🔷 1. मुस्लिम विधि में निकाह का अर्थ क्या है?
मुस्लिम विधि में ‘निकाह’ एक पवित्र सामाजिक अनुबंध है जो एक पुरुष और एक स्त्री के बीच विवाह-संबंध को वैध बनाता है। इसे धार्मिक और कानूनी रूप से स्वीकृत माना जाता है। यह केवल एक धार्मिक कर्तव्य नहीं बल्कि एक सिविल कॉन्ट्रैक्ट भी है, जिसमें पक्षों की सहमति, मेहर (दहेज), गवाह और इजाब-ओ-कबूल आवश्यक हैं। निकाह के माध्यम से पति-पत्नी के बीच अधिकार और कर्तव्यों का निर्धारण होता है। कुरान और हदीस में इसे आधे ईमान के बराबर बताया गया है। यह अनुबंध एक पुरुष और महिला को साथ रहने, संतानोत्पत्ति और एक-दूसरे की देखभाल करने का अधिकार देता है।
🔷 2. निकाह के आवश्यक तत्व क्या हैं?
मुस्लिम विधि के अनुसार निकाह के लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं —
- इजाब (प्रस्ताव) और कबूल (स्वीकृति) – दोनों पक्षों की स्पष्ट सहमति आवश्यक है।
- गवाह – सुन्नी विधि में दो पुरुष या एक पुरुष और दो स्त्रियों की गवाही आवश्यक होती है।
- मेहर – वधू को दिया जाने वाला वित्तीय उपहार जिसे पति द्वारा विवाह के समय या बाद में दिया जाता है।
- क्षमता – पक्षों की आयु, विवेक और विवाह की कानूनी योग्यता आवश्यक होती है।
इन तत्वों की अनुपस्थिति में विवाह शून्य या अवैध हो सकता है।
🔷 3. मुस्लिम विवाह के प्रकार क्या हैं?
मुस्लिम विधि में विवाह को मुख्यतः तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है:
- सही (Valid) – जब सभी आवश्यक शर्तें पूर्ण होती हैं।
- बातिल (Void) – जब निषिद्ध संबंधों के अंतर्गत विवाह किया गया हो।
- फासिद (Irregular) – जब विवाह में कोई एक आवश्यक शर्त का अभाव होता है, जैसे गवाह का न होना।
इसके अलावा शिया समुदाय में मुताह विवाह भी मान्य है जो एक अस्थायी विवाह होता है।
🔷 4. मेहर का क्या महत्व है?
मेहर मुस्लिम विवाह का एक अनिवार्य घटक है जो पति द्वारा पत्नी को दिया जाता है। यह पत्नी की आर्थिक सुरक्षा के लिए होता है और विवाह का अधिकारिक प्रतीक है। इसे विवाह के समय या बाद में दिया जा सकता है। मेहर दो प्रकार का होता है —
- मुअज्जल (तुरंत देय)
- मुवज्जल (विलंबित देय)
यदि तलाक हो जाता है या पति की मृत्यु होती है, तो पत्नी को मेहर प्राप्त करने का अधिकार होता है। यह महिला के सम्मान और अधिकार का प्रतीक माना जाता है।
🔷 5. तलाक की परिभाषा और प्रकार क्या हैं?
तलाक का अर्थ है – विवाह-संबंध का विधिक रूप से विच्छेद। मुस्लिम विधि में तलाक मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं:
- तलाक-ए-अहसन – सबसे स्वीकृत और सुन्नत अनुसार।
- तलाक-ए-हसन – तीन बार तलाक कहने की प्रक्रिया।
- तलाक-ए-बिद्दत (तीन तलाक) – एक बार में तीन बार तलाक कहना।
इसके अलावा महिला द्वारा तलाक प्राप्त करने के लिए खुला, मुबारत, और फस्ख की प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2017 में तीन तलाक को असंवैधानिक घोषित किया।
🔷 6. तलाक-ए-अहसन क्या है?
तलाक-ए-अहसन मुस्लिम पुरुष द्वारा पत्नी को एक बार तलाक कहकर दिए जाने वाली सबसे सुन्नत और स्वीकार्य पद्धति है। इसके तहत पति पत्नी को पाक अवधि (इद्दत) के दौरान एक बार तलाक देता है और तीन मासिक चक्रों की प्रतीक्षा करता है। इस अवधि में यदि पति पत्नी से संबंध बना ले तो तलाक रद्द हो जाता है। यह तलाक का शांतिपूर्ण और पुनर्मिलन की संभावना रखने वाला तरीका है। इसे न्यायालय और धर्म दोनों ही सर्वोत्तम रूप मानते हैं।
🔷 7. खुला (Khula) तलाक क्या होता है?
