⚖️ मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का महत्त्वपूर्ण निर्णय: काउंटर क्लेम (Counter Claim) की सीमावधि (Limitation) और संयुक्त सुनवाई के सिद्धांत पर दिशा-निर्देश
LAWS(MPH)-2024-1-143 | वर्ष: 2024
📌 मामले का विषय:
काउंटर क्लेम की वैधता और उसकी दाख़िला सीमा – नागरिक प्रक्रिया संहिता की व्याख्या
⚖️ प्रासंगिक प्रावधान:
CPC (Civil Procedure Code), 1908
- Order 8 Rule 6A – प्रतिवादी द्वारा काउंटर क्लेम (Counter Claim) करने का अधिकार
- Order 18 Rule 4 – गवाही द्वारा जांच (Examination-in-chief) को हलफनामे द्वारा करना
🧾 मुख्य निर्णय बिंदु:
मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने अपने निर्णय में स्पष्ट किया कि काउंटर क्लेम दाखिल करने के लिए दो आवश्यक शर्तें (Essential Conditions) हैं:
- ✅ प्रश्न निर्धारित (Framing of Issues) हो चुके हों।
- ✅ वाद में पर्याप्त प्रगति (Substantial Progress) हो चुकी हो।
🏛️ मामले की पृष्ठभूमि:
- मामले में मुद्दे (Issues) तय हो चुके थे,
- लेकिन केवल एक वादी-गवाह (Plaintiff Witness) ने O.18 R.4 के अंतर्गत हलफनामा (Affidavit) दायर किया था,
- उसकी जिरह (Cross-examination) अभी आरंभ नहीं हुई थी।
- प्रतिवादी (राज्य सरकार) ने काउंटर क्लेम दायर किया।
📚 न्यायालय का विश्लेषण:
- चूंकि अभी तक मुकदमे में पर्याप्त प्रगति नहीं हुई थी, अतः काउंटर क्लेम समयबद्ध और विधिसंगत माना गया।
- ट्रायल कोर्ट द्वारा काउंटर क्लेम स्वीकार करने का आदेश पूर्णतः वैधानिक और प्रक्रियात्मक रूप से सही है।
- जब वादी के टाइटल (Ownership/Title) का मुद्दा उठाया गया है, तो प्रतिवादी राज्य सरकार का टाइटल भी उसी साक्ष्य के माध्यम से तय किया जा सकता है।
- अलग मुकदमे की आवश्यकता नहीं है, जिससे दोहराव और विरोधाभासी निर्णयों की संभावना समाप्त होती है।
📌 महत्त्वपूर्ण दिशा-निर्देश:
- 🧾 काउंटर क्लेम दायर करने की अनुमति वाद की प्रगति पर निर्भर करेगी, न कि मात्र मुद्दों के निर्धारण पर।
- ⚖️ न्यायिक दक्षता (Judicial Efficiency) और संगति (Consistency) सुनिश्चित करने हेतु मुकदमा और काउंटर क्लेम का संयुक्त परीक्षण (Joint Trial) उचित है।
- 🚫 अलग मुकदमे चलाना अनावश्यक, समय व संसाधनों की बर्बादी के समान है।
📝 निष्कर्ष:
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का यह निर्णय नागरिक वादों में काउंटर क्लेम से संबंधित प्रक्रिया और सीमावधि को स्पष्ट करता है। कोर्ट ने दोहराया कि:
“काउंटर क्लेम की वैधता केवल तकनीकी पहलुओं पर नहीं, बल्कि मुकदमे की प्रगति और न्यायिक संतुलन पर आधारित होनी चाहिए।”
यह निर्णय भारतीय सिविल प्रक्रिया में विवादों के समेकित समाधान (Consolidated Adjudication) की दिशा में एक व्यावहारिक और तर्कसंगत मार्गदर्शन प्रदान करता है।