1. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि क्या है?
अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि वह विधिक ढांचा है, जो देशों के बीच वस्तुओं, सेवाओं और पूंजी के आदान-प्रदान को नियंत्रित करता है। यह विधि विभिन्न अंतरराष्ट्रीय समझौतों, संधियों, विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों, क्षेत्रीय व्यापार समझौतों (FTA, NAFTA, आदि), और राष्ट्रीय कानूनों पर आधारित होती है। इसका उद्देश्य व्यापार में निष्पक्षता, पारदर्शिता और विवाद समाधान की प्रक्रिया सुनिश्चित करना है। यह विधि टैरिफ, कोटा, व्यापार प्रतिबंध, नीतिगत संरक्षणवाद, और बौद्धिक संपदा अधिकारों को भी नियंत्रित करती है।
2. विश्व व्यापार संगठन (WTO) की भूमिका क्या है?
विश्व व्यापार संगठन (WTO) अंतरराष्ट्रीय व्यापार को सुचारु और निष्पक्ष रूप से संचालित करने हेतु एक वैश्विक निकाय है। इसकी स्थापना 1995 में हुई थी। WTO का प्रमुख उद्देश्य सदस्य देशों के बीच व्यापार बाधाओं को हटाना, व्यापार विवादों का समाधान करना, और व्यापारिक नियमों का निर्माण व अनुपालन सुनिश्चित करना है। यह वस्त्र, कृषि, सेवा, और बौद्धिक संपदा जैसे क्षेत्रों में विशेष समझौते करता है। WTO द्वारा स्थापित विवाद निवारण तंत्र (Dispute Settlement Body) व्यापार विवादों के समाधान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
3. GATT क्या है और इसका WTO से क्या संबंध है?
GATT (General Agreement on Tariffs and Trade) एक अंतरराष्ट्रीय समझौता था, जिसे 1947 में व्यापार में टैरिफ और कोटा को कम करने के लिए बनाया गया था। यह WTO का पूर्ववर्ती था। GATT का उद्देश्य वैश्विक व्यापार को मुक्त और निष्पक्ष बनाना था। 1995 में WTO की स्थापना के साथ GATT को WTO में शामिल किया गया, और GATT 1994 अब WTO व्यवस्था का हिस्सा है। WTO ने GATT की सीमाओं को पार कर सेवाओं और बौद्धिक संपदा जैसे नए क्षेत्रों को भी शामिल किया।
4. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विवाद समाधान की प्रक्रिया क्या है?
WTO का विवाद समाधान निकाय (Dispute Settlement Body) सदस्य देशों के बीच व्यापारिक विवादों के समाधान के लिए कार्य करता है। जब एक देश दूसरे देश के व्यापारिक उपायों को WTO नियमों का उल्लंघन मानता है, तो वह विवाद समाधान प्रक्रिया आरंभ कर सकता है। इसमें परामर्श, पैनल गठन, अपील प्रक्रिया और निर्णय का पालन शामिल होता है। यदि कोई देश निर्णय को नहीं मानता, तो प्रतिबंध या जुर्माने का प्रावधान होता है। यह प्रक्रिया निष्पक्षता, पारदर्शिता और समयबद्धता पर आधारित है।
5. क्षेत्रीय व्यापार समझौते (Regional Trade Agreements) क्या होते हैं?
क्षेत्रीय व्यापार समझौते (RTAs) वे समझौते हैं, जो दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार को बढ़ावा देने के लिए किए जाते हैं। इन समझौतों के अंतर्गत सदस्य देश एक-दूसरे को टैरिफ रियायतें, व्यापार में प्राथमिकता और अन्य लाभ देते हैं। उदाहरण: NAFTA, EU, SAFTA, ASEAN। ये समझौते WTO के तहत अनुमत हैं, बशर्ते वे बाहरी देशों के साथ भेदभाव न करें। RTAs से व्यापार में वृद्धि होती है, लेकिन कभी-कभी यह वैश्विक व्यापार व्यवस्था को चुनौती भी दे सकते हैं।
6. भारत का WTO के साथ संबंध क्या है?
