1. हिंदू विवाह की परिभाषा और प्रकृति क्या है?
हिंदू विवाह केवल एक सामाजिक संस्था नहीं बल्कि एक धार्मिक संस्कार भी है। यह “एक बार का संस्कार” (Once in a lifetime sacrament) माना जाता है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के अनुसार विवाह के लिए कुछ आवश्यक शर्तें होती हैं जैसे – वर-वधू दोनों हिंदू हों, दोनों की आयु क्रमशः 21 और 18 वर्ष हो, मानसिक रूप से सक्षम हों, और नजदीकी रक्त संबंध न हो। विवाह एक पवित्र बंधन है जिसका उद्देश्य धर्म, संतानोत्पत्ति, और पारिवारिक जीवन को स्थापित करना है।
2. हिंदू विवाह के लिए आवश्यक शर्तें क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 के तहत विवाह की वैधता के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक हैं:
(1) दोनों पक्ष हिंदू हों,
(2) विवाह के समय दोनों मानसिक रूप से सक्षम हों,
(3) विवाह की वैध आयु – पुरुष के लिए 21 वर्ष, महिला के लिए 18 वर्ष,
(4) दोनों के बीच वैवाहिक संबंधों में निषिद्ध डिग्री का संबंध नहीं होना चाहिए,
(5) यदि पक्षों में से कोई पहले से विवाहित है तो उसका विवाह समाप्त हो चुका हो। इन शर्तों की पूर्ति के बिना विवाह अवैध या शून्य हो सकता है।
3. सपिंड संबंध किसे कहते हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(f) के अनुसार, सपिंड संबंध उस स्थिति को कहते हैं जिसमें एक व्यक्ति और उसका कोई अन्य व्यक्ति एक समान पूर्वज से संबंधित होते हैं। यदि पुरुष और स्त्री के बीच पांच पीढ़ी तक (पिता की ओर से) और तीन पीढ़ी तक (माता की ओर से) कोई समान पूर्वज है, तो वे सपिंड माने जाते हैं। सपिंड संबंध में विवाह प्रतिबंधित है, जब तक कि रीति-रिवाज इसकी अनुमति न दें।
4. हिंदू विधवा का उत्तराधिकार में अधिकार क्या है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, पति की मृत्यु के बाद पत्नी को उसके संपत्ति में अधिकार प्राप्त होता है। धारा 14 के अनुसार, यदि विधवा को किसी भी प्रकार से पति की संपत्ति प्राप्त होती है – चाहे उत्तराधिकार से या भरण-पोषण के रूप में – तो वह उसे पूर्ण स्वामित्व के रूप में रखेगी। इससे पहले यह अधिकार केवल सीमित था, लेकिन अब विधवा को स्वातंत्र्य से संपत्ति बेचने, हस्तांतरित करने या उत्तराधिकार देने का अधिकार है।
5. उत्तराधिकार में पुत्र और पुत्री के अधिकार क्या हैं?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की संशोधित धारा 6 (2005 के संशोधन के बाद) के अनुसार, पुत्र और पुत्री दोनों को समान अधिकार प्राप्त हैं। पहले केवल पुत्र को संयुक्त हिंदू परिवार की पैतृक संपत्ति में जन्म से अधिकार मिलता था, लेकिन अब पुत्री को भी वही अधिकार और उत्तरदायित्व प्राप्त हैं। वह भी सह-उत्तराधिकारी बनती है और पैतृक संपत्ति में अपने हिस्से का दावा कर सकती है।
6. दत्तक ग्रहण की परिभाषा क्या है?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार, “दत्तक ग्रहण” एक ऐसा अधिनियम है जिसके द्वारा एक बालक को उसका जैविक परिवार छोड़कर दूसरे व्यक्ति का पुत्र या पुत्री बनाया जाता है। यह केवल धर्म के पालन और वंश को आगे बढ़ाने के उद्देश्य से किया जाता है। इसके लिए शर्तें होती हैं जैसे – दत्तक लेने वाला सक्षम होना चाहिए, बालक की आयु 15 वर्ष से कम होनी चाहिए, और सहमति आवश्यक है।
7. दत्तक ग्रहण की वैधता के लिए आवश्यक शर्तें क्या हैं?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार दत्तक ग्रहण की वैधता के लिए निम्नलिखित शर्तें आवश्यक हैं:
(1) दत्तक लेने वाला हिंदू हो,
(2) उसे दत्तक लेने का अधिकार हो (यदि पुरुष है तो विवाहित हो सकता है, स्त्री तभी जब पति की मृत्यु हो गई हो),
(3) दत्तक बालक हिंदू हो,
(4) बालक की आयु 15 वर्ष से कम हो, और वह पहले से दत्तक न लिया गया हो,
(5) जैविक माता-पिता की सहमति प्राप्त होनी चाहिए।
8. हिंदू विवाह में तलाक के आधार क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 में तलाक के विभिन्न आधारों का उल्लेख किया गया है:
(1) व्यभिचार,
(2) क्रूरता,
(3) धर्म परिवर्तन,
(4) मानसिक विकार,
(5) संन्यास लेना,
(6) सात वर्ष से अधिक समय से जीवनसाथी की अनुपस्थिति।
इसके अतिरिक्त, स्त्री को कुछ विशेष अधिकार भी प्राप्त हैं जैसे कि दूसरे विवाह की स्थिति में तलाक का अधिकार।
9. हिंदू विवाह का शून्यता और शून्यकरण क्या है?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 में तीन प्रकार के विवाह होते हैं – वैध, शून्य और शून्यकरणीय।
शून्य विवाह वे होते हैं जो कानूनन मान्य नहीं होते, जैसे– सपिंड संबंध में या जीवित वैवाहिक साथी के रहते हुए किया गया विवाह।
शून्यकरणीय विवाह वे होते हैं जिन्हें न्यायालय से शून्य घोषित कराया जा सकता है, जैसे धोखे से, मानसिक विकृति के आधार पर या असहमति से किया गया विवाह।
10. उत्तराधिकार में प्राथमिकता का क्रम क्या है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में उत्तराधिकार का स्पष्ट वर्गीकरण किया गया है।
पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी: पुत्र, पुत्री, विधवा, मां।
दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारी: पिता, भाई, बहन आदि।
यदि पहली श्रेणी के उत्तराधिकारी उपलब्ध हों तो दूसरी श्रेणी के उत्तराधिकारी को अधिकार नहीं मिलता। संपत्ति समान रूप से विभाजित की जाती है। पुत्र और पुत्री को समान अधिकार होते हैं।
11. हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की मुख्य विशेषताएँ क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 भारत में हिंदुओं के लिए विवाह से संबंधित एक विशेष अधिनियम है। इसकी मुख्य विशेषताएँ हैं:
(1) विवाह को एक वैधानिक संस्था का दर्जा मिला,
(2) इसमें विवाह की वैधता के लिए शर्तें निर्धारित की गईं,
(3) शून्य और शून्यकरणीय विवाह की धाराएँ जोड़ी गईं,
(4) पति-पत्नी को तलाक का अधिकार प्रदान किया गया,
(5) पुनर्विवाह की अनुमति दी गई।
यह अधिनियम विवाह को केवल धार्मिक संस्कार नहीं बल्कि एक वैध कानूनी अनुबंध के रूप में भी मान्यता देता है।
12. हिंदू विवाह में तलाक द्वारा पृथक्करण (Divorce) और न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) में अंतर बताइए।
तलाक (Divorce) पति-पत्नी के वैवाहिक संबंध को पूरी तरह समाप्त करता है, जबकि न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) के तहत वे केवल साथ नहीं रहते, परंतु विवाह समाप्त नहीं होता।
तलाक के बाद दोनों पुनः विवाह कर सकते हैं, लेकिन न्यायिक पृथक्करण में ऐसा नहीं होता जब तक तलाक न हो। तलाक अंतिम होता है जबकि न्यायिक पृथक्करण सुधार की संभावना छोड़ता है।
13. हिंदू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम, 1856 का उद्देश्य क्या था?
