“धारा 138 एन.आई. एक्ट में चेक पर हस्ताक्षर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को बैंक रिकॉर्ड से मिलान की अनुमति दी”

📘 लेख शीर्षक:
“धारा 138 एन.आई. एक्ट में चेक पर हस्ताक्षर विवाद: सुप्रीम कोर्ट ने अदालतों को बैंक रिकॉर्ड से मिलान की अनुमति दी”


🔍 परिचय:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 की धारा 138 के अंतर्गत यदि आरोपी चेक पर हस्ताक्षर को चुनौती देता है, तो वह बैंक से प्रमाणित हस्ताक्षर नमूना (specimen signature) प्राप्त कर सकता है और अदालत उसे साक्ष्य के रूप में तुलना हेतु स्वीकार कर सकती है।

यह निर्णय दस्तावेज़ी प्रमाण और अभियुक्त के रक्षा के अधिकार को मजबूत करता है, तथा न्यायालयों को यह अधिकार देता है कि वे हस्ताक्षरों की तुलना कर वास्तविकता का निर्धारण करें।


⚖️ प्रमुख विधिक प्रावधानों का विश्लेषण:

1. Negotiable Instruments Act, 1881 – धारा 138:

यह धारा चेक के अनादर (dishonour) और भुगतान न होने पर अभियोजन की प्रक्रिया निर्धारित करती है।

2. Negotiable Instruments Act – धारा 118:

यह धारा विभिन्न तथ्यों की वैधानिक धारणा (Presumption) प्रस्तुत करती है, जैसे कि चेक वैध उद्देश्यों के लिए जारी किया गया था।

3. भारतीय साक्ष्य अधिनियम – धारा 73:

न्यायालय स्वयं किसी व्यक्ति के हस्ताक्षर या अंगुली के निशान की तुलना कर सकता है, यदि उसका प्रमाणिकता पर विवाद हो।

4. दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC):

  • धारा 482: न्यायालय की अंतर्निहित शक्तियाँ, जो न्याय की रक्षा के लिए उपयोग की जाती हैं।
  • धारा 391: अपील की सुनवाई के दौरान न्यायालय अतिरिक्त साक्ष्य स्वीकार कर सकता है, यदि आवश्यक हो।

🧾 सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – प्रमुख बिंदु:

  1. यदि आरोपी दावा करता है कि चेक पर हस्ताक्षर उसके नहीं हैं, तो उसे अपने बचाव में बैंक से प्रमाणित हस्ताक्षर नमूना प्राप्त करने की अनुमति है।
  2. यह प्रमाणित नमूना (Certified Specimen Signature) आरोपी के बचाव को सिद्ध करने में उपयोग किया जा सकता है।
  3. न्यायालय ऐसे हस्ताक्षर की तुलना साक्ष्य अधिनियम की धारा 73 के अंतर्गत स्वयं कर सकता है, या किसी विशेषज्ञ से करवा सकता है।
  4. इस तुलना से यह स्पष्ट हो सकता है कि हस्ताक्षर वास्तविक हैं या नकली।
  5. यह प्रक्रिया न केवल अभियुक्त के न्यायसंगत बचाव को सुनिश्चित करती है, बल्कि अदालत को प्रामाणिक निर्णय लेने में मदद करती है।

🧠 न्यायिक संतुलन और प्रक्रिया की पारदर्शिता:

  • यह निर्णय अभियुक्त को केवल वैधानिक धारणा के आधार पर दोषी ठहराए जाने से बचाता है, और उसे यह अवसर देता है कि वह वास्तविक दस्तावेज़ी विरोध प्रस्तुत करे।
  • यदि आरोपी के पास कोई चेक धोखे से या किसी गलत तरीके से भर दिया गया है, तो वह बैंक से प्रमाण प्राप्त कर अदालत के समक्ष साक्ष्य रख सकता है।
  • यह प्रक्रिया केवल वैध है यदि बैंक प्रमाण पत्र विधिपूर्वक और अधिकृत रूप से प्राप्त किया गया हो।

📌 निर्णय का प्रभाव और महत्व:

  • यह निर्णय धारा 138 के तहत फर्जीवाड़े के मामलों में बचाव की संभावनाओं को मजबूत करता है।
  • बैंकिंग रिकॉर्ड और अदालत की तुलना प्रक्रिया अब विधिक रूप से समर्थित है।
  • अभियुक्त को अब यह अधिकार मिला है कि वह स्वयं को गलत चेक पर हस्ताक्षर से दोषमुक्त सिद्ध कर सके।

✍️ निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने स्पष्ट किया है कि हस्ताक्षर विवादों में अदालतें आरोपी को बैंक रिकॉर्ड से प्रमाणित हस्ताक्षर प्राप्त करने की अनुमति दे सकती हैं, और अदालत स्वयं उनकी तुलना करके निष्कर्ष निकाल सकती है। यह निर्णय न्यायिक प्रक्रिया को और अधिक निष्पक्ष, साक्ष्य-आधारित और संतुलित बनाता है तथा अभियुक्त के न्यायिक अधिकारों की रक्षा करता है