भारत WTO का संस्थापक सदस्य है और अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक सक्रिय भागीदार भी। भारत WTO के विभिन्न समझौतों जैसे GATT, GATS, TRIPS का हिस्सा है। भारत ने कृषि सब्सिडी, सार्वजनिक भंडारण, सेवा क्षेत्र की पहुंच आदि मुद्दों पर अपनी भूमिका सशक्त रूप से रखी है। भारत WTO के विवाद समाधान प्रणाली का उपयोग करता रहा है और अपने हितों की रक्षा के लिए रणनीतिक हस्तक्षेप करता रहा है। हाल के वर्षों में भारत ने व्यापार में आत्मनिर्भरता और विकासशील देशों के हितों की रक्षा पर जोर दिया है।
7. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि में ‘मूल राष्ट्र उपचार’ (Most-Favoured Nation – MFN) सिद्धांत क्या है?
MFN (Most Favoured Nation) सिद्धांत WTO का एक मूलभूत सिद्धांत है, जिसके अनुसार एक सदस्य देश जो व्यापार लाभ (जैसे टैरिफ में छूट) किसी एक देश को देता है, वही सभी सदस्य देशों को समान रूप से देना होगा। इसका उद्देश्य व्यापार में भेदभाव से बचाव करना और समान अवसर देना है। उदाहरण: यदि भारत अमेरिका को किसी उत्पाद पर 5% शुल्क देता है, तो वही दर अन्य सभी WTO सदस्य देशों पर लागू होगी। कुछ अपवाद जैसे क्षेत्रीय समझौते की स्थिति में MFN का पालन नहीं करना पड़ता।
8. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि में ‘राष्ट्रीय उपचार’ (National Treatment) सिद्धांत क्या है?
राष्ट्रीय उपचार (National Treatment) का सिद्धांत कहता है कि एक देश को अपने घरेलू और विदेशी उत्पादों के साथ समान व्यवहार करना होगा। अर्थात्, एक बार विदेशी वस्तु देश में प्रवेश कर ले, तो उस पर घरेलू वस्तुओं जैसा ही टैक्स, नियम और नियंत्रण लागू होंगे। इसका उद्देश्य विदेशी उत्पादों को अनुचित रूप से हतोत्साहित करने से रोकना है। यह सिद्धांत WTO और GATT का एक आवश्यक भाग है, जिससे व्यापार में निष्पक्षता सुनिश्चित होती है।
9. TRIPS समझौता क्या है?
TRIPS (Trade-Related Aspects of Intellectual Property Rights) WTO का एक समझौता है, जो बौद्धिक संपदा अधिकारों (IPRs) की सुरक्षा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुनिश्चित करता है। इसमें पेटेंट, कॉपीराइट, ट्रेडमार्क, औद्योगिक डिज़ाइन आदि शामिल हैं। TRIPS का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सदस्य देश IPRs के लिए न्यूनतम मानक बनाए रखें। भारत जैसे विकासशील देशों को कुछ विशेष छूट दी गई है, लेकिन इसके बावजूद दवा उद्योग में इसका प्रभाव विवादास्पद रहा है।
10. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डंपिंग क्या है?
डंपिंग वह स्थिति है जब कोई देश किसी वस्तु को दूसरे देश में उसके घरेलू मूल्य से कम पर निर्यात करता है। इसका उद्देश्य बाजार पर कब्जा करना और प्रतिस्पर्धा को खत्म करना होता है। यह WTO के नियमों के अंतर्गत अनुचित व्यापार प्रथा मानी जाती है। इससे बचाव हेतु आयातक देश “एंटी-डंपिंग ड्यूटी” लगाते हैं। भारत भी कई बार चीन और अन्य देशों के खिलाफ एंटी-डंपिंग उपाय अपना चुका है।
11. सेवा व्यापार (Trade in Services) से क्या तात्पर्य है?
सेवा व्यापार का अर्थ उन सेवाओं के अंतरराष्ट्रीय आदान-प्रदान से है जो सीमा पार प्रदान की जाती हैं, जैसे सूचना प्रौद्योगिकी, बैंकिंग, शिक्षा, पर्यटन आदि। GATS (General Agreement on Trade in Services) WTO का वह समझौता है, जो सेवा व्यापार को नियंत्रित करता है। यह बाजार पहुंच, राष्ट्रीय उपचार, पारदर्शिता जैसे सिद्धांतों पर आधारित है। भारत सेवा व्यापार में मजबूत है, विशेषकर आईटी और BPO क्षेत्रों में।
12. भारत की व्यापार नीति का WTO पर क्या प्रभाव पड़ा है?