यह अधिनियम ब्रिटिश काल में पारित किया गया था जिसका उद्देश्य विधवा स्त्रियों को पुनर्विवाह की वैधानिक मान्यता देना था। परंपरागत हिंदू समाज में विधवाओं को पुनर्विवाह का अधिकार नहीं था। इस अधिनियम ने विधवा स्त्रियों को पुनः वैवाहिक जीवन जीने की स्वतंत्रता दी और उन्हें सामाजिक सम्मान दिलाने की दिशा में एक बड़ा कदम था।
14. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की विशेषताएँ बताइए।
यह अधिनियम हिंदू पुरुषों और स्त्रियों की संपत्ति में उत्तराधिकार के नियमों को नियंत्रित करता है। इसकी विशेषताएँ:
(1) पुत्र और पुत्री दोनों को समान अधिकार,
(2) पत्नी, मां, विधवा को संपत्ति में हिस्सा,
(3) संपत्ति का वर्गीकरण – पैतृक और स्वार्जित,
(4) सह-उत्तराधिकारी प्रणाली को बढ़ावा,
(5) स्त्रियों को पूर्ण स्वामित्व।
2005 में किए गए संशोधन ने पुत्री को भी समान कानूनी अधिकार प्रदान किए।
15. हिंदू कानून में ‘कुटुंब संपत्ति’ क्या है?
कुटुंब संपत्ति (Joint Family Property) वह संपत्ति होती है जो संयुक्त हिंदू परिवार की होती है और सभी सह-उत्तराधिकारियों का उस पर साझा अधिकार होता है। यह पैतृक हो सकती है या परिवार द्वारा अर्जित। कुटुंब का प्रबंध ‘कुलपति’ (Karta) करता है। इसे ‘Coparcenary Property’ भी कहा जाता है।
16. हिंदू संयुक्त परिवार का प्रमुख (कुलपति) कौन होता है और उसकी भूमिका क्या है?
संयुक्त हिंदू परिवार का प्रमुख ‘कुलपति’ या ‘Karta’ कहलाता है। आमतौर पर यह परिवार का सबसे बुज़ुर्ग पुरुष सदस्य होता है। उसकी भूमिका में परिवार की संपत्ति का प्रबंधन, आर्थिक निर्णय, ऋण लेना, मुकदमे करना आदि शामिल होते हैं। यद्यपि अन्य सदस्य भी संपत्ति में हिस्सेदार होते हैं, परन्तु प्रबंधन की संपूर्ण शक्ति कुलपति के पास होती है।
17. हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार कौन दत्तक ले सकता है?
धारा 7 और 8 के अनुसार:
- पुरुष: यदि विवाहित हो तो पत्नी की सहमति आवश्यक है।
- स्त्री: केवल तभी दत्तक ले सकती है जब वह विधवा, तलाकशुदा या पति द्वारा परित्यक्त हो।
दोनों को मानसिक रूप से सक्षम होना चाहिए, और उम्र 21 वर्ष से अधिक होनी चाहिए।
18. किसे दत्तक लिया जा सकता है?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 की धारा 10 के अनुसार:
(1) केवल हिंदू बालक या बालिका को ही दत्तक लिया जा सकता है,
(2) वह पहले से दत्तक न लिया गया हो,
(3) उसकी आयु 15 वर्ष से कम हो,
(4) वह अविवाहित हो,
(5) यदि विशेष परिस्थिति में 15 वर्ष से अधिक है, तो रीति-रिवाजों से अनुमति होनी चाहिए।
19. दत्तक ग्रहण की विधि क्या है?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 की धारा 11 के अनुसार दत्तक ग्रहण की वैधता के लिए वास्तविक हस्तांतरण (actual giving and taking) आवश्यक है। यह क्रिया उस भावना और उद्देश्य से होनी चाहिए कि बालक को वास्तव में अपना पुत्र या पुत्री बनाया जा रहा है। इसे सामाजिक और धार्मिक विधियों से संपन्न किया जाना चाहिए।
20. हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत विशेष विवाह अधिनियम का क्या प्रभाव है?
विशेष विवाह अधिनियम, 1954 उन लोगों के लिए लागू होता है जो विभिन्न धर्मों में हैं या धार्मिक रीति-रिवाजों से विवाह नहीं करना चाहते। यह विवाह को पूरी तरह सिविल अनुबंध के रूप में देखता है। हिंदू विवाह अधिनियम केवल हिंदुओं पर लागू होता है, जबकि विशेष विवाह अधिनियम धर्म-निरपेक्ष है और अंतर-धार्मिक विवाहों को मान्यता देता है।
21. हिंदू विधवा को दत्तक ग्रहण का अधिकार है या नहीं?
हां, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 की धारा 8 के अनुसार विधवा स्त्री को दत्तक ग्रहण करने का अधिकार है। उसे दत्तक बालक को अपनी संतान के रूप में स्वीकार करने का वैधानिक अधिकार है, परंतु उसे स्वयं सक्षम और विधवा होना चाहिए। यह अधिकार विधवा को सामाजिक सुरक्षा देने हेतु मान्यता प्राप्त है।
22. हिंदू विवाह में पुनर्विवाह की अनुमति कब दी जाती है?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 15 के अनुसार, यदि किसी पक्ष ने तलाक प्राप्त कर लिया है और अपील की समयसीमा समाप्त हो गई है, या अपील खारिज हो गई है, तो पुनर्विवाह वैध होगा। पहले विधवा या विधुर को पुनर्विवाह की अनुमति नहीं थी, परंतु अब यह पूर्ण रूप से वैध है।
23. पुत्र की तुलना में पुत्री के अधिकारों में 2005 के बाद क्या बदलाव हुआ?
2005 के संशोधन ने पुत्री को संयुक्त परिवार की संपत्ति में समान सह-उत्तराधिकारी बना दिया। पहले केवल पुत्र को यह अधिकार प्राप्त था। अब पुत्री भी पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार रखती है और उसे उत्तराधिकार, प्रबंधन, तथा भरण-पोषण में समान अधिकार प्राप्त हैं।
24. कृत्रिम गर्भाधान द्वारा उत्पन्न संतान का उत्तराधिकार अधिकार क्या है?
