लेख शीर्षक:
“तीन दशक पुरानी वसीयत की प्रोबेट प्रति मांग पर सुप्रीम कोर्ट का इनकार: अटकलें जांच का आधार नहीं हो सकतीं”
पूरा लेख:
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: प्रोबेट की प्रति प्रदान करने की याचिका खारिज — अटकलों के आधार पर जांच की अनुमति नहीं
🔷 प्रासंगिक कानून:
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925)
- धारा 272: प्रोबेट/लेटर ऑफ एडमिनिस्ट्रेशन हेतु आवेदन
- धारा 317: निष्पादक द्वारा संपत्ति की सूची और विवरण प्रस्तुत करना
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया कि केवल संदेह या अटकलों के आधार पर किसी पुरानी वसीयत की प्रोबेट प्रति की मांग या उसकी पुनः जांच का आदेश नहीं दिया जा सकता, विशेषकर जब उस वसीयत के निष्पादन में कोई अनियमितता का आरोप या प्रमाण मौजूद न हो।
🔷 केस की पृष्ठभूमि:
इस मामले में, एक तीन दशक पूर्व जारी की गई वसीयत के प्रोबेट (Probate) की प्रति मांगी गई थी। यह वसीयत एक फर्म के साझेदार को निष्पादक (Executor) नियुक्त करती थी, जिसने विधिसम्मत रूप से संपत्ति की सूची (Inventory) और लेखा-जोखा (Accounts) प्रस्तुत किए थे।
- न तो कोई अनियमितता पाई गई थी,
- और न ही संपत्ति के वितरण में वसीयत के निर्देशों से कोई विचलन था।
- सभी रिकॉर्ड कानून अनुसार समाप्त कर दिए गए थे।
🔷 न्यायालय की टिप्पणियाँ:
“केवल एक लाभार्थी या उसके उत्तराधिकारी द्वारा व्यक्त किया गया संदेह, जब तक वह ठोस साक्ष्य या आरोपों से समर्थित न हो, किसी वसीयत की वैधता या निष्पादन की प्रक्रिया की दोबारा जांच कराने का आधार नहीं बन सकता।”
“हाई कोर्ट ने अपने विवेक का सही उपयोग करते हुए इस याचिका को खारिज किया, क्योंकि यह केवल अनुमान और बिना आधार के शंकाओं पर आधारित थी।”
🔷 निर्णय के मुख्य बिंदु:
- प्रोबेट पूर्व में विधिपूर्वक जारी हो चुका था:
और निष्पादक द्वारा संपत्ति और खातों की जानकारी समय पर दी गई थी। - कोई अनियमितता या शिकायत नहीं:
वसीयत के निष्पादन या संपत्ति के वितरण में कोई विरोध या उल्लंघन दर्ज नहीं हुआ। - सिर्फ अटकलें जांच का आधार नहीं:
किसी उत्तराधिकारी की आशंका, बिना ठोस कानूनी आधार के, दोबारा कार्यवाही नहीं करा सकती। - रिकॉर्ड विधिसम्मत रूप से नष्ट:
सभी आवश्यक दस्तावेज समयानुसार विधिक प्रक्रिया में नष्ट कर दिए गए थे।
🔷 विधिक सिद्धांत:
- प्रोबेट एक न्यायिक आदेश है, जो वसीयत की वैधता को अंतिम रूप से मान्यता देता है।
- एक बार प्रोबेट जारी हो जाए और निष्पादक द्वारा कर्तव्यों का पालन कर लिया जाए, तब बिना किसी दोष के आरोप के, उसकी पुनरावलोकन की मांग अस्वीकार्य होती है।
🔷 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले में यह सिद्ध किया कि न्यायिक प्रक्रिया का सम्मान करते हुए, प्रोबेट एक अंतिम और निर्णायक प्रमाण है, और उसके निष्पादन के दशकों बाद बिना आधार के की गई जांच या प्रति की मांग न्यायहित में नहीं है। यह फैसला वसीयत कानून में स्थायित्व, निष्पादन की निश्चितता, और अनुमान के विरुद्ध न्यायिक संरक्षण का मजबूत उदाहरण है।