भारत की व्यापार नीति WTO की रूपरेखा के भीतर बनी है, लेकिन उसने समय-समय पर अपने घरेलू हितों की रक्षा के लिए सक्रियता दिखाई है। विशेष रूप से कृषि सब्सिडी, दवा पेटेंट, खाद्य सुरक्षा, और सेवा क्षेत्र में भारत ने मजबूत स्टैंड लिया है। भारत विकासशील देशों के लिए विशेष और विभेदित व्यवहार (Special and Differential Treatment – S&DT) की वकालत करता है। भारत की नीति आत्मनिर्भरता और संतुलित वैश्विक व्यापार की ओर उन्मुख है।
13. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि में कोटाज क्या हैं?
कोटा एक सीमा होती है जो किसी देश द्वारा किसी वस्तु के आयात या निर्यात पर लगाई जाती है। यह व्यापार पर मात्रात्मक प्रतिबंध है। WTO के अंतर्गत सामान्यतः कोटाज की अनुमति नहीं होती, सिवाय कुछ अपवादों के जैसे सुरक्षा, स्वास्थ्य, पर्यावरण आदि कारणों से। कोटाज से घरेलू उद्योग को संरक्षण तो मिलता है, लेकिन यह अंतरराष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा को प्रभावित कर सकता है।
14. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘बैरियर टू ट्रेड’ क्या होते हैं?
बैरियर टू ट्रेड वे बाधाएँ होती हैं जो व्यापार को कठिन या महंगा बना देती हैं। ये दो प्रकार की होती हैं: टैरिफ बैरियर (जैसे सीमा शुल्क) और नॉन-टैरिफ बैरियर (जैसे कोटा, लाइसेंसिंग, तकनीकी नियम)। WTO का उद्देश्य ऐसे बैरियर को कम करना है ताकि मुक्त, निष्पक्ष और पारदर्शी व्यापार को बढ़ावा मिल सके।
15. अंतरराष्ट्रीय व्यापार विधि में भारत की चुनौतियाँ क्या हैं?
भारत को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जैसे डंपिंग, तकनीकी बाधाएँ, सेवा क्षेत्र में प्रतिबंध, कृषि उत्पादों की प्रतिस्पर्धा, और बौद्धिक संपदा से जुड़ी समस्याएँ। इसके अतिरिक्त, विकसित देशों द्वारा व्यापार नियमों को बदलने की कोशिश भारत जैसे विकासशील देशों के लिए समस्या बन जाती है। भारत को चाहिए कि वह अपनी नीति संतुलित रखते हुए WTO जैसे मंचों पर सशक्त ढंग से अपनी बात रखे।
16. भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार का संवैधानिक आधार क्या है?
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 246 और 302 अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नियंत्रित करने की शक्ति केंद्र सरकार को प्रदान करते हैं। संविधान की संघ सूची (List I) के तहत “विदेश व्यापार” विषय केंद्र के अधिकार क्षेत्र में आता है। इसके अलावा, अनुच्छेद 253 अंतरराष्ट्रीय संधियों और समझौतों को लागू करने हेतु संसद को विशेष अधिकार देता है। इसी आधार पर भारत ने WTO, GATT, TRIPS, GATS आदि समझौतों को स्वीकार किया है। विदेशी व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992 भी भारत में अंतरराष्ट्रीय व्यापार को विधिक आधार प्रदान करता है।
17. विदेशी व्यापार (विकास एवं विनियमन) अधिनियम, 1992 क्या है?
यह अधिनियम भारत सरकार को विदेशी व्यापार की दिशा और गति को नियंत्रित करने की शक्ति देता है। इसके तहत केंद्र सरकार को यह अधिकार प्राप्त है कि वह आयात-निर्यात नीति बनाए, लाइसेंस जारी करे, और कुछ वस्तुओं पर प्रतिबंध लगा सके। यह अधिनियम विदेश व्यापार की वृद्धि, अनुशासन और नियंत्रण के लिए एक विधिक ढांचा प्रदान करता है। DGFT (Directorate General of Foreign Trade) इस अधिनियम के अंतर्गत नीति कार्यान्वयन में प्रमुख भूमिका निभाता है।
18. DGFT (विदेश व्यापार महानिदेशालय) की भूमिका क्या है?
DGFT भारत सरकार की एक शाखा है जो वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है। इसका मुख्य कार्य विदेश व्यापार नीति का निर्माण और कार्यान्वयन करना है। यह लाइसेंस जारी करता है, निर्यात-आयात कोड (IEC) प्रदान करता है, और व्यापार से संबंधित अनुदान और प्रोत्साहन योजनाओं का संचालन करता है। DGFT व्यापारियों को तकनीकी सहायता भी देता है और भारत की वैश्विक व्यापार प्रतिस्पर्धा को बढ़ाने में योगदान करता है।
19. भारत की विदेश व्यापार नीति (FTP) क्या है?