खुला वह प्रक्रिया है जिसमें पत्नी, पति से तलाक मांगती है और कुछ वित्तीय अधिकार त्याग कर विवाह को समाप्त करवाती है। इसमें पत्नी पति से अपनी इच्छा से अलगाव चाहती है और प्रायः मेहर या अन्य उपहार लौटा देती है। यदि पति सहमत होता है तो विवाह समाप्त हो जाता है। यह केवल पति की सहमति से वैध होता है। खुला महिला को विवाह से मुक्ति देने की एक स्वतंत्र प्रक्रिया है जो कुरानिक सिद्धांतों पर आधारित है।
🔷 8. इद्दत की अवधारणा क्या है?
‘इद्दत’ एक निश्चित प्रतीक्षा अवधि होती है जो महिला को तलाक या पति की मृत्यु के बाद पूरी करनी होती है। इसका उद्देश्य है –
- गर्भावस्था की पुष्टि
- विवाह विच्छेद का सामाजिक एवं धार्मिक सम्मान
इसकी अवधि तलाक की स्थिति में तीन मासिक धर्म और मृत्यु की स्थिति में चार महीने दस दिन होती है। यदि महिला गर्भवती हो, तो इद्दत बच्चे के जन्म तक रहती है। इद्दत पूरी होने तक महिला पुनर्विवाह नहीं कर सकती।
🔷 9. विरासत में उत्तराधिकार का नियम मुस्लिम कानून में क्या है?
मुस्लिम उत्तराधिकार कानून पैतृक संपत्ति का स्वतः विभाजन स्वीकार नहीं करता। उत्तराधिकार मृत्यु के पश्चात संपत्ति में हिस्सा देने की प्रक्रिया है। मुस्लिम उत्तराधिकार दो आधारों पर होता है:
- कुरानिक वारिस (Sharers) – जैसे पुत्र, पुत्री, पत्नी, पति आदि।
- अग्नेट्स और कग्नेट्स – अन्य रक्त संबंधी।
इसमें महिलाओं को भी निश्चित हिस्सा दिया जाता है। मुसलमानों में वसीयत की सीमा 1/3 तक होती है, शेष वारिसों के अनुसार बांटा जाता है।
🔷 10. मुस्लिम कानून में ‘वक्फ़’ क्या है?
वक्फ़ एक धार्मिक परोपकारी संस्था है जिसके तहत व्यक्ति अपनी संपत्ति को अल्लाह के नाम पर स्थायी रूप से दान कर देता है। वक्फ़ की संपत्ति किसी व्यक्ति की निजी संपत्ति नहीं रहती, बल्कि उसका उपयोग धार्मिक, चैरिटेबल और सामाजिक कार्यों के लिए किया जाता है। वक्फ़ का नियंत्रण एक मुतवल्ली द्वारा किया जाता है। वक्फ़ अधिनियम 1995 के अंतर्गत भारत में वक्फ़ बोर्ड की स्थापना की गई है जो वक्फ संपत्तियों का संरक्षण करता है।
🔷 11. मुतवल्ली कौन होता है?
मुतवल्ली वक्फ संपत्ति का देखरेख करने वाला व्यक्ति होता है। वह मालिक नहीं होता बल्कि एक ट्रस्टी की तरह कार्य करता है। उसका कार्य वक्फ के उद्देश्यों की पूर्ति करना, संपत्ति का रख-रखाव करना, और आय का धार्मिक उपयोग सुनिश्चित करना होता है। मुतवल्ली को संपत्ति बेचनें, गिरवी रखने या स्थानांतरित करने का अधिकार केवल अदालत या वक्फ बोर्ड की अनुमति से होता है। उसकी नियुक्ति वक्फकर्ता द्वारा की जाती है।
🔷 12. मुस्लिम स्त्री को विरासत में क्या अधिकार प्राप्त हैं?
मुस्लिम विधि में स्त्रियों को भी उत्तराधिकार में अधिकार दिए गए हैं। एक पत्नी को 1/4 हिस्सा (यदि संतान न हो) और 1/8 हिस्सा (यदि संतान हो) प्राप्त होता है। पुत्री को पुत्र से आधा हिस्सा मिलता है। स्त्रियों को कुरानिक वारिसों की श्रेणी में रखा गया है, जिससे उन्हें धार्मिक रूप से उत्तराधिकार का अधिकार प्राप्त है। भले ही उनका हिस्सा पुरुषों से कम हो, परंतु उन्हें निश्चित और संरक्षित अधिकार दिया गया है।
🔷 13. मुताह विवाह क्या होता है?
मुताह विवाह एक अस्थायी विवाह है जो मुख्यतः शिया मुस्लिमों में मान्य होता है। इसमें विवाह की अवधि और मेहर पहले से तय किया जाता है। यह केवल एक निश्चित अवधि के लिए किया जाता है, जिसके समाप्त होते ही विवाह स्वतः समाप्त हो जाता है। सुन्नी मुस्लिम इसे मान्यता नहीं देते। यह विवाह कानूनी रूप से विवादास्पद है और भारतीय न्यायालयों में इसकी मान्यता सीमित है।
🔷 14. तलाक-ए-बिद्दत को असंवैधानिक क्यों घोषित किया गया?
