प्रश्न 51. साइबर आतंकवाद (Cyber Terrorism) क्या है?
उत्तर:
साइबर आतंकवाद उस आपराधिक गतिविधि को कहा जाता है जिसमें कंप्यूटर, नेटवर्क या इंटरनेट का उपयोग राष्ट्रीय सुरक्षा, सार्वजनिक व्यवस्था या आर्थिक प्रणाली को बाधित करने के उद्देश्य से किया जाता है। इसमें सरकारी वेबसाइटों को हैक करना, सेना या सुरक्षा एजेंसियों की सूचनाओं तक अनधिकृत पहुंच, वायरस या मैलवेयर से सिस्टम को नुकसान पहुंचाना, या जनता में भय पैदा करने वाले ऑनलाइन संदेश शामिल हो सकते हैं। भारतीय आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66F के अंतर्गत साइबर आतंकवाद को गंभीर अपराध माना गया है, जिसमें आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है। साइबर आतंकवाद को रोकने हेतु सरकार CERT-In, साइबर सेल, और अन्य एजेंसियों के माध्यम से सक्रिय है।
प्रश्न 52. साइबर स्टॉकिंग (Cyber Stalking) क्या है?
उत्तर:
साइबर स्टॉकिंग एक प्रकार की साइबर अपराध है जिसमें कोई व्यक्ति बार-बार, अवांछित रूप से किसी व्यक्ति को ऑनलाइन माध्यम से परेशान करता है। इसमें सोशल मीडिया पर पीछा करना, आपत्तिजनक संदेश भेजना, फर्जी प्रोफाइल बनाकर बदनाम करना, या अश्लील सामग्री भेजना शामिल होता है। यह अपराध विशेष रूप से महिलाओं और बच्चों के खिलाफ अधिक होता है। भारतीय दंड संहिता की धारा 354D और आईटी अधिनियम की संबंधित धाराओं के तहत इसे अपराध माना गया है। यह पीड़ित की मानसिक शांति और निजता के अधिकार का उल्लंघन करता है। साइबर स्टॉकिंग से सुरक्षा हेतु सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रिपोर्ट करने और कानूनी सहायता लेने की सुविधा उपलब्ध है।
प्रश्न 53. ‘डेटा चोरी’ (Data Theft) क्या होती है और इसके दुष्परिणाम क्या हैं?
उत्तर:
डेटा चोरी वह अपराध है जिसमें किसी व्यक्ति, संस्था या संगठन की संवेदनशील जानकारी को अनधिकृत रूप से प्राप्त किया जाता है। इसमें बैंक विवरण, पासवर्ड, आधार नंबर, ग्राहक डाटा, व्यापारिक गोपनीयता आदि शामिल हो सकती है। यह चोरी कंप्यूटर हैकिंग, फिशिंग, या आंतरिक कर्मचारियों द्वारा की जा सकती है। इसके दुष्परिणाम गंभीर होते हैं जैसे – आर्थिक नुकसान, पहचान की चोरी, प्रतिस्पर्धी नुकसान और गोपनीयता का उल्लंघन। भारत में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 43 और 66 इसके अंतर्गत दंडनीय हैं। डेटा सुरक्षा हेतु एन्क्रिप्शन, फायरवॉल, और पासवर्ड सुरक्षा जैसे उपाय आवश्यक हैं।
प्रश्न 54. ऑनलाइन धोखाधड़ी (Online Fraud) क्या है?
उत्तर:
ऑनलाइन धोखाधड़ी वह अपराध है जिसमें इंटरनेट के माध्यम से किसी व्यक्ति को धोखे में रखकर आर्थिक लाभ प्राप्त किया जाता है। इसमें नकली वेबसाइट बनाकर फर्जी लेनदेन, फिशिंग मेल, OTP स्कैम, UPI धोखाधड़ी, और निवेश घोटाले शामिल हैं। यह अपराध तेजी से बढ़ रहा है, विशेषकर डिजिटल भुगतान के प्रसार के बाद। भारतीय दंड संहिता की धारा 420 और आईटी अधिनियम की धारा 66D इसके अंतर्गत आती हैं। इससे बचने के लिए सतर्कता, संदिग्ध लिंक से दूरी, और बैंकिंग जानकारी साझा न करना अत्यंत आवश्यक है। साइबर हेल्पलाइन 1930 पर रिपोर्ट कर सहायता प्राप्त की जा सकती है।
प्रश्न 55. फिशिंग (Phishing) क्या है?
उत्तर:
फिशिंग एक प्रकार की ऑनलाइन धोखाधड़ी है जिसमें धोखेबाज व्यक्ति ईमेल, मैसेज या वेबसाइट के माध्यम से लोगों को उनके बैंक विवरण, पासवर्ड, या अन्य निजी जानकारी देने के लिए बहकाते हैं। फिशिंग संदेश अक्सर किसी विश्वसनीय संस्था (जैसे बैंक) के नाम से होते हैं और आपातकालीन भाषा में होते हैं जैसे – “आपका खाता बंद किया जा रहा है”। जैसे ही उपयोगकर्ता अपनी जानकारी साझा करता है, अपराधी उसका दुरुपयोग करते हैं। भारत में इसे आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66C और 66D के अंतर्गत अपराध माना गया है। इससे बचाव हेतु कभी भी अज्ञात लिंक पर क्लिक न करें और अपने डेटा की सुरक्षा करें।
प्रश्न 56. साइबर अपराध में ‘अभिप्रेरित वायरस’ (Trojan Horse) क्या है?
उत्तर:
ट्रोजन हॉर्स (Trojan Horse) एक प्रकार का मैलवेयर है जो उपयोगकर्ता को धोखा देकर कंप्यूटर में प्रवेश करता है और फिर सिस्टम को हानि पहुँचाता है। यह आमतौर पर किसी उपयोगी सॉफ़्टवेयर या फाइल के रूप में छिपा होता है और एक बार सिस्टम में प्रवेश करने के बाद हैकर को अनधिकृत पहुंच प्रदान करता है। यह डेटा चोरी, की-लॉगिंग, स्क्रीन रिकॉर्डिंग और अन्य दुर्भावनापूर्ण गतिविधियों में प्रयोग होता है। ट्रोजन से सुरक्षा हेतु अपडेटेड एंटीवायरस, फायरवॉल और सतर्कता अत्यंत आवश्यक है। आईटी अधिनियम की धारा 66 और 43 इस प्रकार के अपराधों को दंडनीय बनाती हैं।
प्रश्न 57. डार्क वेब (Dark Web) क्या होता है?