यदि कृत्रिम गर्भाधान विधिक रूप से पति-पत्नी की सहमति से किया गया है, तो उत्पन्न संतान को उनके उत्तराधिकारी के रूप में पूर्ण अधिकार प्राप्त होते हैं। ऐसे बच्चे को वैधानिक संतान माना जाता है और वह संपत्ति में बराबर हिस्सा प्राप्त कर सकता है।
25. हिंदू विधि में ‘स्त्रीधन’ का क्या अर्थ है?
स्त्रीधन वह संपत्ति है जो स्त्री को विवाह, उपहार, विरासत या अन्य किसी माध्यम से प्राप्त होती है। विवाह के दौरान प्राप्त आभूषण, नकदी, चल-अचल संपत्ति आदि स्त्रीधन माने जाते हैं। स्त्री को उस पर पूर्ण अधिकार होता है और पति या ससुराल पक्ष उस पर दावा नहीं कर सकते।
26. अवैध संतान का उत्तराधिकार अधिकार क्या है?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार, अवैध संतान अपने माता या पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी हो सकती है, परंतु संयुक्त परिवार की संपत्ति में उसका कोई अधिकार नहीं होता। उसे केवल उस माता या पिता की संपत्ति में हिस्सा मिल सकता है जिससे वह उत्पन्न हुआ है।
27. संयुक्त परिवार में कुलपति की स्त्री क्या संपत्ति प्रबंध कर सकती है?
यदि कुलपति (पति) जीवित है, तो उसकी स्त्री संपत्ति का स्वतंत्र प्रबंधन नहीं कर सकती। परंतु यदि वह विधवा हो जाती है, तो वह सीमित अधिकार के साथ कुलपति के कर्तव्य निभा सकती है। हालांकि, वह भी भरण-पोषण, परिवार के कल्याण और सीमित प्रबंधन का कार्य कर सकती है।
28. हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह की पंजीकरण की आवश्यकता क्या है?
हालांकि विवाह की वैधता के लिए पंजीकरण आवश्यक नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार विवाह का पंजीकरण कानूनी साक्ष्य के रूप में सहायक होता है। यह तलाक, उत्तराधिकार, और सामाजिक विवादों में प्रमाणिक दस्तावेज के रूप में कार्य करता है।
29. धार्मिक रूप से किए गए विवाह और विधिक विवाह में अंतर क्या है?
धार्मिक विवाह रीति-रिवाजों के अनुसार सम्पन्न होते हैं, जैसे सप्तपदी, अग्निपरिक्रमा आदि। जबकि विधिक विवाह विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत सिविल अधिकारी के समक्ष पंजीकृत होता है। धार्मिक विवाह सामाजिक मान्यता पर आधारित होता है, जबकि विधिक विवाह कानूनी मान्यता पर आधारित होता है।
30. हिंदू विधि में ‘कुटुंब विभाजन’ (Partition) क्या है?
संयुक्त परिवार की संपत्ति में जब सह-उत्तराधिकारी अपनी हिस्सेदारी अलग करता है तो उसे ‘कुटुंब विभाजन’ कहते हैं। इसमें प्रत्येक सदस्य को उसके हिस्से का अधिकार अलग रूप से मिल जाता है। विभाजन के बाद वह सदस्य स्वतंत्र रूप से अपनी संपत्ति का स्वामी बन जाता है।
31. हिंदू विवाह की पंजीकरण प्रक्रिया क्या है?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत विवाह की पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने इसे आवश्यक बताते हुए राज्य सरकारों को पंजीकरण की व्यवस्था करने का निर्देश दिया है। विवाह के पंजीकरण हेतु दोनों पक्षों को आवेदन, आयु प्रमाणपत्र, विवाह प्रमाण, गवाहों के साथ संबंधित विवाह अधिकारी के समक्ष उपस्थित होना होता है। यह विवाह का कानूनी प्रमाण होता है।
32. पुत्रवती कन्या का दत्तक ग्रहण किया जा सकता है या नहीं?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार, यदि किसी बालिका की उम्र 15 वर्ष से कम है और वह अविवाहित है, तो उसे दत्तक लिया जा सकता है। यदि बालिका के स्वयं के संतान (पुत्र या पुत्री) हैं, तो वह दत्तक के योग्य नहीं मानी जाती। इसलिए पुत्रवती कन्या को दत्तक लेना वैध नहीं है।
33. समानता का सिद्धांत हिंदू उत्तराधिकार कानून में कैसे लागू होता है?
2005 के संशोधन से पहले पुत्री को पैतृक संपत्ति में समान अधिकार प्राप्त नहीं थे। संशोधन के बाद पुत्र और पुत्री दोनों को समान रूप से सह-उत्तराधिकारी घोषित किया गया। इससे लैंगिक समानता को बढ़ावा मिला और समानता का संवैधानिक सिद्धांत लागू हुआ।
34. हिंदू विधवा का संपत्ति पर अधिकार तलाकशुदा स्त्री से कैसे भिन्न है?
विधवा स्त्री को अपने पति की संपत्ति में उत्तराधिकार प्राप्त होता है, जबकि तलाकशुदा स्त्री को पति की संपत्ति में कोई अधिकार नहीं होता, जब तक कि पति की मृत्यु तलाक से पहले न हुई हो या कोई विशेष अनुबंध न हो। तलाक के बाद स्त्री केवल भरण-पोषण की हकदार होती है।
35. हिंदू विवाह में सप्तपदी का क्या महत्व है?
सप्तपदी का अर्थ है अग्नि के चारों ओर सात फेरे। हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार, यदि विवाह रीति-रिवाजों के अनुसार सम्पन्न होता है, तो सप्तपदी के बाद विवाह पूर्ण माना जाता है। सप्तपदी वैवाहिक बंधन का धार्मिक और सामाजिक प्रतीक है।
36. संयुक्त परिवार की संपत्ति और स्वार्जित संपत्ति में क्या अंतर है?
संयुक्त परिवार की संपत्ति वह होती है जो वंशागत रूप से प्राप्त होती है और सभी सह-उत्तराधिकारियों की होती है। स्वार्जित संपत्ति वह होती है जो किसी सदस्य ने स्वयं के श्रम या व्यवसाय से अर्जित की हो। संयुक्त संपत्ति सभी में बंटती है जबकि स्वार्जित केवल अर्जक की होती है।
37. हिंदू विधि में अविवाहित पुत्री को विवाहोपरांत पिता की संपत्ति में अधिकार है या नहीं?
2005 के संशोधन के पश्चात पुत्री, चाहे विवाहित हो या अविवाहित, पिता की संपत्ति में उत्तराधिकारी होती है। विवाह की स्थिति इस अधिकार को प्रभावित नहीं करती। पुत्री को पैतृक संपत्ति में पुत्र के समान हिस्सा मिलता है।
38. कृत्रिम गर्भाधान से जन्मी संतान को दत्तक लिया जा सकता है?