सुप्रीम कोर्ट ने 2017 के शायरा बानो बनाम भारत सरकार मामले में तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को असंवैधानिक घोषित किया। यह निर्णय इस आधार पर लिया गया कि यह मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है – विशेषकर अनुच्छेद 14 (समानता), 15 (भेदभाव निषेध) और 21 (जीवन और स्वतंत्रता) के विरुद्ध है। इसके बाद संसद ने 2019 में ‘मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम’ पारित किया जिससे तीन तलाक दंडनीय अपराध बना।
🔷 15. मुस्लिम विवाह को अनुबंध क्यों कहा जाता है?
मुस्लिम विवाह को एक धार्मिक और सिविल अनुबंध (Contract) के रूप में माना जाता है क्योंकि इसमें दो स्वतंत्र व्यक्तियों की सहमति, मेहर, और गवाह जैसे कॉन्ट्रैक्चुअल तत्व होते हैं। यह विवाह केवल धार्मिक कर्मकांड नहीं, बल्कि वैधानिक अधिकारों और कर्तव्यों को भी जन्म देता है। यदि अनुबंध की शर्तें पूरी नहीं होतीं, तो विवाह अमान्य हो सकता है। इस प्रकार, मुस्लिम विवाह को धार्मिकता के साथ-साथ विधिक अनुबंध का भी स्वरूप प्राप्त है।
🔷 16. मुस्लिम विवाह में गवाहों की क्या भूमिका होती है?
मुस्लिम विवाह में गवाहों की उपस्थिति आवश्यक होती है, विशेषकर सुन्नी मुस्लिम विधि के अनुसार। विवाह के समय दो पुरुष या एक पुरुष और दो स्त्रियों की उपस्थिति में ‘इजाब’ (प्रस्ताव) और ‘कबूल’ (स्वीकृति) होना चाहिए। गवाह यह सुनिश्चित करते हैं कि विवाह दोनों पक्षों की सहमति से हुआ है। यदि गवाह न हों तो विवाह को फासिद (Irregular) माना जाता है। शिया विधि में गवाह की उपस्थिति अनिवार्य नहीं होती। इस प्रकार, गवाह विवाह की वैधता और सामाजिक स्वीकृति के लिए आवश्यक होते हैं।
🔷 17. मुस्लिम विवाह और हिंदू विवाह में क्या अंतर है?
मुस्लिम विवाह एक नागरिक अनुबंध (Civil Contract) होता है, जबकि हिंदू विवाह एक पवित्र संस्कार (Sacrament) है। मुस्लिम विवाह में ‘मेहर’, गवाह और पक्षों की सहमति प्रमुख होती है। इसमें विवाह को भंग (तलाक) करना अपेक्षाकृत सरल है। वहीं हिंदू विवाह में सात फेरे, हवन आदि धार्मिक अनुष्ठान आवश्यक होते हैं, और तलाक कठिन प्रक्रिया है। मुस्लिम विवाह में विवाह पंजीकरण जरूरी नहीं, जबकि हिंदू विवाह के लिए विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत पंजीकरण को प्रोत्साहित किया जाता है।
🔷 18. मुस्लिम विधि में तलाक के बाद महिला के अधिकार क्या होते हैं?
तलाक के बाद मुस्लिम महिला को कुछ निश्चित अधिकार प्राप्त होते हैं।
- मेहर की पूरी राशि – यदि पहले न दी गई हो।
- इद्दत अवधि के भरण-पोषण का अधिकार
- बच्चों की देखरेख हेतु संरक्षण का अधिकार (हिजानत)
- मातृत्व भत्ते (Maintenance) का अधिकार – मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 2019 के तहत अदालतें उपयुक्त भत्ता दे सकती हैं।
इसके अलावा महिला खुला, फस्ख, या न्यायालय के माध्यम से तलाक का सहारा भी ले सकती है।
🔷 19. फासिद विवाह क्या होता है?
फासिद विवाह (Irregular marriage) वह विवाह है जो मुस्लिम विधि के कुछ आवश्यक शर्तों की अनुपस्थिति के कारण दोषपूर्ण होता है, लेकिन बाद में उसे सुधार कर वैध बनाया जा सकता है। उदाहरण –
- गवाहों की अनुपस्थिति
- एक महिला का ईसाई या यहूदी पुरुष से विवाह
- एक साथ दो बहनों से विवाह
फासिद विवाह शून्य नहीं होता और न ही वह पूर्णत: वैध होता है। यदि दोष को दूर कर दिया जाए, तो विवाह को सही विवाह में बदला जा सकता है।
🔷 20. बातिल विवाह किसे कहते हैं?
