“संयुक्त संपत्ति में हिस्सेदारी व लेखा-जोखा: सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – व्यवसायिक उपयोग पर भी सहस्वामियों को देना होगा मुआवज़ा”
भूमिका:
भारत के सुप्रीम कोर्ट ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में यह स्पष्ट किया है कि संयुक्त स्वामित्व (Joint Ownership) वाली संपत्ति में, यदि कोई सहस्वामी संपत्ति के किसी हिस्से का उपयोग व्यक्तिगत व्यापार के लिए करता है, तो वह इस आधार पर लेखा-जोखा (rendition of accounts) से मुक्त नहीं हो सकता कि उसने वह हिस्सा किराए पर नहीं दिया है। यह फैसला न केवल संपत्ति कानून बल्कि सिविल प्रक्रिया संहिता (CPC) की व्याख्या के लिहाज से भी अत्यंत महत्वपूर्ण है।
प्रमुख कानूनी प्रावधान:
- Order 20 Rule 18(2) – संयुक्त संपत्ति के बंटवारे से संबंधित निर्णय
- Order 39 Rule 1 & 2 – अंतरिम निषेधाज्ञा (Temporary Injunctions)
- Section 151 CPC – न्यायालय की अन्तर्निहित शक्ति (Inherent Powers)
मामले का संक्षिप्त तथ्य:
- वादी ने संयुक्त स्वामित्व वाली संपत्ति के बंटवारे और लेखा-जोखा के लिए मुकदमा दायर किया।
- मुकदमे की लंबितता के दौरान प्रतिवादी ने कुछ हिस्से तीसरे पक्ष को बेच दिए।
- खरीदारों ने यह तर्क दिया कि वे अपने हिस्से में स्वयं व्यापार चला रहे हैं, इसलिए कोई किराया नहीं मिल रहा और न ही आय उत्पन्न हो रही है, अतः उन्हें लेखा देने की आवश्यकता नहीं।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
A. सहस्वामी द्वारा व्यक्तिगत उपयोग का औचित्य नहीं बनता:
- प्रतिवादी 3(a), जिसकी 1% हिस्सेदारी थी और जिसे भूतल का आधा भाग मिला, को खाली कब्जा पूर्व मालिक से मिला।
- सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि चाहे उसने संपत्ति किराए पर न दी हो, वह अन्य सहस्वामियों को हानि के लिए मुआवज़ा देने का उत्तरदायी रहेगा।
- हाई कोर्ट द्वारा उसे लेखा देने से मुक्त करना विधिक रूप से अस्थिर है।
B. व्यवसायिक उपयोग से मुक्त नहीं होता उत्तरदायित्व:
- प्रतिवादी यह तर्क नहीं दे सकते कि वे केवल अपने हिस्से में हैं, जबकि बंटवारे का निर्णय अभी नहीं हुआ है।
- यदि जांच से यह साबित होता है कि प्रतिवादी ने अपनी हिस्सेदारी से अधिक हिस्से पर कब्जा कर रखा है, तो उन्हें दो विकल्प दिए गए:
- विकल्प 1: पूरी कब्जा की गई संपत्ति के लिए साझा कोष (common fund) में योगदान दें और बाद में उस कोष से अपनी हिस्सेदारी प्राप्त करें।
- विकल्प 2: केवल अपनी हिस्सेदारी से अधिक कब्जे वाले हिस्से के लिए मुआवज़ा दें और उस कोष से कोई हिस्सा न लें।
- यह विकल्प ट्रायल कोर्ट द्वारा किराया निर्धारण से पहले अपनाना आवश्यक है, बाद में नहीं।
निर्णय का प्रभाव और महत्व:
- सहस्वामित्व की नैतिक जिम्मेदारी को रेखांकित करता है।
- संयुक्त संपत्ति के उपयोग की सीमा और हिस्सेदारी का स्पष्ट निर्धारण आवश्यक है।
- व्यवसायिक या व्यक्तिगत उपयोग होने पर भी अन्य सहस्वामियों को आर्थिक नुकसान नहीं उठाना चाहिए।
- फर्स्ट अपीलेट कोर्ट द्वारा केवल कथन के आधार पर लेखा से छूट देना न्यायसंगत नहीं है।
निष्कर्ष:
सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय संपत्ति विवादों में पारदर्शिता, उत्तरदायित्व, और न्यायसंगत वितरण को स्थापित करता है। यह स्पष्ट करता है कि संपत्ति से होने वाले लाभ पर सभी सहस्वामियों का समान अधिकार है और उसका स्वेच्छा से उपयोग करने वाला व्यक्ति दूसरों के हिस्से की क्षतिपूर्ति करने के लिए बाध्य है — भले ही उसने संपत्ति किराए पर न दी हो, बल्कि उसका उपयोग निजी व्यापार के लिए ही क्यों न किया हो।