रित करती है, न कि केवल संपत्ति को। इसका उद्देश्य है कि यदि कोई व्यक्ति अनुचित लाभ प्राप्त कर रहा है या दूसरों के साथ अन्याय कर रहा है, तो न्यायालय उसे वैयक्तिक रूप से निर्देश दे सकता है। यह सिद्धांत न्यायपालिका को आदेशात्मक राहत (जैसे निषेधाज्ञा) देने की शक्ति देता है, ताकि व्यक्ति को सीधे रूप से विवेकपूर्ण आचरण के लिए बाध्य किया जा सके।
54. क्या ट्रस्ट का नियंत्रण न्यायालय द्वारा किया जा सकता है?
हाँ, न्यायालय ट्रस्ट के कार्यों पर नियंत्रण रख सकता है, विशेषतः तब जब न्यासी अपने कर्तव्यों का उल्लंघन करता है या लाभार्थियों के हितों को हानि पहुँचाता है। न्यायालय ट्रस्ट के कार्यों की समीक्षा कर सकता है, न्यासी को निर्देश दे सकता है, या उसे हटाकर नया न्यासी नियुक्त कर सकता है। सार्वजनिक ट्रस्टों के मामलों में, राज्य सरकार या ट्रस्ट अधिनियम के अंतर्गत नियुक्त अधिकारी भी निगरानी रखते हैं। यह नियंत्रण ट्रस्ट की पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
55. ट्रस्ट अधिनियम, 1882 के अंतर्गत कौन-कौन सी धाराएँ महत्वपूर्ण हैं?
भारतीय ट्रस्ट अधिनियम, 1882 की कुछ प्रमुख धाराएँ निम्नलिखित हैं:
- धारा 3 – ट्रस्ट की परिभाषा
- धारा 6 – ट्रस्ट के आवश्यक तत्व
- धारा 11-30 – न्यासी के कर्तव्य और अधिकार
- धारा 56-69 – रेमेडीज और न्यायालय की शक्तियाँ
यह अधिनियम मुख्यतः निजी ट्रस्टों पर लागू होता है और यह न्यासी तथा लाभार्थी दोनों के अधिकारों और उत्तरदायित्वों को परिभाषित करता है।
56. न्यासी के विरुद्ध कार्रवाई कब संभव है?
जब न्यासी ट्रस्ट डीड या विधि का उल्लंघन करता है, जैसे कि संपत्ति का दुरुपयोग, लाभार्थी के साथ भेदभाव, पारदर्शिता की कमी, या व्यक्तिगत लाभ लेना – तब लाभार्थी या कोई अन्य संबंधित पक्ष न्यायालय में वाद दायर कर सकता है। न्यायालय उस न्यासी को हटाने, क्षतिपूर्ति कराने, या निषेधाज्ञा देने की शक्ति रखता है। ऐसे मामलों में ट्रस्ट की रक्षा हेतु न्यायालय सक्रिय भूमिका निभाता है।
57. ट्रस्ट के अंतर्गत आयकर छूट कैसे मिलती है?
यदि ट्रस्ट चैरिटेबल या धार्मिक उद्देश्यों के लिए स्थापित है और विधिवत पंजीकृत है, तो उसे आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 12A और 80G के अंतर्गत छूट मिलती है। इसके लिए ट्रस्ट को आयकर विभाग से पंजीकरण कराना होता है, नियमित लेखा-जोखा रखना होता है और आय का उपयोग केवल ट्रस्ट उद्देश्यों के लिए करना होता है। यदि कोई भी धन निजी उपयोग में लाया गया, तो छूट समाप्त हो सकती है।
58. इक्विटी के सिद्धांतों की व्याख्या भारतीय संविधान में कहाँ होती है?
भारतीय संविधान प्रत्यक्ष रूप से इक्विटी शब्द का प्रयोग नहीं करता, लेकिन इसके सिद्धांत न्याय, समानता, और स्वतंत्रता जैसे मूल्यों में समाहित हैं। अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 21 (जीवन और स्वतंत्रता का अधिकार) ऐसे अधिकार हैं जिनकी व्याख्या में सुप्रीम कोर्ट ने कई बार इक्विटी आधारित दृष्टिकोण अपनाया है। विशेषकर अनुच्छेद 142 न्यायालय को “पूर्ण न्याय” प्रदान करने का अधिकार देता है।
59. ट्रस्ट में संशोधन (Modification) कैसे किया जा सकता है?