यदि कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से उत्पन्न संतान किसी अन्य महिला की कोख से जन्मी हो और उसे जैविक माता-पिता ने अपनाया न हो, तो उसे दत्तक लिया जा सकता है, बशर्ते कि वह दत्तक योग्य हो। परंतु यदि वह पहले से वैध संतान है, तो उसे दोबारा दत्तक नहीं लिया जा सकता।
39. पति की मृत्यु के बाद पत्नी के पुनर्विवाह से उसका उत्तराधिकार अधिकार समाप्त होता है या नहीं?
नहीं, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के अनुसार पति की मृत्यु के बाद पत्नी को जो संपत्ति प्राप्त होती है, वह उसका पूर्ण स्वामित्व हो जाता है। पुनर्विवाह से उसका अधिकार समाप्त नहीं होता। वह उत्तराधिकारी बनी रहती है।
40. पुत्र और सौतेले पुत्र के बीच संपत्ति के अधिकारों में क्या अंतर है?
पुत्र को पैतृक संपत्ति में जन्म से अधिकार होता है, जबकि सौतेले पुत्र को तभी अधिकार प्राप्त होगा यदि उसे विधिक रूप से दत्तक लिया गया हो या कोई उत्तराधिकार संबंधी वसीयत हो। सामान्यतः सौतेले पुत्र को समान अधिकार प्राप्त नहीं होते।
41. क्या विवाह के पश्चात पत्नी पति की संपत्ति की सह-स्वामिनी बनती है?
नहीं, हिंदू विधि में विवाह के पश्चात पत्नी को पति की संपत्ति में सह-स्वामिनी का दर्जा नहीं मिलता। यदि पति की मृत्यु होती है तो वह उत्तराधिकारी के रूप में संपत्ति प्राप्त कर सकती है। जीवित रहते हुए वह केवल भरण-पोषण की हकदार होती है।
42. क्या दो विवाहित स्त्रियाँ एक ही पुरुष से विवाह कर सकती हैं?
नहीं, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(1) के अनुसार, एक पति या पत्नी के रहते दूसरा विवाह शून्य होगा। दूसरा विवाह ‘Bigamy’ कहलाता है और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के अंतर्गत दंडनीय अपराध है।
43. हिंदू विधि में मानसिक विकार का विवाह पर क्या प्रभाव है?
यदि विवाह के समय कोई पक्ष मानसिक रूप से अस्वस्थ हो और विवाह की जिम्मेदारियाँ निभाने में असमर्थ हो, तो ऐसा विवाह शून्यकरणीय (voidable) होगा। यह हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 5(ii) के अंतर्गत आता है।
44. तलाक के उपरांत पुनर्विवाह का अधिकार किस आधार पर वैध होता है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, तलाक के बाद यदि अपील की समयसीमा समाप्त हो गई है या अपील खारिज हो गई है, तो पक्ष पुनर्विवाह कर सकता है। जब तक तलाक पूर्ण न हो जाए, पुनर्विवाह अवैध होगा।
45. हिंदू विधि में गोद लिए गए पुत्र का अधिकार जैविक पुत्र के समान होता है या नहीं?
हां, दत्तक पुत्र को दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार जैविक पुत्र के समान अधिकार प्राप्त होते हैं। वह संपत्ति में पूर्ण उत्तराधिकारी होता है और उसे वैध संतान की तरह माना जाता है।
46. हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह की विधि का निर्धारण कैसे होता है?
धारा 7 के अनुसार, विवाह विधिक रूप से तब वैध होगा जब वह उस पक्ष के रीति-रिवाजों के अनुसार संपन्न किया जाए। उदाहरणस्वरूप, सप्तपदी या कन्यादान जैसी परंपराएँ।
47. दत्तक पुत्र की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति पर अधिकार किसका होता है?
यदि दत्तक पुत्र की वैध संतान है, तो उसकी संपत्ति उन तक जाएगी। यदि नहीं है, तो दत्तक माता-पिता को उत्तराधिकार प्राप्त होगा। दत्तक पुत्र की संपत्ति उसी नियम से विभाजित होती है जैसे जैविक पुत्र की।
48. क्या पति-पत्नी एक-दूसरे की संपत्ति के उत्तराधिकारी होते हैं?
हां, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार पति-पत्नी एक-दूसरे के प्राथमिक उत्तराधिकारी होते हैं। पति की मृत्यु पर पत्नी को और पत्नी की मृत्यु पर पति को संपत्ति में पूर्ण अधिकार होता है।
49. क्या एक बालक को एक से अधिक बार दत्तक लिया जा सकता है?
नहीं, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम की धारा 10 के अनुसार, एक बालक को एक बार ही वैध रूप से दत्तक लिया जा सकता है। पहले दत्तक लेने की प्रक्रिया वैध हो चुकी है, तो पुनः दत्तक लेना अमान्य होगा।
50. क्या हिंदू विधि में तलाक के लिए पति-पत्नी की आपसी सहमति पर्याप्त है?
हां, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13-B के अनुसार पति-पत्नी आपसी सहमति से तलाक ले सकते हैं, यदि वे कम से कम एक वर्ष से पृथक रह रहे हों और दोनों विवाह को समाप्त करना चाहते हों। यह प्रक्रिया ‘Mutual Consent Divorce’ कहलाती है।
51. हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह की न्यूनतम आयु क्या है?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5(iii) के अनुसार विवाह के लिए लड़के की न्यूनतम आयु 21 वर्ष और लड़की की 18 वर्ष निर्धारित की गई है। यह प्रावधान बाल विवाह को रोकने के उद्देश्य से जोड़ा गया है। यदि विवाह इस आयु से पहले किया गया हो, तो वह शून्य (Void) नहीं होता, लेकिन उसमें पति/पत्नी तलाक की मांग कर सकते हैं। हालांकि बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत ऐसे विवाहों के लिए दंड का प्रावधान भी है।
52. हिंदू विधि में विवाह का धार्मिक महत्व क्या है?
हिंदू धर्म में विवाह को केवल सामाजिक अनुबंध नहीं, बल्कि एक धार्मिक संस्कार (sacrament) माना गया है। यह व्यक्ति के जीवन के 16 संस्कारों में से एक है। इसके माध्यम से पति-पत्नी धर्म, अर्थ और काम को साथ निभाते हैं। विवाह को ‘अखंड बंधन’ माना गया है जो सात जन्मों तक चलता है। यद्यपि अब विधिक दृष्टिकोण से इसे अनुबंध माना जाता है, परंतु धार्मिक महत्व अभी भी व्यापक है।
53. हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 में ‘Class I heirs’ कौन होते हैं?
हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार Class I heirs में वे निकटतम रिश्तेदार आते हैं जिन्हें सबसे पहले उत्तराधिकार प्राप्त होता है। इनमें शामिल हैं – पुत्र, पुत्री, विधवा, मां, मृत पुत्र के पुत्र/पुत्री, मृत पुत्र की विधवा आदि। यदि Class I के कोई उत्तराधिकारी जीवित हैं, तो Class II को संपत्ति नहीं दी जाती। ये लोग पैतृक संपत्ति में समान रूप से हिस्सेदार होते हैं।
54. क्या विवाह के पश्चात धर्म परिवर्तन से विवाह समाप्त हो जाता है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(ii) के अनुसार, यदि किसी पक्ष ने विवाह के पश्चात हिंदू धर्म छोड़कर कोई और धर्म अपना लिया है (जैसे इस्लाम, ईसाई आदि), तो दूसरा पक्ष तलाक के लिए आवेदन दे सकता है। परंतु धर्म परिवर्तन से विवाह स्वतः समाप्त नहीं होता, जब तक कि न्यायालय से तलाक न लिया जाए। धर्म परिवर्तन विवाह को प्रभावित अवश्य करता है लेकिन विवाह का विघटन केवल न्यायिक प्रक्रिया से होता है।
55. हिंदू विधि में ‘Sapinda’ का विवाह क्यों वर्जित है?
सपिंड (Sapinda) संबंधों में विवाह वर्जित है क्योंकि इनमें रक्त संबंध निकट होते हैं। हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 3(f) के अनुसार, पिता की ओर से पाँचवीं पीढ़ी और माता की ओर से तीसरी पीढ़ी तक के रक्त संबंधी ‘सपिंड’ कहलाते हैं। यह प्रतिबंध अनुवांशिक दोषों को रोकने और सामाजिक मर्यादाओं की रक्षा हेतु है। यदि ऐसे विवाह रीति-रिवाज की अनुमति के बिना हों, तो वे शून्य माने जाते हैं।
56. हिंदू विवाह अधिनियम में पुनर्विवाह की वैधता कब होती है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, यदि कोई पक्ष तलाक प्राप्त कर लेता है और उस पर कोई अपील लंबित नहीं है या अपील की अवधि समाप्त हो चुकी है, तो वह वैध रूप से पुनर्विवाह कर सकता है। पुनर्विवाह के लिए तलाक की डिक्री का अंतिम होना आवश्यक है। यदि तलाक से पहले पुनर्विवाह किया जाता है, तो वह द्विविवाह की श्रेणी में आकर दंडनीय होगा।
57. हिंदू विधि में विवाह विच्छेद (Divorce) के प्रमुख आधार क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13 में तलाक के प्रमुख आधार दिए गए हैं: (1) व्यभिचार, (2) क्रूरता, (3) धर्म परिवर्तन, (4) मानसिक विकृति, (5) लुप्तता (सात वर्ष से अधिक), (6) संन्यास। इसके अतिरिक्त स्त्री के लिए विशिष्ट आधार जैसे – बाल विवाह, बलात्कारी पति, या पति का दूसरा विवाह भी शामिल हैं। तलाक के लिए सभी आधार न्यायालय में सिद्ध होने चाहिए।
58. क्या विवाहित स्त्री को अपने मायके की संपत्ति में अधिकार है?
हां, 2005 के संशोधन के बाद हिंदू पुत्री, चाहे विवाहित हो या अविवाहित, अपने पिता की पैतृक संपत्ति में समान रूप से उत्तराधिकारी है। विवाह उसकी उत्तराधिकार योग्यता को समाप्त नहीं करता। वह अपने भाइयों के समान अधिकार प्राप्त करती है, और विवाह के बाद भी मायके की पैतृक संपत्ति पर दावा कर सकती है।
59. क्या विधवा स्त्री दत्तक पुत्र को संपत्ति दे सकती है?
हां, यदि विधवा को अपने पति की संपत्ति पर पूर्ण स्वामित्व प्राप्त है (धारा 14 के अंतर्गत), तो वह दत्तक पुत्र को संपत्ति दे सकती है। उसे संपत्ति बेचने, दान करने या उत्तराधिकार के रूप में देने का पूरा अधिकार है। परंतु यदि संपत्ति पर उसका केवल जीवनकाल अधिकार हो, तो वह अंतिम वितरण नहीं कर सकती।
60. हिंदू विधि में दत्तक पुत्र की स्थिति क्या होती है?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार, एक बार दत्तक लिया गया बालक अपने दत्तक माता-पिता की संतान बन जाता है। उसे वही अधिकार प्राप्त होते हैं जो जैविक संतान को होते हैं – जैसे उत्तराधिकार, नाम, भरण-पोषण आदि। वह अपने पूर्वजैविक परिवार से संबंध खो देता है और दत्तक परिवार का पूर्ण सदस्य बन जाता है।
61. क्या हिंदू विधि में विवाह एक अनुबंध है या संस्कार?
हिंदू धर्म में विवाह को पारंपरिक रूप से एक संस्कार माना गया है, जो जन्म-जन्मांतर का बंधन होता है। यह जीवन के 16 संस्कारों में से एक है। हालांकि, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के लागू होने के बाद विवाह को एक कानूनी अनुबंध का स्वरूप भी प्राप्त हो गया है, जिसमें कुछ शर्तों की पूर्ति आवश्यक है। अब विवाह एक सामाजिक, धार्मिक और विधिक संस्था है।
62. क्या दत्तक ग्रहण से उत्तराधिकार संबंधी अधिकार स्वतः मिल जाते हैं?
हाँ, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार जब कोई बालक वैध रूप से दत्तक लिया जाता है, तो वह अपने दत्तक माता-पिता की संतान माना जाता है और उसे उनके उत्तराधिकार में पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। वह जैविक संतान की तरह संपत्ति, भरण-पोषण, और नाम आदि के अधिकारों का हकदार होता है।
63. क्या दत्तक ग्रहण के लिए बालक की सहमति आवश्यक है?
यदि बालक की आयु 15 वर्ष से अधिक है, तो उसकी सहमति आवश्यक होती है। 15 वर्ष से कम आयु के बालक को उसके माता-पिता या विधिक अभिभावक की सहमति से दत्तक लिया जा सकता है। यह सुनिश्चित करता है कि बालक की इच्छा के विरुद्ध उसे दत्तक न लिया जाए और दत्तक ग्रहण उसकी भलाई के लिए हो।
64. क्या गोद लिया गया बालक अपने जैविक माता-पिता की संपत्ति में दावा कर सकता है?
नहीं, एक बार बालक को वैध रूप से गोद ले लिया जाता है, तो वह अपने जैविक माता-पिता से संबंधविच्छेद कर लेता है। अब वह अपने दत्तक माता-पिता का उत्तराधिकारी होता है और जैविक माता-पिता की संपत्ति में उसका कोई अधिकार नहीं रहता, जब तक कि विशेष रूप से वसीयत में उल्लेख न हो।
65. Class II Heirs में कौन-कौन आते हैं?
Class II heirs में वे रिश्तेदार आते हैं जिन्हें तब उत्तराधिकार मिलता है जब Class I के कोई उत्तराधिकारी नहीं होते। इनमें पिता, पुत्र की पुत्री, बहन, भाई, भाई की विधवा, आदि शामिल हैं। यह वर्ग विभिन्न श्रेणियों में विभाजित है, और पहले श्रेणी के उत्तराधिकारी की अनुपस्थिति में अगली श्रेणी के लोगों को उत्तराधिकार मिलता है।
66. संन्यास लेने वाले पति/पत्नी को तलाक क्यों दिया जा सकता है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 13(1)(vi) के अनुसार, यदि पति या पत्नी ने संन्यास ले लिया है, अर्थात उसने सांसारिक जीवन त्याग कर धार्मिक जीवन अपना लिया है, तो दूसरा पक्ष तलाक के लिए आवेदन कर सकता है। यह प्रावधान इसलिए है ताकि व्यक्ति को अपने वैवाहिक अधिकारों की रक्षा का अवसर मिले।
67. हिंदू विधि में संपत्ति का विभाजन कब होता है?
