“बचाव कार्य के दौरान NGO कार्यकर्ताओं पर आपराधिक मुकदमा निरस्त: सुप्रीम कोर्ट ने कहा – वैध उद्देश्यों को अपराध नहीं ठहराया जा सकता”
मामला:
Umashankar Yadav & Anr. v. State of Uttar Pradesh
सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया
भूमिका:
सुप्रीम कोर्ट ने एक ऐतिहासिक और संवेदनशील निर्णय में वर्ष 2014 में वाराणसी के एक ईंट भट्टे से बंधुआ मजदूरों और बाल मजदूरों को बचाने के दौरान गिरफ्तार किए गए NGO “गुरिया” (Guria) के सदस्यों के विरुद्ध आपराधिक कार्यवाही को रद्द कर दिया। याचिकाकर्ताओं पर भारतीय दंड संहिता की धारा 186 (लोक सेवक को कार्य से रोकना) और धारा 353 (लोक सेवक पर आपराधिक बल प्रयोग) के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था।
मामले की पृष्ठभूमि:
गुरिया नामक NGO, जो मानव तस्करी के विरुद्ध कार्य करता है, ने वाराणसी के एक ईंट भट्टे से बंधुआ मजदूरों व बाल श्रमिकों को छुड़ाने के लिए एक बचाव अभियान चलाया। इस दौरान कुछ सरकारी अधिकारियों के साथ उनकी कथित कहासुनी और हाथापाई हुई, जिसके आधार पर उनके खिलाफ FIR दर्ज की गई थी।
आरोप:
- धारा 186 IPC: सरकारी कार्य में बाधा डालना
- धारा 353 IPC: सरकारी कर्मचारी पर आपराधिक बल का प्रयोग करना
याचिकाकर्ताओं का तर्क:
- वे वैध रूप से बचाव कार्य में लगे थे और उनके प्रयास संविधान द्वारा संरक्षित थे।
- उन्होंने अधिकारियों को रोकने या बल प्रयोग की कोई आपराधिक मंशा नहीं रखी थी।
- यह पूरी कार्यवाही दुर्भावनापूर्ण थी और जनहित में किए गए कार्यों को अपराध का रूप देना न्यायसंगत नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट का निर्णय:
- न्यायालय ने माना कि NGO कार्यकर्ताओं की मंशा शुद्ध थी और उन्होंने संवैधानिक और मानवीय कर्तव्य का पालन किया।
- अदालत ने कहा कि “सामाजिक कार्यकर्ता जो पीड़ितों के हित में कार्य कर रहे हैं, उन्हें महज तकनीकी आधार पर आपराधिक बना देना कानून का दुरुपयोग होगा।”
- न्यायालय ने FIR और पूरी आपराधिक कार्यवाही को निरस्त करते हुए कहा कि ऐसे मामलों में न्यायपालिका को संवेदनशील और व्यावहारिक दृष्टिकोण अपनाना चाहिए।
न्यायालय की टिप्पणी:
“यदि सामाजिक कार्यकर्ता जो बंधुआ और बाल श्रमिकों की मुक्ति के लिए कार्य कर रहे हैं, उन्हें दंडित किया जाए, तो यह न केवल अन्याय होगा बल्कि संविधान के अनुच्छेद 23 और बाल अधिकारों की अंतरराष्ट्रीय मान्यताओं का भी उल्लंघन होगा।”
निर्णय का प्रभाव:
- यह फैसला देशभर में सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
- यह स्पष्ट करता है कि यदि कार्यकर्ता मानवाधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करते हैं, तो उन्हें आपराधिक प्रक्रिया में घसीटने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
- कानून का उद्देश्य केवल दंड देना नहीं बल्कि न्याय और सामाजिक सुधार को प्रोत्साहित करना है।
निष्कर्ष:
Umashankar Yadav & Anr. v. State of U.P. में सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न्याय, संवेदनशीलता और संविधान के मूल्यों की रक्षा का उत्कृष्ट उदाहरण है। इसने सामाजिक कार्यकर्ताओं के सम्मान और सुरक्षा की पुष्टि करते हुए यह संदेश दिया कि वैध उद्देश्यों के साथ किया गया कार्य अपराध नहीं माना जा सकता।