निजी ट्रस्ट में संशोधन तभी संभव होता है जब ट्रस्ट डीड में इसकी अनुमति हो या सभी लाभार्थी सहमत हों। सार्वजनिक ट्रस्ट में संशोधन के लिए न्यायालय या संबंधित सरकारी अधिकारी की अनुमति आवश्यक होती है। संशोधन में ट्रस्ट का उद्देश्य, न्यासी की संख्या, संपत्ति की प्रकृति आदि को बदला जा सकता है, परंतु यह सुनिश्चित करना होता है कि मूल उद्देश्य को नुकसान न पहुँचे और सार्वजनिक हित सुरक्षित रहे।
60. ट्रस्ट के तहत संपत्ति का हस्तांतरण कैसे होता है?
जब कोई ट्रस्ट बनाया जाता है, तो न्यासकर्ता ट्रस्ट संपत्ति को न्यासी को हस्तांतरित करता है ताकि वह उसे लाभार्थी के हित में संचालित कर सके। यदि संपत्ति अचल है, तो रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है। चल संपत्ति (जैसे नकद, शेयर आदि) को न्यासी को सुपुर्द करके ट्रस्ट स्थापित किया जा सकता है। हस्तांतरण ट्रस्ट डीड के अनुसार होता है और इसके पश्चात न्यासी संपत्ति का विधिसम्मत प्रबंधन करता है।
61. न्यासी द्वारा निवेश (Investment) की सीमाएँ क्या हैं?
न्यासी केवल उन्हीं क्षेत्रों में निवेश कर सकता है जो ट्रस्ट डीड में निर्दिष्ट हों या जो भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 की धारा 20 में अनुमत हों। ये सुरक्षित निवेश क्षेत्र होते हैं जैसे सरकारी प्रतिभूतियाँ, पोस्ट ऑफिस स्कीम, आदि। जोखिमपूर्ण निवेश (जैसे शेयर बाजार में अंधाधुंध निवेश) की अनुमति नहीं होती। निवेश करते समय न्यासी को लाभार्थी के हितों का ध्यान रखना आवश्यक होता है, न कि अपने निजी लाभ का।
62. ट्रस्ट संपत्ति को गलत तरीके से प्रयोग करने पर क्या परिणाम होता है?
यदि न्यासी ट्रस्ट संपत्ति का प्रयोग निजी हितों या उद्देश्य से भिन्न कार्यों में करता है, तो यह न्यास का उल्लंघन (Breach of Trust) माना जाता है। लाभार्थी न्यायालय में वाद दाखिल कर सकता है और क्षतिपूर्ति की मांग कर सकता है। न्यायालय न्यासी को हटाकर नया न्यासी नियुक्त कर सकता है और दंड भी दे सकता है। ऐसी स्थिति में ट्रस्ट की संपत्ति की सुरक्षा सर्वोच्च प्राथमिकता होती है।
63. ट्रस्ट में ट्रस्टी बोर्ड की भूमिका क्या होती है?
बड़े सार्वजनिक ट्रस्टों में प्रायः एक ट्रस्टी बोर्ड (न्यासी मंडल) गठित किया जाता है, जो सामूहिक रूप से ट्रस्ट का संचालन करता है। बोर्ड निर्णय लेने, संपत्ति के प्रबंधन, वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत करने, निवेश और लाभार्थियों के कल्याण के लिए जिम्मेदार होता है। इसका प्रत्येक सदस्य न्यासी होता है और उसे अपने पद की जिम्मेदारी का पालन करना होता है। बोर्ड सामूहिक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता सुनिश्चित करता है।
64. क्या ट्रस्ट को स्थायी रूप से समाप्त किया जा सकता है?
हाँ, ट्रस्ट को स्थायी रूप से समाप्त किया जा सकता है यदि उसका उद्देश्य पूरा हो गया हो, वह अव्यवहारिक हो गया हो, या न्यायालय ने उसे समाप्त करने का आदेश दिया हो। निजी ट्रस्ट में सभी लाभार्थियों की सहमति से समाप्ति संभव है, परंतु सार्वजनिक ट्रस्ट के मामले में न्यायालय की अनुमति अनिवार्य होती है। समाप्ति के समय ट्रस्ट संपत्ति का वितरण ट्रस्ट डीड के अनुसार या न्यायालय के निर्देशानुसार होता है।
65. क्या ट्रस्ट के विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई संभव है?
