🔴 लिव-इन में रहने वाली लड़की जज के सवाल से बेहोश: कोर्ट में पेश प्रेमी जोड़े का मामला, लड़की की उम्र मात्र 19 वर्ष
📍स्थान: उत्तर भारत के एक जिला न्यायालय में हाल ही में एक असामान्य लेकिन संवेदनशील मामला सामने आया, जब एक लिव-इन रिलेशनशिप में रह रही 19 वर्षीय युवती अदालत में जज के एक सीधे सवाल से बेहोश हो गई।
🔍 घटना का विवरण:
प्रेमी जोड़ा, जो पिछले कुछ महीनों से लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा था, को लड़की के परिवार द्वारा दर्ज कराई गई शिकायत के चलते अदालत में पेश किया गया था। परिजनों ने युवक पर अपहरण, प्रलोभन देकर साथ ले जाने और नाबालिग से संबंध बनाने का आरोप लगाया था। हालांकि, जांच में यह सामने आया कि लड़की 19 वर्ष की है, यानी कानूनन बालिग।
जब दोनों को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया गया, तो अदालत ने युवती से यह सीधा सवाल पूछा:
“क्या तुम अपनी मर्जी से इस युवक के साथ रह रही हो, और क्या तुम्हें किसी प्रकार का दबाव या धोखा दिया गया है?”
जज का यह सवाल सुनते ही लड़की की आंखों से आंसू बहने लगे और कुछ ही क्षणों बाद वह बेहोश होकर गिर पड़ी। अदालत में मौजूद वकील, सुरक्षाकर्मी और अन्य लोग तुरंत हरकत में आए और लड़की को अस्पताल ले जाया गया।
🧠 मनोवैज्ञानिक पहलू:
विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे मामलों में लड़कियां भावनात्मक और सामाजिक दबाव के बीच फंसी होती हैं। परिवार, समाज और न्यायिक प्रणाली की गंभीरता उन्हें मानसिक रूप से थका देती है। जज का सीधा और संवेदनशील सवाल लड़की के अंदर दबे तनाव को बाहर ले आया, जिससे वह मानसिक आघात सह नहीं सकी और बेहोश हो गई।
📜 कानूनी दृष्टिकोण:
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप अवैध नहीं है यदि दोनों पक्ष बालिग हों और अपनी स्वेच्छा से साथ रह रहे हों। सुप्रीम कोर्ट भी कई बार कह चुका है कि यदि दो बालिग एक साथ रहना चाहते हैं, तो यह उनका मौलिक अधिकार है।
हालांकि, यदि लड़की की उम्र 18 वर्ष से कम होती, तो मामला POCSO Act के तहत आपराधिक बन जाता।
👪 परिवार का पक्ष:
लड़की के पिता ने कोर्ट को बताया कि उनकी बेटी को प्रेमजाल में फंसाया गया और उसे “भविष्य के सपने दिखाकर बहकाया गया”। वहीं युवक का दावा है कि दोनों ने आपसी सहमति से एक साथ रहने का निर्णय लिया था और वे विवाह करने वाले हैं।
⚖️ अदालत का रुख:
फिलहाल कोर्ट ने लड़की की मेडिकल जांच के आदेश दिए हैं और उसकी मानसिक स्थिति को देखते हुए सुनवाई कुछ दिनों के लिए स्थगित कर दी है। न्यायालय यह भी सुनिश्चित करना चाहता है कि युवती का बयान बिना दबाव के लिया जाए।
🔚 निष्कर्ष:
यह मामला न केवल कानून और अधिकारों की व्याख्या करता है, बल्कि हमारे समाज में युवा जोड़ों की स्वतंत्रता और परिवार की अपेक्षाओं के बीच की गहराई को भी उजागर करता है। लिव-इन जैसे रिश्तों को लेकर समाज में अब भी अनेक भ्रांतियां हैं, जिन्हें दूर करने की आवश्यकता है।