“तेलंगाना हाई कोर्ट का निर्णय: चेक बाउंस मामले में 242 दिनों की देरी पर अभियुक्त को सुनवाई का अधिकार अनिवार्य”

“तेलंगाना हाई कोर्ट का निर्णय: चेक बाउंस मामले में 242 दिनों की देरी पर अभियुक्त को सुनवाई का अधिकार अनिवार्य”


पूरा लेख:
तेलंगाना उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण फैसला: चेक अनादरण (बाउंस) मामले में विलंब को क्षमा करने से पहले अभियुक्त को सुनवाई का अवसर देना आवश्यक

🔷 कानून:

  • नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम, 1881 (Negotiable Instruments Act, 1881)
    • धारा 138: चेक अनादरण (Dishonour of Cheque)
    • धारा 142(b): शिकायत दर्ज करने की समयसीमा और विलंब क्षमा (Condonation of Delay) का प्रावधान

🔷 न्यायालय: तेलंगाना उच्च न्यायालय
🔷 मामला: 242 दिनों की देरी से धारा 138 एन.आई. एक्ट के अंतर्गत शिकायत दाखिल — मजिस्ट्रेट द्वारा बिना अभियुक्त को सुने संज्ञान लेना


🔷 निर्णय का सार:

तेलंगाना हाई कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि नेगोशिएबल इंस्ट्रूमेंट्स अधिनियम के तहत दायर की गई देरीयुक्त शिकायतों में, मजिस्ट्रेट द्वारा विलंब क्षमा (Condonation of Delay) करते समय यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि अभियुक्त (Accused) को अपनी बात रखने का उचित अवसर मिले।

इस मामले में शिकायतकर्ता ने 242 दिनों की देरी से शिकायत दायर की, और मजिस्ट्रेट ने बिना अभियुक्त को नोटिस दिए या प्रतिक्रिया का अवसर दिए ही देरी माफ कर दी और शिकायत पर संज्ञान (Cognizance) ले लिया।


🔷 न्यायालय की टिप्पणी:

“विलंब क्षमा करना न्यायिक विवेक का विषय है, न कि एक औपचारिक प्रक्रिया। यह दोनों पक्षों के अधिकारों और निष्पक्ष सुनवाई की भावना पर आधारित होना चाहिए।”

“अभियुक्त को सुनवाई का अवसर न देना, प्रकिया की गंभीर चूक है, जिससे अभियोजन और प्रतिरक्षा – दोनों पक्षों को हानि पहुँचती है।”


🔷 मुख्य कानूनी निष्कर्ष:

  1. मजिस्ट्रेट का विवेक सीमित नहीं है, परंतु न्यायिक है:
    मजिस्ट्रेट विलंब को क्षमा कर सकते हैं, परंतु प्रक्रियात्मक न्याय और दोनों पक्षों को सुनने के सिद्धांत को अनदेखा नहीं किया जा सकता।
  2. सुनवाई के अधिकार का उल्लंघन:
    मजिस्ट्रेट द्वारा अभियुक्त को नोटिस न देकर सीधे संज्ञान लेना प्राकृतिक न्याय के विरुद्ध है।
  3. आदेश निरस्त (Set Aside):
    हाई कोर्ट ने मजिस्ट्रेट के संज्ञान लेने के आदेश को त्रुटिपूर्ण माना और उसे निरस्त कर दिया।
  4. पुनः विचार का निर्देश:
    कोर्ट ने निर्देश दिया कि मजिस्ट्रेट अब देरी क्षमा याचिका पर पुनर्विचार करें और अभियुक्त को विलंब पर अपनी आपत्ति दर्ज करने का अवसर दें।

🔷 विधिक संदर्भ:

  • Section 142(b), N.I. Act:
    शिकायत चेक की अनादरण तिथि से 1 माह के भीतर दायर की जानी चाहिए।
    यदि विलंब हो, तो उचित कारण दिखाने पर मजिस्ट्रेट विलंब माफ कर सकते हैं।
  • प्राकृतिक न्याय का सिद्धांत (Principle of Natural Justice):
    “Audi alteram partem” — प्रत्येक पक्ष को सुनने का अवसर मिलना चाहिए।

🔷 निष्कर्ष:

यह फैसला चेक बाउंस मामलों में विलंब क्षमा की प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी और न्यायोचित बनाने की दिशा में एक अहम कदम है।
हाई कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि अभियुक्त को सुनवाई का अवसर दिए बिना संज्ञान लेना न केवल प्रक्रिया की अवहेलना है, बल्कि अभियुक्त के संवैधानिक अधिकारों का भी हनन है।