लेख शीर्षक:
“बच्चे की कस्टडी हेतु हेबियस कॉर्पस याचिका: असाधारण परिस्थितियों में ही हस्तक्षेप – पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट का निर्णय (Pinki Rani v. State of Haryana, 2025)”
भूमिका:
हेबियस कॉर्पस (Habeas Corpus) writ एक मौलिक संवैधानिक उपचार है, जिसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को अवैध या गैर-कानूनी हिरासत से मुक्त कराना होता है। जब यह उपाय नाबालिग बच्चों के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, तब न्यायालय इस अधिकार क्षेत्र का प्रयोग बहुत ही संवेदनशीलता और संयम से करता है।
पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने Pinki Rani v. State of Haryana & Others, 2025 मामले में स्पष्ट किया कि जब तक कोई स्पष्ट रूप से गैर-कानूनी या अवैध निरुद्धता (illegal detention) नहीं दिखाई देती, तब तक बच्चे की कस्टडी के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका स्वीकार नहीं की जा सकती।
मामले का सार:
- याचिकाकर्ता Pinki Rani ने अपने नाबालिग बच्चे की कस्टडी के लिए हेबियस कॉर्पस याचिका दाखिल की थी।
- उसका तर्क था कि बच्चा गैर-कानूनी रूप से प्रतिवादी पक्ष (संभवत: पति या ससुराल पक्ष) के पास है और उसे सौंपा जाना चाहिए।
- राज्य और प्रतिवादी पक्ष ने दावा किया कि बच्चे की हिरासत उनके पास वैधानिक और पारिवारिक अधिकारों के तहत है, और कोई अवैधता नहीं है।
न्यायालय का दृष्टिकोण:
1. हेबियस कॉर्पस की प्रकृति:
- हेबियस कॉर्पस एक “प्रेरोगेटिव रेमेडी (Prerogative Remedy)” है, जो केवल तब लागू होता है जब व्यक्ति की स्वतंत्रता का स्पष्ट उल्लंघन हो रहा हो।
- यह कोई साधारण वैकल्पिक उपचार नहीं है जो हर कस्टडी विवाद में अपनाया जा सके।
2. बच्चों के संबंध में न्यायिक संतुलन:
- नाबालिग बच्चों की कस्टडी के मामलों में अदालत यह देखती है कि क्या हिरासत “स्पष्ट रूप से अवैध या गैर-कानूनी” है।
- केवल इस आधार पर कि बच्चा याची के पास नहीं है, हेबियस कॉर्पस का आदेश पारित नहीं किया जा सकता।
3. वैकल्पिक उपचार का महत्व:
- ऐसे मामलों में, जहां पारिवारिक या सिविल उपचार उपलब्ध हैं (जैसे कि गार्जियन एंड वॉर्ड्स एक्ट या हिंदू अल्पवयस्कता संरक्षण अधिनियम के अंतर्गत), याचिकाकर्ता को पहले वहां राहत मांगनी चाहिए।
- रिट अदालतों को कस्टडी विवादों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिए जब तक कि मामला अत्यंत असामान्य और आपात न हो।
न्यायालय का निर्णय:
- चूंकि इस मामले में बच्चे की हिरासत प्रतिवादी द्वारा नियमित पारिवारिक संबंधों के तहत की जा रही थी और उसमें कोई स्पष्ट अवैधता नहीं पाई गई —
➡️ याचिका को खारिज कर दिया गया और याचिकाकर्ता को उपयुक्त सिविल/पारिवारिक विधिक उपाय अपनाने की स्वतंत्रता दी गई।
महत्वपूर्ण सिद्धांत (Legal Principles Established):
- हेबियस कॉर्पस का प्रयोग कस्टडी विवादों में सीमित है और यह केवल तभी प्रयोग किया जा सकता है जब हिरासत स्पष्ट रूप से अवैध हो।
- फैमिली कोर्ट और सिविल कोर्ट ऐसे मामलों को हल करने के लिए बेहतर मंच हैं।
- बच्चे के सर्वश्रेष्ठ हित (Best Interest of Child) को केंद्र में रखते हुए निर्णय होना चाहिए, न कि केवल संवैधानिक अधिकारों के आधार पर।
निष्कर्ष:
Pinki Rani बनाम State of Haryana के इस फैसले ने पुनः यह स्थापित किया है कि हेबियस कॉर्पस की अधिकारिता (jurisdiction) विशेष और अपवादात्मक परिस्थितियों में ही प्रयोग की जानी चाहिए, विशेषकर जब विषय नाबालिग बच्चों की कस्टडी से जुड़ा हो। यह निर्णय न्यायिक विवेक, बालहित और प्रक्रियात्मक संतुलन का आदर्श उदाहरण है।