“Arshnoor Kaur बनाम भारत संघ: सुप्रीम कोर्ट में लैंगिक समानता और भारतीय सेना की JAG प्रवेश योजना में आरक्षण असमानता पर चुनौती”
प्रस्तावना:
भारत के संविधान में समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14) एक मूलभूत अधिकार है, जो सभी नागरिकों को समान अवसर और भेदभाव से मुक्ति की गारंटी देता है। हाल ही में Arshnoor Kaur & Anr. v. Union of India नामक एक महत्वपूर्ण याचिका के माध्यम से, भारतीय सेना की JAG (Judge Advocate General) प्रवेश योजना में लैंगिक असमानता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है। यह मामला न केवल सेना में महिलाओं की भागीदारी से संबंधित है, बल्कि लैंगिक न्याय, योग्यता आधारित चयन और समान अवसर के संवैधानिक सिद्धांतों को भी केंद्र में लाता है।
मामले की पृष्ठभूमि:
- याचिकाकर्ता Arshnoor Kaur और एक अन्य महिला उम्मीदवार हैं, जिन्होंने JAG Entry Scheme 31st Course (Indian Army) के लिए आवेदन किया था।
- दोनों उम्मीदवारों ने उच्च रैंक (क्रमशः 4 और 5) प्राप्त की थी, लेकिन फिर भी चयन सूची में स्थान नहीं मिला।
🔴 कारण:
- महिलाओं के लिए मात्र 3 रिक्तियाँ निर्धारित थीं, जबकि पुरुषों के लिए 6 रिक्तियाँ।
- कम महिला सीटों के कारण, वे पुरुष उम्मीदवारों से अधिक मेरिट में होने के बावजूद चयनित नहीं हो सकीं।
याचिकाकर्ताओं का तर्क:
- अनुच्छेद 14 और 15(1) का उल्लंघन:
समान योग्यता और बेहतर रैंक होने के बावजूद केवल लैंगिक आधार पर वंचित किया गया, जो संविधान के समता सिद्धांत का उल्लंघन है। - सेना में लैंगिक समानता को बढ़ावा देना:
सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व में दिए गए फैसलों में महिलाओं को स्थायी कमीशन और नेतृत्व की भूमिकाओं में लाने की बात कही गई है, और यह असंतुलन उसके विरुद्ध है। - योग्यता आधारित चयन प्रणाली का उल्लंघन:
जब मेरिट सूची में महिला उम्मीदवार पुरुषों से ऊपर हैं, तो सिर्फ आरक्षित सीटों के आधार पर उन्हें बाहर करना न्यायसंगत नहीं है।
उत्तरदाता (भारत सरकार) का पक्ष:
- सेना के संचालन, ऑपरेशनल ज़रूरतें और सेना में महिलाओं के लिए सीमित संख्या में पद— यह रक्षा मंत्रालय की नीति के अनुसार तय किया गया था।
- सीटों का निर्धारण सैनिक आवश्यकता, प्रशिक्षण क्षमता और इकाइयों में महिला अधिकारियों के स्थान को ध्यान में रखते हुए किया गया है।
सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही:
- मुख्य मुद्दा:
क्या लैंगिक आधार पर सीटों का असमान निर्धारण, जबकि महिला उम्मीदवार मेरिट में आगे हों, संवैधानिक समानता के सिद्धांत का उल्लंघन करता है? - कोर्ट ने सुनवाई के बाद निर्णय सुरक्षित रखा है (judgment reserved), यानी शीघ्र ही इस पर अंतिम निर्णय आएगा।
महत्वपूर्ण पहलू और संवैधानिक प्रश्न:
प्रश्न | महत्व |
---|---|
क्या महिला और पुरुष उम्मीदवारों के लिए अलग-अलग सीटें मेरिट के खिलाफ हैं? | योग्यता आधारित चयन की वैधता पर प्रश्न |
क्या यह नीति अनुच्छेद 14 और 15(1) के खिलाफ है? | लैंगिक भेदभाव की संवैधानिक वैधता |
सेना में महिलाओं के लिए सीमित भूमिका का क्या भविष्य है? | महिला सशक्तिकरण और सेना में समावेशन |
पूर्ववर्ती संबंधित निर्णय:
🏛️ Secretary, Ministry of Defence v. Babita Puniya (2020)
सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारियों को स्थायी कमीशन देने का निर्देश दिया था और कहा था कि लैंगिक रूढ़ियों के आधार पर महिलाओं को सीमित नहीं किया जा सकता।
🏛️ Union of India v. Lt. Cdr Annie Nagaraja (2020)
नौसेना में भी महिलाओं को समान सेवा और स्थायी कमीशन देने का आदेश।
निष्कर्ष:
Arshnoor Kaur बनाम भारत संघ का मामला केवल एक प्रवेश परीक्षा की मेरिट की बात नहीं है, बल्कि यह सेना में लैंगिक समानता, योग्यता बनाम आरक्षित कोटा, और संवैधानिक मूल्यों की रक्षा का विषय है। यदि सुप्रीम कोर्ट इस याचिका में याचिकाकर्ताओं के पक्ष में निर्णय देती है, तो यह भारतीय सेना में महिलाओं की भागीदारी के इतिहास में एक मील का पत्थर सिद्ध होगा।