लेख शीर्षक:
“पंजीकृत वसीयत की प्रामाणिकता नहीं, बल्कि उसकी विधिसम्मत निष्पादन है आवश्यक: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय ‘Dhani Ram बनाम Shiv Singh'”
पूरा लेख:
सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण फैसला: वसीयत का पंजीकरण उसकी वैधता की गारंटी नहीं है
🔷 केस शीर्षक: Dhani Ram (Dead) Through Legal Representatives vs. Shiv Singh
🔷 सिविल अपील संख्या: 8172 / 2009
🔷 निर्णय दिनांक: 6 अक्टूबर 2023
🔷 न्यायालय: भारत का सर्वोच्च न्यायालय
भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने एक अहम निर्णय में यह स्पष्ट किया कि वसीयत (Will) का केवल पंजीकरण (Registration) उसकी प्रामाणिकता (Authenticity) या वैधता (Validity) को सिद्ध नहीं करता, बल्कि वसीयत को न्यायालय में प्रमाणित करने के लिए उसके निष्पादन (Execution) और सत्यापन (Attestation) की प्रक्रिया विधिसम्मत होनी चाहिए।
🔷 न्यायालय की मुख्य टिप्पणी:
न्यायालय ने कहा:
“Section 63(c) of the Indian Succession Act, 1925 के अनुसार, वसीयत का निष्पादन दो गवाहों (witnesses) की उपस्थिति में होना चाहिए, जिन्होंने वसीयतकर्ता के हस्ताक्षर या अंगूठा निशान को उसके सामने देखा हो और वे गवाह भी वसीयतकर्ता की उपस्थिति में हस्ताक्षर करें।”
सुप्रीम कोर्ट ने यह दोहराया कि भले ही वसीयत का पंजीकरण किया गया हो, उसके निष्पादन (execution) और विधिवत गवाही (attestation) को प्रमाणित करना आवश्यक है। केवल रजिस्ट्री कार्यालय में दस्तावेज़ का दर्ज होना यह साबित नहीं करता कि वसीयत वास्तविक और स्वेच्छा से बनाई गई है।
🔷 निर्णय के मुख्य बिंदु:
- पंजीकरण आवश्यक नहीं, परंतु सहायक है:
वसीयत का पंजीकरण अनिवार्य नहीं है, लेकिन यदि की गई हो, तो वह अदालत में एक पूरक साक्ष्य (supporting evidence) के रूप में काम करता है। - प्रस्तावक (Propounder) की जिम्मेदारी:
वसीयत को प्रस्तुत करने वाले व्यक्ति को यह सिद्ध करना होगा कि:- वसीयत वैध रूप से निष्पादित हुई,
- यह वसीयतकर्ता की स्वतंत्र इच्छा से बनाई गई,
- निष्पादन के समय वसीयतकर्ता सक्षम और मानसिक रूप से स्वस्थ था।
- गवाहों की भूमिका महत्वपूर्ण:
केवल पंजीकरण पर्याप्त नहीं, बल्कि दो स्वतंत्र और विश्वसनीय गवाहों द्वारा वसीयत का साक्ष्य दिया जाना आवश्यक है। - संदिग्ध परिस्थितियों की जांच:
यदि वसीयत किसी भी प्रकार की संदेहास्पद परिस्थिति में बनी हो – जैसे कि अंतिम समय पर संपत्ति में बदलाव या परिजनों को हटाना – तो न्यायालय अधिक कठोर प्रमाण मांग सकता है।
🔷 कानूनी संदर्भ:
- भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 (Indian Succession Act, 1925)
- धारा 63(c): वसीयत के निष्पादन की विधि
- साक्ष्य अधिनियम, 1872
- वसीयत संबंधी दस्तावेजों के प्रमाण की प्रक्रिया
🔷 निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय ने यह स्पष्ट किया है कि वसीयत का पंजीकरण केवल प्रक्रिया का एक भाग है, यह उसकी सत्यता का प्रमाण नहीं है। प्रस्तावक को यह सुनिश्चित करना होगा कि वसीयत विधिसम्मत रूप से बनाई गई, निष्पादित और सत्यापित हुई हो। इस फैसले से यह सिद्ध होता है कि न्यायालय केवल दस्तावेज़ की उपस्थिति से नहीं, बल्कि उसके निष्पादन की परिस्थितियों और प्रक्रिया की गहराई से जांच करता है।