📘 लेख शीर्षक:
“तलाकशुदा पत्नी को स्थायी भरण-पोषण और संपत्ति अधिकारों में वृद्धि का हक़: सुप्रीम कोर्ट का न्यायसंगत निर्णय”
(Special Marriage Act – Sections 24 & 27 | CrPC – Section 125 | केस: Rakhi Sadhukhan v. Raja Sadhukhan)
🔍 परिचय:
सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि तलाकशुदा पत्नी को ऐसा भरण-पोषण (Permanent Alimony) मिलना चाहिए जो उसकी वैवाहिक स्थिति के अनुरूप जीवन स्तर को बनाए रख सके।
इस मामले में न्यायालय ने हाई कोर्ट द्वारा निर्धारित 20,000 रुपये प्रति माह की राशि को बढ़ाकर 50,000 रुपये प्रति माह कर दिया, साथ ही हर दो वर्षों में 5% की वृद्धि का आदेश भी दिया।
⚖️ प्रमुख कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण:
✅ 1. विशेष विवाह अधिनियम, 1954 – धारा 27:
तलाक की प्रक्रिया और उसमें पत्नी/पति को संपत्ति और भरण-पोषण के संबंध में राहत देने का अधिकार।
✅ 2. विशेष विवाह अधिनियम – धारा 24:
मुकदमे की अवधि के दौरान भरण-पोषण (interim maintenance) और मुकदमे के खर्च की मांग का अधिकार।
✅ 3. आपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) – धारा 125:
पत्नी, बच्चे और माता-पिता को भरण-पोषण देने की विधिक व्यवस्था, जब वे स्वयं का भरण-पोषण करने में असमर्थ हों।
🧾 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – प्रमुख बिंदु:
- पति की मासिक आय ₹1.64 लाख होते हुए भी ₹20,000 का भरण-पोषण अपर्याप्त माना गया।
- पत्नी के पास कोई स्वतंत्र आमदनी नहीं थी, और उसका जीवन यापन पूरी तरह भरण-पोषण पर निर्भर था।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि भरण-पोषण इस तरह से तय होना चाहिए कि पत्नी का जीवन स्तर विवाह के समय के समकक्ष बना रहे।
- तलाकशुदा पत्नी का आर्थिक भविष्य सुनिश्चित करना अदालत का कर्तव्य है, खासकर जब पति की भुगतान करने की क्षमता स्पष्ट हो।
- 5% वार्षिक वृद्धि को भी दो वर्षों पर आधारित कर दिया गया ताकि महंगाई को संतुलित किया जा सके।
- अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि बालिग पुत्र को अनिवार्य भरण-पोषण का अधिकार नहीं है, लेकिन उसे स्वैच्छिक सहायता दी जा सकती है।
🧠 न्यायिक संतुलन और सामाजिक यथार्थ:
- यह निर्णय उस सामाजिक यथार्थ को स्वीकार करता है, जिसमें महिलाएं तलाक के बाद आर्थिक रूप से अत्यधिक असुरक्षित हो जाती हैं।
- पति द्वारा दूसरी पत्नी और अन्य पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देने को सुप्रीम कोर्ट ने भरण-पोषण कम करने का उचित आधार नहीं माना, क्योंकि आर्थिक समर्थता स्पष्ट रूप से विद्यमान थी।
📌 निर्णय का महत्व और प्रभाव:
- यह निर्णय तलाकशुदा महिलाओं के लिए एक सशक्त न्यायिक दृष्टिकोण प्रस्तुत करता है।
- अस्थायी या अत्यल्प भरण-पोषण से हटकर यह निर्णय “जीवन स्तर आधारित न्याय” की ओर बढ़ता है।
- भविष्य में तलाक के मामलों में भरण-पोषण तय करते समय पति की पूर्ण वित्तीय स्थिति, महंगाई, और पत्नी की निर्भरता को प्राथमिकता दी जाएगी।
✍️ निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि तलाक कोई महिला के लिए जीवन-स्तर में गिरावट का कारण नहीं बनना चाहिए। यदि पति की वित्तीय स्थिति मजबूत है, तो पत्नी को उसी के अनुरूप उचित और सम्मानजनक भरण-पोषण मिलना चाहिए। यह निर्णय महिलाओं के आर्थिक अधिकारों की पुष्टि करता है और न्यायपालिका द्वारा समानता और गरिमा के सिद्धांतों की पुनः पुष्टि करता है।