“धारा 75, बीएनएसएस के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय”
परिचय:
भारतीय विधि प्रणाली में आपराधिक न्याय प्रक्रिया को और अधिक प्रभावी बनाने हेतु समय-समय पर कानूनों में संशोधन एवं नवाचार होते रहे हैं। भारतीय न्याय संहिता (Bharatiya Nagarik Suraksha Sanhita – BNSS), 2023 की धारा 75 इस दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। हाल ही में छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने धारा 75 की व्याख्या करते हुए यह स्पष्ट किया कि यदि कोई अभियुक्त गिरफ्तारी से बच रहा हो, तो मजिस्ट्रेट को जांच के दौरान भी गिरफ्तारी वारंट जारी करने का अधिकार है।
प्रमुख बिंदु:
- मामले की पृष्ठभूमि:
यह मामला उस समय उठा जब एक अभियुक्त गिरफ्तारी से बचते हुए लगातार अनुपस्थित रहा और जांच में सहयोग नहीं कर रहा था। पुलिस ने मजिस्ट्रेट से गिरफ्तारी वारंट जारी करने की मांग की थी। याचिकाकर्ता ने तर्क दिया कि गिरफ्तारी वारंट केवल तभी जारी किया जा सकता है जब मामला विचाराधीन हो। - छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायमूर्ति राकेश मोहन पांडे की एकल पीठ ने स्पष्ट किया कि बीएनएसएस की धारा 75 के अंतर्गत मजिस्ट्रेट को यह अधिकार प्राप्त है कि वह जांच के दौरान भी गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकते हैं, विशेष रूप से जब यह सिद्ध हो कि अभियुक्त जानबूझकर कानून से बच रहा है। - धारा 75 बीएनएसएस का विश्लेषण:
धारा 75 बीएनएसएस कहती है कि यदि कोई व्यक्ति किसी संज्ञेय अपराध में आरोपी है और न्यायालय के समक्ष उपस्थित नहीं होता या जानबूझकर गिरफ्तारी से बचता है, तो मजिस्ट्रेट जांच के किसी भी चरण में गिरफ्तारी वारंट जारी कर सकता है। इसका उद्देश्य जांच प्रक्रिया में बाधा डालने वाले अभियुक्तों के विरुद्ध कठोर कार्यवाही सुनिश्चित करना है। - न्यायालय की टिप्पणी:
अदालत ने कहा कि न्यायिक प्रक्रिया का उद्देश्य न्याय को बाधित नहीं होने देना है। यदि अभियुक्त बार-बार बुलाने के बावजूद उपस्थित नहीं हो रहा, तो जांच का प्रभावी संचालन संभव नहीं है। ऐसी स्थिति में अदालत को गिरफ्तारी वारंट जारी करने का पूर्ण अधिकार है।
महत्वपूर्ण प्रभाव:
- यह निर्णय जांच एजेंसियों को ऐसे अभियुक्तों के विरुद्ध प्रभावी कार्यवाही करने का अधिकार प्रदान करता है जो कानून की पकड़ से बचते फिरते हैं।
- इससे यह भी स्पष्ट होता है कि बीएनएसएस का उद्देश्य केवल अभियोजन नहीं, बल्कि निष्पक्ष और त्वरित न्याय सुनिश्चित करना भी है।
- यह प्रावधान आरोपियों द्वारा जांच में अड़चन डालने की प्रवृत्ति पर लगाम लगाता है।
निष्कर्ष:
छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय का यह निर्णय न केवल धारा 75 बीएनएसएस की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी सुनिश्चित करता है कि न्यायिक प्रक्रिया की अवहेलना करने वाले अभियुक्तों को कानून के शिकंजे में लाया जा सके। यह निर्णय भविष्य में ऐसे मामलों में मार्गदर्शक सिद्ध होगा जहां आरोपी जांच से बचते हुए कानून का दुरुपयोग करने का प्रयास करते हैं।