यदि ट्रस्ट या न्यासी विधि का उल्लंघन करते हैं, जैसे धोखाधड़ी, संपत्ति का दुरुपयोग, आय का गबन, या लाभार्थियों के अधिकारों का हनन, तो उनके विरुद्ध दंडात्मक कार्रवाई संभव है। यह कार्रवाई सिविल और आपराधिक दोनों रूपों में हो सकती है। न्यायालय जुर्माना, हटाने, संपत्ति जब्त करने या सजा का आदेश दे सकता है। सार्वजनिक ट्रस्ट मामलों में संबंधित राज्य प्राधिकरण भी कार्रवाई कर सकता है।
66. न्यास संपत्ति के लेखे-जोखे (Accounts) का महत्व क्या है?
न्यास संपत्ति का लेखा-जोखा न्यासी की पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करता है। प्रत्येक न्यासी को नियमित रूप से आय-व्यय, निवेश, लाभ वितरण, और संपत्ति की स्थिति से संबंधित विवरण तैयार करना चाहिए। लाभार्थियों को यह अधिकार है कि वे लेखा-जोखा मांग सकें और उसकी समीक्षा कर सकें। यदि न्यासी लेखा प्रस्तुत करने से इंकार करता है या हेराफेरी करता है, तो न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है। यह प्रणाली ट्रस्ट की ईमानदारी और सुव्यवस्था का आधार है।
67. क्या ट्रस्ट को कंपनी में बदला जा सकता है?
सैद्धांतिक रूप से ट्रस्ट को कंपनी में तब बदला जा सकता है जब ट्रस्ट डीड में ऐसा प्रावधान हो या सभी लाभार्थी एवं न्यासी सहमत हों, और विधिक प्रक्रिया पूरी की जाए। इसे “conversion of trust into Section 8 company” के रूप में जाना जाता है। ऐसा करने के लिए ट्रस्ट को कंपनी अधिनियम, 2013 के तहत एक गैर-लाभकारी संस्था के रूप में पंजीकृत करना होगा। यह प्रक्रिया जटिल होती है और न्यायालय या रजिस्ट्रार की अनुमति आवश्यक हो सकती है।
68. न्यासी की अयोग्यता किन कारणों से होती है?
न्यासी की अयोग्यता उन परिस्थितियों में होती है जब वह—
- लाभार्थियों के हितों के विरुद्ध कार्य करे,
- संपत्ति का दुरुपयोग करे,
- मानसिक या शारीरिक रूप से अक्षम हो जाए,
- दिवालिया घोषित हो जाए,
- गंभीर अपराध में दोषी ठहराया जाए।
ऐसी स्थिति में न्यायालय उसे पद से हटा सकता है और नया न्यासी नियुक्त कर सकता है। अयोग्यता का निर्धारण लाभार्थियों के हित की रक्षा हेतु किया जाता है।
69. क्या ट्रस्ट को विरासत में दिया जा सकता है?
नहीं, ट्रस्ट स्वयं में एक वैधानिक संरचना होती है जिसे विरासत में नहीं दिया जा सकता। ट्रस्ट की संपत्ति पर किसी व्यक्ति का व्यक्तिगत स्वामित्व नहीं होता, इसलिए वह उसे वसीयत के माध्यम से ट्रांसफर नहीं कर सकता। हालांकि ट्रस्ट डीड में यह प्रावधान हो सकता है कि किसी विशेष स्थिति में नया न्यासी कौन होगा या लाभार्थी कौन होंगे। लेकिन ट्रस्ट की संपत्ति न तो ट्रस्टी की है और न ही उसकी विरासत में आती है।
70. क्या दो ट्रस्टों का विलय किया जा सकता है?
हाँ, यदि दोनों ट्रस्टों के उद्देश्य समान हों और ट्रस्ट डीड या न्यायालय अनुमति दे, तो दो ट्रस्टों का विलय किया जा सकता है। यह विलय न्यायालय के आदेश या ट्रस्ट बोर्ड के निर्णय के आधार पर होता है, जिससे प्रशासनिक लागत कम होती है और संसाधनों का बेहतर उपयोग संभव होता है। विलय की प्रक्रिया पारदर्शी होनी चाहिए और दोनों ट्रस्टों के लाभार्थियों को कोई नुकसान न हो, यह सुनिश्चित करना आवश्यक होता है।
71. ट्रस्ट की संपत्ति पर लाभार्थी का अधिकार कब स्थिर होता है?
