“एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट: आपसी सहमति से तलाक में इलाहाबाद उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय”
भूमिका:
भारतीय विवाह कानूनों में आपसी सहमति से तलाक (Mutual Consent Divorce) के लिए हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 13-बी (Section 13-B) में एक वर्ष की न्यूनतम वैवाहिक अवधि का प्रावधान है। हालांकि, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि यदि विशेष परिस्थितियाँ हों — जैसे कि पति-पत्नी के बीच आपराधिक मुकदमे — तो यह एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि हटाई जा सकती है।
मुख्य बिंदु:
1. मामले का संक्षिप्त विवरण
इस मामले में, पति-पत्नी ने आपसी सहमति से तलाक (Section 13-B) के लिए याचिका दायर की थी। विवाह को एक वर्ष पूरा नहीं हुआ था, साथ ही पत्नी ने पति पर धारा 376 (बलात्कार) और 506 (धमकी) आईपीसी के तहत आपराधिक मामला दर्ज कर रखा था।
2. परिवार न्यायालय का निर्णय
परिवार न्यायालय ने धारा 14(1) के अंतर्गत दी गई अनुमति की याचिका यह कहते हुए खारिज कर दी कि विवाह को एक वर्ष पूरा नहीं हुआ है, इसलिए तलाक की याचिका विचारणीय नहीं है।
3. उच्च न्यायालय की व्याख्या
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस निर्णय को पलटते हुए कहा कि हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 14(1) में दी गई प्रोवाइजो (proviso) स्पष्ट रूप से कहती है कि यदि असाधारण कठिनाई (exceptional hardship) या विवाहित जीवन में पतन (exceptional depravity) हो, तो न्यायालय एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट प्रदान कर सकता है।
4. निर्णय का महत्व
- उच्च न्यायालय ने माना कि आपसी सहमति से अलग होने का निर्णय और एक पक्ष द्वारा दूसरे के विरुद्ध आपराधिक मामला दर्ज करना “असाधारण परिस्थितियों” में आता है।
- इस आधार पर कोर्ट ने पति की अपील स्वीकार करते हुए परिवार न्यायालय के आदेश को रद्द किया और एक वर्ष की अवधि की बाध्यता से छूट दी।
- इसके अतिरिक्त, तलाक की याचिका को उसी तारीख से मान्य माना गया, जिस दिन धारा 14(1) के अंतर्गत छूट की याचिका दायर की गई थी।
कानूनी प्रावधानों का विश्लेषण:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
- Section 13-B: आपसी सहमति से तलाक
- Section 14(1): विवाह के एक वर्ष के भीतर तलाक की याचिका निषिद्ध, जब तक कि विशेष परिस्थितियों में न्यायालय अनुमति न दे
- भारतीय दंड संहिता (IPC)
- Section 376: बलात्कार
- Section 506: आपराधिक धमकी
न्यायिक दृष्टिकोण:
इस निर्णय में उच्च न्यायालय ने उन परिस्थितियों को मान्यता दी है जहाँ वैवाहिक जीवन की असहनीयता स्पष्ट है और दोनों पक्ष अलग होने को सहमत हैं। न्यायालय ने यह भी माना कि यदि दोनों पक्षों की भलाई आपसी सहमति से अलग होने में है, तो न्यायपालिका को इसमें बाधा नहीं बनना चाहिए।
निष्कर्ष:
इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह निर्णय स्पष्ट करता है कि विधि का उद्देश्य न्याय देना है, न कि केवल तकनीकीताओं में उलझाना। इस निर्णय के माध्यम से यह संदेश दिया गया है कि जब विवाहित जीवन पूरी तरह अस्थिर हो चुका हो और दोनों पक्ष आपसी सहमति से अलग होना चाहते हों, तो न्यायालय एक वर्ष की प्रतीक्षा अवधि से छूट दे सकता है। यह न्यायिक सक्रियता (judicial sensitivity) का उत्कृष्ट उदाहरण है, जो व्यक्ति की गरिमा और कल्याण को प्राथमिकता देता है।