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Public International Law & Human Rights (संयुक्त राष्ट्र, मानवाधिकार, युद्ध कानून) part-2

51. युद्ध में पत्रकारों की सुरक्षा का क्या प्रावधान है?

युद्ध की स्थिति में पत्रकारों की सुरक्षा अंतरराष्ट्रीय मानवतावादी कानून और जिनेवा संधियों द्वारा सुनिश्चित की गई है। पत्रकारों को युद्ध क्षेत्र में नागरिक माना जाता है, और उन्हें निशाना नहीं बनाया जा सकता। यदि वे युद्धबंदी बनते हैं, तो उन्हें वही अधिकार मिलते हैं जो अन्य युद्धबंदियों को मिलते हैं। इसके अतिरिक्त, ICRC (International Committee of Red Cross) और UNESCO भी पत्रकारों की सुरक्षा के लिए दिशा-निर्देश जारी करते हैं। पत्रकारों की पहचान हेतु विशेष पास या प्रेस कार्ड आवश्यक होते हैं।


52. रेड क्रॉस की भूमिका क्या है?

रेड क्रॉस एक अंतरराष्ट्रीय मानवीय संगठन है जो युद्ध, आपदा और संघर्ष की स्थिति में पीड़ितों को राहत और सहायता प्रदान करता है। इसकी स्थापना 1863 में हुई थी। यह संगठन घायल सैनिकों की देखभाल, युद्ध बंदियों की निगरानी, और नागरिकों को भोजन, चिकित्सा और शरण प्रदान करता है। रेड क्रॉस को जिनेवा संधियों के तहत विशेष मान्यता प्राप्त है और इसे तटस्थ तथा निष्पक्ष संस्था माना जाता है।


53. “Soft Law” क्या होता है?

Soft Law ऐसे अंतरराष्ट्रीय नियम या सिद्धांत होते हैं जो कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन जिनका नैतिक या राजनीतिक प्रभाव होता है। जैसे—संयुक्त राष्ट्र महासभा के संकल्प, घोषणाएं (जैसे UDHR) और मार्गदर्शक सिद्धांत। ये भविष्य में कठोर कानून (Hard Law) का आधार बन सकते हैं। Soft Law अंतरराष्ट्रीय संबंधों में लचीलापन और संवाद की सुविधा देता है।


54. जल संकट और मानवाधिकारों का संबंध

जल जीवन का मौलिक अधिकार है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2010 में इसे मानव अधिकार के रूप में मान्यता दी। स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता का अभाव स्वास्थ्य, शिक्षा और जीवन स्तर को प्रभावित करता है। अंतरराष्ट्रीय कानून और SDG-6 का उद्देश्य सभी को सुरक्षित जल तक पहुंच सुनिश्चित करना है। जल संकट, विशेषकर विकासशील देशों में, सामाजिक अन्याय और मानवाधिकार उल्लंघन का कारण बनता है।


55. प्रवासियों (Migrants) के अधिकार क्या हैं?

प्रवासियों के अधिकारों की रक्षा के लिए International Convention on the Protection of the Rights of All Migrant Workers and Members of Their Families, 1990 लागू है। यह उन्हें काम करने की स्वतंत्रता, वेतन, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और शोषण से सुरक्षा जैसे अधिकार देता है। प्रवासियों के साथ भेदभाव और अमानवीय व्यवहार को रोकना इसका मुख्य उद्देश्य है।


56. युद्ध में बच्चों की भागीदारी पर अंतरराष्ट्रीय नियम

Optional Protocol to the Convention on the Rights of the Child on the involvement of children in armed conflict (2000) के तहत, 18 वर्ष से कम आयु के बच्चों को सशस्त्र संघर्ष में सीधे शामिल करना प्रतिबंधित है। बच्चों को बाल सैनिक बनाना एक युद्ध अपराध है। UNICEF और अन्य संस्थाएं युद्ध प्रभावित बच्चों के पुनर्वास में सहयोग करती हैं।


57. आत्मनिर्णय (Self-determination) का अधिकार क्या है?

