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Administrative Law (न्यायिक पुनरीक्षण, लोक हित याचिका, प्रशासनिक कार्यवाही) part -1

1. न्यायिक पुनरीक्षण (Judicial Review) क्या है?

न्यायिक पुनरीक्षण का अर्थ है कि उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास यह अधिकार होता है कि वे कार्यपालिका और विधायिका के कार्यों की वैधता की जांच कर सकें। यदि कोई कानून या कार्य संविधान के विपरीत पाया जाता है तो उसे निरस्त किया जा सकता है। यह संविधान के अनुच्छेद 13, 32 और 226 के तहत संभव है। इसका मुख्य उद्देश्य नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करना और प्रशासन को नियंत्रित करना है। न्यायिक पुनरीक्षण विधिक उत्तरदायित्व और प्रशासनिक पारदर्शिता बनाए रखने में सहायक होता है।


2. लोक हित याचिका (Public Interest Litigation – PIL) क्या है?

लोक हित याचिका वह विधिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा कोई भी व्यक्ति, चाहे वह प्रत्यक्ष प्रभावित हो या न हो, न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है यदि कोई सार्वजनिक हित प्रभावित हो रहा हो। यह व्यवस्था सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट द्वारा अनुच्छेद 32 और 226 के अंतर्गत विकसित की गई है। PIL सामाजिक न्याय को बढ़ावा देती है और पर्यावरण, मानवाधिकार, भ्रष्टाचार आदि मुद्दों पर सरकार की जवाबदेही तय करती है। यह गरीबों और शोषितों की आवाज बनने का माध्यम है।


3. प्रशासनिक कार्यवाही (Administrative Action) का क्या अर्थ है?

प्रशासनिक कार्यवाही वे क्रियाएं होती हैं जो कार्यपालिका द्वारा कानून के तहत या उसके अनुरूप की जाती हैं। यह कार्यवाही नीतिगत निर्णय, अनुज्ञा जारी करना, लाइसेंस देना, दंड लगाना आदि हो सकती हैं। प्रशासनिक कार्यवाही के दौरान न्यायसंगत प्रक्रिया (Natural Justice) का पालन आवश्यक होता है। यदि प्रशासनिक कार्य मनमाने ढंग से या अधिकारों के उल्लंघन में होता है, तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।


4. न्यायिक नियंत्रण के साधन क्या हैं?

न्यायिक नियंत्रण के अंतर्गत अदालतें प्रशासनिक निर्णयों की वैधता को परखती हैं। इसके लिए रिट याचिकाएँ जैसे – हैबियस कॉर्पस, क्वो वारंटो, सर्टियोरारी, मंडेमस, और प्रोहिबिशन का प्रयोग किया जाता है। ये रिटें संविधान के अनुच्छेद 32 और 226 के तहत उपलब्ध होती हैं। इनका उद्देश्य प्रशासनिक मनमानी को रोकना और कानून का शासन सुनिश्चित करना होता है।


5. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत क्या हैं?

प्राकृतिक न्याय दो प्रमुख सिद्धांतों पर आधारित है – (1) कोई व्यक्ति अपने ही मामले में न्यायाधीश नहीं हो सकता (Nemo judex in causa sua), और (2) पक्ष को सुनवाई का अवसर दिया जाना चाहिए (Audi alteram partem)। ये सिद्धांत यह सुनिश्चित करते हैं कि कोई निर्णय निष्पक्ष और न्यायसंगत तरीके से लिया जाए। प्रशासनिक कार्यवाही में इनका पालन अनिवार्य होता है।


6. ‘Audi Alteram Partem’ सिद्धांत का महत्व क्या है?

यह सिद्धांत प्राकृतिक न्याय का अभिन्न अंग है, जिसका अर्थ है कि “दूसरे पक्ष को भी सुना जाए”। किसी भी प्रशासनिक या न्यायिक कार्यवाही में यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों पर प्रभाव पड़ता है, तो उसे अपनी बात रखने का पूरा अवसर मिलना चाहिए। यह सिद्धांत प्रशासनिक न्याय में पारदर्शिता और निष्पक्षता बनाए रखने के लिए आवश्यक है।


7. ‘Nemo Judex in Causa Sua’ सिद्धांत का क्या तात्पर्य है?

