भारतीय विधि का ऐतिहासिक विकास (Historical Development of Indian Law)

भारतीय विधि का ऐतिहासिक विकास (Historical Development of Indian Law)

भारतीय विधि (Indian Law) का विकास हजारों वर्षों में विभिन्न सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और उपनिवेशवादी परिवर्तनों के साथ हुआ है। यह विकास अनेक चरणों में विभाजित किया जा सकता है, जिनमें प्रमुख हैं: प्राचीन काल, मध्यकाल, ब्रिटिश काल, और स्वतंत्रता के बाद का काल।


1. प्राचीन कालीन विधि व्यवस्था (Ancient Period of Indian Law)

  • इस काल में धर्म ही विधि का आधार था। समाज धर्मशास्त्रों, स्मृतियों, पुराणों और वेदों पर आधारित था।
  • मनुस्मृति, याज्ञवल्क्य स्मृति, नारद स्मृति आदि ग्रंथों में विस्तृत विधिक प्रावधान दिए गए।
  • राजा न्याय करता था, लेकिन निर्णय धार्मिक ग्रंथों और परंपराओं के अनुसार होता था।
  • विवाह, उत्तराधिकार, दान, अपराध और दंड के नियम स्पष्ट रूप से धर्मशास्त्रों में वर्णित थे।

👉 यह विधि व्यवस्था धार्मिक और नैतिक मूल्यों पर आधारित थी।


2. मुस्लिम शासन काल (Medieval Period of Indian Law)

  • इस काल में भारत में मुस्लिम शासन स्थापित हुआ और इस्लामिक कानून (Sharia Law) लागू हुआ।
  • काज़ियों और मुफ्तियों द्वारा न्याय दिया जाता था।
  • फिक्ह (Fiqh) और हदीस (Hadith) पर आधारित कानून मुख्य रूप से मुस्लिम समुदाय पर लागू होता था।
  • हिन्दुओं के लिए धार्मिक विधि बनी रही, और कई बार उनके मामलों में हिन्दू विधियों को मान्यता दी जाती थी।

👉 यह एक मिश्रित विधिक व्यवस्था थी जिसमें समुदाय के अनुसार अलग-अलग कानून लागू होते थे।


3. ब्रिटिश शासन काल (British Period of Indian Law)

  • यह काल भारतीय विधि के आधुनिक स्वरूप का आधार बना।
  • 1772 में वॉरेन हेस्टिंग्स ने पहली बार अंग्रेज़ी विधिक प्रणाली लागू करने का प्रयास किया।
  • कई अधिनियम बनाए गए जैसे:
    • भारतीय दंड संहिता, 1860 (IPC)
    • दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (पहले 1898)
    • भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872
    • सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908
  • अंग्रेजों ने कॉमन लॉ प्रणाली, न्यायपालिका का ढांचा, कानून की शिक्षा, और कोर्ट्स की संरचना भारत में स्थापित की।
  • 1833 में लॉ कमीशन का गठन हुआ, जिसके प्रमुख थे लॉर्ड मैकाले। इसके तहत कई महत्वपूर्ण कानूनों का निर्माण हुआ।

👉 इस युग में भारतीय विधि को कोडिफाई किया गया और न्यायिक संस्थाओं को व्यवस्थित रूप से खड़ा किया गया।


4. स्वतंत्र भारत में विधिक विकास (Post-Independence Legal Development)

  • 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ, जो भारत की सर्वोच्च विधि बन गया।
  • विधायिका को कानून बनाने का अधिकार मिला और कई सामाजिक सुधार अधिनियम बनाए गए, जैसे:
    • हिंदू विवाह अधिनियम, 1955
    • हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956
    • अनुसूचित जाति/जनजाति अत्याचार निवारण अधिनियम, 1989
    • सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005
    • लोकपाल एवं लोकायुक्त अधिनियम, 2013
  • न्यायपालिका स्वतंत्र बनी और लोकहित याचिका (PIL) जैसी अवधारणाएं सामने आईं।
  • विभिन्न क्षेत्रों में विशेष कानूनों का विकास हुआ: पर्यावरण कानून, साइबर कानून, मानव अधिकार कानून आदि।

👉 भारत की विधिक प्रणाली अब एक संवैधानिक लोकतांत्रिक प्रणाली के तहत कार्य कर रही है।


निष्कर्ष (Conclusion):

भारतीय विधि का विकास धार्मिक परंपराओं से शुरू होकर आधुनिक संवैधानिक व्यवस्था तक पहुँचा है। यह एक जीवित प्रणाली है जो समय के साथ समाज की आवश्यकताओं के अनुसार बदलती रहती है। भारत की विधि व्यवस्था अब न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व जैसे संवैधानिक मूल्यों पर आधारित है।