उत्तर:
डार्क वेब इंटरनेट का वह हिस्सा है जो पारंपरिक सर्च इंजनों द्वारा एक्सेस नहीं किया जा सकता और जहां गतिविधियाँ गुमनाम रूप से होती हैं। यह TOR ब्राउज़र जैसे विशेष सॉफ़्टवेयर द्वारा ही एक्सेस किया जा सकता है। डार्क वेब पर अवैध गतिविधियाँ जैसे ड्रग्स की बिक्री, हथियारों का व्यापार, मानव तस्करी, फर्जी पासपोर्ट, और हैकिंग सेवाएँ होती हैं। यह साइबर अपराधियों के लिए एक सुरक्षित स्थान जैसा होता है। हालांकि कुछ वैध गतिविधियाँ भी वहां होती हैं, लेकिन अधिकांश उपयोग अवैध होते हैं। भारत में ऐसे कार्यों को रोकने के लिए आईटी अधिनियम, साइबर पुलिस और CERT-In जैसी एजेंसियाँ सक्रिय हैं।
प्रश्न 58. रैनसमवेयर (Ransomware) क्या है?
उत्तर:
रैनसमवेयर एक प्रकार का मैलवेयर होता है जो कंप्यूटर सिस्टम की फाइलों को एन्क्रिप्ट कर देता है और उन्हें अनलॉक करने के लिए फिरौती (ransom) की मांग करता है। यह आमतौर पर ईमेल अटैचमेंट, वेबसाइट लिंक या डाउनलोडेड फाइलों के माध्यम से फैलता है। एक बार जब सिस्टम संक्रमित हो जाता है, उपयोगकर्ता अपनी आवश्यक फाइलों को खोल नहीं पाता और स्क्रीन पर फिरौती की मांग दिखाई देती है। यह साइबर अपराध अत्यंत खतरनाक है और सरकारी, चिकित्सा तथा शैक्षिक संस्थानों को विशेष रूप से निशाना बनाता है। इससे बचाव हेतु नियमित बैकअप, एंटीवायरस और नेटवर्क सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है।
प्रश्न 59. सोशल इंजीनियरिंग (Social Engineering) क्या है?
उत्तर:
सोशल इंजीनियरिंग एक साइबर अपराध तकनीक है जिसमें अपराधी लोगों की भावनाओं, विश्वास या अज्ञानता का लाभ उठाकर उनसे गोपनीय जानकारी प्राप्त करते हैं। इसमें टेलीफोन कॉल, ईमेल या सोशल मीडिया संदेशों द्वारा विश्वास में लेकर पासवर्ड, OTP, बैंक डिटेल्स आदि ली जाती हैं। यह तकनीक तकनीकी हैकिंग की बजाय मनोवैज्ञानिक चालों पर आधारित होती है। इसका सबसे आम रूप फिशिंग है। सोशल इंजीनियरिंग से बचने के लिए अज्ञात कॉल या मैसेज का उत्तर न देना, बैंक की जानकारी साझा न करना और संदिग्ध लिंक से दूरी रखना आवश्यक है। भारत में यह अपराध आईटी अधिनियम के अंतर्गत दंडनीय है।
प्रश्न 60. साइबर सुरक्षा नीति 2013 (National Cyber Security Policy, 2013) क्या है?
उत्तर:
भारत सरकार ने 2013 में एक व्यापक राष्ट्रीय साइबर सुरक्षा नीति (National Cyber Security Policy, 2013) लागू की थी जिसका उद्देश्य देश की साइबर स्पेस की रक्षा करना, सूचना अवसंरचना की सुरक्षा सुनिश्चित करना और साइबर अपराधों से बचाव करना था। यह नीति सार्वजनिक और निजी दोनों क्षेत्रों में साइबर जागरूकता, अनुसंधान, प्रशिक्षण, और सुरक्षा उपायों को बढ़ावा देती है। इसमें CERT-In की भूमिका, साइबर सुरक्षा कर्मियों के लिए प्रशिक्षण, और डेटा सुरक्षा प्रबंधन जैसे प्रावधान शामिल हैं। इस नीति का उद्देश्य एक सुरक्षित, लचीला और विश्वसनीय साइबर वातावरण बनाना है जिससे आर्थिक, सामाजिक और राष्ट्रीय हितों की रक्षा की जा सके।
प्रश्न 61. CERT-In क्या है और इसका कार्य क्या है?
उत्तर:
CERT-In (Computer Emergency Response Team – India) भारत सरकार की एक प्रमुख एजेंसी है जो साइबर सुरक्षा के क्षेत्र में कार्य करती है। यह इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के अधीन कार्यरत है और इसका मुख्य उद्देश्य साइबर घटनाओं का पता लगाना, प्रतिक्रिया देना और उन्हें रोकना है। CERT-In साइबर हमलों की जानकारी साझा करती है, आवश्यक अलर्ट जारी करती है, और सुरक्षा उपायों की सिफारिश करती है। यह हैकिंग, वायरस अटैक, फिशिंग, रैनसमवेयर जैसे साइबर खतरों पर निगरानी रखती है। CERT-In भारत के साइबर स्पेस की रक्षा के लिए एक आवश्यक स्तंभ है और विभिन्न सरकारी व निजी संस्थानों को तकनीकी सहायता भी प्रदान करती है।
प्रश्न 62. डिजिटल हस्ताक्षर (Digital Signature) क्या है?
उत्तर:
डिजिटल हस्ताक्षर एक इलेक्ट्रॉनिक प्रमाणीकरण तकनीक है जो दस्तावेज़ों की प्रमाणिकता और अखंडता की पुष्टि करती है। यह किसी दस्तावेज़ या डेटा को इलेक्ट्रॉनिक रूप से ‘साइन’ करने की प्रक्रिया है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि वह किसी विशेष व्यक्ति द्वारा ही भेजा गया है और बीच में कोई बदलाव नहीं हुआ है। डिजिटल हस्ताक्षर पब्लिक की और प्राइवेट की पर आधारित होते हैं और क्रिप्टोग्राफिक एल्गोरिद्म से सुरक्षित किए जाते हैं। भारत में आईटी अधिनियम, 2000 के तहत डिजिटल सिग्नेचर को कानूनी मान्यता प्राप्त है। इसका उपयोग ई-गवर्नेंस, ई-टेंडर, ऑनलाइन बैंकिंग और न्यायिक दस्तावेज़ों में होता है। यह दस्तावेज़ों की सुरक्षा और पारदर्शिता को बढ़ाता है।
प्रश्न 63. आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66C क्या कहती है?
