🔷” बंबई हाईकोर्ट का ऐतिहासिक फैसला: सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद आधार कार्ड अनिवार्य बताने पर बैंक को ₹50,000 मुआवजा देने का निर्देश “
📍 मामले का संक्षिप्त विवरण:
हाल ही में बंबई हाईकोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाते हुए कहा कि किसी बैंक द्वारा आधार कार्ड को बैंक खाता खोलने के लिए अनिवार्य बताया जाना कानूनन गलत है, विशेषकर जब यह बात पहले ही सुप्रीम कोर्ट के “जस्टिस के.एस. पुट्टस्वामी बनाम यूनियन ऑफ इंडिया (2018)” के ऐतिहासिक फैसले में स्पष्ट की जा चुकी है।
अदालत ने यह भी कहा कि संबंधित बैंक की जिद के चलते जिस कंपनी का खाता समय पर नहीं खुल पाया, उसे ₹50,000 का मुआवजा दिया जाना चाहिए।
⚖️ मामला क्या था?
एक निजी कंपनी ने अपने व्यवसायिक उद्देश्यों के लिए एक राष्ट्रीयकृत बैंक में खाता खोलने का प्रयास किया। बैंक अधिकारियों ने स्पष्ट रूप से कहा कि खाता खोलने के लिए आधार कार्ड प्रस्तुत करना अनिवार्य है, अन्यथा आवेदन प्रक्रिया आगे नहीं बढ़ेगी।
कंपनी ने जब यह बताया कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय आधार की अनिवार्यता को खारिज कर चुका है, तो भी बैंक ने अपनी जिद नहीं छोड़ी। परिणामस्वरूप खाता खोलने में अनावश्यक देरी हुई, जिससे कंपनी को आर्थिक और व्यवसायिक क्षति हुई।
🧑⚖️ हाईकोर्ट की टिप्पणियाँ:
न्यायमूर्ति गौतम पटेल की खंडपीठ ने कहा:
“बैंक द्वारा आधार को अनिवार्य मानना न केवल सर्वोच्च न्यायालय के आदेश का उल्लंघन है, बल्कि यह नागरिकों के निजता के अधिकार और वैधानिक स्वायत्तता के खिलाफ है।”
अदालत ने यह भी जोड़ा कि:
“कोई भी बैंक खाता खोलने के लिए आधार कार्ड की मांग कर सकता है, लेकिन उसे वैकल्पिक दस्तावेजों की भी स्वीकृति देनी होगी। केवल आधार की मांग करना discriminatory और unconstitutional है।”
📜 पुट्टस्वामी निर्णय की पृष्ठभूमि:
सुप्रीम कोर्ट ने Puttaswamy v. Union of India (2018) में स्पष्ट किया था कि:
- आधार को स्वैच्छिक दस्तावेज के रूप में उपयोग किया जा सकता है, लेकिन इसे अनिवार्य नहीं ठहराया जा सकता, विशेषकर निजी क्षेत्र में।
- बैंक खाते, मोबाइल सिम और अन्य सेवाओं के लिए आधार की अनिवार्यता असंवैधानिक है।
- निजता का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मौलिक अधिकार है।
💰 मुआवजे का आदेश:
बंबई हाईकोर्ट ने बैंक के रवैये को अत्यधिक कठोर और गैर-कानूनी माना। अदालत ने आदेश दिया कि कंपनी को ₹50,000 का मुआवजा दिया जाए ताकि उसे हुए व्यावसायिक नुकसान की आंशिक भरपाई हो सके और साथ ही बैंक को भविष्य में ऐसा करने से रोका जा सके।
🔍 इस निर्णय के निहितार्थ:
✅ आम नागरिकों और कंपनियों को उनके कानूनी अधिकारों की जानकारी होनी चाहिए।
✅ बैंक और अन्य संस्थान सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों का पालन करने के लिए बाध्य हैं।
✅ इस निर्णय से यह संदेश गया है कि बिना वैधानिक आधार के किसी दस्तावेज की अनिवार्यता थोपना ग्राहकों के अधिकारों का उल्लंघन है।
✅ यह मामला डिजिटल निजता, डेटा सुरक्षा, और नागरिक स्वतंत्रता के संदर्भ में एक मील का पत्थर है।
🖊️ निष्कर्ष:
बंबई हाईकोर्ट का यह निर्णय न केवल आधार की वैधानिक स्थिति को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी दर्शाता है कि नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए न्यायपालिका से उचित सहायता मिल सकती है।
यह फैसला बैंकिंग सिस्टम में जवाबदेही और संवैधानिक चेतना को और मजबूत करता है।