“विशिष्ट प्रदर्शन वाद में पावर ऑफ अटॉर्नी धारक गवाह नहीं बन सकता वादी की ओर से: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”

“विशिष्ट प्रदर्शन वाद में पावर ऑफ अटॉर्नी धारक गवाह नहीं बन सकता वादी की ओर से: सुप्रीम कोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय”


भूमिका:
Specific Relief Act के अंतर्गत Specific Performance (विशिष्ट प्रदर्शन) का वाद तब किया जाता है जब वादी अनुबंध की शर्तों को न्यायालय द्वारा बाध्यकारी रूप से लागू कराना चाहता है। इस प्रक्रिया में सबसे महत्वपूर्ण पहलू है — वादी की “तैयारी और इच्छा” (Readiness and Willingness)।

सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में स्पष्ट किया है कि ऐसे मामलों में केवल Power of Attorney (POA) धारक द्वारा गवाही देना पर्याप्त नहीं है। वास्तविक वादी (Plaintiff) को स्वयं गवाही देनी चाहिए और प्रतिपरीक्षा (cross-examination) का सामना करना चाहिए।


प्रकरण का सारांश:
वाद था विशिष्ट प्रदर्शन (Specific Performance) का, जिसमें वादी ने दावा किया कि अनुबंध के सभी शर्तों का पालन करने के लिए वह हमेशा तैयार और इच्छुक था। परंतु, वादी ने स्वयं गवाही नहीं दी, बल्कि अपने पावर ऑफ अटॉर्नी धारक को अदालत में प्रस्तुत किया।

मुख्य तर्क और प्रश्न:

  1. क्या Power of Attorney Holder वादी की ओर से “तैयारी और इच्छा” साबित कर सकता है?
  2. क्या वादी का स्वयं गवाही न देना उसके दावे को कमजोर करता है?
  3. क्या बिना सभी सह-मालिकों की सहमति के अनुबंध वैध है?

सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:

“A power of attorney holder cannot depose on behalf of the principal regarding the latter’s readiness and willingness to perform the contract. Such facts require personal knowledge and examination of the plaintiff himself.”

न्यायालय के प्रमुख अवलोकन:

  1. वादी की गवाही आवश्यक:
    • अनुच्छेद 12, Specific Relief Act के अंतर्गत वादी को यह सिद्ध करना आवश्यक है कि वह अनुबंध की सभी शर्तों को पूरा करने के लिए हमेशा तैयार और इच्छुक था।
    • यह सिद्ध करने के लिए वादी को स्वयं गवाही देना और प्रतिपरीक्षा झेलना आवश्यक है।
  2. Power of Attorney की सीमा:
    • POA धारक केवल उन्हीं कृत्यों की गवाही दे सकता है जो उसने स्वयं किए हों।
    • वह ऐसे तथ्यों की गवाही नहीं दे सकता जो वादी की मानसिक स्थिति, मंशा, या व्यक्तिगत जानकारी पर आधारित हों।
  3. प्रमुख त्रुटि:
    • उच्च न्यायालय द्वारा POA धारक की गवाही को पर्याप्त मान लेना विधिक दृष्टिकोण से गलत था।
    • सुप्रीम कोर्ट ने इस त्रुटि को गंभीर बताया और स्पष्ट किया कि यह न्यायिक प्रक्रिया की बुनियादी अवधारणाओं के विरुद्ध है।
  4. POA का प्रमाण:
    • उत्तरदाताओं ने यह भी तर्क दिया कि ट्रायल में POA का विधिपूर्वक प्रमाण नहीं दिया गया था।
    • साथ ही, यह भी उजागर हुआ कि जिस अनुबंध का निष्पादन हुआ वह सभी सह-मालिकों द्वारा हस्ताक्षरित नहीं था, जिससे उसकी वैधता संदेहास्पद हो गई।
  5. विलंब का प्रभाव:
    • वादी ने वाद दायर करने में देरी की थी — वह भी तब जब उसे पूर्व लेन-देन और नोटिस की जानकारी थी।
    • यह देरी भी यह दर्शाती है कि वादी तत्पर नहीं था और उसकी “तैयारी व इच्छा” संदेह के घेरे में आती है।

निष्कर्ष:
यह निर्णय स्पष्ट करता है कि Specific Performance जैसे मामलों में वादी की व्यक्तिगत उपस्थिति और गवाही अत्यावश्यक है। Power of Attorney धारक की गवाही केवल सीमित स्थितियों में मान्य हो सकती है। वादी को यह सिद्ध करना होगा कि वह न केवल अनुबंध से बंधा हुआ था, बल्कि उसने समय पर सभी आवश्यक कदम उठाए। विलंब और अप्रत्यक्ष गवाही ऐसे मामलों को कमजोर कर सकती है।


महत्व और प्रभाव:

  • यह निर्णय Order 3 Rule 1 और 2 CPC की सीमाओं की व्याख्या करता है।
  • POA धारकों द्वारा दुरुपयोग और साक्ष्य प्रक्रिया के दुरुपयोग पर रोक लगाता है।
  • विशेष प्रदर्शन से संबंधित मुकदमों में सत्यापन के मापदंडों को सख्त करता है।
  • न्यायिक दृष्टिकोण को मजबूत करता है कि व्यक्तिगत दावे व्यक्तिगत गवाही से ही साबित होने चाहिए।