“धारा 139 एन.आई. अधिनियम के तहत दायित्व की वैधानिक धारणा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और चेक बाउंस मामलों में आरोपी की जिम्मेदारी”

“धारा 139 एन.आई. अधिनियम के तहत दायित्व की वैधानिक धारणा: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय और चेक बाउंस मामलों में आरोपी की जिम्मेदारी”
(LAWS(SC) – 2025-4-14)


🔍 परिचय:

सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया निर्णय में नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स एक्ट, 1881 (Negotiable Instruments Act) की धारा 139 के अंतर्गत यह दोहराया है कि यदि चेक हस्ताक्षरित है, तो यह माना जाएगा कि वह कानूनी ऋण या देनदारी के लिए जारी किया गया है, जब तक कि आरोपी प्रभावी साक्ष्य द्वारा उस धारणा को खंडित नहीं करता। यह निर्णय चेक अनादर (cheque dishonour) के मामलों में देनदार और वादी दोनों के अधिकारों और कर्तव्यों को संतुलित करता है।


⚖️ प्रमुख कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण:

1. धारा 138 – चेक अनादर (Dishonour of Cheque):

यदि कोई चेक भुगतान के लिए प्रस्तुत किए जाने पर बाउंस हो जाता है और 15 दिनों के भीतर भुगतान नहीं किया जाता, तो यह अपराध माना जाता है।

2. धारा 139 – वैधानिक धारणा (Presumption of Liability):

“जब तक विपरीत सिद्ध न हो जाए, यह माना जाएगा कि धारक को चेक किसी ऋण या देनदारी के निर्वहन हेतु दिया गया था।”

  • यह एक अपरिवर्तनीय धारणा (Rebuttable Presumption) है, लेकिन इसे खंडित करने के लिए प्रबल और संभाव्य (probable) बचाव आवश्यक है।

3. अन्य प्रावधान:

  • धारा 118: चेक के जारी होने के पीछे अच्छे विश्वास और वैध कारणों की धारणा।
  • धारा 142(1)(b): शिकायत दर्ज करने की समय-सीमा।
  • धारा 141: कंपनी मामलों में निदेशकों की जिम्मेदारी।
  • CrPC की धारा 482: अदालत की अंतर्निहित शक्तियाँ।

🧾 सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुख्य बिंदु:

  1. चेक पर हस्ताक्षर स्वीकार करने मात्र से धारा 139 की वैधानिक धारणा लागू हो जाती है।
  2. आरोपी केवल यह कहकर कि वादी के पास ऋण देने की क्षमता नहीं थी, धारणा को खंडित नहीं कर सकता।
  3. आरोपी को प्रारंभिक उत्तर (Reply Notice) में ही अपना बचाव स्पष्ट रूप से उठाना चाहिए।
  4. इस मामले में आरोपी ने ऐसा कोई प्रभावी बचाव नहीं उठाया, इसलिए उसका बचाव अस्वीकार कर दिया गया।
  5. वादिकर्ता (Payee) के अधिकारों की रक्षा और चेक लेन-देन की विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए यह निर्णय अत्यंत आवश्यक है।
  6. सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपी को प्रबल, तार्किक और विश्वसनीय साक्ष्य प्रस्तुत करने होंगे ताकि वह वैधानिक धारणा को खंडित कर सके।

🧠 प्रेसंप्शन (Presumption) बनाम डिफेंस – न्यायिक संतुलन:

  • कानून में धारा 139 के तहत वादी के पक्ष में वैधानिक अनुमान पहले से मौजूद रहता है।
  • अब जिम्मेदारी आरोपी पर है कि वह “संभाव्य बचाव” (probable defence) प्रस्तुत करे, जैसे:
    • चेक चोरी हुआ था
    • चेक को धोखाधड़ी से भरा गया
    • कोई ऋण या कानूनी देनदारी नहीं थी
  • केवल अनुमानों, बयानबाज़ी या खाली दलीलों से बचाव सिद्ध नहीं किया जा सकता।

📌 निर्णय का व्यापक प्रभाव:

  • यह निर्णय भुगतान के विश्वसनीय साधन के रूप में चेक के महत्व को मजबूत करता है।
  • चेक मामलों में बाहरी समझौतों, मौखिक बयान या वादी की ऋण देने की क्षमता को मात्र आधार नहीं माना जाएगा जब तक कि ठोस साक्ष्य न हो।
  • अदालती कार्यवाही के प्रारंभिक चरणों में ही उचित और संभाव्य बचाव प्रस्तुत करना आवश्यक है।

📝 निष्कर्ष:

सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि धारा 139 के तहत चेक हस्ताक्षरित होने मात्र से दायित्व की धारणा बन जाती है, और केवल वादी की क्षमता पर प्रश्न उठाकर उसे खंडित नहीं किया जा सकता। यह फैसला चेक लेन-देन की प्रामाणिकता को बनाए रखने, मुकदमों के शीघ्र निपटारे और वित्तीय प्रणाली की मजबूती के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।