उत्तर:
आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66C अनधिकृत रूप से किसी व्यक्ति की पहचान की जानकारी जैसे – पासवर्ड, डिजिटल हस्ताक्षर, बायोमेट्रिक डेटा आदि को चुराने या दुरुपयोग करने से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति धोखाधड़ी से इन जानकारियों का उपयोग करता है, तो यह धारा लागू होती है। इस अपराध के लिए तीन वर्ष तक की सजा और जुर्माना, जो एक लाख रुपये तक हो सकता है, का प्रावधान है। यह धारा डिजिटल पहचान की गोपनीयता और सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह आज के डिजिटल युग में पहचान की चोरी और डेटा के दुरुपयोग को रोकने के लिए कानूनी संरक्षण प्रदान करती है।
प्रश्न 64. आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66D क्या कहती है?
उत्तर:
आईटी अधिनियम की धारा 66D धोखाधड़ी करने के इरादे से किसी व्यक्ति को ऑनलाइन माध्यम से गलत तरीके से प्रस्तुत करने से संबंधित है। इसमें फर्जी ईमेल, वेबसाइट, कॉल या संदेश के माध्यम से किसी व्यक्ति को भ्रमित कर उसकी निजी जानकारी प्राप्त करना शामिल है, जिसे आमतौर पर फिशिंग कहा जाता है। यह अपराध यदि सिद्ध होता है, तो तीन साल तक की सजा और एक लाख रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। इस धारा का उद्देश्य ऑनलाइन धोखाधड़ी को रोकना और इंटरनेट उपयोगकर्ताओं को कानूनी सुरक्षा प्रदान करना है। यह डिजिटल धोखाधड़ी और पहचान की चोरी के विरुद्ध एक सख्त कदम है।
प्रश्न 65. ‘बोटनेट’ (Botnet) क्या है और साइबर अपराध में इसका उपयोग कैसे होता है?
उत्तर:
बोटनेट (Botnet) एक नेटवर्क होता है जिसमें अनेक कंप्यूटर या डिवाइस होते हैं जो मैलवेयर के माध्यम से किसी एक हैकर के नियंत्रण में आ जाते हैं। ये संक्रमित डिवाइस ‘बॉट्स’ कहलाते हैं और एक साथ मिलकर साइबर हमलों जैसे – DDoS (Distributed Denial of Service), स्पैम ईमेल भेजना, और वायरस फैलाना – में इस्तेमाल होते हैं। उपयोगकर्ता को अक्सर यह पता नहीं चलता कि उसका डिवाइस किसी बोटनेट का हिस्सा बन चुका है। यह साइबर अपराधियों को बड़ी मात्रा में संसाधनों और शक्ति प्रदान करता है। इससे बचाव के लिए एंटीवायरस, अपडेटेड सिस्टम और सुरक्षित नेटवर्क का उपयोग करना आवश्यक है।
प्रश्न 66. स्पूफिंग (Spoofing) क्या है?
उत्तर:
स्पूफिंग एक प्रकार की साइबर धोखाधड़ी है जिसमें अपराधी किसी व्यक्ति या संस्था की पहचान को छुपाकर गलत जानकारी प्रस्तुत करता है ताकि उपयोगकर्ता भ्रमित हो जाए। इसमें ईमेल स्पूफिंग, कॉलर ID स्पूफिंग, वेबसाइट स्पूफिंग आदि शामिल हैं। उदाहरण के लिए, अपराधी किसी बैंक के नाम से फर्जी ईमेल भेजकर उपयोगकर्ता से संवेदनशील जानकारी प्राप्त कर सकता है। यह फिशिंग का ही एक भाग है। स्पूफिंग से बचने के लिए वेबसाइट के यूआरएल की जांच करना, अज्ञात लिंक पर क्लिक न करना और दो-स्तरीय प्रमाणीकरण का उपयोग करना आवश्यक है। यह आईटी अधिनियम की विभिन्न धाराओं के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
प्रश्न 67. साइबर अपराध और पारंपरिक अपराध में क्या अंतर है?
उत्तर:
साइबर अपराध वह अपराध है जो कंप्यूटर, इंटरनेट या अन्य डिजिटल साधनों के माध्यम से किया जाता है, जबकि पारंपरिक अपराध भौतिक रूप से समाज में किया जाने वाला अपराध होता है। साइबर अपराध में हैकिंग, फिशिंग, वायरस फैलाना, ऑनलाइन स्टॉकिंग, डेटा चोरी आदि आते हैं, जबकि पारंपरिक अपराध में चोरी, हत्या, अपहरण आदि शामिल होते हैं। साइबर अपराधों में अपराधी और पीड़ित एक-दूसरे से दूर हो सकते हैं, लेकिन पारंपरिक अपराध आमने-सामने होते हैं। इसके अलावा, साइबर अपराध की जाँच तकनीकी विशेषज्ञता मांगती है जबकि पारंपरिक अपराध की जाँच पुलिस और सामान्य साक्ष्य पर आधारित होती है।
प्रश्न 68. कंप्यूटर हैकिंग (Computer Hacking) क्या है?
उत्तर:
कंप्यूटर हैकिंग वह प्रक्रिया है जिसमें कोई व्यक्ति अनधिकृत रूप से किसी कंप्यूटर सिस्टम, नेटवर्क या डाटा तक पहुँच प्राप्त करता है। हैकिंग का उद्देश्य डेटा चोरी, सिस्टम को नुकसान पहुँचाना, या गोपनीय जानकारी प्राप्त करना हो सकता है। हैकर्स कई प्रकार के होते हैं – जैसे व्हाइट हैट (सुरक्षा विशेषज्ञ), ब्लैक हैट (अपराधी), और ग्रे हैट (बीच के)। भारत में आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66 के अंतर्गत हैकिंग एक दंडनीय अपराध है, जिसमें तीन साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। इससे सुरक्षा हेतु फायरवॉल, एंटीवायरस और पासवर्ड नीति का पालन आवश्यक है।
प्रश्न 69. साइबर अपराध की शिकायत कहाँ और कैसे दर्ज कर सकते हैं?
उत्तर:
साइबर अपराध की शिकायत दर्ज करने के लिए भारत में विभिन्न विकल्प उपलब्ध हैं। सबसे पहले पीड़ित अपने निकटतम साइबर क्राइम पुलिस स्टेशन या सामान्य पुलिस थाने में FIR दर्ज करवा सकता है। इसके अतिरिक्त, भारत सरकार की आधिकारिक वेबसाइट www.cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत की जा सकती है। महिलाओं और बच्चों से जुड़े अपराधों को इस पोर्टल पर प्राथमिकता दी जाती है। शिकायत के लिए नाम, मोबाइल नंबर, ईमेल, और अपराध से संबंधित साक्ष्य जैसे स्क्रीनशॉट या ट्रांजेक्शन डिटेल्स देना होता है। तत्काल सहायता हेतु 1930 साइबर हेल्पलाइन नंबर पर भी संपर्क किया जा सकता है।
प्रश्न 70. ‘डिनायल ऑफ सर्विस’ (DoS) और ‘डिस्ट्रिब्यूटेड डिनायल ऑफ सर्विस’ (DDoS) क्या होते हैं?