बातिल विवाह (Void marriage) वह विवाह होता है जो मुस्लिम विधि के अनुसार पूर्णतः अमान्य होता है। इस प्रकार के विवाह को वैध नहीं माना जाता और न ही इससे कोई वैधानिक अधिकार उत्पन्न होते हैं। उदाहरण –
- रक्त संबंधी या सगोत्र विवाह
- धर्म के विरुद्ध विवाह (जैसे एक मुसलमान का बहुदेववादी महिला से विवाह)
- एक विवाहित महिला का पुनः विवाह जबकि उसका पहले वाला विवाह समाप्त न हुआ हो
बातिल विवाह के पक्षकारों को तलाक की आवश्यकता नहीं होती क्योंकि विवाह ही वैध नहीं माना जाता।
🔷 21. मुताह विवाह की विशेषताएं क्या हैं?
मुताह विवाह एक अस्थायी विवाह है जो विशेष रूप से शिया मुसलमानों में मान्य होता है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं –
- समय की पूर्व-निर्धारित अवधि
- पूर्व निर्धारित मेहर
- विवाह की समाप्ति पर तलाक की आवश्यकता नहीं होती
- संतानों को वैध माना जाता है
- महिला को इद्दत पूरी करनी होती है
मुताह विवाह एक प्रकार का सामाजिक समझौता है जिसका उद्देश्य यौन संबंध को वैध बनाना है, लेकिन सुन्नी मुसलमान इसे अमान्य मानते हैं।
🔷 22. तलाक के पश्चात पुनर्विवाह की मुस्लिम विधि में क्या व्यवस्था है?
मुस्लिम विधि के अनुसार तलाक के बाद महिला इद्दत अवधि पूरी करने के बाद पुनः विवाह कर सकती है। यदि तलाक बाइन (अप्रतिगामी) हो तो पति-पत्नी पुनः विवाह कर सकते हैं। यदि तलाक तीन बार (तलाक-ए-बिद्दत) दिया गया हो, तो पुनः विवाह के लिए महिला को किसी अन्य पुरुष से ‘हलाला विवाह’ करना आवश्यक होता है, जिससे वह तलाक के बाद पूर्व पति से पुनः विवाह कर सके। पुनर्विवाह के लिए पुरुष को किसी प्रकार की रोक नहीं होती।
🔷 23. मुस्लिम विधि में ‘वसीयत’ का क्या स्थान है?
मुस्लिम विधि में ‘वसीयत’ मृतक व्यक्ति द्वारा की गई अंतिम इच्छा होती है जिसके द्वारा वह अपनी संपत्ति का एक-तिहाई (1/3) भाग किसी गैर-वारिस को दे सकता है। वसीयत तभी मान्य होती है जब –
- मृतक मानसिक रूप से स्वस्थ हो
- वसीयत स्वतंत्र रूप से की गई हो
- केवल एक-तिहाई संपत्ति तक ही सीमित हो
यदि वसीयत वारिस के पक्ष में की गई हो तो अन्य वारिसों की सहमति आवश्यक होती है। वसीयत मुस्लिम विधि में उत्तराधिकार का एक वैकल्पिक स्रोत है।
🔷 24. मुतवल्ली के अधिकार और कर्तव्य क्या हैं?
मुतवल्ली वक्फ संपत्ति का प्रबंधक होता है। उसके अधिकार और कर्तव्य निम्नलिखित हैं:
अधिकार:
- वक्फ संपत्ति से होने वाली आमदनी को धार्मिक/चैरिटेबल उद्देश्यों में खर्च करना
- कर्मचारियों की नियुक्ति
- संपत्ति की मरम्मत करना
कर्तव्य: - संपत्ति की रक्षा करना
- कोई भी संपत्ति बेचना या गिरवी नहीं रखना (बिना अनुमति)
- वक्फ के उद्देश्यों के अनुसार कार्य करना
मुतवल्ली के कार्यों की निगरानी वक्फ बोर्ड द्वारा की जाती है।
🔷 25. मुस्लिम विधि में हिजानत (Hizanat) क्या है?
हिजानत का अर्थ है – माता-पिता के बीच बच्चों की संरक्षा या अभिरक्षा का अधिकार। मुस्लिम विधि में प्राथमिक अधिकार माता को होता है, विशेषकर नाबालिग पुत्रियों की।
- पुत्र की अभिरक्षा आमतौर पर 7 वर्ष तक माता को दी जाती है।
- पुत्री की अभिरक्षा विवाह तक माता के पास रहती है।
परंतु यदि माता अनुपयुक्त हो, तो पिता को या अन्य अभिभावक को संरक्षा दी जा सकती है। हिजानत में बच्चे के कल्याण को प्राथमिक माना जाता है।
🔷 26. विरासत में ‘शेयरर्स’ और ‘रेजिडुअरी’ का क्या अंतर है?