लाभार्थी का अधिकार ट्रस्ट डीड में निर्धारित शर्तों के पूरा होने पर स्थिर होता है। यदि ट्रस्ट सशर्त है, तो लाभार्थी को तभी संपत्ति या आय का अधिकार मिलेगा जब वह शर्तें पूरी करे। कुछ ट्रस्टों में लाभार्थी का अधिकार स्थायी (absolute) होता है, जबकि कुछ में केवल आय पर अधिकार होता है। न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि न्यासी लाभार्थी के अधिकारों का उल्लंघन न करे और समय पर वितरण करे।
72. ट्रस्ट संपत्ति को कैसे सुरक्षित रखा जाता है?
न्यासी को ट्रस्ट संपत्ति को कानूनी दस्तावेज़ों के माध्यम से सुरक्षित रखना होता है, जैसे संपत्ति का पंजीकरण, बीमा, रखरखाव और कानूनी सुरक्षा। चल संपत्ति के लिए उसे सुरक्षित निवेश में लगाना चाहिए। अगर संपत्ति पर विवाद या अवैध कब्ज़ा हो, तो न्यायालय की सहायता से उसे पुनः प्राप्त करना होता है। संपत्ति को न्यासी की व्यक्तिगत संपत्ति से अलग रखना आवश्यक होता है, जिससे हितों का टकराव न हो।
73. न्यास और अनुबंध में क्या अंतर है?
न्यायिक दृष्टिकोण से अनुबंध दो या अधिक पक्षों के बीच कानूनी सहमति होती है, जबकि न्यास एक व्यक्ति द्वारा संपत्ति को दूसरे के लिए विश्वासपूर्वक रखने की व्यवस्था होती है। अनुबंध में सभी पक्ष समान स्तर पर होते हैं जबकि न्यास में न्यासी को लाभार्थी के हित में कार्य करना होता है। अनुबंध भारतीय अनुबंध अधिनियम, 1872 के तहत नियंत्रित होता है जबकि न्यास भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 के अंतर्गत आता है।
74. ट्रस्ट के लाभार्थियों की श्रेणियाँ क्या होती हैं?
लाभार्थी दो प्रकार के हो सकते हैं:
- निर्धारित लाभार्थी (Determinate Beneficiary) – जिनकी पहचान स्पष्ट होती है।
- अनिर्धारित लाभार्थी (Indeterminate Beneficiary) – जैसे सार्वजनिक ट्रस्ट के लाभार्थी, जो एक वर्ग या समुदाय होते हैं।
इसके अतिरिक्त, कुछ ट्रस्टों में प्राथमिक और आकस्मिक लाभार्थी भी हो सकते हैं, जैसे कि “यदि प्राथमिक लाभार्थी जीवित न हो तो संपत्ति किसी अन्य को जाए”। ट्रस्ट डीड में इनका स्पष्ट उल्लेख आवश्यक होता है।
75. क्या ट्रस्ट के लाभार्थी ट्रस्ट को चुनौती दे सकते हैं?
हाँ, यदि लाभार्थी को लगता है कि ट्रस्ट का संचालन अनुचित रूप से हो रहा है, न्यासी कर्तव्यों का उल्लंघन कर रहा है, या लाभ का वितरण गलत ढंग से किया गया है, तो वह न्यायालय में ट्रस्ट को चुनौती दे सकता है। वह ट्रस्ट डीड की वैधता, संपत्ति के उपयोग, या अपने अधिकारों के हनन के विरुद्ध वाद दायर कर सकता है। न्यायालय आवश्यकता अनुसार न्यासी को निर्देश या दंड भी दे सकता है।
76. इक्विटी और नैतिकता (Ethics) का संबंध क्या है?
इक्विटी और नैतिकता दोनों ही “न्याय” और “उचित आचरण” पर केंद्रित हैं, लेकिन इक्विटी न्यायिक प्रणाली का हिस्सा है जबकि नैतिकता व्यक्तिगत और सामाजिक मूल्य है। इक्विटी न्यायालय द्वारा अपनाया गया विधिक दृष्टिकोण है जो कठोर कानून के स्थान पर विवेकपूर्ण न्याय देता है। नैतिकता व्यक्ति या समाज की आचार संहिता होती है। दोनों में घनिष्ठ संबंध है, क्योंकि इक्विटी के सिद्धांत अक्सर नैतिकता पर आधारित होते हैं।
77. ट्रस्ट में ‘Doctrine of Cy-Près’ क्या है?