जब संयुक्त परिवार का कोई सदस्य अपनी हिस्सेदारी अलग करना चाहता है, तो विभाजन होता है। इसमें संयुक्त परिवार की संपत्ति को सभी सह-उत्तराधिकारियों में उनके हिस्से के अनुसार बांट दिया जाता है। विभाजन के बाद प्रत्येक सदस्य स्वतंत्र स्वामी बन जाता है और वह अपने हिस्से की संपत्ति का स्वतंत्र उपयोग कर सकता है।
68. क्या विधवा दत्तक ले सकती है?
हाँ, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम की धारा 8 के अनुसार, यदि कोई स्त्री विधवा है, तो वह अकेले भी दत्तक ग्रहण कर सकती है, बशर्ते वह मानसिक रूप से सक्षम हो और उसे कानून द्वारा अनुमति हो। यह अधिकार उसे अपने वंश और धार्मिक कर्तव्यों की पूर्ति हेतु दिया गया है।
69. पति की मृत्यु के बाद पत्नी के दत्तक लिए बालक का अधिकार क्या होगा?
यदि विधवा स्त्री पति की मृत्यु के बाद दत्तक ग्रहण करती है, तो वह बालक उसके मृत पति का भी पुत्र माना जाएगा। उसे पति की संपत्ति में वही अधिकार प्राप्त होंगे जो जैविक पुत्र को होते हैं। यह प्रावधान विधवा को वंश परंपरा बनाए रखने का अधिकार देता है।
70. हिंदू विवाह अधिनियम में शून्य और शून्यकरणीय विवाह में अंतर बताइए।
शून्य विवाह (Void Marriage) ऐसा विवाह है जो कानूनी रूप से कभी अस्तित्व में नहीं आता, जैसे – जीवित वैवाहिक साथी के रहते दूसरा विवाह करना या सपिंड संबंध में विवाह।
शून्यकरणीय विवाह (Voidable Marriage) वह विवाह होता है जिसे अदालत द्वारा शून्य घोषित किया जा सकता है, जैसे कि धोखे से, मानसिक असंतुलन से या यौन अक्षमता के आधार पर किया गया विवाह।
71. क्या दत्तक बालक को दत्तक लेने के समय से ही अधिकार प्राप्त होते हैं?
हाँ, जैसे ही दत्तक ग्रहण वैध रूप से संपन्न होता है, उसी समय से बालक को अपने दत्तक माता-पिता की संतान होने का दर्जा और संपत्ति में उत्तराधिकार अधिकार प्राप्त हो जाते हैं। यह प्रभाव दत्तक ग्रहण की तिथि से माना जाता है, और बालक उस परिवार का सदस्य बन जाता है।
72. क्या अविवाहित पुरुष गोद ले सकता है?
हाँ, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के अनुसार अविवाहित पुरुष भी दत्तक ले सकता है, बशर्ते उसकी आयु 21 वर्ष से अधिक हो और वह मानसिक रूप से सक्षम हो। यदि वह विवाहित हो, तो पत्नी की सहमति आवश्यक होती है। अविवाहित पुरुष को केवल पुत्र या पुत्री में से एक को गोद लेने की अनुमति है।
73. क्या पत्नी के द्वारा दत्तक लिया गया बालक पति की संपत्ति में उत्तराधिकारी होता है?
यदि पत्नी ने पति की स्वीकृति या मृत्यु के बाद वैध रूप से बालक को गोद लिया है, तो वह बालक पति की संपत्ति का भी उत्तराधिकारी होगा। ऐसा दत्तक बालक पूरे परिवार का सदस्य बनता है और उसे सभी उत्तराधिकार अधिकार प्राप्त होते हैं जैसे जैविक संतान को मिलते हैं।
74. क्या दत्तक पुत्र और जैविक पुत्र में कोई भेद होता है?
नहीं, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम के अनुसार, एक बार बालक को वैध रूप से गोद ले लिया जाए, तो वह दत्तक माता-पिता की संतान बन जाता है और उसे वही अधिकार प्राप्त होते हैं जो जैविक संतान को होते हैं। उसे संपत्ति, नाम, भरण-पोषण, और उत्तराधिकार सभी में समान अधिकार प्राप्त हैं।
75. क्या हिंदू विवाह अधिनियम केवल हिंदुओं पर ही लागू होता है?
हाँ, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 केवल उन्हीं व्यक्तियों पर लागू होता है जो हिंदू, बौद्ध, जैन या सिख धर्म को मानते हैं। यह अधिनियम अन्य धर्मों जैसे इस्लाम, ईसाई या यहूदी धर्म के अनुयायियों पर लागू नहीं होता। अन्य धर्मों के लिए विवाह हेतु विशेष विवाह अधिनियम, 1954 लागू होता है।
76. हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह की आवश्यक शर्तें क्या हैं?
हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 5 में विवाह की वैधता के लिए निम्नलिखित शर्तें निर्धारित की गई हैं:
(1) दोनों पक्ष हिंदू होने चाहिए।
(2) पति की आयु 21 वर्ष और पत्नी की 18 वर्ष होनी चाहिए।
(3) दोनों मानसिक रूप से सक्षम हों।
(4) किसी पक्ष का जीवित वैवाहिक साथी न हो।
(5) सपिंड या प्रतिबंधित संबंध में विवाह न हो, जब तक कि जाति की परंपरा इसकी अनुमति न दे।
इन शर्तों का उल्लंघन विवाह को शून्य या शून्यकरणीय बना सकता है।
77. क्या तलाक के बाद पुनर्विवाह के लिए किसी समय की प्रतीक्षा करनी होती है?
हाँ, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 15 के अनुसार, तलाक की डिक्री के बाद यदि अपील का अधिकार समाप्त हो चुका है या अपील खारिज हो चुकी है, तभी पुनर्विवाह किया जा सकता है। यह प्रतीक्षा इसलिए है ताकि यदि कोई पक्ष अपील करना चाहे तो उसके अधिकार सुरक्षित रहें। बिना प्रतीक्षा के किया गया पुनर्विवाह द्विविवाह का अपराध बन सकता है।
78. क्या दत्तक पुत्र विवाह के लिए अपने जैविक रिश्तों से अलग माना जाता है?
