📰 सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक निर्णय: FIR दर्ज करने से इनकार करने पर पुलिस अधिकारी को 2 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश
मामला: Pavul YSU Dhasan v/s The Registrar, State Human Rights Commission of Tamil Nadu & Others, 2025 SC (C.A. No. 6358 of 2025)
न्यायालय: सर्वोच्च न्यायालय
वर्ष: 2025
विषय: FIR दर्ज करने से पुलिस का इनकार, अपमानजनक भाषा का प्रयोग, मानव अधिकारों का उल्लंघन, मुआवजा
🔎 मामले का संक्षिप्त विवरण:
इस केस में याचिकाकर्ता Pavul YSU Dhasan ने आरोप लगाया कि जब वह एक अपराध की रिपोर्ट दर्ज कराने पुलिस थाने गया, तो संबंधित पुलिस निरीक्षक (Police Inspector) ने एफआईआर दर्ज करने से इनकार कर दिया। इतना ही नहीं, शिकायतकर्ता की माँ के साथ अपमानजनक और अशोभनीय भाषा का प्रयोग किया गया।
शिकायत तमिलनाडु राज्य मानवाधिकार आयोग (State Human Rights Commission of Tamil Nadu) के समक्ष की गई। आयोग ने पाया कि यह घटना मानव गरिमा के अधिकार और नागरिक अधिकारों का उल्लंघन है।
⚖️ मानवाधिकार आयोग का निर्णय:
- पुलिस निरीक्षक द्वारा की गई कार्रवाई को आयोग ने गंभीर मानवीय और संवैधानिक उल्लंघन माना।
- आयोग ने 2 लाख रुपये का मुआवजा शिकायतकर्ता को देने का आदेश दिया।
🏛️ सुप्रीम कोर्ट का फैसला:
सुप्रीम कोर्ट ने राज्य मानवाधिकार आयोग के निर्णय को पूरी तरह सही और वैध ठहराया और कहा कि:
“एक नागरिक जो अपराध की रिपोर्ट करने के लिए पुलिस स्टेशन जाता है, उसे अपराधी जैसा नहीं, बल्कि गरिमापूर्ण व्यवहार मिलना चाहिए। यह उसका मौलिक अधिकार है।“
- सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि पुलिस का यह कर्तव्य है कि वह हर शिकायत को गंभीरता से सुने और वैधानिक प्रक्रिया का पालन करे।
- FIR दर्ज करने से इनकार और अपमानजनक भाषा का प्रयोग न केवल सेवा शर्तों का उल्लंघन है, बल्कि यह मानवाधिकारों का स्पष्ट हनन भी है।
📌 इस निर्णय का महत्व:
- मानव गरिमा की रक्षा: यह निर्णय स्पष्ट करता है कि नागरिकों की गरिमा सर्वोच्च है और राज्य के किसी भी अंग को इसका उल्लंघन करने का अधिकार नहीं है।
- पुलिस की जवाबदेही: पुलिस अधिकारी अब जवाबदेह होंगे यदि वे FIR दर्ज करने से इनकार करते हैं या असभ्य व्यवहार करते हैं।
- न्यायिक निगरानी: यह दर्शाता है कि मानवाधिकार आयोगों के आदेशों की वैधानिक मान्यता सर्वोच्च न्यायालय भी करता है।
- मुआवजा देने की व्यवस्था: राज्य नागरिकों को क्षति के लिए उत्तरदायी होगा यदि उनके अधिकारी संवैधानिक और मानवीय मर्यादाओं का उल्लंघन करते हैं।
✅ निष्कर्ष:
यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र में नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और पुलिस प्रशासन की जवाबदेही सुनिश्चित करने की दिशा में एक मील का पत्थर है। यह न केवल पुलिस की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिह्न उठाता है, बल्कि नागरिकों को यह भरोसा भी देता है कि न्याय की रक्षा की जाएगी — भले ही वह एक छोटे व्यक्ति के लिए ही क्यों न हो।