उत्तर:
DoS (Denial of Service) एक साइबर हमला है जिसमें किसी वेबसाइट या सर्वर पर अत्यधिक मात्रा में ट्रैफिक भेजा जाता है ताकि वह सामान्य उपयोगकर्ताओं के लिए उपलब्ध न रहे। DDoS (Distributed Denial of Service) इसका विस्तृत रूप है जिसमें कई सिस्टम (बोटनेट के माध्यम से) एक साथ मिलकर लक्ष्य पर हमला करते हैं। ये हमले वेबसाइट को क्रैश कर देते हैं और व्यवसाय को भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह साइबर अपराध IT अधिनियम, 2000 के अंतर्गत दंडनीय है। इससे सुरक्षा हेतु लोड बैलेंसिंग, फायरवॉल और एंटी-डीडॉस तकनीकों का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 71. डिजिटल फॉरेंसिक (Digital Forensics) क्या है?
उत्तर:
डिजिटल फॉरेंसिक वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से कंप्यूटर, मोबाइल, नेटवर्क या अन्य डिजिटल उपकरणों से अपराध से संबंधित इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य एकत्र किए जाते हैं। इसका उपयोग साइबर अपराधों की जांच, डेटा पुनः प्राप्ति, और साक्ष्य विश्लेषण हेतु किया जाता है। डिजिटल फॉरेंसिक में डेटा की छवि बनाना, उसे विश्लेषण करना, और न्यायालय में प्रस्तुत करने योग्य रिपोर्ट बनाना शामिल होता है। यह जांच वैज्ञानिक विधियों पर आधारित होती है जिससे साक्ष्य की वैधता बनी रहती है। पुलिस, CERT-In और अन्य साइबर सेल एजेंसियाँ इस तकनीक का उपयोग करती हैं। यह साइबर अपराधों के निवारण और न्याय दिलाने का सशक्त माध्यम है।
प्रश्न 72. साइबर बुलिंग (Cyber Bullying) क्या होती है?
उत्तर:
साइबर बुलिंग वह स्थिति है जब कोई व्यक्ति इंटरनेट, सोशल मीडिया, मोबाइल या अन्य डिजिटल प्लेटफार्मों के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को मानसिक रूप से परेशान करता है। इसमें अपमानजनक संदेश, झूठी अफवाहें, फोटो/वीडियो का दुरुपयोग, और बार-बार धमकी देना शामिल हो सकता है। यह विशेष रूप से किशोरों और छात्रों के बीच आम है और मानसिक स्वास्थ्य पर गंभीर प्रभाव डाल सकता है। भारत में आईटी अधिनियम और IPC की विभिन्न धाराओं के तहत साइबर बुलिंग अपराध है। पीड़ित व्यक्ति पुलिस या साइबर सेल में शिकायत कर सकता है और संबंधित सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी रिपोर्ट कर सकता है।
प्रश्न 73. क्रिप्टोकरेंसी और साइबर अपराध के बीच क्या संबंध है?
उत्तर:
क्रिप्टोकरेंसी जैसे – बिटकॉइन, इथेरियम आदि – एक डिजिटल मुद्रा है जिसका उपयोग लेनदेन हेतु किया जाता है, परंतु इसका उपयोग कई बार अवैध गतिविधियों में भी होता है। चूंकि क्रिप्टोकरेंसी गुमनाम होती है, इसलिए साइबर अपराधी इसका उपयोग रैनसमवेयर हमलों में फिरौती मांगने, डार्क वेब पर अवैध सामग्री खरीदने, या मनी लॉन्डरिंग के लिए करते हैं। भारत में क्रिप्टोकरेंसी को विधिक मुद्रा का दर्जा नहीं मिला है, लेकिन इसके संबंध में नियमन की दिशा में पहल की जा रही है। साइबर अपराध में इसके उपयोग को ट्रैक करना कठिन होता है, इसलिए यह कानून प्रवर्तन के लिए चुनौतीपूर्ण है।
प्रश्न 74. ई-कॉमर्स धोखाधड़ी क्या है और इससे कैसे बचा जा सकता है?
उत्तर:
ई-कॉमर्स धोखाधड़ी वह अपराध है जिसमें ऑनलाइन खरीदारी करते समय उपभोक्ता को ठगा जाता है। इसमें नकली वेबसाइट द्वारा ऑर्डर लेना और उत्पाद न भेजना, खराब वस्तु भेजना, अधिक पैसे वसूलना, या कार्ड की जानकारी चुराना शामिल है। इससे बचने के लिए उपभोक्ता को केवल विश्वसनीय वेबसाइटों से खरीदारी करनी चाहिए, वेबसाइट के URL की जांच करनी चाहिए (https से शुरू), और कैश ऑन डिलीवरी जैसे सुरक्षित विकल्पों का उपयोग करना चाहिए। यदि धोखाधड़ी हो जाए, तो उपभोक्ता साइबर सेल, कंज्यूमर कोर्ट या www.cybercrime.gov.in पर शिकायत दर्ज कर सकता है।
प्रश्न 75. साइबर कानून में न्यायालय की भूमिका क्या है?
उत्तर:
साइबर कानूनों के क्रियान्वयन में न्यायालय की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण है। अदालतें आईटी अधिनियम और भारतीय दंड संहिता की धाराओं के अनुसार साइबर अपराधों की सुनवाई करती हैं और न्याय सुनिश्चित करती हैं। न्यायालय प्रमाणिक डिजिटल साक्ष्यों को मान्यता देती है और अभियुक्त को दोषी पाए जाने पर सजा देती है। इसके साथ ही अदालतें साइबर स्पेस में नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा भी करती हैं, जैसे निजता का अधिकार। उच्चतम न्यायालय और उच्च न्यायालयों ने कई महत्त्वपूर्ण निर्णय दिए हैं जिससे साइबर अपराधों के प्रति कानून को सशक्त बनाया गया है।
प्रश्न 76. आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67 क्या है?
उत्तर:
आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67 अश्लील सामग्री को इलेक्ट्रॉनिक रूप में प्रकाशित या प्रसारित करने से संबंधित है। यदि कोई व्यक्ति किसी इलेक्ट्रॉनिक फॉर्मेट में ऐसी सामग्री भेजता है जो अश्लील, अनुचित या समाज में नैतिक गिरावट लाने वाली हो, तो यह धारा लागू होती है। प्रथम अपराध के लिए तीन वर्ष तक की सजा और पाँच लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है, जबकि पुनरावृत्ति पर पाँच वर्ष की सजा और दस लाख रुपये तक जुर्माना हो सकता है। यह धारा साइबर पोर्नोग्राफी, अश्लील वीडियो शेयरिंग और गंदी वेबसाइटों के खिलाफ सख्त कार्रवाई सुनिश्चित करती है। यह समाज विशेषकर महिलाओं और बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा के लिए आवश्यक कानूनी प्रावधान है।
प्रश्न 77. ‘इलेक्ट्रॉनिक सबूत’ (Electronic Evidence) क्या होता है?