इस सिद्धांत के अनुसार कोई भी व्यक्ति ऐसा निर्णय नहीं कर सकता जिसमें उसका स्वार्थ या पक्षपात जुड़ा हो। यह निष्पक्ष न्याय का आधार है। यदि कोई प्रशासनिक अधिकारी किसी ऐसे मामले में निर्णय देता है जिसमें वह स्वयं पक्षकार हो या व्यक्तिगत लाभ हो, तो निर्णय को पक्षपाती माना जाएगा और उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।


8. प्रशासनिक न्याय क्या है?

प्रशासनिक न्याय, न्याय प्रदान करने की वह प्रक्रिया है जो औपचारिक न्यायालयों के बाहर प्रशासनिक निकायों द्वारा दी जाती है। यह प्रक्रिया अपेक्षाकृत सरल, शीघ्र और लचीली होती है। इसमें ट्रिब्यूनल, आयोग, या अन्य प्रशासनिक प्राधिकरण शामिल होते हैं। प्रशासनिक न्याय विशेष क्षेत्रों जैसे कर, श्रम, सेवा आदि में न्यायिक बोझ को कम करता है।


9. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल की भूमिका क्या है?

प्रशासनिक ट्रिब्यूनल विशेष अधिनियमों के तहत गठित न्यायिक निकाय होते हैं जो विशिष्ट प्रकार के विवादों का निपटारा करते हैं जैसे – CAT (Central Administrative Tribunal), ITAT (Income Tax Appellate Tribunal) आदि। ये न्यायपालिका की सहायता करते हैं और विशेषज्ञ न्याय प्रदान करते हैं। ये अधिक लचीली प्रक्रिया में निष्पक्ष न्याय सुनिश्चित करते हैं।


10. न्यायिक पुनरीक्षण और अपील में अंतर क्या है?

अपील वह प्रक्रिया है जिसमें उच्च न्यायालय पिछले निर्णय की वैधानिकता और तथ्यात्मकता दोनों की समीक्षा करता है। वहीं, न्यायिक पुनरीक्षण केवल उस निर्णय की वैधानिकता को परखता है। अपील एक वैधानिक अधिकार है जबकि न्यायिक पुनरीक्षण एक संवैधानिक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य प्रशासन की वैधता की समीक्षा करना है।


11. लोकपाल और लोकायुक्त की भूमिका क्या है?

लोकपाल (केन्द्रीय स्तर) और लोकायुक्त (राज्य स्तर) भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए स्थापित स्वतंत्र संस्थाएं हैं। ये नागरिकों द्वारा दायर शिकायतों के आधार पर सार्वजनिक अधिकारियों की जांच कर सकते हैं। इन संस्थाओं का उद्देश्य प्रशासनिक जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करना है। यह जनता के अधिकारों की रक्षा का साधन है।


12. अनुच्छेद 32 और 226 का तुलनात्मक अध्ययन बताइए।

अनुच्छेद 32 केवल सुप्रीम कोर्ट को रिट जारी करने का अधिकार देता है और यह मूल अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में ही प्रयोग किया जा सकता है। जबकि अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाई कोर्ट किसी भी विधिक अधिकार के उल्लंघन पर रिट जारी कर सकता है। इस प्रकार, अनुच्छेद 226 की परिधि अनुच्छेद 32 से अधिक व्यापक है।


13. प्रशासनिक विवेकाधिकार (Administrative Discretion) क्या होता है?

प्रशासनिक अधिकारियों को कानून के तहत निर्णय लेने की जो स्वतंत्रता होती है उसे प्रशासनिक विवेकाधिकार कहते हैं। हालांकि यह विवेक सीमित होता है और मनमाने ढंग से प्रयोग नहीं किया जा सकता। यदि इसका प्रयोग दुर्भावना या पक्षपातपूर्ण तरीके से किया जाता है तो उसे न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।


14. रिट ‘मंडेमस’ क्या है?

‘मंडेमस’ रिट का प्रयोग तब किया जाता है जब कोई सरकारी अधिकारी अपनी वैधानिक ड्यूटी का पालन नहीं करता है। इस रिट के माध्यम से न्यायालय उस अधिकारी को आदेश देता है कि वह अपना कर्तव्य निभाए। यह रिट नागरिकों के अधिकारों की रक्षा और प्रशासनिक निष्क्रियता को समाप्त करने में सहायक है।


15. ‘प्रोहिबिशन’ रिट का क्या प्रयोजन है?

