लेख शीर्षक:
“राष्ट्रीय सुरक्षा पर देरी नहीं, तत्काल कार्रवाई जरूरी: सेलेबी मामले में हाईकोर्ट में सरकार का सख्त रुख”
भूमिका:
राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मामलों में त्वरित और निर्णायक कार्रवाई की आवश्यकता पर सरकार ने एक बार फिर जोर दिया है। दिल्ली हाईकोर्ट में सेलेबी (Celebi Airport Services India Pvt. Ltd.) से जुड़ी सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने साफ शब्दों में कहा कि जब मामला देश की सुरक्षा से जुड़ा हो, तो देरी या प्रक्रियागत शिथिलता की कोई गुंजाइश नहीं होनी चाहिए। सरकार का यह रुख उस समय सामने आया जब जस्टिस सचिन दत्ता की अध्यक्षता वाली पीठ के समक्ष सेलेबी के कार्यों और भूमिका को लेकर गंभीर आपत्तियाँ उठाई गईं।
मामले की पृष्ठभूमि:
सेलेबी एक जानी-मानी निजी ग्राउंड हैंडलिंग एजेंसी है, जिसे हवाई अड्डों पर कार्गो हैंडलिंग, सुरक्षा जांच, एयरक्राफ्ट की सेवाएं और वीआईपी मूवमेंट से संबंधित कार्यों की जिम्मेदारी दी गई है।
सरकार का आरोप है कि सेलेबी को हवाई अड्डे तक सीधी पहुंच, फ्लाइट मूवमेंट की जानकारी और वीआईपी मूवमेंट से जुड़ा संवेदनशील डाटा प्राप्त होता है, जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
सरकार की दलीलें:
सॉलिसिटर जनरल (SG) ने कोर्ट को बताया कि:
- सेलेबी के पास सीधे एयरक्राफ्ट तक पहुंच है, जो किसी भी संदिग्ध गतिविधि के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
- यह एजेंसी वीआईपी मूवमेंट और फ्लाइट मूवमेंट डाटा से परिचित रहती है, जो अत्यंत संवेदनशील सूचना मानी जाती है।
- कार्गो की स्क्रीनिंग, सामग्री की निगरानी, और हवाईअड्डे के अंदरूनी क्षेत्रों में उपस्थिति जैसी महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां सेलेबी के पास हैं।
- ऐसे में यदि किसी स्तर पर सुरक्षा जोखिम हो, तो सरकार को तुरंत कार्यवाही का अधिकार और कर्तव्य है।
क्यों है यह मामला संवेदनशील?
- हवाई अड्डा एक उच्च-सुरक्षा क्षेत्र है जहां हर गतिविधि का सीधा प्रभाव राष्ट्रीय सुरक्षा पर पड़ता है।
- यदि किसी निजी एजेंसी को ऐसे क्षेत्रों में छूट दी जाती है, तो यह खुफिया एजेंसियों और सुरक्षा प्रोटोकॉल के लिए एक चुनौती बन सकता है।
- भारत की सुरक्षा नीति के अनुसार, आंतरिक खतरे भी उतने ही गंभीर हैं जितने बाहरी, और ऐसे में यदि किसी एजेंसी की भूमिका संदेहास्पद हो, तो तत्काल जांच आवश्यक है।
सेलेबी की ओर से संभावित पक्ष:
हालांकि इस सुनवाई में सेलेबी की विस्तृत प्रतिक्रिया सामने नहीं आई, लेकिन पूर्व में ऐसे मामलों में एजेंसियाँ यह दावा करती रही हैं कि:
- वे नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) और अन्य प्राधिकरणों से प्रमाणित हैं।
- उन्होंने सभी सुरक्षा मानकों और प्रोटोकॉल का पालन किया है।
- अगर कोई त्रुटि है, तो वह प्रक्रियात्मक स्तर पर है, न कि राष्ट्रीय खतरे के रूप में।
न्यायालय की भूमिका और आगामी दिशा:
जस्टिस सचिन दत्ता की पीठ ने मामले की गंभीरता को समझते हुए सरकार की दलीलों को ध्यान से सुना। यह स्पष्ट है कि अदालत इस मामले में संतुलित दृष्टिकोण अपनाएगी जिसमें
- राष्ट्रीय सुरक्षा
- संवैधानिक अधिकार
- और व्यापारिक निष्पक्षता — तीनों पक्षों को ध्यान में रखा जाएगा।
निष्कर्ष:
सेलेबी केस एक उदाहरण है कि कैसे आधुनिक भारत में निजीकरण और राष्ट्रीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाना एक बड़ी चुनौती बन चुका है। सरकार द्वारा दिया गया यह बयान कि “राष्ट्रीय सुरक्षा पर देरी नहीं, सीधी कार्रवाई जरूरी…” केवल सेलेबी तक सीमित नहीं बल्कि भविष्य के लिए एक कड़ा संदेश है — कि सुरक्षा के सवाल पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट जैसी संवैधानिक संस्थाएं अब ऐसे मामलों में स्पष्ट और साहसिक रुख ले रही हैं, जो देश की सुरक्षा-संवेदनशीलता को प्राथमिकता देता है।