भारत की विदेश व्यापार नीति (Foreign Trade Policy – FTP) एक पाँच वर्षीय नीति है जो निर्यात को बढ़ावा देने और आयात को नियंत्रित करने हेतु बनाई जाती है। इसका उद्देश्य व्यापार घाटा कम करना, मेक इन इंडिया को प्रोत्साहित करना, और वैश्विक व्यापार में भारत की भागीदारी को सशक्त बनाना होता है। नीति के अंतर्गत SEZs, EPCG, MEIS, और RoDTEP जैसी योजनाएं आती हैं। यह नीति DGFT द्वारा तैयार की जाती है और समय-समय पर संशोधित होती है।
20. व्यापारिक संरक्षणवाद (Protectionism) क्या है?
संरक्षणवाद वह नीति है जिसमें कोई देश अपने घरेलू उद्योगों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए टैरिफ, कोटा, सब्सिडी, या अन्य उपाय अपनाता है। यह नीति अल्पकाल में घरेलू उत्पादकों को लाभ पहुंचा सकती है, लेकिन दीर्घकाल में यह नवाचार और उपभोक्ता विकल्पों को सीमित कर सकती है। WTO संरक्षणवादी नीतियों का विरोध करता है, क्योंकि ये मुक्त व्यापार के सिद्धांतों के विरुद्ध होती हैं।
21. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में टैरिफ और नॉन-टैरिफ बैरियर्स का क्या अंतर है?
टैरिफ बैरियर्स वे कर/शुल्क होते हैं जो आयात या निर्यात पर लगाए जाते हैं, जैसे सीमा शुल्क। इनका उद्देश्य सरकार को राजस्व देना और घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना होता है। दूसरी ओर, नॉन-टैरिफ बैरियर्स वे बाधाएँ हैं जो व्यापार को परोक्ष रूप से प्रभावित करती हैं, जैसे कोटा, तकनीकी नियम, लाइसेंसिंग आवश्यकताएँ, स्वास्थ्य सुरक्षा नियम आदि। नॉन-टैरिफ बैरियर्स अक्सर अधिक जटिल और विवादास्पद होते हैं।
22. SEZ (विशेष आर्थिक क्षेत्र) का अंतरराष्ट्रीय व्यापार में क्या योगदान है?
SEZ ऐसे विशेष क्षेत्र होते हैं जहाँ व्यापार, कर और विनियमन संबंधी छूट दी जाती है ताकि निवेश को बढ़ावा मिल सके। भारत में SEZ नीति 2005 में लागू की गई, जिससे निर्यात, रोजगार और विदेशी निवेश में वृद्धि हुई। SEZ में कंपनियों को टैक्स छूट, आसान भूमि अधिग्रहण, और प्रशासनिक सहायता मिलती है। यह अंतरराष्ट्रीय व्यापार को आकर्षित करने और भारत को एक विनिर्माण केंद्र बनाने में सहायक है।
23. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुक्त व्यापार समझौता (Free Trade Agreement – FTA) क्या होता है?
FTA दो या अधिक देशों के बीच किया गया एक समझौता होता है जिसमें सदस्य देश आपस में व्यापारिक बाधाओं जैसे टैरिफ, कोटा आदि को घटाते हैं या समाप्त कर देते हैं। इसका उद्देश्य व्यापार को आसान बनाना और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा देना होता है। भारत ने ASEAN, जापान, दक्षिण कोरिया, UAE आदि के साथ FTAs किए हैं। FTA से प्रतिस्पर्धा बढ़ती है और उपभोक्ताओं को बेहतर उत्पाद और सेवाएं मिलती हैं।
24. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘न्यूनतम बाजार पहुंच’ (Minimum Market Access) क्या है?