आत्मनिर्णय का अधिकार प्रत्येक समुदाय को अपनी राजनीतिक स्थिति तय करने और सामाजिक-आर्थिक विकास की दिशा चुनने का अधिकार देता है। यह अधिकार संयुक्त राष्ट्र चार्टर और ICCPR में उल्लिखित है। यह उपनिवेशवाद के अंत, स्वतंत्रता आंदोलनों और जनजातीय अधिकारों को वैधानिक आधार देता है। हालांकि यह अधिकार संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ संतुलन में देखा जाता है।


58. अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की भूमिका क्या है?

ILO की स्थापना 1919 में हुई थी और यह संयुक्त राष्ट्र की एक विशेष एजेंसी है। इसका उद्देश्य श्रमिकों के अधिकारों की रक्षा, सुरक्षित कार्य परिस्थिति, उचित वेतन और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है। ILO अंतरराष्ट्रीय श्रम संधियाँ बनाता है और सदस्य देशों को श्रम सुधारों के लिए मार्गदर्शन देता है। भारत भी ILO का सक्रिय सदस्य है।


59. विकलांग व्यक्तियों के अधिकार पर अंतरराष्ट्रीय संधि

Convention on the Rights of Persons with Disabilities (CRPD), 2006 विकलांग व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा हेतु एक महत्त्वपूर्ण संधि है। यह उन्हें शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य, और सार्वजनिक जीवन में भागीदारी का अधिकार देती है। यह सभी देशों को उनके लिए समावेशी समाज बनाने हेतु बाध्य करती है। भारत ने इस संधि की पुष्टि कर अपने कानूनों में सुधार किया है।


60. सांस्कृतिक अधिकार और मानवाधिकार

सांस्कृतिक अधिकार, मानवाधिकारों की दूसरी पीढ़ी का भाग हैं। इनमें व्यक्ति को अपनी संस्कृति, भाषा, परंपरा और धर्म के अनुसार जीवन जीने का अधिकार शामिल है। ICESCR की धारा 15 में सांस्कृतिक भागीदारी और वैज्ञानिक प्रगति का लाभ उठाने का अधिकार वर्णित है। UNESCO भी सांस्कृतिक विविधता को संरक्षित करने के लिए कार्य करता है।


61. संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 2(4) क्या कहता है?

अनुच्छेद 2(4) संयुक्त राष्ट्र चार्टर का एक मूलभूत प्रावधान है, जो कहता है कि कोई भी राष्ट्र बल के प्रयोग या बल के प्रयोग की धमकी का सहारा नहीं ले सकता। इसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय शांति बनाए रखना है। केवल आत्मरक्षा या सुरक्षा परिषद की अनुमति से ही बल प्रयोग किया जा सकता है। यह युद्ध और आक्रामकता को सीमित करता है।


62. मानवाधिकारों की निगरानी में एनजीओ की भूमिका

गैर-सरकारी संगठन (NGO) मानवाधिकारों की निगरानी, उल्लंघनों की रिपोर्टिंग, कानूनी सहायता और जनजागरूकता जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उदाहरणस्वरूप Amnesty International, Human Rights Watch, और भारत में PUCL, HRLN। ये संगठन अंतरराष्ट्रीय मंचों तक मुद्दे पहुँचाते हैं और नीति निर्माण को प्रभावित करते हैं।


63. नृशंसता (Atrocity) और मानवता के विरुद्ध अपराध में अंतर

नृशंसता का अर्थ होता है अत्यधिक क्रूरता या हिंसा, जबकि मानवता के विरुद्ध अपराध वे कृत्य होते हैं जो संगठित ढंग से नागरिकों पर किए जाते हैं, जैसे—नरसंहार, बलात्कार, दासता आदि। मानवता के विरुद्ध अपराध अंतरराष्ट्रीय विधि के अंतर्गत आते हैं और ICC इनकी जांच करता है, जबकि नृशंसता शब्द व्यापक अर्थ में प्रयुक्त होता है।


64. विकास का अधिकार (Right to Development) क्या है?