‘प्रोहिबिशन’ रिट का उद्देश्य किसी निम्न न्यायालय या ट्रिब्यूनल को उस सीमा से बाहर कार्य करने से रोकना है जो उसे विधि द्वारा निर्धारित नहीं है। यह रिट तब जारी होती है जब न्यायालय या ट्रिब्यूनल अपनी अधिकार-सीमा का उल्लंघन करता है। यह न्यायिक अतिक्रमण को रोकने का साधन है।


16. ‘हैबियस कॉर्पस’ रिट का क्या अर्थ है?

‘हैबियस कॉर्पस’ का अर्थ होता है – “शरीर को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत करो”। यह रिट तब जारी की जाती है जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से हिरासत में लिया गया हो। इस रिट के माध्यम से न्यायालय प्रशासन या किसी भी व्यक्ति को आदेश देता है कि वह बंदी को न्यायालय में पेश करे और उसकी हिरासत की वैधता सिद्ध करे। यदि हिरासत असंवैधानिक पाई जाती है तो व्यक्ति को तुरंत मुक्त किया जाता है। यह रिट व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा का अत्यंत प्रभावशाली साधन है और अनुच्छेद 32 और 226 के तहत नागरिकों को उपलब्ध है।


17. लोकहित याचिका और सामान्य याचिका में अंतर स्पष्ट कीजिए।

लोकहित याचिका (PIL) और सामान्य याचिका में मुख्य अंतर उद्देश्यों और पात्रता का होता है। सामान्य याचिका केवल वही व्यक्ति दायर कर सकता है जिसका अधिकार सीधे प्रभावित हुआ हो, जबकि PIL कोई भी व्यक्ति दायर कर सकता है जो समाज के हित में कार्य करना चाहता है, भले ही उसका अधिकार सीधे प्रभावित न हो। PIL का उद्देश्य सामूहिक हित की रक्षा करना होता है, जैसे पर्यावरण संरक्षण, भ्रष्टाचार रोकना, या वंचित वर्गों की सहायता।


18. प्रशासनिक उत्तरदायित्व (Administrative Accountability) क्या है?

प्रशासनिक उत्तरदायित्व का तात्पर्य है कि कार्यपालिका अपने कार्यों के लिए जनता और विधायिका के प्रति उत्तरदायी हो। यह उत्तरदायित्व न्यायिक नियंत्रण, संसदीय निरीक्षण, लोकायुक्त संस्थाएं, और मीडिया के माध्यम से सुनिश्चित किया जाता है। प्रशासनिक उत्तरदायित्व से शासन पारदर्शी, जवाबदेह और लोकतांत्रिक होता है। यदि प्रशासनिक अधिकारी मनमाने निर्णय लें, तो उन्हें न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।


19. प्रशासनिक अनुशासन (Administrative Discipline) क्या होता है?

प्रशासनिक अनुशासन का तात्पर्य प्रशासनिक अधिकारियों के लिए निर्धारित नियमों और आचरणों के अनुसार कार्य करना है। यह अनुशासन सेवा नियमावली, आचार संहिता, और विभागीय कार्यप्रणालियों द्वारा निर्धारित होता है। इसका उल्लंघन होने पर अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है। प्रशासनिक अनुशासन, प्रशासन में नैतिकता और दक्षता को बनाए रखने के लिए अत्यंत आवश्यक होता है।


20. प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन कब माना जाता है?

जब किसी प्रशासनिक या न्यायिक निर्णय में पक्षकार को सुनने का अवसर नहीं दिया गया हो, या निर्णयकर्ता स्वयं ही मामले में पक्षकार हो, तो इसे प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन माना जाता है। उदाहरण के लिए – यदि किसी कर्मचारी को बिना कारण बताए निलंबित कर दिया जाए, या उसे स्पष्टीकरण का मौका न दिया जाए, तो यह ‘Audi Alteram Partem’ के उल्लंघन की श्रेणी में आता है और निर्णय निरस्त हो सकता है।


21. प्रशासनिक जांच (Administrative Inquiry) क्या होती है?

