“डिजिटल पहचान की रक्षा: IT Act की धारा 66C और पहचान की चोरी का अपराध”

लेख शीर्षक:
“डिजिटल पहचान की रक्षा: IT Act की धारा 66C और पहचान की चोरी का अपराध”


मुख्य लेख:

परिचय:
इंटरनेट और डिजिटल लेन-देन के इस युग में हमारी डिजिटल पहचान (Digital Identity) उतनी ही महत्वपूर्ण हो गई है जितनी हमारी वास्तविक पहचान। परंतु, जब कोई व्यक्ति हमारी पहचान से जुड़ी सूचनाओं का धोखाधड़ी या बेईमानी से उपयोग करता है, तो यह न केवल नैतिक अपराध है बल्कि भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 66C (Section 66C – Identity Theft) के अंतर्गत संज्ञेय और दंडनीय अपराध भी है।


🔍 क्या है धारा 66C?

धारा 66C का उद्देश्य है किसी व्यक्ति की इलेक्ट्रॉनिक पहचान को सुरक्षित रखना। यह धारा लागू होती है जब कोई व्यक्ति:

  • किसी अन्य का इलेक्ट्रॉनिक हस्ताक्षर (Electronic Signature)
  • पासवर्ड
  • यूज़र आईडी
  • बायोमेट्रिक डेटा या अन्य विशिष्ट पहचान संख्या

को जानबूझकर, धोखाधड़ी से या बेईमानी से उपयोग करता है।


🧪 उदाहरण:

  1. कोई व्यक्ति किसी अन्य की ईमेल आईडी से फर्जी मेल भेजता है।
  2. कोई अजनबी आपके नाम से ऑनलाइन बैंकिंग ट्रांजैक्शन करता है।
  3. सोशल मीडिया पर किसी की प्रोफ़ाइल को कॉपी कर उसका गलत इस्तेमाल करना।
  4. किसी कंपनी या सरकारी संस्था की पहचान का उपयोग कर फर्जी वेबसाइट बनाना।

⚖️ धारा 66C के अंतर्गत दंड (Punishment):

  • अधिकतम सजा: 3 वर्ष का कारावास
  • अधिकतम जुर्माना: ₹1 लाख तक
    या दोनों।

📜 धारा 66C का संबंध अन्य धाराओं से:

धारा विवरण
धारा 43 किसी के कंप्यूटर या डेटा तक बिना अनुमति पहुंचना
धारा 66 किसी कंप्यूटर संसाधन का धोखाधड़ी से उपयोग
धारा 66C किसी अन्य व्यक्ति की डिजिटल पहचान चुराना और उसका उपयोग करना

ध्यान दें: धारा 66C विशिष्ट रूप से “पहचान की चोरी” (Identity Theft) पर केंद्रित है।


🛡️ क्यों महत्वपूर्ण है यह धारा?

  1. डिजिटल लेन-देन की सुरक्षा के लिए आवश्यक।
  2. साइबर अपराधियों को कानूनी दंड के दायरे में लाता है।
  3. प्रत्येक नागरिक की गोपनीयता और व्यक्तिगत डेटा की रक्षा करता है।
  4. बैंकिंग, ई-कॉमर्स, सोशल मीडिया, हेल्थकेयर और एजुकेशन सेक्टर में व्यापक उपयोग।

📚 न्यायालयों का दृष्टिकोण:

अदालतें समय-समय पर यह स्पष्ट कर चुकी हैं कि डिजिटल पहचान की चोरी केवल तकनीकी अपराध नहीं, बल्कि यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता, गोपनीयता और डिजिटल विश्वास का उल्लंघन है।


निवारण के उपाय:

  • दो-स्तरीय प्रमाणीकरण (Two-Factor Authentication) अपनाएं।
  • पासवर्ड नियमित रूप से बदलें।
  • अनजान ईमेल लिंक या वेबसाइट पर क्लिक न करें।
  • सोशल मीडिया पर अत्यधिक व्यक्तिगत जानकारी साझा न करें।

निष्कर्ष:
धारा 66C न केवल कानून का एक प्रावधान है, बल्कि यह हर डिजिटल नागरिक को यह आश्वस्त करता है कि उसकी पहचान और डेटा की रक्षा के लिए एक ठोस कानूनी ढांचा मौजूद है। डिजिटल भारत की सफलता इसी बात पर निर्भर करती है कि नागरिकों को एक सुरक्षित और विश्वसनीय साइबर स्पेस मिले, और धारा 66C उसी दिशा में एक अहम कदम है।