Cy-Près सिद्धांत का प्रयोग सार्वजनिक ट्रस्टों में तब किया जाता है जब मूल उद्देश्य पूरा न हो सके या अव्यवहारिक हो जाए। ऐसे में न्यायालय ट्रस्ट की संपत्ति को उसी प्रकार के किसी समान उद्देश्य में लगाने का आदेश देता है। उदाहरण: यदि किसी विद्यालय के लिए ट्रस्ट बना हो और अब वहाँ स्कूल चलाना संभव न हो, तो वह पैसा किसी अन्य शैक्षणिक संस्थान में लगाया जा सकता है। यह सिद्धांत ट्रस्ट उद्देश्य की रक्षा करता है।
78. क्या ट्रस्ट लाभ प्राप्त करने का साधन हो सकता है?
नहीं, ट्रस्ट का उद्देश्य लाभ कमाना नहीं होता। ट्रस्ट मुख्यतः लाभार्थियों के हित, सार्वजनिक कल्याण, या सामाजिक उद्देश्य के लिए होता है। चैरिटेबल ट्रस्ट को कर में छूट तभी मिलती है जब वह लाभ नहीं कमाता और संपूर्ण आय उद्देश्य की पूर्ति में उपयोग होती है। यदि कोई ट्रस्ट लाभ कमाने के उद्देश्य से कार्य करता है, तो उसे कंपनी या व्यवसाय के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।
79. न्यायालय द्वारा ट्रस्ट की नियुक्ति कैसे की जाती है?
जब कोई ट्रस्ट बिना न्यासी के रह जाता है, या न्यासी अयोग्य हो जाता है, तो न्यायालय “Doctrine of Appointment” के अंतर्गत नया न्यासी नियुक्त कर सकता है। यह नियुक्ति ट्रस्ट डीड की शर्तों और लाभार्थियों के हित को ध्यान में रखते हुए की जाती है। न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि नया न्यासी ईमानदार, सक्षम और निष्पक्ष हो, ताकि ट्रस्ट का उद्देश्य पूरा हो सके।
80. ट्रस्ट और धर्मार्थ संस्था (NGO) में क्या अंतर है?
ट्रस्ट एक कानूनी संरचना है जहाँ संपत्ति को किसी उद्देश्य के लिए सुरक्षित किया जाता है, जबकि NGO एक गैर-सरकारी संगठन होता है जो सामाजिक, शैक्षणिक या स्वास्थ्य संबंधी कार्यों में संलग्न होता है। NGO को सोसाइटी, ट्रस्ट या सेक्शन 8 कंपनी के रूप में पंजीकृत किया जा सकता है। ट्रस्ट मुख्यतः संपत्ति प्रबंधन और लाभार्थी अधिकारों से संबंधित होता है जबकि NGO का उद्देश्य सेवा और जनहित होता है।
81. ट्रस्ट संपत्ति पर लाभार्थी का उत्तराधिकार (Succession) कैसे होता है?
यदि ट्रस्ट डीड में लाभार्थी के निधन के बाद किसी अन्य को उत्तराधिकारी बनाने का प्रावधान है, तो वही लागू होता है। जैसे – “X के बाद उसकी संतान को आय प्राप्त होगी।” परंतु सार्वजनिक ट्रस्ट में लाभार्थी समूह होते हैं, इसलिए व्यक्तिगत उत्तराधिकार का प्रश्न नहीं होता। उत्तराधिकार की व्यवस्था ट्रस्ट डीड द्वारा नियंत्रित होती है, और न्यायालय उसे लागू कराता है।
82. ट्रस्ट में निष्कासन (Removal of Trustee) कब होता है?
यदि न्यासी—
- कर्तव्यों का उल्लंघन करता है,
- संपत्ति का दुरुपयोग करता है,
- लाभार्थियों को हानि पहुँचाता है,
- अक्षम, दिवालिया या आपराधिक सिद्ध होता है –
तो न्यायालय उसे ट्रस्ट से हटा सकता है। यह निष्कासन ट्रस्ट की पवित्रता और उद्देश्य की रक्षा हेतु किया जाता है। नया न्यासी न्यायालय या ट्रस्ट डीड के अनुसार नियुक्त किया जाता है।
83. ट्रस्ट में विश्वास उल्लंघन (Breach of Trust) क्या होता है?