प्रशासनिक जांच एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी सरकारी कर्मचारी या संस्था के खिलाफ लगे आरोपों की औपचारिक जांच की जाती है। यह जांच निष्पक्षता के सिद्धांतों पर आधारित होती है और इसमें आरोप, उत्तर, साक्ष्य और निष्कर्ष की प्रक्रिया होती है। जांच रिपोर्ट के आधार पर अनुशासनात्मक कार्यवाही या दंड निर्धारित किया जाता है। यह प्रशासन में न्यायिक प्रक्रिया का प्रतिबिंब होती है।


22. न्यायिक सक्रियता (Judicial Activism) क्या है?

न्यायिक सक्रियता वह स्थिति है जब न्यायपालिका विधायिका या कार्यपालिका की निष्क्रियता के कारण स्वयं नीतिगत या संवैधानिक व्याख्या में हस्तक्षेप करती है। भारत में कई PIL मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने मानवाधिकार, पर्यावरण, महिला सुरक्षा, आदि विषयों में दिशा-निर्देश दिए। हालांकि इसका संतुलित प्रयोग आवश्यक है क्योंकि इससे शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत प्रभावित हो सकता है।


23. प्रशासनिक शक्ति का दुरुपयोग क्या है?

जब कोई प्रशासनिक अधिकारी अपने अधिकारों का प्रयोग व्यक्तिगत स्वार्थ, राजनीतिक दबाव या मनमानी से करता है, तो इसे शक्ति का दुरुपयोग कहा जाता है। उदाहरण के लिए – लाइसेंस या परमिट देने में पक्षपात करना। ऐसे मामलों में न्यायिक पुनरीक्षण के माध्यम से नियंत्रण स्थापित किया जा सकता है। शक्ति का दुरुपयोग न्याय और समानता के सिद्धांतों के विरुद्ध होता है।


24. विधिक नियंत्रण (Legal Control) और प्रशासनिक नियंत्रण में अंतर स्पष्ट कीजिए।

विधिक नियंत्रण न्यायपालिका द्वारा होता है, जिसमें न्यायालय प्रशासनिक कार्यों की वैधता की समीक्षा करता है। जबकि प्रशासनिक नियंत्रण सरकार द्वारा आंतरिक रूप से किया जाता है, जैसे वरिष्ठ अधिकारी अपने अधीनस्थों की निगरानी करते हैं। विधिक नियंत्रण संविधान और कानून पर आधारित होता है, जबकि प्रशासनिक नियंत्रण संगठनात्मक नीतियों और प्रक्रियाओं पर आधारित होता है।


25. प्रशासनिक विधि का महत्व क्या है?

प्रशासनिक विधि शासन को नियंत्रण में रखने का एक प्रभावशाली माध्यम है। यह कार्यपालिका की शक्तियों को सीमित करता है और नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है। इससे न्यायिक नियंत्रण, लोकहित याचिका, प्राकृतिक न्याय जैसे सिद्धांतों के माध्यम से जनता के अधिकारों की रक्षा होती है। यह विधि लोकतांत्रिक शासन और उत्तरदायी प्रशासन के लिए आवश्यक है।


26. अनुच्छेद 311 का प्रशासनिक विधि में क्या महत्व है?

अनुच्छेद 311 भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो सरकारी सेवकों को मनमाने निलंबन या बर्खास्तगी से सुरक्षा प्रदान करता है। इसके अनुसार, किसी स्थायी सरकारी कर्मचारी को बिना उचित कारण और सुनवाई के नौकरी से हटाया या पदावनत नहीं किया जा सकता। यह अनुच्छेद प्रशासनिक प्रक्रिया में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों को लागू करता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि सेवा से संबंधित अनुशासनात्मक कार्यवाही निष्पक्ष और वैधानिक ढंग से हो।


27. न्यायिक समीक्षा का क्षेत्राधिकार क्या है?

