“स्त्रीधन पर महिलाओं का पूर्ण और निरपेक्ष अधिकार: सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय”
परिचय
सुप्रीम कोर्ट ने अपने हालिया फैसले में स्त्रीधन (Stridhan) की कानूनी स्थिति को एक बार फिर स्पष्ट करते हुए कहा कि स्त्रीधन केवल और केवल महिला की व्यक्तिगत संपत्ति है, और इस पर पति या पिता का कोई अधिकार नहीं हो सकता, चाहे महिला विवाहित हो, तलाकशुदा हो या अविवाहित।
इस निर्णय ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 14 और दहेज निषेध अधिनियम, 1961 की धारा 6 के अंतर्गत महिला के अधिकारों की रक्षा करते हुए यह दोहराया कि स्त्रीधन महिला की पूर्ण संपत्ति है, जिस पर कोई अन्य दावा नहीं कर सकता।
स्त्रीधन क्या है?
स्त्रीधन वह संपत्ति होती है जो किसी महिला को विवाह के समय, विवाह के उपरांत, जन्मदिन, त्योहारों, या अन्य किसी अवसर पर उसे माता-पिता, पति, सास-ससुर, रिश्तेदारों अथवा मित्रों द्वारा दी जाती है। यह उसकी व्यक्तिगत संपत्ति होती है, और कानूनन उस पर उसका पूर्ण अधिकार होता है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय: प्रमुख बिंदु
- स्त्रीधन पर महिला का पूर्ण स्वामित्व:
कोर्ट ने स्पष्ट किया कि स्त्रीधन पर केवल महिला का अधिकार होता है, और इसमें पति या पिता का कोई दावा मान्य नहीं है। - विवाहित या तलाकशुदा महिला – अधिकार समान:
कोर्ट ने दोहराया कि चाहे महिला विवाहिता हो या तलाकशुदा, उसका स्त्रीधन उसकी निजी संपत्ति बना रहता है, और किसी भी परिस्थिति में उस पर पति का दावा नहीं बनता। - पिता का अधिकार भी अस्वीकार्य:
यदि पुत्री जीवित है और अपने स्त्रीधन की वसूली के लिए सक्षम है, तो पिता को भी उस पर कोई कानूनी अधिकार नहीं होता। - कानून का उद्देश्य:
यह निर्णय महिलाओं की आर्थिक स्वतंत्रता और स्वायत्तता की रक्षा करता है। यह भी कहा गया कि यदि महिला का स्त्रीधन जबरन ले लिया गया हो, तो वह कानूनी माध्यम से उसकी वसूली कर सकती है। - धारा 6, दहेज निषेध अधिनियम और धारा 14, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम:
- धारा 6 – यदि पति या उसके परिजन स्त्रीधन को वापस नहीं करते, तो यह दंडनीय अपराध है।
- धारा 14 – कोई भी स्त्रीधन महिला की पूर्ण संपत्ति के रूप में माना जाएगा।
महत्व और प्रभाव
- महिलाओं के संपत्ति अधिकारों की पुष्टि
- दहेज संबंधी विवादों में न्यायिक मार्गदर्शन
- आर्थिक आत्मनिर्भरता को बल
- स्त्रीधन की रक्षा हेतु स्पष्ट कानूनी ढांचा
निष्कर्ष
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय महिलाओं के अधिकारों की सुरक्षा और उनके स्वाभिमान की रक्षा में एक ऐतिहासिक कदम है। स्त्रीधन केवल एक सामाजिक परंपरा नहीं, बल्कि एक कानूनी अधिकार है, और यह निर्णय इस अधिकार को स्पष्ट, संप्रभु और अडिग बनाता है।
अब यह पूरी तरह से स्पष्ट है कि स्त्रीधन पर केवल महिला का अधिकार है, चाहे वह विवाहित हो या नहीं, और किसी पुरुष—पति या पिता—का उस पर कोई वैधानिक अधिकार नहीं।
संदर्भ:
- Supreme Court Judgment – 2025
- Hindu Succession Act, 1956 – Section 14
- Dowry Prohibition Act, 1961 – Section 6
- केस संदर्भ: XYZ vs ABC, Supreme Court, 2025
- पूर्व निर्णय: Pratibha Rani v. Suraj Kumar (1985), Ramesh Chand v. Premlata Chauhan (2004)