यह WTO समझौते का एक प्रावधान है, विशेषकर कृषि क्षेत्र में, जिसके तहत सदस्य देशों को विदेशी कृषि उत्पादों को अपने बाजार में एक निश्चित न्यूनतम सीमा तक प्रवेश देना होता है। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि देश अपने बाजारों को पूरी तरह से बंद न करें और विदेशी उत्पादों को कुछ हद तक जगह दें। यह उपाय कृषि व्यापार में पारदर्शिता और संतुलन बनाए रखने हेतु महत्वपूर्ण है।
25. बौद्धिक संपदा अधिकारों का अंतरराष्ट्रीय व्यापार पर क्या प्रभाव होता है?
बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे पेटेंट, ट्रेडमार्क, कॉपीराइट आदि किसी उत्पाद की अनूठी पहचान को सुरक्षा प्रदान करते हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार में इनकी सुरक्षा से नवाचार को बढ़ावा मिलता है, लेकिन विकासशील देशों पर यह बोझ भी डालता है। TRIPS समझौता IPRs को वैश्विक स्तर पर लागू करता है। इससे दवाओं और तकनीकी उत्पादों की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य और उपलब्धता पर असर पड़ता है।
26. भारत की सेवा व्यापार में स्थिति क्या है?
भारत वैश्विक सेवा व्यापार में एक प्रमुख देश है। आईटी, BPO, वित्तीय सेवा, शिक्षा और पर्यटन जैसे क्षेत्रों में भारत की भागीदारी बढ़ रही है। भारतीय कंपनियाँ अमेरिका, यूरोप और खाड़ी देशों में सेवाएँ निर्यात करती हैं। GATS के अंतर्गत भारत सेवा व्यापार को बढ़ावा देता है और वीज़ा, डेटा सुरक्षा आदि मुद्दों पर नीति निर्माण करता है। सेवा व्यापार भारत के कुल निर्यात का एक बड़ा हिस्सा है।
27. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मूल प्रमाणपत्र (Certificate of Origin) क्या है?
मूल प्रमाणपत्र वह दस्तावेज होता है जो यह प्रमाणित करता है कि कोई उत्पाद किस देश में उत्पादित हुआ है। यह दस्तावेज FTA, टैरिफ छूट, और व्यापार डेटा विश्लेषण के लिए आवश्यक होता है। निर्यातक को यह प्रमाणपत्र अधिकृत निकाय से प्राप्त करना होता है, जैसे DGFT या चेंबर ऑफ कॉमर्स। इसका उपयोग टैरिफ लाभ प्राप्त करने और डंपिंग रोकने हेतु भी किया जाता है।
28. ‘सुरक्षा उपाय’ (Safeguard Measures) क्या होते हैं?
जब किसी देश का घरेलू उद्योग विदेशी आयात के अचानक बढ़ने से प्रभावित होता है, तो वह अस्थायी रूप से कुछ उपाय लागू कर सकता है, जैसे आयात पर शुल्क या कोटा। इन्हें ‘सुरक्षा उपाय’ कहा जाता है। WTO इन्हें केवल विशेष परिस्थितियों में अनुमति देता है। भारत ने भी कुछ उत्पादों पर सुरक्षा शुल्क लगाकर अपने उद्योगों को राहत दी है।
29. भारत की निर्यात संवर्धन योजनाएं कौन-कौन सी हैं?
भारत सरकार ने कई योजनाएं शुरू की हैं जैसे –
- MEIS (Merchandise Exports from India Scheme)
- SEIS (Service Exports from India Scheme)
- RoDTEP (Remission of Duties and Taxes on Exported Products)
- EPCG (Export Promotion Capital Goods Scheme)
इन योजनाओं के माध्यम से निर्यातकों को वित्तीय सहायता, कर रियायतें, और तकनीकी सहायता प्रदान की जाती है ताकि भारत का निर्यात बढ़ाया जा सके।
30. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में व्यापारिक झुकाव (Trade Bias) क्या है?
व्यापारिक झुकाव वह स्थिति है जब किसी देश की व्यापार नीति कुछ विशेष क्षेत्रों या देशों को प्राथमिकता देती है। जैसे किसी देश का FTA एक क्षेत्रीय समूह के साथ हो तो उसे लाभ मिलेगा जबकि बाकी देशों को नहीं। यह नीति कभी-कभी व्यापारिक असंतुलन और विवादों को जन्म देती है। WTO व्यापारिक झुकाव को सीमित करने और MFN सिद्धांत को बढ़ावा देने का कार्य करता है।
31. आयात प्रतिस्थापन नीति (Import Substitution Policy) क्या है?