न्यायिक समीक्षा का क्षेत्राधिकार उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय दोनों के पास होता है। यह संविधान के अनुच्छेद 13, 32 और 226 के अंतर्गत प्राप्त होता है। इसके अंतर्गत न्यायालय विधायिका द्वारा बनाए गए कानूनों, प्रशासनिक आदेशों और कार्यपालिका के निर्णयों की वैधता की जांच करते हैं। यदि कोई कार्य संविधान या मौलिक अधिकारों के विरुद्ध होता है, तो उसे असंवैधानिक घोषित कर निष्प्रभावी किया जा सकता है।


28. प्रशासनिक निर्णयों में अपारदर्शिता के प्रभाव क्या होते हैं?

प्रशासनिक निर्णयों में अपारदर्शिता से जनता का प्रशासन पर विश्वास घटता है। इससे भ्रष्टाचार, पक्षपात और मनमानी बढ़ती है। निर्णयों में पारदर्शिता न होने पर प्रभावित व्यक्ति को यह पता नहीं चलता कि निर्णय किस आधार पर लिया गया। ऐसे मामलों में न्यायिक समीक्षा या लोक सूचना अधिकार (RTI) का सहारा लिया जा सकता है। पारदर्शी प्रशासन सुशासन का आधार होता है।


29. ‘सर्टियोरारी’ रिट का क्या उद्देश्य है?

‘सर्टियोरारी’ रिट उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निम्न न्यायालय या ट्रिब्यूनल के आदेश को निरस्त करने के लिए जारी की जाती है, जब वह अपनी सीमाओं से परे जाकर निर्णय लेते हैं या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करते हैं। इसका उद्देश्य गैरकानूनी आदेशों को समाप्त करना और विधिक प्रक्रिया की रक्षा करना होता है। यह रिट केवल न्यायिक या अर्ध-न्यायिक कार्यों पर लागू होती है।


30. प्रशासनिक विधि में ‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ और ‘न्यायिक समीक्षा’ में अंतर बताइए।

‘न्यायिक पुनर्विलोकन’ (Judicial Reappraisal) का अर्थ है कि उच्च न्यायालय या सर्वोच्च न्यायालय किसी निर्णय की तथ्यात्मक और कानूनी दोनों दृष्टियों से पुनः जांच करे, जैसा कि अपील में होता है। जबकि ‘न्यायिक समीक्षा’ (Judicial Review) केवल कानूनी वैधता की समीक्षा करती है, जैसे – क्या प्रशासनिक कार्य संवैधानिक या विधिक है। न्यायिक पुनर्विलोकन व्यापक होता है, जबकि न्यायिक समीक्षा केवल वैधता पर केंद्रित होती है।


31. प्रशासनिक विवेकाधिकार पर न्यायिक नियंत्रण कैसे होता है?

प्रशासनिक विवेकाधिकार का प्रयोग अनुचित, पक्षपातपूर्ण या मनमाने ढंग से न हो, इसके लिए न्यायालय नियंत्रण स्थापित करता है। यदि कोई अधिकारी अपने अधिकार का प्रयोग दुर्भावना से करता है, प्रासंगिक तथ्यों की उपेक्षा करता है या प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन करता है, तो उस निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है। न्यायालय विवेकाधिकार के दुरुपयोग की जांच करता है, लेकिन नीति निर्णयों में सामान्यतः हस्तक्षेप नहीं करता।


32. अनुच्छेद 14 का प्रशासनिक कानून में क्या महत्व है?

अनुच्छेद 14 समानता का अधिकार प्रदान करता है और प्रशासनिक कार्यों में मनमानी, भेदभाव या पक्षपात को रोकता है। प्रशासनिक अधिकारी कोई भी निर्णय लेते समय समानता, निष्पक्षता और तर्कसंगतता का पालन करें — यह अनुच्छेद 14 सुनिश्चित करता है। यदि कोई प्रशासनिक कार्य अनुचित भेदभाव करता है, तो उसे न्यायिक समीक्षा के माध्यम से रद्द किया जा सकता है।


33. लोक हित याचिका के विकास में न्यायालयों की भूमिका क्या रही है?

भारतीय न्यायपालिका ने लोक हित याचिका (PIL) को एक प्रभावी उपकरण के रूप में विकसित किया है। विशेषकर 1980 के दशक में सुप्रीम कोर्ट ने इसे गरीबों, वंचितों, और पर्यावरण की रक्षा के लिए इस्तेमाल किया। मेनका गांधी, हुसैन आरा खातून, एम.सी. मेहता जैसे मामलों में न्यायालयों ने PIL के माध्यम से सामाजिक न्याय को मजबूत किया। यह लोकतंत्र में न्याय की पहुंच को व्यापक बनाता है।


34. प्रशासनिक अपील (Administrative Appeal) क्या होती है?

