जबरन शादी के खिलाफ खड़ी हुई बेटी: बॉम्बे हाईकोर्ट में बोली – “अकेले रहकर काम करना चाहती हूं”

जबरन शादी के खिलाफ खड़ी हुई बेटी: बॉम्बे हाईकोर्ट में बोली – “अकेले रहकर काम करना चाहती हूं”


🔷 भूमिका:

भारतीय समाज में अब भी ऐसी घटनाएं सामने आती हैं जहाँ युवाओं की स्वतंत्र इच्छा और निर्णयों को पारिवारिक दबाव और सामाजिक परंपराओं के अधीन कर दिया जाता है। हाल ही में बॉम्बे हाईकोर्ट में ऐसा ही एक मामला आया, जिसमें 24 वर्षीय एक युवती ने जबरन शादी के खिलाफ आवाज उठाई और न्यायालय में स्पष्ट शब्दों में कहा कि वह अकेले रहकर पुणे में काम करना चाहती है। यह मामला न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता, बल्कि महिलाओं के आत्मनिर्णय और मौलिक अधिकारों के संरक्षण की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण बन गया है।


🔷 मामले की पृष्ठभूमि:

  • यह युवती बिहार की रहने वाली है, और पुणे में एक कंपनी में कार्यरत थी।
  • उसके एक पुरुष मित्र ने बॉम्बे हाईकोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की, जिसमें कहा गया कि युवती को जबरन बिहार ले जाया गया है और वहां बंधक बनाकर उसकी जबरन शादी कराई जा रही है
  • इस याचिका में यह मांग की गई कि युवती को न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किया जाए और उसकी स्वतंत्र इच्छा को सुना जाए।

🔷 हाईकोर्ट की कार्यवाही और फैसला:

  • बॉम्बे हाईकोर्ट ने इस याचिका पर संज्ञान लेते हुए बिहार पुलिस और महाराष्ट्र पुलिस को समन्वय करने का निर्देश दिया।
  • युवती को बिहार से लाकर न्यायालय में प्रस्तुत किया गया
  • न्यायालय ने जब युवती से उसका पक्ष पूछा तो उसने साहसपूर्वक कहा कि वह स्वतंत्र रूप से पुणे में रहना चाहती है और काम करना चाहती है। उसने यह भी स्पष्ट किया कि वह अभी शादी नहीं करना चाहती और यह निर्णय पूरी तरह उसका निजी है

👉 कोर्ट ने युवती की बात को गंभीरता से स्वीकार करते हुए उसे अपनी इच्छा अनुसार पुणे जाकर स्वतंत्र रूप से रहने और काम करने की अनुमति दे दी।


🔷 कानूनी पहलू:

1. अनुच्छेद 21 – जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार:

भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत हर व्यक्ति को “जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता” का अधिकार है। इसमें यह स्वतंत्रता भी शामिल है कि कोई कहाँ रहना चाहता है, क्या काम करना चाहता है और कब शादी करना चाहता है

2. हैबियस कॉर्पस रिट:

जब किसी व्यक्ति को अवैध रूप से बंधक बनाकर उसकी स्वतंत्रता छीनी जाती है, तो हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस याचिका दायर की जा सकती है। इस याचिका के माध्यम से न्यायालय उस व्यक्ति को प्रस्तुत करवा कर उसकी इच्छा की पुष्टि करता है।

3. जबरन विवाह – कानूनी रूप से अमान्य:

किसी भी व्यक्ति की स्वीकृति के बिना हुआ विवाह भारतीय कानूनों के अनुसार अवैध होता है। यह विवाह न तो सामाजिक रूप से वैध है, न ही वैधानिक रूप से टिकाऊ।


🔷 महिलाओं की स्वतंत्रता और सामाजिक बदलाव:

यह मामला केवल एक युवती की निजी जीत नहीं, बल्कि उस बदलते समाज की झलक है, जहाँ महिलाएँ अब अपने भविष्य के निर्णय स्वयं लेना चाहती हैं। भारत जैसे देश में जहाँ पारिवारिक दबाव और सामाजिक मान्यताएँ अक्सर व्यक्ति की व्यक्तिगत स्वतंत्रता पर हावी होती हैं, वहाँ ऐसे फैसले और घटनाएँ उम्मीद और बदलाव का प्रतीक हैं।


🔷 समाज और परिवार की भूमिका:

  1. परिवार को चाहिए कि वह बच्चों के निर्णयों का सम्मान करें, विशेषकर बेटियों के।
  2. जबरन विवाह जैसे कृत्य न केवल अवैध हैं, बल्कि नैतिक रूप से भी अनुचित हैं।
  3. समाज को यह समझना होगा कि आत्मनिर्णय केवल पुरुषों का अधिकार नहीं, बल्कि महिलाओं का भी बराबर अधिकार है।

🔷 निष्कर्ष:

बॉम्बे हाईकोर्ट में यह मामला एक बार फिर से यह सिद्ध करता है कि भारत का संविधान हर नागरिक को स्वतंत्रता और गरिमा से जीने का अधिकार देता है। जब एक युवती यह कहती है कि “मैं अकेले रहकर काम करना चाहती हूँ”, तो वह केवल अपने लिए नहीं, बल्कि उन असंख्य लड़कियों के लिए भी खड़ी होती है जो अब भी पारिवारिक और सामाजिक दबाव में अपना जीवन जीने को विवश हैं।

यह निर्णय न केवल कानून की जीत है, बल्कि स्वतंत्रता, साहस और आत्मनिर्भरता की भी जीत है।