उत्तर:
इलेक्ट्रॉनिक सबूत वे साक्ष्य होते हैं जो डिजिटल स्वरूप में उपलब्ध होते हैं, जैसे – ईमेल, व्हाट्सएप चैट, ऑडियो-विजुअल रिकॉर्डिंग, हार्ड डिस्क डेटा, सीसीटीवी फुटेज, वेबसाइट लॉग्स आदि। भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 की धारा 65B के तहत इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को न्यायालय में मान्य करने हेतु एक प्रमाणपत्र (65B सर्टिफिकेट) आवश्यक होता है। साइबर अपराधों के मामलों में यह साक्ष्य अपराध के प्रमाण के रूप में प्रस्तुत किए जाते हैं। इलेक्ट्रॉनिक साक्ष्य को सुरक्षित रखना, छेड़छाड़ से बचाना और फॉरेंसिक विश्लेषण से जांच करना अत्यंत जरूरी होता है ताकि उनकी वैधता बनी रहे। यह आधुनिक न्याय व्यवस्था में अत्यधिक उपयोगी और आवश्यक बन चुका है।
प्रश्न 78. इंटरनेट शुद्धता (Net Neutrality) क्या है?
उत्तर:
नेट न्यूट्रैलिटी (Internet Shuddhata) वह सिद्धांत है जिसके अनुसार इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP) को सभी वेबसाइटों और ऑनलाइन सामग्री के साथ समान व्यवहार करना चाहिए। इसका अर्थ है कि वे किसी वेबसाइट को धीमा या तेज नहीं कर सकते, और किसी सेवा को अन्य पर प्राथमिकता नहीं दे सकते। नेट न्यूट्रैलिटी उपभोक्ताओं को स्वतंत्र रूप से जानकारी तक पहुँचने और इंटरनेट का निष्पक्ष उपयोग सुनिश्चित करता है। भारत में ट्राई (TRAI) ने 2018 में नेट न्यूट्रैलिटी के समर्थन में दिशा-निर्देश जारी किए, जिससे इंटरनेट उपयोग की आज़ादी सुनिश्चित हुई। यह साइबर स्वतंत्रता और उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 79. सोशल मीडिया के दुरुपयोग से संबंधित कानूनी प्रावधान क्या हैं?
उत्तर:
सोशल मीडिया का दुरुपयोग जैसे – फेक न्यूज़ फैलाना, मानहानिकारक पोस्ट डालना, अश्लील सामग्री साझा करना, और अफवाह फैलाना – गंभीर साइबर अपराधों की श्रेणी में आता है। ऐसे मामलों में IPC की धारा 499 (मानहानि), 504 (जानबूझकर अपमान), 505 (अफवाह फैलाना), और आईटी अधिनियम की धारा 66A, 66D, 67 आदि लागू हो सकती हैं। हालांकि धारा 66A को सुप्रीम कोर्ट ने Shreya Singhal v. Union of India (2015) में असंवैधानिक घोषित कर दिया है, लेकिन अन्य धाराएं अब भी प्रभावी हैं। साइबर पुलिस और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म इन मामलों की जांच और कार्यवाही में सहायक होते हैं। फर्जी प्रोफाइल, धमकी या अभद्र भाषा से संबंधित मामलों में शिकायत दर्ज की जा सकती है।
प्रश्न 80. डाटा सुरक्षा अधिनियम (Data Protection Law) का उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
डाटा सुरक्षा अधिनियम का मुख्य उद्देश्य नागरिकों की व्यक्तिगत जानकारी को सुरक्षित रखना और उसे अनधिकृत उपयोग से बचाना है। भारत सरकार ने “डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन एक्ट, 2023” लागू किया है, जिसमें यह प्रावधान है कि किसी भी संस्था को उपयोगकर्ता की सहमति के बिना उसकी निजी जानकारी एकत्र या साझा करने की अनुमति नहीं होगी। इसमें डाटा प्रोसेसर की जिम्मेदारियाँ, डाटा अधिकारों की सुरक्षा, डाटा उल्लंघन की सूचना देना, और जुर्माने का प्रावधान शामिल है। यह अधिनियम गोपनीयता के मौलिक अधिकार को सुनिश्चित करता है और डिजिटल युग में नागरिकों को कानूनी सुरक्षा प्रदान करता है।
प्रश्न 81. साइबर अपराध में महिलाओं की सुरक्षा हेतु कौन-कौन से कानूनी प्रावधान हैं?
उत्तर:
साइबर अपराधों से महिलाओं की सुरक्षा के लिए भारत में विभिन्न कानूनी प्रावधान लागू हैं। IPC की धारा 354A (यौन उत्पीड़न), 354D (साइबर स्टॉकिंग), और 509 (शब्दों/इशारों से अपमान) महिलाओं की गरिमा की रक्षा करती हैं। इसके साथ ही आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 66E (गोपनीयता का उल्लंघन), 67 (अश्लील सामग्री), और 67A (यौन रूप से स्पष्ट सामग्री) भी महिलाओं को साइबर स्पेस में सुरक्षा प्रदान करती हैं। महिलाओं से संबंधित अपराधों की रिपोर्ट cybercrime.gov.in पर विशेष श्रेणी में की जा सकती है। इसके अलावा, सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर भी कंटेंट रिपोर्टिंग और ब्लॉकिंग की सुविधा दी गई है। ये प्रावधान महिलाओं की निजता, गरिमा और ऑनलाइन स्वतंत्रता की रक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 82. चाइल्ड पोर्नोग्राफी और साइबर कानून में इसका प्रावधान क्या है?
उत्तर:
चाइल्ड पोर्नोग्राफी साइबर अपराध का एक गंभीर रूप है जिसमें बच्चों की अश्लील तस्वीरें, वीडियो या सामग्री का इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से प्रसारण, भंडारण या निर्माण किया जाता है। भारत में यह अपराध POCSO अधिनियम, 2012 और आईटी अधिनियम, 2000 की धारा 67B के अंतर्गत दंडनीय है। धारा 67B के तहत किसी बच्चे की अश्लील सामग्री देखना, संग्रह करना, प्रकाशित करना या प्रसारित करना प्रतिबंधित है और इसके लिए पांच साल तक की सजा और जुर्माना हो सकता है। भारत सरकार ने चाइल्ड पोर्नोग्राफी से संबंधित वेबसाइटों को ब्लॉक करने और रिपोर्ट करने हेतु Helpline 1098 और पोर्टल भी शुरू किए हैं। यह प्रावधान बच्चों की सुरक्षा और उनके अधिकारों की रक्षा में सहायक है।
प्रश्न 83. साइबर लॉ में ‘जवाबदेही’ (Accountability) का क्या महत्व है?