विकास का अधिकार संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1986 में घोषित किया गया था। इसके अनुसार, प्रत्येक व्यक्ति और राष्ट्र को आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक विकास में समान अवसर मिलना चाहिए। यह अधिकार गरीबी उन्मूलन, समानता, और संसाधनों की उचित भागीदारी को बढ़ावा देता है। यह मानव अधिकारों और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) को जोड़ता है।


65. नागरिकता और मानवाधिकारों का संबंध

नागरिकता व्यक्ति को कानूनी पहचान और अधिकार प्रदान करती है, जैसे—मतदान, शिक्षा, स्वास्थ्य, काम, न्याय का अधिकार। बिना नागरिकता (statelessness) के व्यक्ति अनेक मानवाधिकारों से वंचित हो जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 1954 Convention relating to the Status of Stateless Persons और 1961 Convention on the Reduction of Statelessness ऐसे लोगों के अधिकारों की रक्षा करती है।


66. नाजी युद्ध अपराधों पर न्यूरेंबर्ग ट्रायल का महत्व

न्यूरेंबर्ग ट्रायल द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1945–46 में जर्मनी के नाजी नेताओं पर चलाया गया था। इसने युद्ध अपराध, मानवता के विरुद्ध अपराध, और शांति के विरुद्ध अपराध के लिए व्यक्तिगत उत्तरदायित्व की अवधारणा स्थापित की। यह पहला अंतरराष्ट्रीय मंच था जिसने “राज्य की आज्ञा का पालन” को आपराधिक उत्तरदायित्व से छूट नहीं दी। इस ट्रायल ने अंतरराष्ट्रीय आपराधिक कानून की नींव रखी।


67. अफ्रीकी मानवाधिकार आयोग की भूमिका

अफ्रीकी आयोग मानव और जन अधिकारों पर (ACHPR) 1987 में स्थापित हुआ था, जो अफ्रीकी चार्टर पर आधारित है। इसका उद्देश्य अफ्रीका में मानव अधिकारों का संरक्षण, प्रचार और उल्लंघनों की निगरानी करना है। यह सदस्य देशों को रिपोर्टिंग हेतु बाध्य करता है और जांच, सिफारिश और सार्वजनिक चेतना के माध्यम से काम करता है। यह क्षेत्रीय मानवाधिकार सुरक्षा प्रणाली का महत्त्वपूर्ण भाग है।


68. संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी UNHCR की कार्यप्रणाली

UNHCR (United Nations High Commissioner for Refugees) युद्ध, उत्पीड़न या आपदा से विस्थापित लोगों को सहायता, सुरक्षा और पुनर्वास प्रदान करता है। यह सुरक्षित आश्रय, कानूनी स्थिति, पुनर्स्थापन, स्वैच्छिक वापसी और शरण देने वाले देशों के साथ सहयोग सुनिश्चित करता है। यह संधियों के पालन की निगरानी भी करता है, विशेषकर 1951 Refugee Convention और 1967 Protocol के।


69. आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक अधिकारों का महत्त्व

ICESCR (1966) द्वारा संरक्षित अधिकारों में शिक्षा, स्वास्थ्य, काम, सामाजिक सुरक्षा, भोजन और आवास के अधिकार शामिल हैं। ये अधिकार व्यक्ति की गरिमा और जीवन स्तर को बनाए रखने में सहायक हैं। राज्य इन अधिकारों को धीरे-धीरे प्राप्त करने (progressive realization) के लिए बाध्य होते हैं। यह विशेष रूप से विकासशील देशों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण हैं।


70. मानव अधिकार और प्राकृतिक कानून सिद्धांत

प्राकृतिक कानून मानता है कि मानव अधिकार जन्मजात हैं और ईश्वर या प्रकृति द्वारा दिए गए हैं, न कि राज्य द्वारा। यह दृष्टिकोण कहता है कि कुछ अधिकार सार्वभौमिक और अपरिवर्तनीय होते हैं—जैसे जीवन, स्वतंत्रता, न्याय। आधुनिक अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार कानून इसी सिद्धांत से प्रेरित होकर विकसित हुआ, जो राज्य के ऊपर नैतिक जिम्मेदारी को मान्यता देता है।


