“दहेज के कारण विवाहिता को ससुराल छोड़ने पर मजबूर करना मानसिक क्रूरता: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला”

“दहेज के कारण विवाहिता को ससुराल छोड़ने पर मजबूर करना मानसिक क्रूरता: मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला”


लेख:

हाल ही में मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में कहा कि यदि किसी विवाहिता को कम दहेज के कारण अपने ससुराल से निकाल दिया जाता है या उसे मजबूर किया जाता है कि वह अपने मायके में रहकर जीवन बिताए, तो यह कृत्य मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) की श्रेणी में आता है।

यह फैसला 2025(1) Criminal Court Cases 357 (M.P.) में दिया गया, जिसमें न्यायालय ने स्पष्ट किया कि दहेज की मांग पर आधारित व्यवहार न केवल सामाजिक रूप से निंदनीय है, बल्कि यह कानूनी रूप से भी विवाहिता के सम्मान और मानसिक स्थिति के खिलाफ अपराध है।


मामले के तथ्य (Case Facts):

  • याचिकाकर्ता महिला को विवाह के बाद यह कहकर प्रताड़ित किया गया कि उसने पर्याप्त दहेज नहीं लाया
  • ससुराल पक्ष ने उसे लगातार मानसिक दबाव और तिरस्कार के माहौल में रखा।
  • अंततः उसे अपने मायके लौटने पर मजबूर कर दिया गया, जहाँ वह कई वर्षों से रह रही थी।
  • पति और उसके परिवार ने न तो महिला को साथ ले जाने का प्रयास किया और न ही उसकी देखभाल में कोई रुचि दिखाई।

न्यायालय की टिप्पणी:

न्यायालय ने कहा:

एक विवाहिता महिला को केवल इस आधार पर कि वह अपेक्षित दहेज नहीं ला सकी, अपने ससुराल से निकाल देना, उसे उसके वैवाहिक अधिकारों से वंचित करना और मायके में रहने पर मजबूर करना निस्संदेह मानसिक क्रूरता है।

यह क्रूरता न केवल महिला के आत्म-सम्मान को चोट पहुँचाती है, बल्कि उसके मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव डालती है, जो भारतीय दंड संहिता की धारा 498A और संबंधित **वैवाहिक कानूनों के तहत दंडनीय है।


विधिक दृष्टिकोण:

  • भारतीय दंड संहिता की धारा 498A के अंतर्गत, यदि कोई पति या उसके परिवार के सदस्य किसी महिला को दहेज की मांग के लिए प्रताड़ित करते हैं, तो यह एक गंभीर आपराधिक अपराध है।
  • इसी प्रकार, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 के अंतर्गत मानसिक क्रूरता, तलाक का एक वैध आधार है।
  • मानसिक क्रूरता का अर्थ है – ऐसे व्यवहार या शब्दों का उपयोग जिससे सामान्य विवेक वाली महिला का मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है या वह विवाहिक जीवन को सहन करने में असमर्थ हो जाए।

निष्कर्ष:

इस फैसले ने यह स्पष्ट कर दिया कि दहेज प्रथा के तहत मानसिक प्रताड़ना भी उतनी ही गंभीर है जितनी कि शारीरिक हिंसा।
यह निर्णय उन महिलाओं के लिए कानूनी सुरक्षा की पुष्टि है, जो आज भी सामाजिक दबाव और पारिवारिक उत्पीड़न के कारण मौन सहनशीलता की स्थिति में हैं।