उत्तर:
साइबर कानून में जवाबदेही (Accountability) का अर्थ है – डिजिटल दुनिया में कार्य करने वाले प्रत्येक व्यक्ति, संस्था या प्लेटफॉर्म की ज़िम्मेदारी तय करना। इसमें इंटरनेट सेवा प्रदाता (ISP), सोशल मीडिया कंपनियाँ, वेबसाइट संचालक और उपयोगकर्ता सभी शामिल होते हैं। जवाबदेही सुनिश्चित करती है कि यदि कोई साइबर अपराध हो, तो दोषी की पहचान हो सके और उस पर दंड लगाया जा सके। आईटी अधिनियम में ‘इंटरमीडियरी’ की जिम्मेदारी तय की गई है, जिससे वे अवैध सामग्री के प्रति उत्तरदायी बनते हैं यदि शिकायत के बावजूद कार्रवाई न करें। साथ ही उपयोगकर्ताओं को भी जागरूक और उत्तरदायी रहना आवश्यक है। जवाबदेही डिजिटल स्वतंत्रता और सुरक्षा के बीच संतुलन बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
प्रश्न 84. इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) और साइबर सुरक्षा में इसका प्रभाव क्या है?
उत्तर:
इंटरनेट ऑफ थिंग्स (IoT) वह तकनीक है जिसके अंतर्गत सामान्य उपकरण जैसे – स्मार्ट टीवी, रेफ्रिजरेटर, कैमरा, फिटनेस बैंड आदि इंटरनेट से जुड़े होते हैं। हालांकि यह तकनीक सुविधाजनक है, लेकिन साइबर सुरक्षा की दृष्टि से संवेदनशील भी है। IoT डिवाइसेज़ अक्सर कमजोर पासवर्ड, अपडेट की कमी और एन्क्रिप्शन के अभाव के कारण साइबर हमलों का आसान निशाना बनते हैं। हैकर इन डिवाइसों को नियंत्रित कर उपयोगकर्ता की निजी जानकारी चुरा सकते हैं या DDoS हमलों के लिए उपयोग कर सकते हैं। इससे सुरक्षा हेतु IoT डिवाइसों में स्ट्रॉन्ग पासवर्ड, सॉफ्टवेयर अपडेट और नेटवर्क सुरक्षा उपायों का पालन आवश्यक है। सरकार और कंपनियाँ इस दिशा में सुरक्षा मानकों को मजबूत करने की दिशा में प्रयासरत हैं।
प्रश्न 85. आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और साइबर कानून में उभरती चुनौतियाँ क्या हैं?
उत्तर:
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) तकनीकें जैसे चैटबॉट, ऑटोमेशन, facial recognition आदि आधुनिक युग में उपयोगी हैं, परंतु इनके साथ कई साइबर-कानूनी चुनौतियाँ भी उत्पन्न होती हैं। जैसे – AI द्वारा फर्जी वीडियो (Deepfake) बनाना, निजता का उल्लंघन, डेटा संग्रहण बिना सहमति, और स्वचालित निर्णयों की जवाबदेही। AI सिस्टम की पारदर्शिता और जवाबदेही की कमी कानून के लिए चुनौती है। भारत में AI हेतु कोई विशेष कानून नहीं है, लेकिन आईटी अधिनियम और डेटा सुरक्षा कानून आंशिक रूप से इसे कवर करते हैं। आवश्यकता है ऐसे कानूनी ढांचे की जो AI के अनैतिक प्रयोग को नियंत्रित करे और नागरिकों के डिजिटल अधिकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करे।
प्रश्न 86. साइबर फ्रॉड में OTP धोखाधड़ी क्या होती है?
उत्तर:
OTP (One Time Password) धोखाधड़ी एक आम साइबर अपराध है जिसमें अपराधी फोन कॉल, मैसेज या फिशिंग वेबसाइट के माध्यम से उपयोगकर्ता को भ्रमित कर उससे OTP प्राप्त कर लेते हैं और फिर बैंक खातों से पैसे निकाल लेते हैं। यह धोखाधड़ी आमतौर पर बैंक या UPI ऐप के नाम पर की जाती है। जैसे ही व्यक्ति OTP साझा करता है, अपराधी लेन-देन पूरा कर लेते हैं। इससे बचाव के लिए किसी के साथ OTP साझा न करें, बैंक कभी OTP नहीं मांगता। यह अपराध आईटी अधिनियम की धारा 66D और IPC की धारा 420 के तहत दंडनीय है। सतर्कता, साइबर जागरूकता और OTP की गोपनीयता ही इससे बचाव का उपाय है।
प्रश्न 87. साइबर अपराधों में ‘क्लाउड कंप्यूटिंग’ से उत्पन्न खतरे क्या हैं?
उत्तर:
क्लाउड कंप्यूटिंग में डेटा इंटरनेट पर स्टोर होता है, जिससे उपयोगकर्ता कहीं से भी पहुंच बना सकते हैं। हालांकि यह सुविधा देता है, लेकिन इसके साथ अनेक साइबर सुरक्षा जोखिम भी हैं जैसे – डेटा चोरी, अनधिकृत पहुंच, क्लाउड सर्वर हैकिंग, और डाटा ब्रीच। क्लाउड सेवा प्रदाता यदि सुरक्षा मानकों का पालन न करें, तो उपयोगकर्ताओं की जानकारी लीक हो सकती है। साथ ही डेटा का नियंत्रण उपयोगकर्ता के हाथ में नहीं होता, जिससे कानूनी जटिलताएँ उत्पन्न होती हैं। इसलिए क्लाउड सुरक्षा हेतु एन्क्रिप्शन, मल्टी-फैक्टर ऑथेंटिकेशन, और मजबूत पासवर्ड आवश्यक है। भारत में डेटा सुरक्षा अधिनियम इस क्षेत्र को नियंत्रित करने की दिशा में है।
प्रश्न 88. सोशल मीडिया पर फेक प्रोफाइल बनाना किस प्रकार का अपराध है?