71. “Right to Remedy” का महत्व

Right to Remedy का अर्थ है कि यदि किसी व्यक्ति के अधिकारों का उल्लंघन होता है, तो उसे प्रभावी, निष्पक्ष और त्वरित न्याय पाने का अधिकार है। यह सिद्धांत UDHR (अनुच्छेद 8) और ICCPR (अनुच्छेद 2) में निहित है। न्यायपालिका, मानवाधिकार आयोग, लोकपाल और अंतरराष्ट्रीय मंच इसके साधन हैं। यह अधिकार, मानवाधिकारों के व्यावहारिक संरक्षण की गारंटी देता है।


72. अल्पसंख्यक अधिकारों के अंतरराष्ट्रीय मानक

UN Declaration on the Rights of Persons Belonging to National or Ethnic, Religious and Linguistic Minorities (1992) के तहत, अल्पसंख्यकों को अपनी भाषा, संस्कृति, धर्म और पहचान बनाए रखने का अधिकार है। यह राज्यों को उनके अधिकारों की रक्षा हेतु नीतियाँ और विधियाँ अपनाने के लिए प्रेरित करता है। भेदभाव, उत्पीड़न और सामाजिक बहिष्कार रोकने के लिए यह संधि प्रभावी है।


73. जलवायु शरणार्थियों की स्थिति और चुनौती

जलवायु परिवर्तन के कारण विस्थापित लोगों को अभी तक अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शरणार्थी नहीं माना गया है। इनको Climate Refugees कहा जाता है, लेकिन 1951 Refugee Convention इन्हें कवर नहीं करती। इसलिए, इनकी कानूनी स्थिति अनिश्चित है। यह एक उभरती हुई चुनौती है, जिससे निपटने के लिए नया अंतरराष्ट्रीय ढांचा विकसित करने की आवश्यकता है।


74. भारत में मानवाधिकार कानून की प्रमुख विशेषताएँ

भारत में मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 लागू है, जिसके अंतर्गत राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) और राज्य आयोग गठित किए गए हैं। यह अधिनियम संविधान में निहित मौलिक अधिकारों और अंतरराष्ट्रीय दायित्वों के अनुरूप कार्य करता है। यह किसी भी सार्वजनिक प्राधिकरण द्वारा मानवाधिकार उल्लंघन की जांच की शक्ति देता है।


75. “Doctrine of Jus Cogens” क्या है?

Jus Cogens वे अनिवार्य सिद्धांत हैं जिन्हें कोई भी राष्ट्र अनुबंध से भी नकार नहीं सकता। उदाहरण: गुलामी, यातना, नरसंहार, आक्रामकता, आदि के निषेध। ये सिद्धांत सार्वभौमिक नैतिकता और मानवता के विरुद्ध कार्यों को रोकते हैं। यदि कोई संधि Jus Cogens के विरुद्ध हो, तो वह अमान्य मानी जाती है।


76. युद्ध में मानवता का सिद्धांत क्या है?

यह सिद्धांत कहता है कि युद्ध की स्थिति में भी मानवता के मूल्यों का सम्मान आवश्यक है। युद्ध नियमों (जिनेवा संधियाँ) के अनुसार, घायलों, बंदियों और नागरिकों के साथ मानवीय व्यवहार किया जाना चाहिए। अत्यधिक पीड़ा पहुँचाने वाले हथियारों और तरीकों से बचना चाहिए। यह युद्ध के अमानवीय स्वरूप को सीमित करने का प्रयास है।


77. “Proportionality” सिद्धांत युद्ध में क्यों जरूरी है?

Proportionality का अर्थ है कि सैन्य कार्रवाई इतनी होनी चाहिए जितनी आवश्यक है और उससे अधिक हानि नहीं पहुँचनी चाहिए। इसका उद्देश्य नागरिकों को अनावश्यक नुकसान से बचाना है। यह सिद्धांत युद्ध कानून का हिस्सा है और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत मान्यता प्राप्त है। इसका उल्लंघन युद्ध अपराध की श्रेणी में आ सकता है।


78. “Rule of Distinction” का आशय क्या है?