मुस्लिम उत्तराधिकार में:
- शेयरर्स (Quranic heirs) – वे उत्तराधिकारी हैं जिन्हें कुरान में निश्चित हिस्सा (जैसे 1/2, 1/4) निर्धारित किया गया है, जैसे – माता, पत्नी, पुत्री।
- रेजिडुअरी (Asaba) – वे हैं जिन्हें बाकी बची संपत्ति मिलती है जब शेयरर्स को हिस्सा देने के बाद संपत्ति शेष रह जाए।
शेयरर्स को प्राथमिकता दी जाती है, और बची हुई संपत्ति रेजिडुअरी को जाती है।
🔷 27. मुस्लिम उत्तराधिकार में पुत्री का क्या अधिकार है?
मुस्लिम विधि के अनुसार पुत्री को उत्तराधिकारी माना गया है। यदि केवल एक पुत्री हो तो उसे संपत्ति का 1/2 हिस्सा मिलता है। यदि एक से अधिक पुत्रियां हों, तो उन्हें मिलाकर 2/3 हिस्सा मिलता है। यदि साथ में पुत्र भी हो, तो पुत्री को पुत्र से आधा हिस्सा प्राप्त होता है। यह व्यवस्था कुरान द्वारा निर्धारित है और इसे कोई भी समाप्त नहीं कर सकता। यह मुस्लिम महिलाओं को उत्तराधिकार में संरक्षित अधिकार प्रदान करता है।
🔷 28. हलीमा सिद्धिकी बनाम स्टेट केस का महत्व क्या है?
हलीमा सिद्धिकी बनाम स्टेट (1971) केस मुस्लिम महिलाओं के मेहर और तलाक के बाद निवृत्त उपजीवन निर्वाह (maintenance) से संबंधित है। इस केस में न्यायालय ने यह निर्णय दिया कि मुस्लिम महिला को तलाक के बाद केवल इद्दत अवधि तक ही भरण-पोषण मिलेगा, न कि आजीवन। यह निर्णय बाद में विवादास्पद बना और शाह बानो केस (1985) ने इसे चुनौती दी। यह केस मुस्लिम महिला के अधिकारों पर गंभीर बहस का कारण बना।
🔷 29. मुस्लिम महिला (विवाह अधिकारों की सुरक्षा) अधिनियम, 2019 की मुख्य विशेषताएं क्या हैं?
यह अधिनियम तीन तलाक (तलाक-ए-बिद्दत) को अपराध घोषित करता है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं:
- एक बार में तीन तलाक देना अपराध (तीन वर्ष की सजा) है
- पीड़िता को भरण-पोषण और बच्चों की अभिरक्षा का अधिकार
- अपराध ग़ैर-जमानती है लेकिन न्यायिक मजिस्ट्रेट द्वारा जमानत संभव
- महिला या उसका निकट संबंधी शिकायत कर सकता है
इस कानून ने मुस्लिम महिलाओं को कानूनी सुरक्षा और सम्मान दिया है।
🔷 30. ‘खुला’ और ‘मुबारत’ तलाक में क्या अंतर है?
खुला में तलाक महिला की इच्छा पर आधारित होता है, जिसमें वह कुछ वित्तीय अधिकार त्याग कर तलाक लेती है। पति की सहमति आवश्यक होती है।
मुबारत में तलाक दोनों पक्षों की आपसी सहमति से होता है। इसमें दोनों तलाक चाहते हैं।
- खुला एकतरफा (पत्नी की मांग)
- मुबारत पारस्परिक सहमति से
दोनों ही तलाक के वैध साधन हैं पर प्रक्रिया और उद्देश्य में भिन्नता होती है।
🔷 31. ‘तलाक-ए-हसन’ क्या होता है?
तलाक-ए-हसन मुस्लिम पुरुष द्वारा अपनाया गया तलाक का ऐसा तरीका है जो तीन चरणों में दिया जाता है। इसमें पति पत्नी को एक बार “तलाक” कहता है और फिर एक मासिक अवधि (इद्दत) की प्रतीक्षा करता है। यदि इस दौरान वह पत्नी से संबंध नहीं बनाता और दूसरे माह में पुनः “तलाक” कहता है, तो एक बार फिर प्रतीक्षा करता है। तीसरी बार “तलाक” कहने के बाद विवाह समाप्त हो जाता है। यह तलाक प्रतिगामी होता है और पहले दो चरणों में पति चाहे तो विवाह को रद्द कर सकता है। यह सुन्नत विधि के अंतर्गत आता है और न्यायालय द्वारा अधिक मान्य है।
🔷 32. तलाक-ए-बाइन क्या है?
तलाक-ए-बाइन एक अप्रतिगामी तलाक होता है, जिसमें पति-पत्नी के बीच संबंध समाप्त हो जाता है और वे दोबारा बिना नए निकाह के साथ नहीं रह सकते। इसमें दो प्रकार शामिल हैं:
- पूर्व में तलाक दे दिया गया हो और इद्दत अवधि समाप्त हो गई हो।
- खुला या न्यायालय द्वारा फस्ख (विवाह विच्छेद) किया गया हो।
तलाक-ए-बाइन में पति और पत्नी यदि पुनः साथ रहना चाहें, तो उन्हें नया निकाह करना होगा। यह तलाक बिना किसी पुनर्विचार या संबंध के समाप्ति की स्थिति है।
🔷 33. मुस्लिम महिला को तलाक लेने के कौन-कौन से अधिकार प्राप्त हैं?