हां, एक बार दत्तक ग्रहण हो जाने पर दत्तक पुत्र अपने जैविक माता-पिता से वैधानिक रूप से अलग हो जाता है और अपने दत्तक माता-पिता की संतान माना जाता है। अतः वह अपने जैविक माता-पिता या भाई-बहनों के साथ विवाह कर सकता है, बशर्ते वह हिंदू विवाह अधिनियम की अन्य शर्तों को भी पूरा करता हो।
79. क्या पिता के जीवित रहते पुत्र कुटुंब संपत्ति में हिस्सा मांग सकता है?
हां, हिंदू संयुक्त परिवार में सह-उत्तराधिकारी (coparcener) को जन्म से ही संपत्ति में हिस्सा प्राप्त होता है। अतः पुत्र अपने पिता के जीवित रहते हुए भी कुटुंब संपत्ति में अपना हिस्सा मांग सकता है और विभाजन की मांग कर सकता है। यह सिद्धांत मिताक्षरा विधि के अंतर्गत लागू होता है।
80. क्या किसी महिला को भी अब संयुक्त हिंदू परिवार की सह-उत्तराधिकारी (coparcener) माना जाता है?
हाँ, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के बाद, पुत्री को भी पुत्र के समान सह-उत्तराधिकारी का दर्जा मिला है। वह भी संयुक्त हिंदू परिवार की सदस्य मानी जाती है और पैतृक संपत्ति में उसे जन्म से ही समान हिस्सा प्राप्त होता है। यह प्रावधान लैंगिक समानता को सशक्त करता है।
81. क्या बिना धार्मिक अनुष्ठान के किया गया विवाह वैध होता है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 में कहा गया है कि विवाह वही वैध होगा जो संबंधित पक्षों के रीति-रिवाजों के अनुसार किया गया हो। यदि कोई धार्मिक अनुष्ठान, जैसे सप्तपदी, अनिवार्य है, और उसे नहीं निभाया गया, तो विवाह अवैध हो सकता है। लेकिन यदि दोनों पक्षों ने विवाह को स्वीकार कर लिया है और सहमति स्पष्ट है, तो कभी-कभी न्यायालय इसे मान्यता दे देता है।
82. क्या विवाह केवल सामाजिक अनुबंध है?
नहीं, हिंदू विधि में विवाह एक धार्मिक संस्कार है जो पति-पत्नी को सात जन्मों तक जोड़ने वाला पवित्र बंधन माना गया है। हालांकि हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के लागू होने के बाद इसे कानूनी अनुबंध का रूप भी प्राप्त हो गया है, जिससे वैवाहिक अधिकारों, दायित्वों और विवाह विच्छेद की व्यवस्था की जा सकती है।
83. क्या दत्तक ग्रहण केवल धार्मिक उद्देश्य से किया जाता है?
परंपरागत रूप से दत्तक ग्रहण का मुख्य उद्देश्य धार्मिक कार्यों की निरंतरता और वंश की रक्षा था। लेकिन हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 के तहत अब यह एक कानूनी संस्था है, जिसका उद्देश्य माता-पिता की इच्छा, समाज में वंश वृद्धि, और अनाथ बालकों को घर प्रदान करना है।
84. क्या तलाक के बाद पति-पत्नी पुनः विवाह कर सकते हैं?
हाँ, तलाक के बाद यदि कोई अपील लंबित नहीं है, या अपील खारिज हो चुकी है, तो दोनों पक्ष पुनः विवाह करने के लिए स्वतंत्र हैं। वे एक-दूसरे से भी विवाह कर सकते हैं यदि उन्होंने आपसी सहमति से तलाक लिया हो और पुनः साथ रहना चाहें।
85. हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह को शून्य कब माना जाता है?
धारा 11 के अनुसार विवाह को शून्य तब माना जाता है जब:
(1) किसी पक्ष का जीवित वैवाहिक साथी हो,
(2) पक्ष सपिंड या निषिद्ध संबंध में हों और परंपरा इसकी अनुमति न देती हो।
ऐसा विवाह कभी वैध नहीं होता और किसी पक्ष को तलाक लेने की आवश्यकता नहीं होती।
86. क्या दत्तक बालक का नाम दत्तक माता-पिता के नाम से जुड़ता है?
हाँ, एक बार बालक को वैध रूप से गोद ले लिया जाए, तो उसका कानूनी नाम, उपनाम और अन्य पहचान दत्तक माता-पिता से जुड़ जाती है। वह उनके बेटे या बेटी के रूप में पहचाना जाता है, और स्कूल, सरकारी रिकॉर्ड आदि में उसी तरह दर्ज होता है।
87. हिंदू विवाह अधिनियम में न्यायिक पृथक्करण का क्या महत्व है?
न्यायिक पृथक्करण (Judicial Separation) एक वैधानिक उपाय है जिससे पति-पत्नी कुछ समय के लिए अलग रह सकते हैं, लेकिन विवाह समाप्त नहीं होता। यह धारा 10 के तहत प्राप्त किया जा सकता है और यह तलाक से पूर्व सुधार का अवसर प्रदान करता है। इस दौरान वे एक-दूसरे के साथ नहीं रहते, परंतु पुनः मिल सकते हैं।
88. क्या दत्तक ग्रहण मौखिक रूप से किया जा सकता है?
नहीं, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 की धारा 11 के अनुसार दत्तक ग्रहण के लिए वास्तविक ‘गिविंग एंड टेकिंग’ (दान और ग्रहण) होना आवश्यक है। यह प्रक्रिया मौखिक या केवल भावना से नहीं, बल्कि कानूनी और औपचारिक रूप से संपन्न होनी चाहिए। अक्सर इसे दस्तावेज या रजिस्टर्ड डीड के माध्यम से किया जाता है।
89. क्या पुनर्विवाह के लिए तलाक की डिक्री अनिवार्य है?
हाँ, जब तक न्यायालय द्वारा तलाक की डिक्री पारित नहीं होती, कोई भी पक्ष दूसरा विवाह नहीं कर सकता। बिना तलाक डिक्री के किया गया पुनर्विवाह द्विविवाह (Bigamy) माना जाएगा और भारतीय दंड संहिता की धारा 494 के तहत अपराध होगा।
90. क्या हिंदू विधि में बाल विवाह शून्य होता है?
नहीं, बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के अंतर्गत बाल विवाह अवैध तो है लेकिन पूर्णतः शून्य नहीं होता। यह शून्यकरणीय (Voidable) माना जाता है। बाल विवाह करने वाले पक्ष बाद में विवाह को निरस्त करने के लिए आवेदन कर सकते हैं। हालांकि यह अपराध माना जाता है और इसके लिए दंड भी निर्धारित है।
91. क्या तलाक के पश्चात पत्नी भरण-पोषण की हकदार होती है?