Rule of Distinction के अनुसार, सैन्य और असैन्य लक्ष्यों में स्पष्ट अंतर किया जाना चाहिए। नागरिकों और नागरिक वस्तुओं (जैसे स्कूल, अस्पताल) को निशाना नहीं बनाया जा सकता। यह सिद्धांत जिनेवा संधियों में उल्लिखित है और इसका उल्लंघन युद्ध अपराध माना जाता है। यह युद्ध को मानवीय बनाने का आधारभूत नियम है।


79. संयुक्त राष्ट्र की महासभा द्वारा घोषित “मानवाधिकार दिवस” कब मनाया जाता है?

10 दिसंबर को हर वर्ष विश्व मानवाधिकार दिवस मनाया जाता है। इसी दिन 1948 में मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) को संयुक्त राष्ट्र महासभा ने अंगीकृत किया था। इस दिन मानवाधिकार जागरूकता फैलाने, अभियान चलाने और उपलब्धियों को मान्यता देने के लिए कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।


80. “Non-Discrimination” सिद्धांत का महत्त्व

यह सिद्धांत कहता है कि किसी के साथ जन्म, जाति, धर्म, लिंग, रंग, भाषा, या सामाजिक स्थिति के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। यह UDHR (अनुच्छेद 2), ICCPR और ICESCR में मूलभूत रूप से निहित है। यह मानव गरिमा की रक्षा का आधार है और सभी मानवाधिकारों के समान उपयोग की गारंटी देता है।


81. आत्मरक्षा में बल प्रयोग के अंतरराष्ट्रीय नियम क्या हैं?

संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुच्छेद 51 के अनुसार, यदि किसी राष्ट्र पर सशस्त्र हमला होता है, तो वह आत्मरक्षा में बल प्रयोग कर सकता है। लेकिन यह बल आवश्यक, त्वरित और अनुपातिक होना चाहिए। आत्मरक्षा केवल तभी वैध होती है जब सुरक्षा परिषद को सूचित किया जाए और शांति बहाली का प्रयास किया जाए।


82. “Forced Disappearance” क्या है?

यह वह स्थिति है जब किसी व्यक्ति को जबरन या गुप्त रूप से सरकारी एजेंसियां या अनधिकृत समूह उठा लेते हैं और उसकी जानकारी परिजनों या सार्वजनिक संस्थाओं से छिपाई जाती है। यह मानवता के विरुद्ध अपराध है और International Convention for the Protection of All Persons from Enforced Disappearance, 2006 के तहत निषिद्ध है।


83. संयुक्त राष्ट्र का मानवाधिकार उच्चायुक्त कौन होता है?

United Nations High Commissioner for Human Rights (UNHCHR), संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सबसे प्रमुख मानवाधिकार अधिकारी होता है। इसका कार्यालय वैश्विक मानवाधिकार की निगरानी, संरक्षण, और प्रचार हेतु कार्य करता है। यह देशों को सलाह देता है, जांच कराता है और गंभीर उल्लंघनों पर रिपोर्ट प्रस्तुत करता है।


84. “Genocide” का अंतरराष्ट्रीय अर्थ क्या है?

Genocide (नरसंहार) का अर्थ किसी जाति, धर्म, नस्ल, या राष्ट्रीय समूह को पूरी तरह या आंशिक रूप से समाप्त करने के उद्देश्य से किया गया कार्य है। यह 1948 Genocide Convention द्वारा परिभाषित है। इसमें हत्या, मानसिक उत्पीड़न, जबरन नसबंदी, बच्चों का अपहरण आदि शामिल हैं। यह गंभीरतम अंतरराष्ट्रीय अपराधों में गिना जाता है।


85. युद्ध अपराध और मानवता के विरुद्ध अपराध में अंतर

युद्ध अपराध केवल सशस्त्र संघर्ष के दौरान होते हैं—जैसे नागरिकों की हत्या, बंदियों पर अत्याचार।
मानवता के विरुद्ध अपराध किसी भी समय और बड़े स्तर पर नागरिकों पर किए जाते हैं—जैसे जातीय सफाया, दासता। युद्ध अपराध का क्षेत्र सीमित है, जबकि मानवता के विरुद्ध अपराध का दायरा व्यापक होता है।


86. मानवाधिकार शिक्षा की भूमिका क्या है?