जब न्यासी अपने कर्तव्यों को न निभाए, संपत्ति का दुरुपयोग करे, या लाभार्थी के हित के विरुद्ध कार्य करे – तो यह विश्वास उल्लंघन कहलाता है। उदाहरण: न्यासी ने संपत्ति अपने निजी लाभ हेतु बेची या लाभार्थी को आय नहीं दी। ऐसे मामलों में न्यासी व्यक्तिगत रूप से उत्तरदायी होता है और न्यायालय से क्षतिपूर्ति या निष्कासन हो सकता है।
84. न्यास संपत्ति से संबंधित विवादों में कौन-से उपाय उपलब्ध होते हैं?
यदि ट्रस्ट से संबंधित कोई विवाद उत्पन्न होता है, तो लाभार्थी या संबंधित पक्ष निम्नलिखित उपाय अपना सकते हैं:
- सिविल वाद दायर करना,
- निषेधाज्ञा लेना,
- ट्रस्टी को हटवाना,
- लेखा की मांग करना,
- संपत्ति की सुरक्षा हेतु न्यायालय से आदेश लेना।
यह सभी उपाय भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 और सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत उपलब्ध हैं।
85. ट्रस्ट डीड में अस्पष्टता हो तो क्या उपाय हैं?
यदि ट्रस्ट डीड में भाषा अस्पष्ट है या उद्देश्य स्पष्ट नहीं है, तो न्यायालय ट्रस्टकर्ता की मंशा, लाभार्थियों की स्थिति, और समग्र परिस्थिति को देखते हुए व्याख्या करता है। इसे “Construction of Trust Deed” कहा जाता है। न्यायालय यह सुनिश्चित करता है कि ट्रस्ट का उद्देश्य नष्ट न हो और लाभार्थियों को उचित लाभ मिले। यदि आवश्यक हो तो न्यायालय दस्तावेज की रेक्टिफिकेशन (Rectification) भी कर सकता है।
86. ट्रस्ट और गिफ्ट में क्या अंतर है?
गिफ्ट स्वेच्छा से की गई संपत्ति की बिना प्रतिफल हस्तांतरण होती है, जो एकबारगी पूरी हो जाती है। जबकि ट्रस्ट एक संरचित कानूनी व्यवस्था होती है जहाँ संपत्ति किसी उद्देश्य हेतु रखी जाती है और न्यासी द्वारा लाभार्थी के लिए प्रबंधित की जाती है। गिफ्ट में प्राप्तकर्ता का तत्काल स्वामित्व होता है, जबकि ट्रस्ट में लाभार्थी को अधिकार सीमित और शर्तबद्ध होते हैं।
87. क्या ट्रस्ट लाभार्थियों को न्यायालय में सीधे राहत दिला सकता है?
हाँ, यदि लाभार्थी को न्यासी के आचरण से नुकसान हो रहा है या ट्रस्ट के उद्देश्य की पूर्ति नहीं हो रही है, तो वह सीधे न्यायालय में जा सकता है। लाभार्थी ट्रस्ट से जुड़ी राहतों जैसे – लेखा विवरण, निषेधाज्ञा, क्षतिपूर्ति, या न्यासी को हटाने की मांग कर सकता है। भारतीय न्यास अधिनियम, 1882 तथा सिविल प्रक्रिया संहिता के अंतर्गत ऐसे अधिकार मान्य हैं। यह राहतें इक्विटी सिद्धांत पर आधारित होती हैं, जहाँ न्यायपालिका निष्पक्ष समाधान देती है।
88. न्यास संपत्ति के लिए विशेष निषेधाज्ञा (Injunction) कब मिलती है?
जब न्यासी या कोई तीसरा पक्ष ट्रस्ट संपत्ति के साथ अवैध हस्तक्षेप करता है, उसे बेचने या नष्ट करने की कोशिश करता है, तो लाभार्थी न्यायालय से विशेष निषेधाज्ञा मांग सकता है। यह एक इक्विटी उपाय है जो संपत्ति की रक्षा करता है। निषेधाज्ञा से संबंधित आदेश अस्थायी या स्थायी हो सकते हैं। यह तभी मिलता है जब वैकल्पिक उपाय पर्याप्त न हो और तत्काल न्याय आवश्यक हो।
89. ट्रस्ट में न्यासी का परित्याग (Resignation) कैसे होता है?
