भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 – एक विस्तृत निबंध 

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 – एक विस्तृत निबंध 


परिचय

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 21 सबसे महत्वपूर्ण और व्यापक रूप से व्याख्यायित मौलिक अधिकारों में से एक है। यह कहता है:

“किसी व्यक्ति को उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से केवल विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही वंचित किया जा सकता है।”

यह छोटा-सा वाक्य भारतीय संविधान में हर व्यक्ति को सम्मानपूर्वक जीने और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार देता है। समय के साथ, भारतीय न्यायपालिका ने इस अनुच्छेद की व्याख्या कर इसके दायरे को अत्यंत विस्तृत कर दिया है।


ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

शुरुआती वर्षों में अनुच्छेद 21 की व्याख्या सीमित रूप में की गई थी। ए.के. गोपालन बनाम राज्य मद्रास (1950) केस में सर्वोच्च न्यायालय ने यह माना कि “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया” का मतलब केवल वह प्रक्रिया है जिसे संसद द्वारा विधिपूर्वक पारित किया गया हो — चाहे वह कितनी भी अन्यायपूर्ण क्यों न हो।

परंतु मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978) केस में न्यायपालिका ने एक ऐतिहासिक निर्णय दिया। इसमें कहा गया कि “विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया” केवल विधायी प्रक्रिया नहीं होनी चाहिए, बल्कि वह न्यायसंगत (just), निष्पक्ष (fair), और तर्कसंगत (reasonable) भी होनी चाहिए। इस निर्णय के बाद अनुच्छेद 21 का क्षेत्र बहुत विस्तृत हो गया।


अनुच्छेद 21 का व्यापक अर्थ और व्याख्या

अनुच्छेद 21 अब केवल जीवन और स्वतंत्रता तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसमें अनेक आश्रित अधिकार (Derived Rights) भी शामिल कर लिए गए हैं, जैसे:

  1. सम्मानपूर्वक जीवन जीने का अधिकार
  2. स्वस्थ पर्यावरण का अधिकार
  3. शिक्षा का अधिकार (अब अनुच्छेद 21A द्वारा भी)
  4. स्वास्थ्य सेवाएं प्राप्त करने का अधिकार
  5. निजता का अधिकार (Right to Privacy)Puttaswamy v. Union of India (2017) में इसे मौलिक अधिकार घोषित किया गया
  6. मुफ्त कानूनी सहायता का अधिकार
  7. त्वरित और निष्पक्ष न्याय का अधिकार
  8. जीवन निर्वाह के साधनों तक पहुँच का अधिकार
  9. पानी और भोजन जैसी मूलभूत सुविधाओं का अधिकार

महत्वपूर्ण न्यायिक निर्णय

  1. Francis Coralie Mullin v. Administrator, Union Territory of Delhi (1981):
    न्यायालय ने कहा कि केवल शारीरिक अस्तित्व नहीं, बल्कि गरिमा के साथ जीवन जीने का अधिकार अनुच्छेद 21 में निहित है।
  2. Puttaswamy Case (2017):
    सुप्रीम कोर्ट ने निजता के अधिकार को भी अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग माना।
  3. Olga Tellis v. Bombay Municipal Corporation (1985):
    इस केस में फुटपाथ पर रहने वालों के जीवन निर्वाह के अधिकार को अनुच्छेद 21 से जोड़ा गया।

निष्कर्ष

अनुच्छेद 21 भारतीय संविधान की आत्मा के समान है। यह सुनिश्चित करता है कि किसी भी व्यक्ति को उसके जीवन या स्वतंत्रता से मनमाने तरीके से वंचित नहीं किया जा सकता। यह न केवल व्यक्ति के भौतिक अस्तित्व, बल्कि उसके मानवीय गरिमा के साथ जीवन जीने की गारंटी देता है। न्यायपालिका द्वारा इसकी व्याख्या ने इसे एक जीवंत और विकसित होते मौलिक अधिकार में परिवर्तित कर दिया है।

अतः अनुच्छेद 21 न केवल कानून का प्रावधान है, बल्कि यह हर भारतीय के आत्म-सम्मान और मानव अधिकारों की नींव भी है।