लेख शीर्षक:
“CPC की धारा Order 23 Rule 1(3) के तहत वाद वापसी और नए वाद की अनुमति: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का स्पष्ट दिशानिर्देश”
परिचय
दीवानी वादों में यह सामान्य स्थिति होती है कि वादी (Plaintiff) किसी कारणवश अपना वाद वापस लेना चाहता है और भविष्य में एक नया वाद दायर करने की अनुमति माँगता है। सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC), 1908 की Order 23 Rule 1(3) इस विषय में स्पष्ट प्रावधान देता है कि वादी अनुमति लेकर वाद वापस ले सकता है सिर्फ तभी जब वह नए सिरे से वाद दायर करना चाहता है। लेकिन क्या कोई अदालत इस आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार कर सकती है? मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय (M.P. High Court) ने इस पर 2025 में एक महत्वपूर्ण निर्णय दिया है, जो न केवल वादी के अधिकारों को रेखांकित करता है, बल्कि प्रक्रिया के सख्त अनुपालन की भी अपेक्षा करता है।
1. वाद का संक्षिप्त तथ्य (Case Summary)
- वाद का प्रकार: वाद घोषणा (Declaration) और स्थगनादेश (Injunction) के लिए
- प्रावधान: Order 23 Rule 1(3) CPC
- वाद की स्थिति:
वादी ने वाद को वापस लेने की अनुमति माँगी इस शर्त पर कि भविष्य में नया वाद दाखिल किया जा सके।
ट्रायल कोर्ट ने आवेदन को आंशिक रूप से स्वीकार किया – वाद वापसी की अनुमति दे दी, लेकिन नया वाद दाखिल करने की अनुमति नहीं दी।
2. मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का निर्णय (High Court’s Ruling)
मुख्य बिंदु:
- आंशिक स्वीकृति कानून सम्मत नहीं है
हाईकोर्ट ने कहा कि Order 23 Rule 1(3) के तहत दिया गया आवेदन या तो पूरी तरह स्वीकार किया जा सकता है या पूरी तरह अस्वीकार, आंशिक रूप से मंजूर करना कानून सम्मत नहीं। - स्पष्ट और निर्णायक आदेश आवश्यक हैं
न्यायालय ने ट्रायल कोर्ट के आंशिक आदेश को “विधि विरुद्ध” (Legally Unsustainable) करार दिया और उसे रद्द कर दिया। - वाद को पुनः चालू करने का आदेश
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वाद को पुनः खोला जाए और कानून के अनुसार आगे बढ़ाया जाए। - वादी को बिना उपाय के नहीं छोड़ा जा सकता
न्यायालय ने दोहराया कि वादी को ऐसा कोई आदेश नहीं दिया जाना चाहिए जिससे उसके पास आगे कोई उपाय ही न बचे।
3. Order 23 Rule 1(3) CPC की कानूनी व्याख्या
Provision का आशय:
“जहाँ वादी यह दर्शाता है कि वाद को वापस लेने का कारण कोई औचित्यपूर्ण और वैध कारण है, तो न्यायालय उसे वाद वापस लेने और भविष्य में एक नया वाद दायर करने की अनुमति दे सकता है।”
✔ इसमें न्यायालय की संतुष्टि अनिवार्य है।
✔ यदि अनुमति दी जाती है, तो वादी नए सिरे से वही वाद दायर कर सकता है।
4. न्यायिक दृष्टिकोण की प्रमुख बातें
- वाद वापसी एक अधिकार नहीं बल्कि न्यायालय की अनुमति पर आधारित है।
- Order 23 Rule 1(3) को “सख्ती से लागू किया जाना चाहिए”, ताकि प्रक्रियात्मक न्याय बना रहे।
- न्यायालय ने यह भी कहा कि यदि अनुमति दी जाए, तो वह पूर्ण रूप से होनी चाहिए, जिससे वादी को प्रभावी उपाय (Effective Remedy) मिल सके।
5. इस निर्णय का महत्व
🔹 यह निर्णय स्पष्ट करता है कि ट्रायल कोर्ट को आंशिक आदेश देने से बचना चाहिए, खासकर जब उससे वादी के अधिकारों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता हो।
🔹 इससे वादी को वाद की पुनरावृत्ति की वैधानिक संभावना मिलती है।
🔹 न्यायालयों को यह सुनिश्चित करना होगा कि उनके आदेश स्पष्ट, संपूर्ण और कानूनी रूप से सुसंगत हों।
🔹 यह निर्णय निचली अदालतों के लिए एक न्यायिक मार्गदर्शन है कि वे प्रक्रियात्मक नियमों का कठोर पालन करें।
6. निष्कर्ष
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का यह निर्णय CPC के Order 23 Rule 1(3) के दायरे में न्याय की अवधारणा और प्रक्रिया की पवित्रता दोनों को मजबूत करता है। ट्रायल कोर्ट का आंशिक आदेश कानून के अनुरूप नहीं था, जिसे उच्च न्यायालय ने विधिसम्मत ठहराते हुए हटाया और स्पष्ट निर्देश दिए कि या तो अनुमति पूरी दी जाए या पूरी अस्वीकार की जाए। इस निर्णय से यह सुनिश्चित होता है कि वादी को न्याय से वंचित न किया जाए और अदालतें प्रक्रिया के नियमों का पालन करते हुए स्पष्ट और निर्णायक आदेश जारी करें।