मानवाधिकार शिक्षा का उद्देश्य लोगों को उनके अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति जागरूक बनाना है। यह स्कूल, कॉलेज, NGOs और मीडिया के माध्यम से दी जाती है। इससे समाज में सहिष्णुता, समानता, और न्याय की भावना बढ़ती है। UNESCO और UNHRC शिक्षा को मानवाधिकार के प्रचार का मुख्य साधन मानते हैं।


87. “Due Process of Law” और “Procedure Established by Law” में अंतर

Due Process of Law एक व्यापक अवधारणा है जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि कानून न केवल विधिपूर्वक बना हो, बल्कि न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित हो।
वहीं, Procedure Established by Law केवल यह देखता है कि जो प्रक्रिया कानून में लिखी गई है, उसका पालन हुआ या नहीं।
भारत में अनुच्छेद 21 के तहत शुरू में केवल ‘Procedure Established by Law’ अपनाया गया, परंतु Menaka Gandhi केस (1978) के बाद ‘Due Process’ का सार भी जोड़ा गया, जिससे नागरिकों की स्वतंत्रता की व्यापक सुरक्षा सुनिश्चित हुई।


88. “Right to Privacy” एक मानव अधिकार कैसे है?

Right to Privacy व्यक्ति की निजी स्वतंत्रता, सम्मान और पहचान से जुड़ा एक मौलिक मानव अधिकार है। यह अधिकार UDHR (अनुच्छेद 12) और ICCPR (अनुच्छेद 17) में निहित है। भारत में यह अधिकार Puttaswamy बनाम भारत सरकार (2017) में संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार घोषित किया गया। इसमें निजता, डेटा सुरक्षा, व्यक्तिगत चुनाव और स्वतंत्र जीवन शामिल हैं।


89. “Digital Rights” और मानवाधिकार

डिजिटल युग में मानवाधिकारों का विस्तार Digital Rights तक हो गया है। इसमें इंटरनेट तक पहुँच का अधिकार, ऑनलाइन अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, डेटा सुरक्षा, डिजिटल गोपनीयता और साइबर सुरक्षा शामिल हैं। ये अधिकार UDHR की भावना को नए संदर्भ में लागू करते हैं। अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं अब डिजिटल स्पेस में भी मानव अधिकारों की सुरक्षा पर ध्यान दे रही हैं।


90. “Universal Jurisdiction” की अवधारणा क्या है?

Universal Jurisdiction का सिद्धांत कहता है कि कुछ अपराध इतने गंभीर होते हैं कि किसी भी देश की अदालत, भले ही अपराध उस देश में न हुआ हो, उसे सुन सकती है। इसमें नरसंहार, युद्ध अपराध, समुद्री डकैती, यातना आदि आते हैं। यह सिद्धांत अपराधियों को दंड से बचने से रोकता है और वैश्विक न्याय सुनिश्चित करता है।


91. “Right to Information” एक मानव अधिकार क्यों है?

सूचना का अधिकार (RTI) लोकतंत्र का अभिन्न हिस्सा है। यह नागरिकों को शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और भागीदारी की सुविधा देता है। UDHR (अनुच्छेद 19) में इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हिस्से के रूप में मान्यता मिली है। भारत में RTI Act, 2005 के माध्यम से इसे विधिक रूप में स्थापित किया गया है। यह भ्रष्टाचार रोकने का भी प्रभावी माध्यम है।


92. महिलाओं के विरुद्ध हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय प्रयास

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा रोकने हेतु CEDAW, UN Women, और Declaration on the Elimination of Violence against Women (1993) जैसे कई वैश्विक प्रयास किए गए हैं। ये संस्थाएं यौन हिंसा, घरेलू हिंसा, दहेज हत्या, मानव तस्करी जैसे मुद्दों पर काम करती हैं। साथ ही, सदस्य देशों से कानून और नीति में सुधार की अपेक्षा करती हैं।


93. बाल मजदूरी पर अंतरराष्ट्रीय कानून

ILO Conventions 138 और 182 बाल मजदूरी को समाप्त करने के लिए मुख्य संधियाँ हैं। कन्वेंशन 138 न्यूनतम कार्य आयु तय करता है जबकि 182 खतरनाक और शोषणकारी कार्यों पर प्रतिबंध लगाता है। UNICEF और UN CRC भी बाल अधिकारों के संरक्षण में सक्रिय हैं। भारत ने इन संधियों की पुष्टि की है और कानूनों में बदलाव किए हैं।


94. “Right to Education” एक अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार कैसे है?