मुस्लिम महिला को तलाक प्राप्त करने के लिए निम्नलिखित विधियाँ उपलब्ध हैं:
- खुला – महिला अपनी मर्जी से पति से तलाक मांगती है।
- मुबारत – दोनों की आपसी सहमति से विवाह विच्छेद।
- फस्ख – न्यायालय द्वारा तलाक (Dissolution of Muslim Marriage Act, 1939)।
- वकालत या तफवीज – पति द्वारा महिला को तलाक देने का अधिकार सौंपना।
इन विधियों के माध्यम से महिला अपनी गरिमा, सुरक्षा और न्याय की रक्षा कर सकती है।
🔷 34. Dissolution of Muslim Marriages Act, 1939 का उद्देश्य क्या है?
इस अधिनियम का उद्देश्य मुस्लिम महिलाओं को विवाह से बाहर निकलने का कानूनी और न्यायिक आधार प्रदान करना है। इससे पहले मुस्लिम महिलाएँ केवल पति की अनुमति से ही विवाह समाप्त कर सकती थीं, लेकिन इस अधिनियम ने उन्हें न्यायालय से तलाक लेने का अधिकार दिया। इसके अंतर्गत पत्नी तलाक के लिए निम्न आधार पर याचिका दायर कर सकती है:
- पति की अनुपस्थिति
- भरण-पोषण न देना
- अमानवीय व्यवहार
- विवाह उपरांत धर्म परिवर्तन
यह अधिनियम मुस्लिम महिलाओं के मानवाधिकार और न्यायिक संरक्षण की दिशा में एक ऐतिहासिक कदम है।
🔷 35. मुस्लिम विधि में ‘वक्फ-ए-आलाल औलाद’ क्या है?
‘वक्फ-ए-आलाल औलाद’ वह वक्फ होता है जिसमें वक्फकर्ता अपनी संपत्ति को अपने परिवार और उत्तराधिकारियों के कल्याण के लिए वक्फ करता है, और वंश समाप्ति के बाद वह संपत्ति सार्वजनिक धार्मिक या चैरिटेबल उद्देश्यों के लिए प्रयुक्त होती है। यह एक संयोजनात्मक वक्फ होता है – पहले निजी और फिर सार्वजनिक। इसे न्यायालयों द्वारा मान्यता दी गई है और यह मुस्लिम समाज में एक आर्थिक सुरक्षा तंत्र के रूप में देखा जाता है।
🔷 36. मुतवल्ली की अयोग्यता किन कारणों से हो सकती है?
मुतवल्ली बनने के लिए व्यक्ति को ईमानदार, योग्य और बालिग होना चाहिए। निम्न कारणों से व्यक्ति मुतवल्ली बनने के अयोग्य हो सकता है:
- मानसिक विकृति या पागलपन
- दुराचारी या बेईमान
- धार्मिक कर्तव्यों का पालन न करना
- नाबालिग या दिवालिया घोषित व्यक्ति
यदि मुतवल्ली अपने अधिकारों का दुरुपयोग करे या वक्फ संपत्ति को क्षति पहुँचाए, तो वक्फ बोर्ड उसे पद से हटा सकता है।
🔷 37. कुरान के अनुसार तलाक के समय क्या प्रक्रिया अपनानी चाहिए?
कुरान तलाक को अत्यंत नापसंद कार्य मानता है और इसे अंतिम उपाय के रूप में स्वीकार करता है। तलाक के समय निम्न प्रक्रिया अपनाने की सलाह दी गई है:
- पति-पत्नी के बीच सुलह का प्रयास किया जाए।
- विवाद के समाधान हेतु दोनों परिवारों से पंच नियुक्त किए जाएं।
- यदि सुलह न हो तो एक बार तलाक कहकर इद्दत अवधि दी जाए।
- इद्दत के दौरान संबंध पुनः स्थापित हो सकते हैं।
कुरान तलाक को संयम, सोच-विचार और पुनर्मिलन की संभावनाओं के साथ देने की बात करता है।
🔷 38. मुस्लिम विधि में ‘हदीस’ का क्या महत्व है?
हदीस पैगंबर मुहम्मद साहब के कथन, कार्य और स्वीकृतियों का संकलन है। यह इस्लामी कानून का दूसरा प्रमुख स्रोत है। कुरान के बाद हदीस मुस्लिम विधि के निर्माण और व्याख्या का आधार है। हदीस से निकाह, तलाक, वसीयत, विरासत, वक्फ आदि की व्यावहारिक व्याख्या मिलती है। हदीस मुस्लिम समाज में नैतिकता, धार्मिकता और सामाजिक आचरण को दिशा प्रदान करता है।
🔷 39. मुस्लिम विधि में संपत्ति का स्वामित्व कैसे हस्तांतरित होता है?