प्रशासनिक अपील वह प्रक्रिया है जिसमें एक अधिकारी के निर्णय के विरुद्ध उच्च अधिकारी के समक्ष पुनर्विचार की याचना की जाती है। यह सेवा विवाद, लाइसेंस, कर निर्धारण जैसे मामलों में होती है। इसमें अपीली अधिकारी मूल निर्णय की वैधता, तार्किकता और प्रक्रिया की समीक्षा करता है। यह त्वरित और व्यावहारिक समाधान का एक माध्यम है, जो न्यायिक प्रक्रिया के बोझ को भी कम करता है।


35. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के अनुपालन के लाभ क्या हैं?

प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का अनुपालन करने से प्रशासनिक निर्णय निष्पक्ष, न्यायपूर्ण और स्वीकार्य होते हैं। इससे नागरिकों में प्रशासन पर विश्वास बना रहता है, और निर्णयों को अदालत में चुनौती दिए जाने की संभावना कम हो जाती है। सुनवाई का अवसर देने और निष्पक्ष निर्णयकर्ता रखने से गलत निर्णयों की संभावना घटती है और विधिक प्रक्रिया की गरिमा बनी रहती है।


36. प्रशासनिक कार्य और अर्ध-न्यायिक कार्य में क्या अंतर है?

प्रशासनिक कार्य वे होते हैं जो कार्यपालिका नीतियों को लागू करने के लिए करती है, जैसे – लाइसेंस देना, नियुक्ति करना, आदि। अर्ध-न्यायिक कार्य वे होते हैं जिनमें प्रशासनिक अधिकारी निर्णय लेने से पहले सुनवाई का अवसर देते हैं, जैसे – सेवा से बर्खास्तगी से पहले अनुशासनात्मक सुनवाई। अर्ध-न्यायिक कार्यों में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन अनिवार्य होता है, जबकि सामान्य प्रशासनिक कार्यों में ऐसा अनिवार्य नहीं।


37. रिट ‘क्वो वारंटो’ क्या है?

‘क्वो वारंटो’ का अर्थ है – “किस अधिकार से?” यह रिट तब जारी होती है जब कोई व्यक्ति सार्वजनिक पद पर अनधिकृत रूप से बैठा हो। इस रिट द्वारा न्यायालय उस व्यक्ति से पूछता है कि वह किस अधिकार से वह पद संभाल रहा है। यदि उसका पदग्रहण अवैध पाया जाता है, तो उसे पद से हटा दिया जाता है। यह सार्वजनिक पदों पर पारदर्शिता और वैधानिकता सुनिश्चित करता है।


38. ‘प्रोहिबिशन’ और ‘सर्टियोरारी’ रिट में क्या अंतर है?

‘प्रोहिबिशन’ रिट तब जारी होती है जब कोई निचला न्यायालय या ट्रिब्यूनल अपनी अधिकार सीमा से बाहर जाकर कोई कार्यवाही कर रहा होता है – यह रिट कार्यवाही को रोकने के लिए है। जबकि ‘सर्टियोरारी’ रिट तब जारी होती है जब कोई निर्णय पहले ही हो चुका हो और वह अवैध या अधिकार क्षेत्र से परे हो – यह रिट उस आदेश को रद्द करने के लिए होती है। दोनों रिटें न्यायिक अतिक्रमण को रोकने के लिए उपयोगी हैं।


39. न्यायिक समीक्षा में ‘मूल अधिकारों की रक्षा’ का क्या महत्व है?