शिक्षा का अधिकार UDHR (अनुच्छेद 26), ICESCR (अनुच्छेद 13) और CRC में मान्यता प्राप्त है। यह व्यक्ति के आत्मविकास, सामाजिक सशक्तिकरण और मानव गरिमा के लिए आवश्यक है। भारत में यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत लागू किया गया है। शिक्षा, मानव अधिकारों की नींव को मजबूत करती है।


95. भारत में ट्रांसजेंडर अधिकारों की स्थिति

Transgender Persons (Protection of Rights) Act, 2019 भारत में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को पहचान, गैर-भेदभाव, शिक्षा, स्वास्थ्य, और रोजगार में समान अधिकार देता है। NALSA बनाम भारत सरकार (2014) में सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी। यह निर्णय मानव गरिमा और समानता के अधिकार को सुदृढ़ करता है।


96. “Right to Environment” एक मानव अधिकार कैसे है?

स्वस्थ पर्यावरण में जीने का अधिकार अब वैश्विक स्तर पर एक मानव अधिकार के रूप में उभर रहा है। UNHRC ने 2021 में इसे मान्यता दी। भारत में यह अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के अंतर्गत “जीवन के अधिकार” के हिस्से के रूप में माना जाता है। पर्यावरण संरक्षण व्यक्ति के स्वास्थ्य, जीवन और आजीविका से सीधा जुड़ा है।


97. जातीय सफाया (Ethnic Cleansing) क्या होता है?

जातीय सफाया वह प्रक्रिया है जिसमें किसी जातीय या धार्मिक समूह को किसी भू-भाग से बलपूर्वक हटाया जाता है, अक्सर हिंसा और हत्या द्वारा। यह मानवता के विरुद्ध अपराध की श्रेणी में आता है। बोस्निया, रवांडा, और म्यांमार में ऐसे उदाहरण देखने को मिले हैं। अंतरराष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC) ऐसे मामलों की जांच करता है।


98. “Slavery” पर अंतरराष्ट्रीय विधि

Slavery Convention (1926) और Supplementary Convention (1956) गुलामी, जबरन श्रम, मानव तस्करी, और दासता जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए लागू हैं। UDHR (अनुच्छेद 4) भी कहता है कि किसी को दासता में नहीं रखा जा सकता। आधुनिक गुलामी के खिलाफ ILO और UNODC सक्रिय हैं। भारत में भी बंधुआ श्रम निषेध कानून लागू हैं।


99. “Cultural Relativism” बनाम “Universalism”

Cultural Relativism का मत है कि मानवाधिकारों की व्याख्या सांस्कृतिक संदर्भ में होनी चाहिए, जबकि Universalism कहता है कि मानवाधिकार सार्वभौमिक हैं और सभी पर समान रूप से लागू होते हैं। यह विवाद तब उठता है जब किसी परंपरा (जैसे बाल विवाह या पर्दा प्रथा) को मानवाधिकारों के उल्लंघन के रूप में देखा जाता है। संतुलन जरूरी है।


100. भविष्य में मानवाधिकार संरक्षण की चुनौतियाँ

आगामी समय में मानवाधिकार संरक्षण को कई चुनौतियाँ मिलेंगी, जैसे—डिजिटल निगरानी, जलवायु आपदा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, प्रवास और शरणार्थी संकट, साइबर अपराध, और राजनैतिक दमन। वैश्विक सहयोग, शिक्षा, और मजबूत कानूनों के माध्यम से ही इन चुनौतियों से निपटा जा सकता है। मानवाधिकारों को भविष्य की नीतियों का आधार बनाना होगा।