हाँ, हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 25 के अंतर्गत तलाक के बाद भी पत्नी भरण-पोषण की मांग कर सकती है, यदि वह स्वयं निर्वाह करने में असमर्थ है। न्यायालय पति की आय, पत्नी की आवश्यकता, एवं पक्षों की परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए न्यायोचित भरण-पोषण की राशि निर्धारित करता है। यह एकमुश्त या मासिक किस्तों में दिया जा सकता है।
92. क्या विवाह की सहमति में धोखा विवाह को शून्य कर सकता है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 के अनुसार, यदि किसी पक्ष की सहमति धोखे, छल या मानसिक दबाव से प्राप्त की गई है, तो वह विवाह शून्यकरणीय (voidable) होता है। पीड़ित पक्ष विवाह के निरसन के लिए न्यायालय में याचिका दायर कर सकता है, लेकिन यह अधिकार सीमित समय के भीतर प्रयोग करना होता है।
93. क्या अविवाहित स्त्री भी दत्तक ले सकती है?
हाँ, हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 की धारा 8 के अनुसार अविवाहित स्त्री भी दत्तक ले सकती है, यदि वह बालिग और मानसिक रूप से सक्षम हो। ऐसी स्त्री को केवल एक ही बालक को दत्तक लेने का अधिकार होता है, और वह विवाहित नहीं होनी चाहिए।
94. संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति से संबंधित ‘कुटुंब संपत्ति’ क्या होती है?
कुटुंब संपत्ति (Joint Family Property) वह संपत्ति होती है जो पैतृक रूप से प्राप्त होती है या किसी सदस्य द्वारा संयुक्त परिवार के लिए अर्जित की जाती है। इस संपत्ति पर सभी सह-उत्तराधिकारियों का समान अधिकार होता है। व्यक्तिगत संपत्ति, यदि परिवार की भलाई के लिए उपयोग की गई हो, तो वह भी कुटुंब संपत्ति बन सकती है।
95. क्या हिंदू विधि में गोद लिए गए बालक को वंश परंपरा का अधिकार मिलता है?
हाँ, गोद लिया गया बालक अपने दत्तक माता-पिता के वंश का सदस्य माना जाता है और उसे धार्मिक, सामाजिक और विधिक रूप से वंश परंपरा का पूर्ण अधिकार प्राप्त होता है। वह श्राद्ध, पिंडदान, आदि जैसे कर्मों का अधिकारी होता है।
96. क्या विवाह का पंजीकरण वैवाहिक वैधता के लिए आवश्यक है?
हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह का पंजीकरण अनिवार्य नहीं, बल्कि सुझावित है। सुप्रीम कोर्ट ने विवाह पंजीकरण को आवश्यक बताते हुए सभी राज्यों को इसे लागू करने की सलाह दी है। पंजीकरण से विवाह का कानूनी प्रमाण सरलता से उपलब्ध होता है, जो कई विधिक मामलों में सहायक होता है।
97. क्या तलाक के लिए न्यूनतम पृथक्करण अवधि निर्धारित है?
हाँ, आपसी सहमति से तलाक (Section 13-B) के लिए पति-पत्नी का कम-से-कम एक वर्ष से अलग रहना आवश्यक है। इस अवधि में वे साथ नहीं रह सकते और विवाह को असहनीय मानते हैं। इस प्रावधान का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संबंध पुनर्स्थापित होने का कोई अवसर नहीं बचा हो।
98. हिंदू विधि में ‘पारंपरिक रीति-रिवाज’ का क्या महत्व है?
हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 7 में यह प्रावधान है कि विवाह को मान्यता तभी दी जाएगी जब वह किसी प्रचलित रीति-रिवाज या परंपरा के अनुसार किया गया हो। जैसे– सप्तपदी, कन्यादान, हवन आदि। यदि कोई जाति या समुदाय विशिष्ट रीति का पालन करता है, तो वही उनके लिए वैध होगा।
99. क्या हिंदू विधि में तलाक के पश्चात पति भी भरण-पोषण मांग सकता है?
हाँ, धारा 25 हिंदू विवाह अधिनियम के अंतर्गत पति भी भरण-पोषण की मांग कर सकता है, यदि वह शारीरिक या मानसिक रूप से अक्षम है या जीविका चलाने में असमर्थ है, और पत्नी की आय उससे अधिक है। भरण-पोषण अब लिंग आधारित नहीं, बल्कि आवश्यकता आधारित अधिकार है।
100. क्या गोद लिए गए पुत्र को कानूनी वारिस माना जाता है?
हाँ, दत्तक पुत्र को हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम के अनुसार कानूनी वारिस माना जाता है। उसे जैविक संतान के समान उत्तराधिकार, नाम, संपत्ति और सामाजिक अधिकार प्राप्त होते हैं। वह सभी प्रकार की संपत्ति में हिस्सा पा सकता है और उसे संयुक्त परिवार में शामिल किया जाता है।
101. क्या हिंदू विवाह अधिनियम में विवाह का निरस्तीकरण (annulment) संभव है?
हाँ, धारा 12 के अंतर्गत विवाह को शून्यकरणीय (voidable) घोषित किया जा सकता है यदि विवाह सहमति के अभाव, धोखे, मानसिक असंतुलन या यौन अक्षमता जैसे कारणों से किया गया हो। न्यायालय उचित प्रमाण मिलने पर विवाह को आरंभ से ही निरस्त कर सकता है।
102. क्या बिना गोद लिए हुए बालक को संपत्ति दी जा सकती है?
हाँ, यदि कोई व्यक्ति किसी बालक को विधिक रूप से गोद नहीं लेता, तो भी वह उसे वसीयत के माध्यम से संपत्ति दे सकता है। परंतु बिना दत्तक ग्रहण के उसे कानूनी उत्तराधिकारी नहीं माना जाएगा और वह उत्तराधिकार अधिनियम के अंतर्गत संपत्ति का दावा नहीं कर सकता।
103. क्या तलाक के बाद भी पत्नी संपत्ति में हिस्सा मांग सकती है?
तलाक के बाद पत्नी को केवल भरण-पोषण का अधिकार होता है, पति की संपत्ति में उत्तराधिकार नहीं। परंतु यदि पति ने तलाक से पहले कोई वसीयत की हो या तलाक की शर्तों में संपत्ति का वितरण निर्धारित हो, तो वह संपत्ति प्राप्त कर सकती है। सामान्यतः संपत्ति का अधिकार विवाह विच्छेद के साथ समाप्त हो जाता है।
104. क्या विधवा स्त्री की संपत्ति पर पुत्र का अधिकार होता है?
हाँ, यदि कोई स्त्री विधवा होने के बाद स्वयं की संपत्ति अर्जित करती है या पति की संपत्ति उसकी हो जाती है, तो उस स्त्री की मृत्यु के बाद उसकी संपत्ति उसके बच्चों में बराबर बंटती है – पुत्र और पुत्री दोनों को समान अधिकार होता है।
105. क्या दत्तक ग्रहण केवल हिंदू विधि में मान्य है?
हिंदू दत्तक ग्रहण अधिनियम, 1956 केवल हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख धर्म के अनुयायियों पर लागू होता है। अन्य धर्मों (जैसे मुस्लिम, ईसाई, पारसी आदि) के लिए दत्तक ग्रहण का कोई समान निजी कानून नहीं है। ऐसे लोगों को जुवेनाइल जस्टिस अधिनियम, 2015 के तहत बालक को गोद लेना होता है।