मुस्लिम विधि में संपत्ति का हस्तांतरण मुख्यतः तीन तरीकों से होता है:
- उत्तराधिकार (Inheritance) – मृत्यु के पश्चात संपत्ति का वितरण कुरानिक नियमों के अनुसार होता है।
- वसीयत (Will) – मृतक 1/3 संपत्ति तक इच्छानुसार किसी को दे सकता है।
- हिबा (दान) – जीवनकाल में स्वेच्छा से बिना मुआवजा संपत्ति देना।
हर प्रकार के हस्तांतरण के लिए स्पष्ट इरादा, कब्ज़ा और प्रमाण आवश्यक होता है।
🔷 40. हिबा (दान) क्या होता है और इसके आवश्यक तत्व क्या हैं?
हिबा मुस्लिम विधि में स्वेच्छा से बिना मुआवज़ा किसी संपत्ति का दान होता है। इसके लिए निम्नलिखित तत्व आवश्यक हैं:
- दान देने का इरादा (Declaration)
- स्वीकार (Acceptance) – प्राप्तकर्ता द्वारा
- कब्ज़ा (Delivery of Possession) – संपत्ति का नियंत्रण प्राप्त करना
हिबा जीवनकाल में ही प्रभावी होता है और इसे रद्द करना कठिन होता है। हिबा परिवार के सदस्यों को भी दिया जा सकता है और यह महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा में सहायक होता है।
🔷 41. मुस्लिम विधि में ‘मरूसी संपत्ति’ क्या होती है?
मरूसी संपत्ति (Ancestral Property) की अवधारणा हिंदू विधि में अधिक स्पष्ट है, लेकिन मुस्लिम विधि में हर संपत्ति स्वतंत्र स्वामित्व वाली मानी जाती है। जब कोई व्यक्ति मरता है, तो उसकी संपत्ति उत्तराधिकारियों में इस्लामी नियमों के अनुसार बांटी जाती है। मुसलमानों में पिता की संपत्ति पुत्रों में जन्म से स्वतः नहीं बंटती, बल्कि मृत्यु के बाद संपत्ति का अधिकार मिलता है। इसलिए मुस्लिम विधि में “मरूसी संपत्ति” की कोई विशेष कानूनी स्थिति नहीं होती।
🔷 42. क्या मुस्लिम महिला मेहर माफ़ कर सकती है?
हाँ, मुस्लिम महिला विवाह या विवाहोत्तर किसी भी समय मेहर को माफ़ (Forgo) कर सकती है, बशर्ते वह यह कार्य स्वेच्छा और दबाव रहित तरीके से करे। इसे ‘हिबा-ए-मेहर’ कहा जाता है। यदि माफ करने में जबरदस्ती हो या धोखा दिया गया हो, तो महिला बाद में अदालत में जाकर मेहर की मांग कर सकती है। कई बार तलाक के समय खुला के तहत महिला मेहर छोड़ देती है, लेकिन उसकी स्वीकृति आवश्यक होती है।
🔷 43. वक्फ अधिनियम, 1995 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
वक्फ अधिनियम, 1995 वक्फ संपत्तियों के संरक्षण और प्रबंधन के लिए बनाया गया था। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं:
- राज्य वक्फ बोर्डों की स्थापना
- वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण अनिवार्य
- वक्फ ट्रिब्यूनल की व्यवस्था
- वक्फ संपत्ति पर अवैध कब्जा दंडनीय अपराध
- मुतवल्ली की नियुक्ति और निगरानी
इस अधिनियम का उद्देश्य मुस्लिम समाज की धार्मिक और चैरिटेबल संपत्तियों की रक्षा करना है।
🔷 44. मुस्लिम विधि में तलाक की आलोचना क्या है?
मुस्लिम तलाक प्रणाली की प्रमुख आलोचनाएँ हैं:
- एकतरफा तलाक की संभावना – विशेषकर तीन तलाक (अब असंवैधानिक)
- महिलाओं की सीमित भूमिका
- सामाजिक असुरक्षा और आर्थिक असंतुलन
- ‘हलाला’ जैसी प्रथाएं जो महिला गरिमा को ठेस पहुंचाती हैं
हालांकि सुधारात्मक कानून जैसे मुस्लिम महिला अधिनियम, 2019 ने इसे संतुलित करने का प्रयास किया है, फिर भी न्यायिक और सामाजिक सुधार की आवश्यकता बनी हुई है।
🔷 45. कुरान में तलाक से पूर्व समझौते पर क्यों बल दिया गया है?