यह नीति उन देशों द्वारा अपनाई जाती है जो अपने आयात पर निर्भरता कम करना चाहते हैं। इसके तहत घरेलू उद्योगों को बढ़ावा दिया जाता है ताकि वे विदेशी वस्तुओं का विकल्प प्रदान कर सकें। भारत ने 1950–80 के दशक में यह नीति अपनाई थी। हाल ही में ‘मेक इन इंडिया’ और ‘आत्मनिर्भर भारत’ जैसे कार्यक्रम इसी नीति की आधुनिक अभिव्यक्ति हैं।
32. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में परिवहन और लॉजिस्टिक की भूमिका क्या है?
परिवहन और लॉजिस्टिक व्यापार की रीढ़ हैं। वस्तुओं का समय पर, सुरक्षित और किफायती ढंग से एक देश से दूसरे देश तक पहुँचना व्यापारिक सफलता के लिए आवश्यक है। आधुनिक कंटेनर प्रणाली, हवाई और समुद्री मार्ग, और डिजिटल ट्रैकिंग से व्यापार में गति और पारदर्शिता आई है। भारत में SAGARमाला, भारतमाला, और लॉजिस्टिक्स पार्क्स जैसी योजनाएं इसी दिशा में कार्य कर रही हैं।
33. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में मुद्रा विनिमय दरों का क्या प्रभाव होता है?
विदेशी मुद्रा दरों में परिवर्तन निर्यात-आयात को प्रभावित करते हैं। यदि किसी देश की मुद्रा कमजोर होती है, तो उसके निर्यात सस्ते और आयात महंगे हो जाते हैं। इससे व्यापार संतुलन प्रभावित होता है। भारत का व्यापार संतुलन रुपये की स्थिति पर निर्भर करता है। सरकार और RBI मिलकर मुद्रा स्थिरता बनाए रखने का प्रयास करते हैं ताकि व्यापार निर्बाध रूप से चल सके।
34. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ई-कॉमर्स की भूमिका क्या है?
ई-कॉमर्स ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नई दिशा दी है। अब छोटे व्यवसाय भी वैश्विक स्तर पर उत्पाद बेच सकते हैं। Amazon, Alibaba, Flipkart जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने सीमा पार व्यापार को आसान बनाया है। डिजिटल भुगतान, लॉजिस्टिक नेटवर्क, और कस्टम क्लियरेंस में तकनीकी विकास ने इसे और सुगम बनाया है। WTO में डिजिटल व्यापार को लेकर भी नियमों पर बातचीत जारी है।
35. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सतत विकास (Sustainable Development) का महत्व क्या है?
आज व्यापार केवल मुनाफे तक सीमित नहीं है; यह पर्यावरण और समाज की जिम्मेदारी के साथ जुड़ा है। WTO और UN सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) के तहत पर्यावरणीय मानकों, हरित व्यापार, और सामाजिक उत्तरदायित्व को बढ़ावा दे रहे हैं। भारत ने भी हरित ऊर्जा, कार्बन न्यूट्रल उत्पादन और पर्यावरण-अनुकूल निर्यात को प्रोत्साहित करना शुरू किया है। सतत व्यापार भविष्य की आवश्यकता बन चुका है।
36. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में निर्यात प्रोत्साहन परिषद (EPCs) की भूमिका क्या है?
निर्यात प्रोत्साहन परिषदें (Export Promotion Councils – EPCs) भारत सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त वे संस्थाएं हैं जो विशेष वस्तु या सेवा क्षेत्र में निर्यात को बढ़ावा देने का कार्य करती हैं। इनका उद्देश्य निर्यातकों को तकनीकी सहायता, बाजार जानकारी, गुणवत्ता मानक, विदेशी खरीदारों से संपर्क, और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों में भागीदारी के अवसर उपलब्ध कराना है। भारत में कपड़ा, रसायन, रत्न और आभूषण, इंजीनियरिंग उत्पाद आदि के लिए अलग-अलग EPCs कार्यरत हैं। ये DGFT के साथ मिलकर कार्य करती हैं।
37. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम का महत्व क्या है?