यदि ट्रस्ट डीड में परित्याग की प्रक्रिया वर्णित है, तो न्यासी उसी के अनुसार त्यागपत्र दे सकता है। यदि ट्रस्ट डीड मौन है, तो न्यासी को अन्य न्यासियों या न्यायालय की अनुमति से अपना पद छोड़ना होता है। त्यागपत्र तब तक प्रभावी नहीं होता जब तक उसे विधिपूर्वक स्वीकार न किया जाए और नया न्यासी नियुक्त न हो। न्यासी के परित्याग से ट्रस्ट के कार्यों पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
90. क्या ट्रस्ट में लाभार्थियों की सहमति से न्यासी कार्य कर सकता है?
हाँ, कुछ स्थितियों में यदि ट्रस्ट डीड मौन है या कोई निर्णय अस्पष्ट है, तो न्यासी लाभार्थियों की सहमति से कार्य कर सकता है। परंतु यह तभी मान्य होगा जब सभी लाभार्थी वयस्क, सक्षम और सहमत हों। यह सहमति लिखित होनी चाहिए और ट्रस्ट के उद्देश्य के अनुकूल होनी चाहिए। यदि कोई लाभार्थी अल्पवयस्क है या अक्षम है, तो न्यायालय की अनुमति आवश्यक हो जाती है।
91. इक्विटी सिद्धांत “He who comes to equity must come with clean hands” का अर्थ क्या है?
इस सिद्धांत का अर्थ है कि जो व्यक्ति न्यायालय से इक्विटी राहत चाहता है, उसका आचरण स्वयं निष्पक्ष, ईमानदार और न्यायोचित होना चाहिए। यदि वादी स्वयं अनुचित व्यवहार कर रहा हो या उसने गलत आचरण किया हो, तो उसे इक्विटी राहत नहीं मिलेगी। यह सिद्धांत न्यायालय को विवेकाधिकार देता है कि वह केवल योग्य पक्ष को ही राहत दे, जिससे न्यायपालिका की पवित्रता बनी रहे।
92. क्या ट्रस्ट फर्जीवाड़े (Fraud) के लिए जिम्मेदार हो सकता है?
यदि ट्रस्ट का संचालन या संपत्ति का उपयोग धोखाधड़ी से किया गया है, जैसे – फर्जी दस्तावेज, झूठे लाभार्थी, या अवैध उद्देश्यों के लिए – तो ट्रस्ट और संबंधित न्यासी दोनों उत्तरदायी माने जाएंगे। ऐसे मामलों में ट्रस्ट का पंजीकरण रद्द किया जा सकता है, संपत्ति जब्त की जा सकती है, और न्यासी के विरुद्ध आपराधिक मुकदमा चल सकता है। यह कार्रवाई लाभार्थियों और सार्वजनिक हित की सुरक्षा के लिए होती है।
93. ट्रस्ट का लाभार्थी बदलने की प्रक्रिया क्या है?
निजी ट्रस्ट में लाभार्थी को केवल तभी बदला जा सकता है जब ट्रस्ट डीड में ऐसा प्रावधान हो या सभी संबंधित पक्ष सहमत हों। चैरिटेबल ट्रस्ट में यदि उद्देश्य बदला जाए तो लाभार्थियों की श्रेणी भी बदली जा सकती है, लेकिन यह प्रक्रिया न्यायालय की अनुमति से ही संभव होती है। लाभार्थी का परिवर्तन केवल न्यायोचित, पारदर्शी और उद्देश्य की पूर्ति हेतु ही किया जा सकता है।
94. ट्रस्ट में संपत्ति वापसी (Reversion) क्या होती है?
जब ट्रस्ट का उद्देश्य पूर्ण हो जाता है या लाभार्थियों की कमी के कारण ट्रस्ट समाप्त हो जाता है, तो ट्रस्ट संपत्ति ट्रस्टकर्ता या उसके उत्तराधिकारी को वापस दी जा सकती है, यदि ट्रस्ट डीड में ऐसा प्रावधान हो। इसे Reversion of Trust Property कहा जाता है। सार्वजनिक ट्रस्टों में संपत्ति का वापसी का प्रावधान नहीं होता – उसे अन्य सार्वजनिक उद्देश्य में स्थानांतरित किया जाता है।
95. क्या ट्रस्ट अदालत के आदेश से पुनर्निर्मित हो सकता है?
