“पति के नाम खरीदी संपत्ति भी स्त्री की स्वयं अर्जित संपत्ति मानी जाएगी: कर्नाटक उच्च न्यायालय का ऐतिहासिक निर्णय”
विस्तृत लेख:
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई पत्नी अपनी स्वयं की आय या धन से किसी संपत्ति को खरीदती है, लेकिन वह संपत्ति अपने पति के नाम पर दर्ज कराती है, तो वह संपत्ति ‘स्त्री की स्वयं अर्जित (Self-acquired)’ संपत्ति मानी जाएगी और उस पर Benami Transactions (Prohibition) Act, 1988 की रोक लागू नहीं होगी।
🔍 पृष्ठभूमि:
यह मामला उस स्थिति से संबंधित था जहाँ एक महिला ने अपनी मेहनत और आय से संपत्ति खरीदी, लेकिन उसे अपने पति के नाम पर दर्ज कराया। विवाद तब उत्पन्न हुआ जब यह संपत्ति परिवारिक विवादों का विषय बनी और इसे ‘Benami’ संपत्ति के रूप में प्रस्तुत किया गया।
⚖️ न्यायालय का दृष्टिकोण:
कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि:
- Benami Transactions (Prohibition) Act, 1988 की धारा 2(9)(A)(b) यह स्पष्ट करती है कि यदि कोई पुरुष अपने पत्नी के नाम पर संपत्ति खरीदता है, तो वह बेनामी नहीं मानी जाएगी, जब तक कि यह साबित न हो कि संपत्ति वास्तव में पत्नी के लिए नहीं थी।
- यह तर्क परस्परता (Reciprocity) के आधार पर स्त्रियों पर भी लागू होना चाहिए। यदि पत्नी ने अपने धन से संपत्ति खरीदी और उसे पति के नाम पर दर्ज कराया है, तो वह संपत्ति भी बेनामी नहीं मानी जाएगी।
- यह निर्णय इस दृष्टिकोण को पुष्ट करता है कि कानून में लैंगिक समानता (gender equality) का सिद्धांत निहित है और उसमें स्त्री-पुरुष के बीच कोई भेद नहीं होना चाहिए।
🧾 प्रमुख अवलोकन:
- न्यायालय ने कहा कि ऐसी संपत्ति पर महिला का पूर्ण अधिकार है, भले ही वह पति के नाम दर्ज हो।
- Benami अधिनियम का उद्देश्य काले धन को रोकना और छिपी संपत्तियों को सामने लाना है, न कि वैध पारिवारिक वित्तीय व्यवस्थाओं को दंडित करना।
- ऐसे लेनदेन, जहाँ धन की वैध स्रोत और वास्तविक स्वामित्व स्पष्ट है, उन्हें कानून की परिधि से बाहर रखा जाना चाहिए।
📌 निर्णय का महत्व:
यह निर्णय विशेष रूप से उन महिलाओं के लिए एक बड़ी राहत है जो आर्थिक रूप से स्वतंत्र हैं और पारिवारिक या सामाजिक कारणों से संपत्ति अपने पति या परिवार के सदस्यों के नाम पर दर्ज कराती हैं।
यह न्यायिक दृष्टिकोण यह भी दर्शाता है कि भारतीय न्यायपालिका महिलाओं की संपत्ति अधिकारों को लेकर अब अधिक संवेदनशील और स्पष्ट दृष्टिकोण अपना रही है।
निष्कर्ष: कर्नाटक उच्च न्यायालय का यह फैसला न केवल Benami कानून की व्याख्या को स्पष्ट करता है, बल्कि यह भी स्थापित करता है कि विवाहित स्त्रियों की स्वयं अर्जित संपत्ति पर उनका पूर्ण अधिकार है, चाहे वह संपत्ति किसी और के नाम पर क्यों न दर्ज हो। यह निर्णय लैंगिक न्याय और संपत्ति अधिकारों के क्षेत्र में एक मील का पत्थर माना जाएगा।