लेख शीर्षक:
“लोक अदालत का समझौता आदेश भी वैध और बाध्यकारी: सुप्रीम कोर्ट ने धारा 138 NI Act के संदर्भ में दी अहम टिप्पणी”
(Rathi Vasudeva Rao v. PVRM Patnaik – Supreme Court Judgment Overview)
मुख्य लेख:
नई दिल्ली, जून 2025 — भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि लोक अदालत (Lok Adalat) द्वारा धारा 138 Negotiable Instruments Act (NI Act) के अंतर्गत पारित किया गया समझौता आदेश (Award) न केवल वैध और अंतिम होता है, बल्कि इसे सिविल न्यायालय द्वारा निष्पादित (Executable) भी किया जा सकता है।
इस केस में शीर्ष अदालत ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा जिसमें कहा गया था कि:
“धारा 138 NI Act से संबंधित आपराधिक वाद में लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को सिविल न्यायालय में कार्यान्वित किया जा सकता है।”
⚖️ प्रकरण का नाम:
Rathi Vasudeva Rao v. PVRM Patnaik
न्यायालय: सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
विषय: धारा 138 एनआई एक्ट के तहत लोक अदालत का निर्णय – कार्यान्वयन की वैधता
🔍 मामले की पृष्ठभूमि:
- वादी (Complainant) ने प्रतिवादी (Accused) के विरुद्ध धारा 138 NI Act के तहत मामला दर्ज कराया था, जो चेक बाउंस (Cheque Bounce) से संबंधित था।
- मामला लोक अदालत में भेजा गया जहाँ दोनों पक्षों ने आपसी सहमति से एक समझौते पर हस्ताक्षर किए और अदालत ने समझौता Award के रूप में पारित कर दिया।
- जब प्रतिवादी ने उस समझौते का पालन नहीं किया, तो वादी ने सिविल न्यायालय में उस अवार्ड को निष्पादित (Execute) करने की याचिका दायर की।
⚖️ उच्च न्यायालय और सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणियाँ:
- लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड, सिविल न्यायालय के डिक्री (Decree) के समान होता है।
- Legal Services Authorities Act, 1987 की धारा 21 के अंतर्गत लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड को अंतिम और बाध्यकारी माना गया है।
- ऐसे अवार्ड की न तो अपील की जा सकती है और न ही उसे नज़रअंदाज किया जा सकता है।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यदि कोई पक्ष समझौते का उल्लंघन करता है तो पीड़ित पक्ष उसे सिविल कोर्ट के माध्यम से execute कर सकता है।
📜 प्रमुख कानूनी प्रावधान:
प्रावधान | विवरण |
---|---|
NI Act, Section 138 | चेक अनादरण (Cheque Dishonour) से संबंधित आपराधिक प्रावधान |
Legal Services Authorities Act, Section 21 | लोक अदालत द्वारा पारित अवार्ड की वैधता और प्रभाव |
CPC, Order 21 | डिक्री के निष्पादन की प्रक्रिया |
🧭 इस निर्णय का महत्व:
- यह फैसला यह स्पष्ट करता है कि लोक अदालत केवल मध्यस्थ नहीं है, बल्कि उसके निर्णयों को डिक्री का दर्जा प्राप्त है।
- यह निर्णय विवाद समाधान की वैकल्पिक प्रणाली (ADR) की विश्वसनीयता को बढ़ावा देता है।
- यह चेक बाउंस मामलों में तेजी से समाधान सुनिश्चित करता है और लंबी आपराधिक प्रक्रिया से राहत देता है।
✅ निष्कर्ष:
Rathi Vasudeva Rao बनाम PVRM Patnaik मामले में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय लोक अदालतों की भूमिका को न्यायिक वैधता प्रदान करता है। यह यह भी साबित करता है कि अगर किसी पक्ष ने लोक अदालत में समझौता किया है, तो उससे मुकरना कानून की दृष्टि में स्वीकार्य नहीं है, और पीड़ित पक्ष को पूर्ण अधिकार है कि वह उस समझौते को सिविल कोर्ट में निष्पादित करवाए।