न्यायिक समीक्षा भारतीय संविधान की आत्मा है, जो यह सुनिश्चित करती है कि कार्यपालिका और विधायिका कोई भी ऐसा कार्य न करें जो नागरिकों के मूल अधिकारों का उल्लंघन करता हो। अनुच्छेद 13, 32 और 226 के अंतर्गत यह समीक्षा संभव होती है। यदि कोई कानून, नीति या प्रशासनिक आदेश मौलिक अधिकारों के विपरीत है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है। इससे संविधान की सर्वोच्चता सुनिश्चित होती है।


40. प्रशासनिक ट्रिब्यूनल और पारंपरिक न्यायालयों में अंतर स्पष्ट करें।

प्रशासनिक ट्रिब्यूनल विशिष्ट विवादों जैसे सेवा, कर, उपभोक्ता मामले आदि के समाधान के लिए गठित विशेष निकाय होते हैं। ये पारंपरिक न्यायालयों की अपेक्षा कम औपचारिक, त्वरित और लचीले होते हैं। वहीं, पारंपरिक न्यायालय संविधान और सिविल-क्रिमिनल कानूनों के अधीन कार्य करते हैं और प्रक्रियाएं अधिक विधिसम्मत और जटिल होती हैं। ट्रिब्यूनल विशेषज्ञता आधारित निर्णय देते हैं, जबकि न्यायालय सामान्य विधिक सिद्धांतों पर आधारित निर्णय करते हैं।


41. लोकहित याचिका (PIL) की सीमाएँ क्या हैं?

लोकहित याचिका न्याय तक पहुँच का सशक्त माध्यम है, लेकिन इसकी सीमाएँ भी हैं। इसका दुरुपयोग राजनीतिक बदले, प्रचार पाने या झूठे आरोपों के लिए किया जा सकता है। न्यायालय ने PIL दाखिल करने वालों की सत्यनिष्ठा और याचिका के सार्वजनिक हित की जांच करने के लिए सख्त दिशा-निर्देश बनाए हैं। अतः PIL तभी स्वीकार की जाती है जब उसका उद्देश्य वास्तविक सामाजिक न्याय हो।


42. प्राकृतिक न्याय सिद्धांतों की अनुपालना न होने पर क्या परिणाम होते हैं?

यदि किसी प्रशासनिक कार्यवाही में प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का पालन नहीं होता, जैसे – सुनवाई का अवसर न देना या पक्षपाती निर्णयकर्ता होना, तो वह निर्णय न्यायालय में चुनौती के लिए खुला होता है। ऐसे निर्णय अवैध माने जाते हैं और न्यायालय उन्हें निरस्त कर सकता है। इससे यह सुनिश्चित होता है कि प्रशासनिक निर्णय निष्पक्ष और विधिसम्मत हो।


43. अनुच्छेद 226 की शक्ति कितनी व्यापक है?

अनुच्छेद 226 के अंतर्गत उच्च न्यायालय को किसी भी व्यक्ति या प्राधिकरण के विरुद्ध रिट जारी करने की शक्ति है यदि कोई विधिक अधिकार प्रभावित होता है। यह शक्ति अनुच्छेद 32 की अपेक्षा अधिक व्यापक है क्योंकि यह केवल मूल अधिकारों की रक्षा तक सीमित नहीं है, बल्कि किसी भी विधिक अधिकार के उल्लंघन पर भी लागू होती है। यह नागरिकों को न्यायिक सुरक्षा प्रदान करने का एक व्यापक साधन है।


44. न्यायिक समीक्षा और संविधान की सर्वोच्चता का क्या संबंध है?

संविधान भारत का सर्वोच्च कानून है, और न्यायिक समीक्षा इस सर्वोच्चता को बनाए रखने का एक माध्यम है। इसके द्वारा न्यायपालिका यह सुनिश्चित करती है कि विधायिका और कार्यपालिका के कोई भी निर्णय संविधान के विरुद्ध न हों। यदि कोई अधिनियम या प्रशासनिक आदेश संविधान से टकराता है, तो न्यायालय उसे असंवैधानिक घोषित कर सकता है। इससे लोकतंत्र में विधिक शासन सुनिश्चित होता है।


45. प्रशासनिक विधि में ‘रीजनड ऑर्डर’ (Reasoned Order) का क्या महत्व है?

प्रशासनिक निर्णयों में कारण बताना आवश्यक होता है ताकि वह पारदर्शी, तार्किक और न्यायसंगत लगे। बिना कारण बताए निर्णय मनमाना और पक्षपाती प्रतीत हो सकता है। ‘Reasoned Order’ यह सुनिश्चित करता है कि निर्णयकर्ता ने सभी तथ्यों और तर्कों पर विचार किया है। यह बाद में न्यायिक समीक्षा या अपील में भी सहायक होता है। सुप्रीम कोर्ट ने इसे न्याय का आवश्यक अंग माना है।


46. प्रशासनिक कार्यों की न्यायिक समीक्षा में न्यायालय किस आधार पर हस्तक्षेप करता है?