उत्तर:
सोशल मीडिया पर किसी व्यक्ति की फर्जी प्रोफाइल बनाना ‘छल’ (Impersonation) और धोखाधड़ी के अंतर्गत आता है। यह साइबर अपराध आईटी अधिनियम की धारा 66D (फर्जी प्रतिनिधित्व) और धारा 66C (पहचान की चोरी) के अंतर्गत दंडनीय है। IPC की धारा 419 और 468 के तहत भी यह अपराध माना गया है। फेक प्रोफाइल बनाकर किसी की छवि को नुकसान पहुँचाना, ठगी करना या साइबर स्टॉकिंग करना गंभीर अपराध है। सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर “Report” सुविधा से ऐसे प्रोफाइल को हटवाया जा सकता है और साइबर सेल में शिकायत दर्ज की जा सकती है। यह अपराध निजता और प्रतिष्ठा दोनों का उल्लंघन करता है।
प्रश्न 89. साइबर अपराध में ‘डिजिटल ट्रेल’ का क्या महत्व है?
उत्तर:
डिजिटल ट्रेल (Digital Trail) वह इलेक्ट्रॉनिक निशान होते हैं जो उपयोगकर्ता की ऑनलाइन गतिविधियों के दौरान बनते हैं, जैसे लॉगिन रिकॉर्ड, ब्राउज़िंग हिस्ट्री, IP पता, ट्रांजेक्शन डिटेल्स आदि। यह ट्रेल साइबर अपराध की जांच में महत्त्वपूर्ण साक्ष्य प्रदान करता है, जिससे अपराधी की पहचान, अपराध का समय और स्थान तय किया जा सकता है। डिजिटल ट्रेल को सुरक्षित तरीके से एकत्र कर फॉरेंसिक जांच में उपयोग किया जाता है। यह आईटी अधिनियम और साक्ष्य अधिनियम की धारा 65B के अंतर्गत न्यायालय में वैध साक्ष्य माना जाता है। यह आधुनिक जांच तंत्र का अभिन्न हिस्सा है और साइबर अपराधियों को पकड़ने में सहायक होता है।
प्रश्न 90. भारत में साइबर पुलिस स्टेशन की क्या भूमिका है?
उत्तर:
भारत में साइबर पुलिस स्टेशन विशेष रूप से साइबर अपराधों की जाँच और रोकथाम के लिए स्थापित किए गए हैं। ये स्टेशन तकनीकी रूप से प्रशिक्षित पुलिस अधिकारियों और साइबर फॉरेंसिक विशेषज्ञों से युक्त होते हैं जो हैकिंग, फिशिंग, स्टॉकिंग, फर्जी प्रोफाइल, OTP फ्रॉड आदि मामलों की जांच करते हैं। साइबर पुलिस डिजिटल साक्ष्य एकत्र करती है, इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस को फॉरेंसिक जांच के लिए भेजती है और अपराधी की पहचान सुनिश्चित करती है। भारत सरकार और राज्य सरकारें मिलकर ऐसे स्टेशनों की संख्या बढ़ा रही हैं। नागरिक www.cybercrime.gov.in पर ऑनलाइन शिकायत दर्ज कर इन स्टेशनों के माध्यम से न्याय पा सकते हैं।
प्रश्न 91. डिजिटल निजता (Digital Privacy) क्या है और इसका कानूनी महत्व क्या है?
उत्तर:
डिजिटल निजता का अर्थ है – किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत जानकारी जैसे ईमेल, फोटो, स्थान, ब्राउज़िंग हिस्ट्री, बैंक डिटेल आदि का संरक्षण। डिजिटल युग में अधिकांश जानकारी ऑनलाइन स्टोर होती है, जिससे इसका दुरुपयोग संभव है। भारत में सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy v. Union of India (2017) केस में निजता को मौलिक अधिकार घोषित किया है। इसके बाद “डिजिटल पर्सनल डाटा प्रोटेक्शन अधिनियम, 2023” लागू किया गया जो व्यक्तिगत जानकारी की सुरक्षा सुनिश्चित करता है। इस कानून के अंतर्गत व्यक्ति की सहमति के बिना डाटा एकत्र या साझा करना अपराध है। डिजिटल निजता नागरिकों की स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए आवश्यक है।
प्रश्न 92. साइबर अपराध में अंतरराष्ट्रीय सहयोग क्यों आवश्यक है?
उत्तर:
साइबर अपराध की प्रकृति सीमाहीन होती है, जहाँ अपराधी एक देश में बैठकर किसी अन्य देश के नागरिक को नुकसान पहुँचा सकता है। इसलिए जांच, साक्ष्य संग्रह और अपराधी की गिरफ्तारी में अंतरराष्ट्रीय सहयोग अत्यंत आवश्यक हो जाता है। भारत कई देशों के साथ साइबर अपराध रोकने हेतु समझौते कर चुका है और इंटरपोल जैसी अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों के माध्यम से सूचना साझा करता है। Budapest Convention on Cybercrime जैसे समझौते अंतरराष्ट्रीय स्तर पर साइबर कानून और सहयोग को बढ़ावा देते हैं। सीमा पार अपराधों की रोकथाम, प्रत्यर्पण और डेटा एक्सचेंज में यह सहयोग महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
प्रश्न 93. डिजिटल इंडिया अभियान और साइबर सुरक्षा का क्या संबंध है?
उत्तर:
डिजिटल इंडिया अभियान का उद्देश्य भारत को डिजिटल रूप से सशक्त बनाना है, जिसमें ई-गवर्नेंस, डिजिटल भुगतान, ऑनलाइन सेवाएँ, और क्लाउड पर कार्य शामिल हैं। लेकिन इस डिजिटल विस्तार के साथ साइबर अपराधों की संभावना भी बढ़ती है, जैसे डेटा चोरी, ऑनलाइन फ्रॉड, और सर्वर हैकिंग। इसलिए साइबर सुरक्षा इसका अभिन्न हिस्सा है। सरकार ने CERT-In, डिजिटल लॉक्स, साइबर सुरक्षा नीति 2013, और साइबर क्राइम रिपोर्टिंग पोर्टल जैसी पहलें की हैं। डिजिटल इंडिया का वास्तविक लाभ तभी संभव है जब नागरिकों, संस्थानों और सरकार की साइबर सुरक्षा मजबूत और विश्वसनीय हो।
प्रश्न 94. फर्जी समाचार (Fake News) से संबंधित साइबर कानूनी पहल क्या हैं?
