शीर्षक: दत्तक ग्रहण और माता-पिता की कानूनी स्थिति: रिश्तों की पुनर्परिभाषा और भारतीय विधि की भूमिका
🔰 भूमिका:
“रिश्ते केवल रक्त से नहीं, अपनत्व से बनते हैं।”
दत्तक ग्रहण (Adoption) इसी भावना का कानूनी रूप है, जहां कोई दंपति या व्यक्ति एक बच्चे को कानूनी रूप से अपनी संतान के रूप में स्वीकार करता है। यह न केवल एक मानवीय कार्य है, बल्कि एक कानूनी प्रक्रिया भी, जिसमें माता-पिता और बच्चे दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों की स्पष्ट रूपरेखा तय की जाती है।
भारत में दत्तक ग्रहण को लेकर विभिन्न धार्मिक, सामाजिक और कानूनी पहलू मौजूद हैं। इस लेख में हम दत्तक ग्रहण से संबंधित प्रमुख कानूनों, प्रक्रियाओं, माता-पिता की स्थिति, बच्चे के अधिकार, और कानूनी चुनौतियों का विस्तृत विश्लेषण करेंगे।
📜 1. भारत में दत्तक ग्रहण से संबंधित प्रमुख कानून
भारत में दत्तक ग्रहण को नियंत्रित करने वाले मुख्य कानून हैं:
कानून | प्रयोजन |
---|---|
✅ हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 | केवल हिंदू, बौद्ध, जैन और सिख समुदाय के लिए |
✅ जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन) एक्ट, 2015 | सभी धर्मों और विदेशी नागरिकों के लिए |
✅ गवर्नमेंट द्वारा निर्धारित Central Adoption Resource Authority (CARA) | राष्ट्रीय स्तर पर दत्तक प्रक्रिया की निगरानी और संचालन |
🧾 2. दत्तक ग्रहण की कानूनी प्रक्रिया (JJ Act, 2015 के तहत)
✔️ पात्र दत्तक माता-पिता:
- 25 वर्ष से अधिक आयु
- विवाहित या अविवाहित (अकेले पुरुष को केवल लड़का गोद लेने की अनुमति)
- मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक रूप से सक्षम
- अंतर-धार्मिक और विदेशी नागरिक भी पात्र (यदि भारतीय कानूनों का पालन करते हैं)
✔️ पात्र बच्चे:
- अनाथ, परित्यक्त या संरक्षित बच्चे
- Central Adoption Resource Authority (CARA) के पोर्टल पर पंजीकृत
- मेडिकल और सामाजिक रूप से प्रमाणित
✔️ प्रक्रिया:
- आवेदन CARINGS पोर्टल पर
- होम स्टडी रिपोर्ट (HSR)
- मिलान और बच्चे का अवलोकन
- अदालत द्वारा आदेश (Adoption Decree)
- बच्चे का जन्म प्रमाण पत्र — दत्तक माता-पिता के नाम से जारी
👪 3. दत्तक माता-पिता की कानूनी स्थिति
दत्तक ग्रहण के बाद माता-पिता को:
- बच्चे की संपत्ति, शिक्षा, स्वास्थ्य और पालन-पोषण की संपूर्ण जिम्मेदारी
- बच्चे के लिए वैध अभिभावक और उत्तराधिकारी का दर्जा
- संतान के रूप में दत्तक बच्चे को भी वही उत्तराधिकार अधिकार मिलते हैं जैसे जैविक संतान को
ध्यान दें: दत्तक ग्रहण एक बार पूर्ण हो जाने पर अविवाहित महिला या पुरुष भी पूर्ण माता-पिता माने जाते हैं।
👶 4. दत्तक बच्चे के कानूनी अधिकार
- वैधानिक संतान का दर्जा (Legal Heir)
- माता-पिता की संपत्ति में उत्तराधिकार
- नाम, पहचान, और नागरिकता
- शिक्षा, स्वास्थ्य और समान अवसर
- यदि कोई अन्य संतान है, तब भी समान अधिकार
⚖️ 5. हिंदू दत्तक ग्रहण और भरण-पोषण अधिनियम, 1956 की विशेषताएं
- केवल हिंदू, बौद्ध, सिख, जैन धर्मावलंबियों पर लागू
- दत्तक लेने वाला व्यक्ति विवाहित हो
- पति-पत्नी दोनों की सहमति अनिवार्य, यदि वे दोनों जीवित हैं
- केवल एक पुत्र और एक पुत्री को दत्तक ले सकते हैं
- बालक की आयु 15 वर्ष से कम होनी चाहिए (विशेष परिस्थिति छोड़कर)
🚫 6. दत्तक ग्रहण से संबंधित समस्याएं और कानूनी चुनौतियाँ
❌ ब्यूरोक्रेसी और देरी:
होम स्टडी, वेरिफिकेशन, और अदालती प्रक्रिया में अत्यधिक समय लगता है।
❌ अंतर-धार्मिक / LGBTQ+ को कानूनी बाधा:
कुछ धर्म-आधारित कानून दत्तक को सीमित करते हैं। समान लिंग के जोड़े को भी कानूनी मान्यता नहीं।
❌ बच्चे की गोपनीयता और पहचान का मुद्दा:
कई बार बच्चे की जैविक पहचान जानने की इच्छा होती है, जो कानून के तहत गोपनीय होती है।
❌ गैरकानूनी गोद लेना:
बिना CARA पंजीकरण के अनौपचारिक गोद लेना अब अपराध है।
🌍 7. अंतरराष्ट्रीय गोद लेना और NRI/OCI नागरिकों के अधिकार
- भारत से कोई भी विदेशी नागरिक या NRI दंपती JJ Act के तहत गोद ले सकते हैं
- उन्हें भी CARA में पंजीकरण करना अनिवार्य है
- विदेशी दत्तक ग्रहण पर अदालत की विशेष अनुमति आवश्यक होती है
🏛️ 8. न्यायालयों के महत्वपूर्ण निर्णय
- Lakshmi Kant Pandey v. Union of India (1984): सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय दत्तक प्रक्रिया को सख्त निगरानी में किया जाना चाहिए।
- Shabnam Hashmi v. Union of India (2014): सुप्रीम कोर्ट ने गैर-हिंदू धर्मावलंबियों को भी JJ Act के तहत गोद लेने का अधिकार माना।
📈 9. CARA और सरकार की पहल
- CARINGS (Child Adoption Resource Information & Guidance System) पोर्टल
- गृह अध्ययन रिपोर्ट (HSR) अनिवार्य
- पारदर्शी और ऑनलाइन प्रोसेस
- हर बच्चे को सुरक्षा और परिवार दिलाने का प्रयास
🧭 निष्कर्ष:
दत्तक ग्रहण न केवल एक कानूनी प्रक्रिया, बल्कि एक सांस्कृतिक और संवेदनात्मक बंधन है। भारत ने समय के साथ इसे विनियमित और न्यायसंगत बनाने के प्रयास किए हैं।
आज का कानून बच्चे और माता-पिता दोनों के समान अधिकारों और सम्मान की रक्षा करता है, लेकिन इसमें अभी भी प्रगतिशील दृष्टिकोण और समावेशिता की आवश्यकता है।
💬 अंतिम प्रश्न:
क्या मातृत्व और पितृत्व केवल जैविक होने से तय होते हैं?
या फिर वे अपनाने और निभाने के भाव से बनते हैं?
दत्तक ग्रहण कानून — इसका उत्तर हां में देता है।