न्यायालय प्रशासनिक कार्यों की समीक्षा तभी करता है जब वे कानून के विरुद्ध, दुर्भावनापूर्ण, पक्षपातपूर्ण या प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन करने वाले हों। यदि कार्यवाही अधिकार क्षेत्र से बाहर हो, असंगत हो, या बिना तर्क और साक्ष्य के हो, तो न्यायालय हस्तक्षेप करता है। लेकिन नीति निर्माण या तकनीकी मामलों में सामान्यतः न्यायालय हस्तक्षेप नहीं करता, जब तक स्पष्ट अवैधता सिद्ध न हो।


47. प्रशासनिक कार्यों में ‘पूर्वाग्रह’ (Bias) का क्या प्रभाव होता है?

प्रशासनिक निर्णयों में पूर्वाग्रह (Bias) का होना निष्पक्ष न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन होता है। यदि निर्णयकर्ता किसी पक्ष के प्रति पक्षपाती होता है — चाहे वह व्यक्तिगत, आर्थिक, धार्मिक या वैचारिक कारणों से हो — तो उसका निर्णय अवैध माना जाता है। पूर्वाग्रह का सिद्धांत “न कोई अपने ही मामले में न्याय कर सकता है” (Nemo Judex in Causa Sua) पर आधारित है। यदि पक्षपात सिद्ध हो जाए, तो न्यायालय ऐसा निर्णय रद्द कर सकता है। अतः प्रशासनिक कार्यों में निष्पक्षता बनाए रखना अनिवार्य है।


48. प्रशासनिक विधि में ‘नैतिक प्रशासन’ (Ethical Administration) का क्या महत्व है?

नैतिक प्रशासन का अर्थ है प्रशासनिक कार्यों में ईमानदारी, पारदर्शिता, जवाबदेही और नैतिक मूल्यों का पालन। यह सुशासन का आधार होता है। जब प्रशासनिक अधिकारी अपने कार्यों में नैतिकता का पालन करते हैं, तो जनता का विश्वास बढ़ता है और भ्रष्टाचार घटता है। नैतिक प्रशासन से कानून के शासन को मजबूती मिलती है और प्रशासनिक निर्णयों में न्याय और मानवीयता प्रतिबिंबित होती है।


49. प्रशासनिक निर्णयों के खिलाफ रिट याचिकाओं की सीमा क्या है?

हालांकि रिट याचिकाएँ एक प्रभावी विधिक उपाय हैं, परंतु न्यायालय केवल उन्हीं प्रशासनिक कार्यों में हस्तक्षेप करता है जहाँ कानून का स्पष्ट उल्लंघन, प्राकृतिक न्याय की अवहेलना, अधिकार सीमा का अतिक्रमण या दुर्भावना सिद्ध हो। न्यायालय नीति संबंधी या विशेषज्ञ मामलों में हस्तक्षेप नहीं करता जब तक गंभीर विधिक त्रुटियाँ न हों। अतः रिट याचिकाओं का क्षेत्र सीमित किन्तु प्रभावी है।


50. प्रशासनिक विधि के स्रोत क्या हैं?

प्रशासनिक विधि के प्रमुख स्रोत हैं –

  1. संविधान: प्रशासनिक कार्यों की वैधता और सीमाएं निर्धारित करता है।
  2. विधिक अधिनियम (Statutes): जैसे सेवा कानून, पर्यावरण कानून, आदि।
  3. न्यायिक निर्णय (Case Laws): सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालयों के फैसलों से सिद्धांत विकसित होते हैं।
  4. प्रशासनिक नियम एवं अधिसूचनाएँ: कार्यपालिका द्वारा बनाए गए नियम।
  5. प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत: निष्पक्ष प्रक्रिया का आधार।
    इन स्रोतों के माध्यम से प्रशासनिक विधि का ढांचा निर्मित होता है जो प्रशासन को नियंत्रित करता है।