उत्तर:
फर्जी समाचार इंटरनेट और सोशल मीडिया के माध्यम से अफवाह फैलाने, सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और सामाजिक व्यवस्था बिगाड़ने का माध्यम बन चुका है। भारत में IPC की धारा 505 (अफवाह फैलाना), 153A (वर्गों में वैमनस्य), और आईटी अधिनियम की धाराएं इसका दमन करती हैं। सरकार ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को फर्जी सामग्री हटाने के निर्देश दिए हैं और ‘फैक्ट चेक यूनिट’ भी गठित की गई है। IT Rules, 2021 के तहत सोशल मीडिया को जवाबदेह बनाया गया है। फेक न्यूज़ से निपटने के लिए नागरिकों को भी जागरूक रहना, स्रोत सत्यापित करना और अफवाहों को न फैलाना आवश्यक है।
प्रश्न 95. बैंकिंग साइबर फ्रॉड से सुरक्षा के उपाय क्या हैं?
उत्तर:
बैंकिंग साइबर फ्रॉड से बचने के लिए कुछ प्रमुख उपाय आवश्यक हैं – जैसे OTP या पासवर्ड किसी से साझा न करें, अज्ञात लिंक पर क्लिक न करें, पब्लिक वाई-फाई से बैंकिंग न करें, और नियमित रूप से पासवर्ड बदलें। बैंकिंग वेबसाइट पर https का उपयोग करें। बैंक की ओर से आने वाली कॉल या मैसेज की पुष्टि करें। साइबर जागरूकता ही सबसे बड़ा सुरक्षा कवच है। RBI और बैंकों द्वारा ग्राहकों को डिजिटल सुरक्षा के दिशा-निर्देश दिए जाते हैं। धोखाधड़ी की स्थिति में तुरंत साइबर हेल्पलाइन 1930 पर संपर्क करें और अपनी बैंक शाखा व साइबर सेल में शिकायत दर्ज करें।
प्रश्न 96. इलेक्ट्रॉनिक गवर्नेंस (E-Governance) में साइबर सुरक्षा का महत्व क्या है?
उत्तर:
ई-गवर्नेंस के माध्यम से सरकार नागरिकों को सेवाएँ ऑनलाइन देती है जैसे – जन्म प्रमाणपत्र, आधार, पैन, राशन कार्ड, टैक्स फाइलिंग आदि। इन सेवाओं में नागरिकों का संवेदनशील डेटा शामिल होता है, जिसे हैकिंग, डेटा लीक, और साइबर हमलों से सुरक्षा देना आवश्यक है। साइबर सुरक्षा सुनिश्चित करती है कि इन सेवाओं में पारदर्शिता, विश्वसनीयता और निजता बनी रहे। सरकार ने NIC, CERT-In, और MeitY जैसे संस्थानों के माध्यम से ई-गवर्नेंस प्लेटफॉर्म को सुरक्षित करने के उपाय किए हैं। साइबर सुरक्षा ई-गवर्नेंस के प्रभावशाली संचालन और नागरिकों के विश्वास को बनाए रखने की आधारशिला है।
प्रश्न 97. ‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ जैसे ऑनलाइन गेम के खतरे क्या हैं?
उत्तर:
‘ब्लू व्हेल चैलेंज’ एक खतरनाक ऑनलाइन गेम था जो किशोरों को मानसिक रूप से प्रभावित कर आत्महत्या जैसे खतरनाक कदम उठाने को प्रेरित करता था। इस गेम के अंतर्गत 50 खतरनाक टास्क दिए जाते थे जो धीरे-धीरे खिलाड़ी को आत्मघाती बना देते थे। ऐसे गेम साइबर मनोवैज्ञानिक अपराध की श्रेणी में आते हैं। भारत सरकार ने इस पर रोक लगाने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को निर्देश दिए और साइबर पुलिस को सतर्क किया। अभिभावकों और शिक्षकों को बच्चों की ऑनलाइन गतिविधियों पर निगरानी रखनी चाहिए। मानसिक स्वास्थ्य और साइबर जागरूकता ही इससे बचाव के प्रमुख उपाय हैं।
प्रश्न 98. डार्क वेब पर निगरानी हेतु भारत सरकार की क्या पहल है?
उत्तर:
डार्क वेब पर अवैध गतिविधियाँ जैसे ड्रग्स, हथियार, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, और फर्जी पहचान पत्रों का व्यापार होता है। भारत सरकार ने CERT-In, साइबर क्राइम कोऑर्डिनेशन सेंटर (I4C), और IB जैसी एजेंसियों के माध्यम से डार्क वेब पर निगरानी बढ़ाई है। साइबर फॉरेंसिक प्रयोगशालाएँ (CFSL) डार्क वेब की गतिविधियों का विश्लेषण करती हैं। इसके अलावा, इंटरपोल और विदेशी एजेंसियों के साथ सहयोग कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सूचना साझा की जाती है। डार्क वेब निगरानी एक तकनीकी चुनौती है, पर सरकार लगातार इसके दमन हेतु साइबर विशेषज्ञों और उन्नत तकनीक का उपयोग कर रही है।
प्रश्न 99. ‘कृत्रिम खुफिया’ (Artificial Intelligence) आधारित साइबर हमले क्या होते हैं?
उत्तर:
AI आधारित साइबर हमले अत्यधिक उन्नत और लक्षित होते हैं। इनमें हैकिंग, स्पैम, फिशिंग और रैनसमवेयर जैसे हमलों को मशीन लर्निंग और एल्गोरिदम के जरिए अत्यधिक सटीकता से अंजाम दिया जाता है। AI का उपयोग स्वचालित रूप से सुरक्षा तंत्रों को भेदने, पासवर्ड अनुमान लगाने और बोटनेट संचालन में किया जा सकता है। यह साइबर सुरक्षा के लिए नई चुनौती बन चुका है। इससे बचाव हेतु AI आधारित डिफेंस सिस्टम, थ्रेट इंटेलिजेंस और निरंतर निगरानी की आवश्यकता है। भारत में साइबर सुरक्षा अनुसंधान संस्थान AI से उत्पन्न खतरों पर विशेष ध्यान दे रहे हैं।
प्रश्न 100. साइबर लॉ के क्षेत्र में करियर के क्या अवसर हैं?
उत्तर:
साइबर लॉ एक उभरता हुआ क्षेत्र है जहाँ कानून और तकनीक का मेल होता है। इसमें करियर अवसर जैसे – साइबर लॉयर, डिजिटल फॉरेंसिक एक्सपर्ट, डेटा प्रोटेक्शन ऑफिसर, साइबर क्राइम अन्वेषक, लीगल कंसल्टेंट (Tech Companies), और नीति विश्लेषक (Policy Analyst) शामिल हैं। एलएलबी या एलएलएम के बाद साइबर कानून में विशेषज्ञता प्राप्त कर ये पद प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त सरकारी एजेंसियाँ, कोर्ट, IT कंपनियाँ, और साइबर फर्मों में रोजगार के अवसर उपलब्ध हैं। यह क्षेत्र तेजी से बढ़ रहा है और भविष्य में इसकी माँग और भी अधिक होगी।