“बंटवारा वाद में विवादित पारिवारिक संबंधों के प्रमाण हेतु केवल मौखिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णायक दृष्टिकोण”

“बंटवारा वाद में विवादित पारिवारिक संबंधों के प्रमाण हेतु केवल मौखिक साक्ष्य पर्याप्त नहीं: कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णायक दृष्टिकोण”


भूमिका:
पारिवारिक बंटवारे से संबंधित मुकदमों में यह सामान्य प्रवृत्ति रही है कि पक्षकार अपने दावों को स्थापित करने के लिए मौखिक गवाहों पर निर्भर रहते हैं। किन्तु, जब ऐसे गवाह पक्ष विशेष से संबंधित होते हैं और उनके बयानों में विशिष्ट तथ्यात्मक स्पष्टता नहीं होती, तो केवल मौखिक साक्ष्य के आधार पर दशकों पुराने और विधिक रूप से पंजीकृत दस्तावेजों को नकारा नहीं जा सकता। कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में इस सिद्धांत को स्पष्ट करते हुए कहा है कि:

“Oral evidence, especially from interested witnesses lacking specific details, cannot establish a disputed familial relationship in a partition suit when it contradicts reliable, decades-old registered documentary evidence where the claimed relationship is notably absent.”


प्रकरण की पृष्ठभूमि:
एक पारिवारिक बंटवारा वाद में वादी ने यह दावा किया कि वह भी संयुक्त परिवार का सदस्य है और उसे संपत्ति में बराबरी का अधिकार मिलना चाहिए। उसने कुछ मौखिक गवाहों के आधार पर यह साबित करने का प्रयास किया कि वह परिवार से संबंधित है। दूसरी ओर, प्रतिवादी ने ऐसे पंजीकृत दस्तावेज प्रस्तुत किए जो 30–40 वर्षों पुराने थे, जिनमें उस व्यक्ति का नाम या किसी प्रकार की पारिवारिक संबंध की पुष्टि नहीं होती थी।


मुख्य मुद्दा:
क्या केवल मौखिक साक्ष्य — विशेष रूप से पक्षकार के हित में दिए गए गवाहों के बिना विशेष विवरण के बयान — दशकों पुराने प्रामाणिक दस्तावेजी साक्ष्यों को परास्त कर सकते हैं, खासकर जब उन दस्तावेजों में उक्त दावा किए गए पारिवारिक संबंध का कोई संकेत तक नहीं होता?


कर्नाटक उच्च न्यायालय का निर्णय:
न्यायालय ने निम्नलिखित प्रमुख अवलोकन किए:

  1. प्रामाणिक दस्तावेजों की श्रेष्ठता:
    दशकों पुराने पंजीकृत दस्तावेजों को, जो कानूनी प्रक्रिया के अंतर्गत बनाए गए हों और जिन पर कोई संदेह या विवाद न हो, उन्हें सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाती है।
  2. मौखिक साक्ष्य की सीमाएँ:
    मौखिक साक्ष्य, जब अस्पष्ट हो, पक्षकार के हित में हो, और उसमें ठोस व विशिष्ट विवरण न हों, तब वह विश्वसनीय दस्तावेजी साक्ष्य को परास्त नहीं कर सकता।
  3. संबंध स्थापित करने की जिम्मेदारी:
    पारिवारिक संबंध का दावा करने वाले व्यक्ति पर यह दायित्व है कि वह ठोस और दस्तावेजी रूप से यह साबित करे कि वह परिवार का सदस्य है। केवल कथन या गवाहों के बयानों से यह स्थापित नहीं किया जा सकता।

न्यायालय ने कहा:

“सिर्फ यह कहना कि मैं उनका रिश्तेदार हूं, जबकि दशकों पुराने बंटवारा, खाता-बही, वसीयत, क्रय-विक्रय व अन्य पंजीकृत दस्तावेजों में आपका कोई उल्लेख नहीं है, तो आप केवल मौखिक गवाही के बल पर न्यायालय को यह मानने को बाध्य नहीं कर सकते कि आपका दावा सही है।”


पूर्व निर्णयों से समर्थन:

  • Subramani v. Muthuraju (2007) 6 SCC 89
  • Bharat Singh v. Bhagirathi (1966) SCR (1) 606
    इन मामलों में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जब दस्तावेज मौन हों या किसी व्यक्ति का नाम अनुपस्थित हो, तो मौखिक गवाही में विशेष सटीकता और विश्वसनीयता होनी चाहिए।

निष्कर्ष:
यह निर्णय पारिवारिक बंटवारा मुकदमों में एक महत्वपूर्ण न्यायिक मार्गदर्शक बन गया है। यह साफ करता है कि दस्तावेजी साक्ष्य का मूल्य अत्यधिक है और केवल अपने पक्ष में मौखिक बयान दिलवाकर कोई भी व्यक्ति संपत्ति के अधिकार का दावा नहीं कर सकता। यह पारिवारिक संपत्ति विवादों में फर्जी दावों को रोकने की दिशा में एक सशक्त कदम है।


प्रभाव और विधिक महत्व:

  • दस्तावेज़ों की वैधता को पुष्टि मिली।
  • झूठे पारिवारिक संबंध गढ़ने की प्रवृत्ति पर रोक।
  • साक्ष्य अधिनियम की धारा 91 और 92 की व्याख्या और पुष्टि।
  • बंटवारे संबंधी मुकदमों में गहराई से जाँच की आवश्यकता पर बल।