कुरान तलाक को अंतिम उपाय मानता है और इससे पूर्व पति-पत्नी के बीच समझौते और सुलह की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करता है। तलाक से पहले दोनों पक्षों से पंच नियुक्त करने की बात कही गई है ताकि समझौता हो सके। यह व्यवस्था तलाक की संख्या को कम करने और परिवार की एकता बनाए रखने में सहायक होती है। कुरान यह शिक्षा देता है कि तलाक से पहले विवेक, धैर्य और आपसी वार्ता आवश्यक है। इससे विवाह संस्था को स्थायित्व मिलता है।
🔷 46. मुस्लिम विधि में ‘इलाह’ (Ila) क्या होता है?
‘इलाह’ एक प्रकार का तलाक है जो बहुत कम प्रचलन में है। इसमें पति शपथ लेता है कि वह अपनी पत्नी से यौन संबंध नहीं बनाएगा और उसे छोड़ देगा। यदि यह स्थिति चार महीने तक बनी रहती है, और पति ने संबंध नहीं बनाए, तो विवाह स्वतः समाप्त हो जाता है। यदि पति चार महीने के भीतर संबंध बना ले या शपथ तोड़ दे, तो विवाह जारी रहता है। इलाह तलाक-ए-अहसन या बिद्दत की तरह स्पष्ट नहीं होता, बल्कि व्यवहार और समय पर आधारित होता है। इसका उद्देश्य पति द्वारा पत्नी की उपेक्षा को सीमित करना है।
🔷 47. मुस्लिम विधि में ‘ज़िहार’ (Zihar) क्या होता है?
ज़िहार वह प्रथा है जिसमें पति अपनी पत्नी की तुलना अपनी माँ या किसी निषिद्ध संबंधी से कर देता है और कहता है कि वह अब उसके लिए हराम है। यह शब्दों द्वारा किया गया तलाक होता है, परंतु स्वतः तलाक नहीं माना जाता। यदि पति ज़िहार कर देता है तो वह तब तक पत्नी से संबंध नहीं बना सकता जब तक वह कफ्फारा (प्रायश्चित) न करे। कफ्फारे में रोज़े रखना, ग़रीबों को खाना खिलाना या दास मुक्त करना शामिल है। यह प्रथा कुरान में निंदित मानी गई है और इसे अनुचित व्यवहार माना जाता है।
🔷 48. मुस्लिम महिला को ‘फस्ख’ (Faskh) द्वारा तलाक कैसे मिलता है?
‘फस्ख’ का अर्थ है – विवाह का न्यायालय द्वारा विच्छेद। मुस्लिम महिला Dissolution of Muslim Marriages Act, 1939 के अंतर्गत कुछ आधारों पर न्यायालय से तलाक मांग सकती है, जैसे:
- पति 4 वर्षों से लापता हो
- 2 वर्षों से भरण-पोषण न दे रहा हो
- नपुंसकता, पागलपन या कुष्ठ रोग
- अत्याचार या अमानवीय व्यवहार
- विवाह के समय नाबालिग होना और 18 वर्ष की आयु पर अस्वीकृति
इन आधारों पर महिला न्यायालय से विवाह समाप्त कराने की याचना कर सकती है। यह अधिकार मुस्लिम महिलाओं को कानूनी संरक्षण प्रदान करता है।
🔷 49. मुस्लिम विधि में माता-पिता का उत्तराधिकार में क्या अधिकार होता है?
माता-पिता मुस्लिम उत्तराधिकार नियमों के अनुसार शेयरर्स (Sharers) की श्रेणी में आते हैं।
- माता को यदि मृतक की संतान हो तो 1/6 हिस्सा मिलता है, और यदि संतान न हो तो 1/3 हिस्सा।
- पिता को भी सामान्यतः 1/6 हिस्सा मिलता है, और यदि कोई रेजिडुअरी न हो तो वह शेष संपत्ति भी प्राप्त कर सकता है।
यह व्यवस्था कुरान में स्पष्ट की गई है और माता-पिता को सम्मानपूर्वक उत्तराधिकार दिलाने का माध्यम है।
🔷 50. मुस्लिम विधि में अनाथ पोते का क्या उत्तराधिकार होता है?
मुस्लिम उत्तराधिकार कानून के अनुसार, यदि पिता की मृत्यु दादा से पहले हो जाए, तो पोता, अपने पिता की जगह उत्तराधिकारी नहीं बनता। इसका कारण यह है कि मुस्लिम विधि में “प्रतिनिधित्व का सिद्धांत” (Principle of Representation) मान्य नहीं है। इस कारण, यदि मृतक के जीवित पुत्र हैं, तो पोते को हिस्सा नहीं मिलेगा। हालांकि, कुछ सुधारवादी कानूनों और वसीयत के माध्यम से पोते को संपत्ति देने की व्यवस्था की जा सकती है। यह एक विवादास्पद बिंदु है और न्यायसंगत समाधान की आवश्यकता महसूस की जाती है।