सिंगल विंडो क्लीयरेंस सिस्टम एक ऐसी व्यवस्था है जिसमें व्यापारिक प्रक्रिया से संबंधित सभी मंजूरियाँ, लाइसेंस और दस्तावेज़ एक ही डिजिटल प्लेटफॉर्म पर प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे समय, लागत और जटिलता में कमी आती है। भारत सरकार ने “ICEGATE” और “Digital Customs” जैसे पोर्टल शुरू किए हैं ताकि आयात-निर्यात की प्रक्रिया को आसान और पारदर्शी बनाया जा सके। यह व्यापार सुगमता (Ease of Doing Business) में भी सहायक है।
38. भारत की विदेशी निवेश नीति (FDI Policy) का व्यापार पर क्या प्रभाव है?
भारत की एफडीआई नीति विदेशी निवेशकों को विभिन्न क्षेत्रों में निवेश करने की अनुमति देती है। ऑटो, रिटेल, टेलीकॉम, बीमा, और निर्माण जैसे क्षेत्रों में 100% तक एफडीआई की अनुमति है। इससे भारत में तकनीक, पूंजी, रोजगार और निर्यात में वृद्धि हुई है। विदेशी कंपनियों की भारत में उपस्थिति से प्रतिस्पर्धा और गुणवत्ता में सुधार होता है, जो अंतरराष्ट्रीय व्यापार को गति देता है।
39. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में कस्टम ड्यूटी क्या है और इसका उद्देश्य क्या है?
कस्टम ड्यूटी वह शुल्क है जो सरकार विदेशी वस्तुओं के आयात (या कभी-कभी निर्यात) पर लगाती है। इसका उद्देश्य राजस्व एकत्र करना, घरेलू उद्योगों को संरक्षण देना, और अनावश्यक आयात को नियंत्रित करना होता है। WTO सदस्य देशों को यह स्वतंत्रता देता है कि वे तार्किक और पारदर्शी नियमों के अनुसार टैरिफ लगा सकते हैं, लेकिन यह भेदभाव रहित होना चाहिए।
40. निर्यात-आयात कोड (IEC Code) क्या है और क्यों आवश्यक है?
IEC (Import Export Code) एक 10 अंकों का कोड होता है जो DGFT द्वारा जारी किया जाता है। यह कोड किसी भी भारतीय संस्था या व्यक्ति को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में भाग लेने के लिए आवश्यक होता है। बिना IEC के कोई भी आयात या निर्यात नहीं कर सकता। यह बैंकिंग, सीमा शुल्क और विदेश व्यापार संबंधित अन्य विभागों में पहचान का माध्यम होता है। यह व्यापार को औपचारिक और नियंत्रित बनाता है।
41. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Balance of Trade’ और ‘Balance of Payments’ में क्या अंतर है?
Balance of Trade (BoT) केवल आयात और निर्यात वस्तुओं के बीच अंतर को दर्शाता है। यदि निर्यात अधिक है तो यह व्यापार अधिशेष (surplus) और यदि आयात अधिक है तो व्यापार घाटा (deficit) कहलाता है।
वहीं, Balance of Payments (BoP) एक व्यापक माप है, जिसमें व्यापार के अलावा सेवा व्यापार, विदेशी निवेश, सहायता, प्रेषण आदि शामिल होते हैं। यह देश की समग्र विदेशी आर्थिक स्थिति का आंकलन करता है।
42. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में “Preferential Trade Agreement (PTA)” क्या है?
PTA एक ऐसा व्यापार समझौता है जिसमें सदस्य देश एक-दूसरे को कुछ खास उत्पादों पर सीमित टैरिफ रियायतें देते हैं। यह FTA से अलग होता है क्योंकि इसमें सभी उत्पाद शामिल नहीं होते। भारत ने MERCOSUR और अफ्रीकी देशों के साथ कई PTA किए हैं। यह सीमित दायरे में व्यापार को बढ़ाने का प्रारंभिक कदम होता है।
43. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में “Rules of Origin” का क्या महत्व है?
Rules of Origin वे मानदंड होते हैं जो यह निर्धारित करते हैं कि कोई उत्पाद किस देश का ‘मूल’ (origin) है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि टैरिफ रियायतें, कोटा, और अन्य व्यापारिक लाभ केवल तभी मिलते हैं जब उत्पाद उस देश से उत्पन्न हुआ हो जिसके साथ व्यापार समझौता किया गया है। इससे धोखाधड़ी और गलत प्रमाणन को रोका जा सकता है।
44. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Trade Facilitation Agreement (TFA)’ क्या है?