हाँ, यदि ट्रस्ट डीड अव्यवस्थित हो या उसका उद्देश्य अप्रासंगिक हो गया हो, तो न्यायालय Doctrine of Cy-Près या Rectification सिद्धांत के अंतर्गत ट्रस्ट को पुनर्निर्मित कर सकता है। यह पुनर्निर्माण ट्रस्ट के उद्देश्य को बनाए रखते हुए, उसके बेहतर संचालन के लिए किया जाता है। ट्रस्ट के लाभार्थियों और न्यासकर्ता की मंशा का पूरा सम्मान किया जाता है।
96. न्यास संपत्ति पर कराधान (Taxation) कैसे लागू होता है?
यदि ट्रस्ट चैरिटेबल या धार्मिक है और विधिवत पंजीकृत है, तो उसे आयकर अधिनियम, 1961 की धारा 11 और 12 के अंतर्गत कर से छूट मिलती है। परंतु यदि ट्रस्ट व्यापारिक गतिविधियाँ करता है या आय का उपयोग उद्देश्य से हटकर करता है, तो उसे कर देना होता है। निजी ट्रस्टों में लाभार्थी की आय के अनुसार कर लागू होता है। कर नियमों का पालन करना न्यासी का उत्तरदायित्व होता है।
97. ट्रस्ट और वफ्फ़ (Waqf) में क्या अंतर है?
ट्रस्ट एक सामान्य विधिक संरचना है जो किसी भी धार्मिक, सामाजिक या निजी उद्देश्य के लिए बनाई जा सकती है। जबकि वफ्फ़ इस्लामी कानून के अंतर्गत एक धार्मिक और स्थायी दान होता है, जिसमें संपत्ति को अल्लाह के नाम पर दान किया जाता है। वफ्फ़ की देखरेख मुतवल्ली करता है और उसका उपयोग केवल धार्मिक या सामाजिक कार्यों में होता है। वफ्फ़ विशेष कानून (Waqf Act) द्वारा नियंत्रित होता है।
98. ट्रस्ट में ‘Constructive Trust’ क्या होता है?
Constructive Trust एक आभासी या न्यायिक ट्रस्ट होता है जिसे न्यायालय तब मान्यता देता है जब कोई व्यक्ति अवैध या अनुचित ढंग से किसी संपत्ति पर अधिकार कर लेता है। ऐसे में न्यायालय उस व्यक्ति को ट्रस्टी मानता है और आदेश देता है कि वह संपत्ति असली लाभार्थी को लौटा दे। इसका उद्देश्य अनुचित लाभ को रोकना और नैतिक न्याय सुनिश्चित करना होता है। यह ट्रस्ट बिना लिखित डीड के, केवल न्यायसंगत सिद्धांत पर आधारित होता है।
99. ट्रस्ट संपत्ति का संरक्षण किसके अधीन होता है?
ट्रस्ट संपत्ति का संरक्षण पूरी तरह न्यासी के अधीन होता है। वह संपत्ति का विधिसम्मत उपयोग, रखरखाव, निवेश, और लाभार्थियों को आय वितरण सुनिश्चित करता है। यदि न्यासी अपने कर्तव्य में विफल रहता है, तो लाभार्थी या न्यायालय हस्तक्षेप कर सकते हैं। ट्रस्ट संपत्ति की सुरक्षा के लिए नियमित लेखा, बीमा, कानूनी पंजीकरण आदि उपाय आवश्यक होते हैं। यह उत्तरदायित्व न्यासी की मुख्य ज़िम्मेदारी मानी जाती है।
100. क्या ट्रस्ट को समाप्त करने के बाद संपत्ति का वितरण संभव है?
हाँ, ट्रस्ट के विधिवत समाप्त होने के बाद उसकी संपत्ति का वितरण ट्रस्ट डीड या न्यायालय के आदेश के अनुसार किया जाता है। निजी ट्रस्ट में संपत्ति लाभार्थियों में बाँटी जा सकती है, जबकि सार्वजनिक ट्रस्ट में संपत्ति को समान उद्देश्य के लिए अन्य ट्रस्ट या संस्था को हस्तांतरित किया जाता है। यह वितरण पारदर्शी, विधिसम्मत और उद्देश्यपूर्ण होना चाहिए, जिससे किसी पक्ष को अन्याय न हो।