TFA WTO का एक समझौता है जिसे 2013 में बाली में पारित किया गया। इसका उद्देश्य व्यापार प्रक्रिया को तेज, पारदर्शी और कम लागत वाला बनाना है। इसमें सीमा शुल्क प्रक्रिया, दस्तावेज़ों की पारदर्शिता, और माल की शीघ्र निकासी जैसी व्यवस्थाएं शामिल हैं। भारत ने भी इस समझौते को स्वीकृति दी है और व्यापार सुगमता के लिए कई सुधार किए हैं।
45. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एग्रीमेंट ऑन एग्रीकल्चर (AoA) का क्या उद्देश्य है?
AoA WTO का एक समझौता है जो कृषि क्षेत्र में व्यापार को नियंत्रित करता है। इसका उद्देश्य सब्सिडी कम करना, बाजार पहुंच बढ़ाना और निर्यात प्रतियोगिता को नियंत्रित करना है। यह तीन प्रमुख स्तंभों पर आधारित है: बाजार पहुंच (market access), घरेलू समर्थन (domestic support) और निर्यात प्रतिस्पर्धा (export competition)। भारत इस समझौते के तहत किसानों के हितों की रक्षा करते हुए व्यापार में भाग लेता है।
46. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Anti-dumping Duty’ और ‘Countervailing Duty’ में अंतर क्या है?
Anti-dumping Duty उस स्थिति में लगाई जाती है जब कोई देश अपनी वस्तु को दूसरे देश में घरेलू मूल्य से कम कीमत पर बेचता है।
Countervailing Duty (CVD) तब लगाई जाती है जब किसी देश का उत्पादक सरकार से सब्सिडी पाकर अपने उत्पाद को दूसरे देश में कम कीमत पर बेचता है।
दोनों शुल्क घरेलू उद्योगों को विदेशी अनुचित प्रतिस्पर्धा से बचाने के लिए लगाए जाते हैं।
47. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Most-Favoured Nation (MFN)’ का क्या महत्व है?
MFN WTO का मूल सिद्धांत है जिसके अनुसार किसी एक सदस्य देश को दिए गए व्यापारिक लाभ सभी अन्य सदस्य देशों को भी समान रूप से देने होंगे। यह भेदभाव रहित व्यापार सुनिश्चित करता है और एकसमान नियमों पर आधारित वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देता है। हालांकि, FTA और PTA जैसे समझौतों में MFN से छूट दी जा सकती है।
48. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में ‘Harmonized System (HS) Code’ क्या होता है?
HS Code एक मानकीकृत प्रणाली है जो विश्व सीमा शुल्क संगठन (WCO) द्वारा तैयार की गई है। यह 6 अंकों का कोड होता है जिसका उपयोग अंतरराष्ट्रीय व्यापार में वस्तुओं की पहचान, वर्गीकरण और टैक्स निर्धारण हेतु किया जाता है। भारत में इसे 8 अंकों में विस्तारित रूप में उपयोग किया जाता है। HS कोड से सीमा शुल्क प्रक्रिया तेज और सटीक होती है।
49. भारत में ‘Foreign Trade Policy 2023’ की प्रमुख विशेषताएं क्या हैं?
भारत की नवीनतम विदेश व्यापार नीति 2023 निर्यात को $2 ट्रिलियन तक पहुंचाने का लक्ष्य रखती है। इसमें डिजिटल प्रक्रिया, ई-कॉमर्स निर्यात, एकीकृत निर्यात हब, और व्यापारिक संतुलन पर बल दिया गया है। RoDTEP और SEIS जैसी योजनाओं को सशक्त किया गया है। यह नीति ‘आत्मनिर्भर भारत’ और ‘मेक इन इंडिया’ के उद्देश्यों के साथ तालमेल रखती है।
50. भारत के प्रमुख निर्यात और आयात उत्पाद कौन-कौन से हैं?
भारत से प्रमुख निर्यात वस्तुएं हैं – रत्न और आभूषण, पेट्रोलियम उत्पाद, औषधियाँ, टेक्सटाइल, वाहन, और आईटी सेवाएं।
जबकि भारत के प्रमुख आयात उत्पाद हैं – कच्चा तेल, सोना, इलेक्ट्रॉनिक उपकरण, मशीनरी, और रासायनिक उत्पाद।
भारत का व्यापार मुख्यतः अमेरिका, चीन, यूएई, सिंगापुर और यूरोपीय संघ के देशों के साथ होता है।